औरत, पुरूश को खिलौना समझती है वह खिलौना पुरूश का वह भाग होता है इसका गलत अर्थ मत समझें, खिलौना से मतलब दिल से है जिससे हर वह स्त्री खेलना चाहती है, जो प्यार का अर्थ तक नहीं जानती। वह पुरूश को अपने आगें-पीछे घुमाती रहती है और आदमी पागलों (कुत्ता) की भान्ति उसके पीछे दुम हिलाता रहता है। जब मन चाहा खेला, जब मन चाहा तोड़ दिया, फिर दूसरा ले लिया। यहीं औरत जात की फिदरत होती है। वह कभी एक से प्यार नहीं करती, उसे तो बन-बन के खिलौने चाहिए। पयर करने के लिए और बहुत कुछ। पुरूशों को औरतों से सदा दूरी बनानी चाहिए, उसकी छाया को भी अपने आस-पास मत भटकने देना चाहिए। तभी एक पुरूश सफलता की चोटी पर पहुंच सकता है यहां औरत का मतलब केवल और केवल, पर स्त्री से है न की मां, बहन, पित्न और पुत्री सें।
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