Monday, April 26, 2010
जिन्दगी पीछे छूट जाये
किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना कि
उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा आये
तू पल-पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख, के
काली रात भी रंगीली लगे
आंख खुले तो बर्दाशत न हो
जब सपना टूट-टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे-बैठे आंख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इध जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे में इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बस जाये
भीड़ के बीच भी
लगें तन्हाई से जकड़े गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहां देखों वो ही नज़र आये
राह देख-देख कर
कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
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