सरोकार की मीडिया

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Saturday, March 31, 2018

दलितों, पिछड़ा और मुसलमानों का विरोधी था- गांधी


दलितों, पिछड़ा और मुसलमानों का विरोधी था- गांधी

सन् 1930-31 में बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर द्वारा अंग्रेज़ सरकार से भारतीयों के लिए  स्वराज देने तथा दलितों के लिए विधानमंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्र देने की मांग रखी थी। प्रथम गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस और गांधी ने भाग नहीं लिया लेकिन दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गांधी ने भाग लिया और अपनी गलत और अमानवीय सोच का परिचय देते हुए दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र और राजनीतिक अधिकार देने का डटकर विरोध किया । गांधी का कहना था कि ‘’दलित वर्ग हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा है, इसलिए दलित वर्ग को हिंदू वर्ग से अलग नहीं किया जा सकता।‘’ गांधी का कहना था कि ‘’मैं प्राणों की बाजी लगाकर इस तरह के राजनीतिक बंटवारे का मैं विरोध करूंगा।‘’
दलितों को मिले अधिकार के विरोध में गांधी ने पुणे की यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया था। अब रही बात कि गांधी नहीं चाहता था कि दलितों को निर्वाचन क्षेत्र में अधिकार मिले,  क्‍योंकि उसने स्‍वयं कहा था कि ‘’मैं प्राणों की बाजी लगाकर इस तरह के राजनीतिक बंटवारे का मैं विरोध करूंगा।‘’ तो क्‍या गांधी भारत और पाकिस्‍तान का बंटवारा चाहता था....जिस प्रकार उसने दलितों को मिलने वाले अधिकार के विरोध में आमरण अनशन शुरू कर दिया था उसी प्रकार भारत और पाकिस्‍तान के विभाजन पर भी कर सकता था। परंतु नहीं किया... क्‍योंकि वह चाहता था कि भारत और पाकिस्‍तान का विभाजन हो और पूर्ण सत्‍ता कांग्रेस के पक्ष में आ जाए और वह इस सत्‍ता को ग्रहण न करते हुए भी सत्‍ता को अपनी मर्जी के हिसाब से चलाता रहे.... और हुआ भी ठीक वैसा ही... विभाजन के उपरांत सत्‍ता कांग्रेस के पक्ष में चली गई और उसकी बागडोर गांधी के हाथों में। गांधी जिस तरह चलाना चाहते, सत्‍ता उसकी तरफ करवट बदलती। इसे कहते हैं ऊपर राम और बगल में छुरी का काम करना... गांधी के मुंह पर राम-नाम का जाप रहता था परंतु, गांधी के मन में इतना मैल भरा हुआ था कि वह दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को मिलने वाले अधिकारों का विरोध करता रहता था ताकि सत्‍ता निम्‍न वर्गों के हाथों में न चली जाए...और जो वर्ग अभी तक हम लोगों की गुलामी करते आ रहे हैं वह हमारे समक्ष कंधे से कंधा मिलाकर,आंखों में आंखें डालकर खड़े न हो सके।

