जाने किस बात की वो मुझे साज देती है
मेरी हंसती हुई आंखों को रूला देती है
कभी देखूंगा, मांगकर उससे एक दिन
लोग कहते है मांगों तो खुदा देता है
मुद्दतों से अब तो खबर भी नहीं आती उसकी
इस तरह क्या कोई अपनों को भुला देता है
किस तरह बात लिखूं, दिल की उसे
वो अक्सर दोस्तों को मेरे खत पढ़कर सुना देती है
सामने रख के वो चिरागों के, तस्वीर मेरी
अपने कमरों के चिरागों को बुझा देती है
सबसे अलग मेरा नसीब है
जब भी वे मिलती है, एक जख़्म और देती है।
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