Tuesday, March 27, 2018

2019 में फिर पूर्ण बहुमत से बनेगी बीजेपी की सरकार


2019 में फिर पूर्ण बहुमत से बनेगी बीजेपी की सरकार
अभी कुछ दिनों पहले उत्‍तर प्रदेश में (गोरखपुर व फूलपुर) दो सीटों पर हुए चुनाव और उसके परिणाम का यदि विश्‍लेषण किया जाए तो यह बीएसपी और सपा गठबंधन की जीत नहीं है बल्कि बीजेपी ने अपनी औकात पता करने हेतु मशीनों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की। क्‍योंकि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए बीजेपी अपनी यथास्थिति से खुद को अवगत करवाना चाह रही थी... कि यदि हम लोग मशीनों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करवाते तो स्थिति क्‍या बन सकती है। और इसका नतीजा उनके सामने (दोनों सीटों को गवाने के उपरांत) आ ही गया। वहीं दोनों सीटें सपा को मिल जाने से बीएसपी और सपा के समर्थकों में बड़ा उत्‍साह देखने को मिला.... अखिलेश मायावती से मिलने और उनको बधाई देने तक पहुंच गए..... सही बात है गठबंधन जो हुआ था... कुछ तो दिखावा करना ही पड़ेगा। वैसे विश्‍लेषकों ने इस ओर जरूर ध्‍यान दिया होगा कि गोरखपुर की जो सीट 1989 से 2017 तक लगातार पहले महान्‍त फिर योगी यानि पिछले 28 वर्षों से जो सीट बीजेपी के पक्ष में ही जाती रही हो... चाहे सत्‍ता हाथ में रही हो या न रही हो... फिर वो गोरखपुर की सीट कैसे हार सकते हैं.... वहीं 2014 में मोदी की लहर में फूलपुर से जीते मौर्या महोदय की सीट जाती रही... हालांकि इस सीट का बारीकी से आंकलन किया जाए तो 2014 के पहले तक यह सीट कभी बीजेपी की रही ही नहीं..... वो तो मोदी लहर में फूलपुर की सीट मौर्या के पक्ष में चली गई...और अब वो पुन: विपक्ष में जा पहुंची...
इस बार तो (गोरखपुर से 5 बार सांसद) योगी उत्‍तर प्रदेश में उच्‍चतम पद पर आसीन थे...और मौर्या उपमुख्‍यमंत्री फिर कैसे हार गए.... इसके पीछे का सारा गुणा-गणित आने वाले 2019 के लोकसभा के शतरंज की बिसात पर खड़ा किया गया था.... कि  मशीन में छेड़छाड़ के बिना अब तक की स्थिति और जनता का मिजाज आखिर क्‍या कहता है.... तो हकीकत उनके सामने आ ही गई... कि 2019 के चुनाव में वही करना है जो अब तक अन्‍य राज्‍यों में करवाती आ रही है....इससे एक बात से साबित होती है कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पुन: बीजेपी की जीत निश्‍चित ही है....वहीं 2 सीटें मिलने से बबुआ और बुआ दोनों गदगद महसूस कर रहे हैं... जैसा बीजेपी चाह रही थी लगता है वैसा ही हुआ.... क्‍योंकि गुणा-गणित कहता है कि यदि 2 सीटों पर और उप चुनाव होते और वह हार ही क्‍यों न जाती तब भी मोदी की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं था...क्‍योंकि बीजेपी ने 2 सीटें गवाकर और सपा-बसपा को झुनझुना पकड़ाकर पूरा मैदान मार लिया है.......खैर अब आगामी लोकसभा में चाहे अखलेश,मायावती, राहुल, ममता, अरविंद इसी क्रम में और भी.... सभी पीठ पीछे हाथों में खंजर लेकर मुंह पर अपनी झूठी मुस्‍कान लिए गठबंधन करके ऐडी चोटी का जोर क्‍यों न लगा ले... फिर भी बीजेपी की जीत पक्‍की है।

Wednesday, March 21, 2018

संपर्क करें.... डॉ. गजेन्‍द्र प्रताप सिंह, मो. 09889994337


संपर्क करें.... डॉ. गजेन्‍द्र प्रताप सिंह, मो. 09889994337




मीडियाकर्मी, सोशल वर्कर, एन.जी.ओ., राजनैतिक पार्टी, एम.फिल व पी.एच-डी. (किसी भी विषय के ) शोधार्थियों को यदि अपने शोध कार्य हेतु लिकर्ट पद्धति द्वारा 13 स्‍केल, 11 स्‍केल, 7 स्‍केल, 5 स्‍केल व 3 स्‍केल पर प्रश्‍नावली तथा अनुसूची का निर्माण व उनका चार्ट तथा 3 डी. ग्राफ (पाई चार्ट, कॉलम चार्ट, लाइन चार्ट, बार चार्ट) के माध्‍यम से विश्‍लेषण एवं सांख्‍यकीय विधि द्वारा (काई स्‍कवायर, कोरलेशन, रिग्ररेशन, मीन, मीडियन और बहुलक) आदि करवाना चाहते हो... तो संपर्क करें..... डॉ. गजेन्‍द्र प्रताप सिंह, मो. 09889994337


Monday, March 5, 2018

जयकारा करनी है तो जवानों और किसानों की कीजिए...


जयकारा करनी है तो जवानों और किसानों की कीजिए...

देश में जातिवाद और धर्मवाद में लिप्‍त हर इंसान से अब बू आने लगी है....जिसे देखों अपना-अपना धर्म, अपनी-अपनी जाति का राग अलापता दिखाई  दे  रहा  है... सब के सब अपने धर्म की जयकार करने में लगे हुए हैं...... कोई जय श्रीराम, कोई जय शिवाजी, कोई जय भवानी, कोई जय भीम, कोई जय बौद्ध, कोई जय हनुमान, कोई अल्‍लाह हू अकबर, कोई वाहे गुरू, कोई यीशु, कोई जय जिनेन्‍द्र की जयकार करने में लगा हुआ दिखाई दे रहा है...परंतु सन् 1964 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया नारा जय जवान-जय किसान को सब भूल चुके हैं... जवान जो देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को निछवर कर देते हैं ताकि हम और आप चैन से अपने-अपने घरों में सो सके... और किसान दिन-रात मेहनत करके अनाज उगाता है ताकि हम और आप अपने परिवार को भोजन दे सके..... अगर जवान और किसान भी सिर्फ जयकारा करने में लग जाए तो देश का उद्धार हो गया.....
जयकारा करने वालों गोली का कोई धर्म न होता... भूख का कोई मजहब नहीं होता..... अगर जवान और किसान नहीं रहेगें तो  जय श्रीराम, जय शिवाजी, जय भवानी, जय भीम, जय बौद्ध, जय हनुमान, अल्‍लाह हू अकबर, वाहे गुरू, यीशु, जिनेन्‍द्र न तो अपनी रक्षा करने के लिए आएंगे और न ही आपको भोजन देने...... अगर वास्‍तव में आपके भगवान, अल्‍लाह, वाहे गुरू, जीजस, बौद्ध, जिनेन्‍द्र यह सब हैं जिनके पीछे आप इंसान को इंसान नहीं समझ रहे....धर्म ने नाम पर एक दूसरे का गला कटते पर उतारू दिखाई देते हो....तो जवानों को शरहदों से वापस क्‍यों नहीं बुला लेते.... और अपने-अपने भगवानों, अल्‍लाहों, गुरूओं, जीसस, बौद्ध, जिनेन्‍द्र से कहो की वो ही शरहदों पर आपकी रक्षा करें....वो ही तुमको खाने के लिए अनाज मुहैया कराए.... तो बगले झांकते दिखाई दोगें.....क्‍योंकि सबको पता है कि बिना जवानों के आप सुरक्षित नहीं है और बिना किसान के आप जिंदा नहीं रह सकते... अब तो हालात किसी ने छुपे नहीं है जवान देश के लिए शहीद हो रहे हैं और किसान आत्‍महत्‍या करते जा रहे हैं.... इनका सहयोग और बल देने के बजाय अपने-अपने धर्म और जातियों को बढ़ावा दे रहे हो...कुछ तो शर्म करो...अपने ऊपर धर्म और जाति को इतना हावी न होने दे कि आप इंसान को इंसान ही न समझे.....जयकारा करनी है तो जवानों और किसानों की कीजिए... और उनका सहायोग और उनको बढ़ावा दे.. ताकि देश उन्‍नत के मार्ग पर अग्रसरित हो जाए....

Saturday, March 3, 2018

पत्‍नी की फटकार का महत्‍व


पत्‍नी की फटकार का महत्‍व
पत्‍नी की फटकार सुनी जब,
तुलसी भागे छोड़ मकान
राम चरित मानस रच डाला
जग में बन गए भक्‍त महान....

पत्‍नी छोड़ भागे थे जो-जो
वही बने विद्वान महान
गौतम बुद्ध, महावीर तीर्थकर
पत्‍नी छोड़ बने भगवान....

पत्‍नी छोड़ जो भागे मोदी
हुए आज हैं पंत प्रधान
अडवाणी ना छोड़ सके तो
देख अभी तक हैं परेशान

नहीं कि है शादी पप्‍पू ने
नहीं सुनी पत्‍नी की तान
इसलिए फिरते हैं भटकते
बन न सके राजनेता महान.....

हम भी पत्‍नी छोड़ न पाए
इसलिए तो हैं परेशान
पत्‍नी छोड़ बनो संयासी
पाओं मोक्ष और निर्वाण.....

नोट... हास्‍य कविता का आनंद लीजिए.. रिस्‍क केवल अपने दम पर लें।

राम राज्‍य की वास्‍तविक हकीकत....


राम राज्‍य की वास्‍तविक हकीकत....

कभी भूल कर राम राज्‍य फिर से मत ले आना, एक बार जो भूल हो गई वो दुबारा मत करना। राम के राज्‍य में आदमी बाजारों में गुलामों की तरह बिकते थे, कम से कम आज तो आदमी बाजारों में गुलामों की तरह तो नहीं बिकते। और आदमी जब बाजारों में गुलामों की तरह बिकते रहे होगें, तो दरिद्रता निश्चित रही होगी, कोई बिकेगा कैसे, किसलिए बिकेगा।  दीन और दारिद्र ही बिकते होगें, कोई टाटा बिरला, डालमिया बाजारों में बिकेगें नहीं। स्त्रियां  बाजारों में  बिकती थी, वे स्त्रियां ‍गरीबों की ही रही होगी, उनकी ही बेटियां होगी। कोई सीता तो बाजार में बिकती नहीं थी। उसका तो स्‍वयंवर होता था। गरीबों की बच्चियां बिकती थी बाजारों में। और हालात निश्चित ही भयानक रहे होगें। क्‍योंकि बाजारों  में  बिकती ये स्त्रियां और  लोग, आदमी और औरतें दोनों विशेषकर औरतें। राजा तो खरीदतें ही  खरीदतें थे, धनपति खरीदतें ही थे, जिनको तुम ऋषिमुनि कहते हो वो भी खरीदते थे। गजब की दुनिया थी। ऋषिमुनि भी बाजारों में बिकती हुई औरतों को खरीदते थे। अब तो हम भूल ही गए, वधू शब्‍द का असली अर्थ। अब तो हम शादी होती है नई-नई तो वर-वधू को आशीर्वाद देने जाते हैं। हमको पता ही नहीं था किसको आशीर्वाद देने जा रहे हैं। राम के समय में और राम के पहले भी, वधु का अर्थ होता था खरीदी गई स्‍त्री। जिसके साथ तुमको पत्‍नी जैसा व्‍यवहार करने का हक है। लेकिन उसके बच्‍चों को तुम्‍हारी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा। पत्‍नी और वधू में यही फर्क था। सभी पत्नियां वधू नहीं थी, सभी वधू पत्नियां नहीं थी। वधू नंबर दो की पत्‍नी थी। जैसे नंबर दो की बही होती है जिसमें चोरी चपाटी को लेखा जोखा होता था ऐसे नंबर दो की पत्‍नी थी वधू। ऋषिमुनि भी वधुएं रखते थे और तुमको ऐसी भ्रंति थी कि ऋषिमुनि गजब के लोग थे। कुछ खास गजब के लोग नहीं थे... वैसे ऋषिमुनि तुमको आज भी मिल जाएंगे।
और आप कहते हैं मौजूद हालत खराब है...इतना बुरा आदमी तो आज पाना मुश्किल है जो बाजार से औरतें खरीद के लाए, आज यह बात ही अमानवीय प्रतीत होगी.... मगर यह जारी थी राम राज्‍य में। शुद्रों को हक नहीं था वेद पढ़ने का, यह तो कल्‍पना के बाहर की बात है कि डॉ. अंबेडकर जैसा शुद्र और राम के समय में भारत के विधान का रचियता हो सकता था.... असंभव। खुद राम ने एक शुद्र के कानों में शीशा पिघलवाकर डलवा दिया था...गर्म शीशा, उबलता हुआ शीशा... क्‍योंकि उसने चोरी से कहीं वेद के मंत्र पढ़ें जा रहे थे जिसको छुप कर सुन लिया था... यह उसका पाप था यह उसका अपराध था। राम तुम्‍हारे मर्यादापुरूषोत्‍तम.. राम को तुम अवतार कहते हो, महात्‍मा गांधी राम राज्‍य को फिर से लाना चाहते थे.... क्‍या करना चाहते थे शुद्रों के कानों में फिर से शीशा डलवाना चाहते थे... फिर इस गरीब पर क्‍या गुजरी होगी किसी फर्क पड़ता है... धर्म का कार्य पूर्ण हो गया, ब्राहम्‍णों ने आशीर्वाद दिया कि राम ने धर्म की रक्षा की... यह धर्म की रक्षा है... तुम कहते हो मौजूदा हालत खराब है ..
यदुष्ठिर जुआं खलते थे और तुम उन्‍हें धर्मराज कहते हो..आज किसी जुआरी को धर्मराज कहने की हिम्‍मत कर सकोंगे.. और जुआंरी भी छोटे-मोटे नहीं, सब जुएं पर दांव पर लगा दिया... पत्‍नी तक को दांव पर लगा दिया...यह तो बात भी अशोभनीय थी. क्‍योंकि पत्‍नी कोई संपत्ति नहीं थी...मगर उन दिनों यही धारणा थी स्त्री संपत्ति थी...उसी धारणा के अनुसार आज जब एक बाप अपनी बेटी का विवाह करता है तो उसे कहते हैं कन्‍या दान... क्‍या गजब कर रहे हो, गाय भैंस दान करों तोसमझ में आता है कन्‍यादान कर रहे हो.. यह दान.. स्‍त्री कोई वस्‍तु है यह असभ्‍य शब्‍द संस्‍कृत के बंद होने चाहिए... मगर यदुष्टिर धर्म राज थे.. और दांव पर लगा दिया अपनी पत्‍नी को भी, हद का दीवानापन रहा होगा.. पहुंचे हुए जुआंरी रहे होगें.. इतना भी होश नहीं रहा.... और फिर भी धर्मराज धर्मराज बने रहे.. ...इससे कुछ अंतर नहीं आया.. इससे उनकी प्रतिष्‍ठा में कोई अंतर नहीं आया.. भीष्‍म पितामह को ब्राह्म ज्ञानी समझा जाता था...मगर ब्रह्म ज्ञानी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे.. गुरू द्रोण को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था मगर द्रोण भी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे.. अगर कौरव अधार्मिक थे दुष्‍ट थे, तो कम से कम भीष्‍म पितामाह में इतनी हिम्‍मत होनी चाहिए थी वह बाल ब्रह्मचारी थे .. और इतनी भी हिम्‍मत नहीं.. तो खाक ब्रह्मचर्य था उनमें.. किस लोलुपता के कारण गलत लोगों को साथ दे रहे थे, और द्रोण तो गुरू थे अर्जुन के भी.. और अर्जुन को बहुत चाहा भी था.. लेकिन धन तो कौरवों  के पास था.. पद कौरवों के पास था.. संभावना भी यही थी की वही जीतेंगे.. राज्‍य उनका था, पाडंव तो भिखारी हो गए थे... इंच भर जमीन भी कौरव देने को राजी नहीं थे...और कसूर कुछ कौरवों का हो ऐसा कुछ लगा नहीं... जब तुम ही दांव पर लगाकर सब हार गए... तो मांगते किस मुंह से थे... मांगने की बात ही गलत थी... खुद ही हार गए अब मांगना क्‍या है... लेकिन गुरू द्रोण भी अर्जुन के साथ खड़े न हुए..... खड़े हुए उनके साथ जो गलत थे.. यही गुरूद्रोण एकलव्‍य का अगूंठा कटवा कर आ गए थे... अर्जुन के हित में.. क्‍योंकि तब संभावना थी कि अर्जुन सम्राट बनेगा... तब इन्‍होंने एकलव्‍य को इंकार कर दिया था शिक्षा देने से.. क्‍योंकि वह शुद्र था.. और तुम कहते हो मौजूदा हालत पसंद नहीं... उस गरीब का कसूर क्‍या था.. अगर उसने मांग की थी, प्रार्थना की थी, मुझे भी स्‍वीकार कर लो शिष्‍य की भांति...मुझे भी सीखने का अवसर दे  दो..लेकिन नहीं, एक शुद्र को कैसे सीखने का अवसर दिया जा  सकता है। मगर  एकलव्‍य अनूठा युवक रहा होगा... अनूठा इसलिए कह  रहा  हूं  कि  उसका खून  नहीं खौला...  खून  खौलता  तो  साधारण युवक कहलाता... सभी युवक  का  खौलता है इसमें कोई खास  बात  नहीं थी.. मगर  उसका नहीं खौला.....  शांत मन से  इसे  स्‍वीकार कर लिया.. एकांत जंगल में  जाकर गुरू द्रोण की  प्रतिमा  बना  ली और  उसी  प्रतिमा के  सामने धनुष विद्या का अभ्‍यास करता रहा.. उस गुरू के  सामने धनुष  विद्या  का  अभ्‍यास करता रहा जिसने उसे  शुद्र होने के कारण शिष्‍य नहीं बनाया था..  अपमान न लिया, अहंकार पर चोट तो लगी होगी लेकिन शांति से, समता से  पी गया... धीरे-धीरे खबर  फैलने  लगी... कि  वह  बड़ा विश्‍वनाथ हो गया है तो गुरूद्रोण को बैचनी होने लगी और खबर यह भी आने लगी थी कि वह अर्जुन उसके सामने कुछ भी नहीं...और अर्जुन पर ही सारा दांव था...अगर अर्जुन  सम्राट बने और सारे जग में सबसे बड़ा धनुषधर बने तो उनकी भी प्रतिष्‍ठा होगी.. कि उनका शिष्‍य उनका शागिर्द  ऊंचाई पर पहुंच जाए तो गुरू भी ऊंचाई पर पहुंच जाएगा....उनका सारा का  सारा स्‍वार्थ अर्जुन में  था.. और एकलव्‍य अगर  आगे  निकल जाए  तो बड़ी बेचैनी की बात  थी..तो यह बेशर्म आदमी जिसको ब्रह्म ज्ञानी कहा जाता था यह गुरू द्रोण जिसने इंकार कर दिया था एकलव्‍य को शिक्षा देने से... यह उससे दक्षिणा लेने  पहुंच गया.. शिक्षा देने से इंकार करने वाला गुरू जिसने दीक्षा ही  नहीं दी.. वो दक्षिणा लेने  पहुंच गया..
 हालात बड़े अजीब रहे होगें... शर्म भी  कोई चीज होती है इज्‍जत भी कोई बात होती है.. आदमी की नाक भी होती है गुरूद्रोण नाक कटे आदमी रहे होंगे..  किस मुंह से जिसको दुत्‍कार दिया था.. दक्षिणा लेने पहुंच गया उसके पास... फिर भी कहता हूं  एकलव्‍य अदभुत युवक था, दक्षिणा देने  के लिए  राजी हो गया...  उस गुरू को जिसने दीक्षा ही नहीं दी  कभी... दुत्‍कार दिया था... और कहा था कि तू शुद्र है.. हम शुद्र को शिष्‍य की तरह स्‍वीकार नहीं कर सकते.. तू  शुद्र है हम तुझे शिक्षा नहीं दे सकते.....बड़ें मजे की बात है कि जिस शुद्र को शिष्‍य की तरह स्‍वीकार नहीं कर सकते थे.. उस शुद्र की दक्षिणा कैसे स्‍वीकार कर सकते हो... मगर उसमें षड्यंत्र था, चालबाजी थी.. उसने चरणों में गिरकार एकलव्‍य ने कहा मैं गरीब हूं मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है फिर भी मैं आपको जो भी है मेरे पास सबकुछ  देने  को  राजी हूं.. जो  आप  मांगें.. तो क्‍या मांगा गुरू द्रोण ने...दाहिने हाथ का अगूंठा....हां जी दाहिने हाथ का  अगूठा काट कर हमको दे  दो.. यहां जालसाजी, अमानवीयता, कपट, कुटनीति की कोई सीमा नहीं रही....और यह तो  ब्रह्मज्ञानी थे उस  गरीब से  उसको अगूठा ही मांग लिया.... शिक्षा दी नहीं और दक्षिणा में अगूंठा मांग लिया.. हालात बुरे थे.. यहां हमेशा से सारे कलों की वर्तमान और अतीत की स्थिति बदतर थी.. यानि. हालात हमेशा से खराब थे . .
फिर भी आज रामराज्‍य की पुन: कल्‍पना की जा रही है... यानि सत्‍ताधारी चाहते हैं कि पुन: वो ही स्थिति बने जो रामराज्‍य में  आम जन की थी...शुद्रों की थी... बाजार में बेची जाने वाली एक वस्‍तु जो कहीं भी किसी के  द्वारा खरीदी और  बेची जा  सके.. और अधिकार की बात तो आप एक सिरे से भूल ही जाओं क्‍योंकि राम राज्‍य आएगा तो आपको तैयार होना पड़ेगा कानों में पिघलता हुआ शीशा  डालवाने  के  लिए..... औरतों को  बाजार में  बिकने के लिए.....औरतों के साथ अत्‍याचार के लिए... क्‍योंकि राम राज्‍य में  यही होता आया है...यही  चाहते हैं  तो  राम राज्‍य आना चाहिए....