सरोकार की मीडिया

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Sunday, September 30, 2018

सिपाही की भी सुन लो....


सिपाही की भी सुन लो....
सीधी सी बात है कल की घटना से तीन घर तबाह हुए। पहला विवेक तिवारी का, जो इस दुनिया में नहीं रहा। वो तो बहुत पढ़ा लिखा MBA, MCA और जाने क्या- क्या। आप Apple जैसी नामचीन कंपनी के एरिया मैनेजर और गोमतीनगर वासी हैं...आपके भारी भरकम संपर्क भी हैं। सिपाही ग्रामीण पृष्ठभूमि से गरीब, कम पढ़ा लिखा। अब हर प्वाइंट पर IPS, PPS तो ड्यूटी करेंगे नहीं। गश्त के सिपाहियों को निर्देश होते हैं... भ्रमणशील रहकर संदिग्ध व्यक्ति/ वाहनों को रोकने-टोकने हेतु। उसको लगा कि आधी रात के बाद कोई गाड़ी रोड पर खड़ी है, बिना वजह के ... सो उसने टोंका। आप देश की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त सभ्य नागरिक थे, आप गाड़ी से बाहर आकर अपना परिचय देते, बेवजह रुकने का कारण बताते...अपने घर चले जाते। यदि वो आपसे पैसे मांगता तो आपके लिए उसकी वर्दी उतरवाना कौन-सी बड़ी बात थी। लेकिन आप ठहरे सभ्य नागरिक, आपको बात नागवार गुजरी। सिपाही जैसा छोटा आदमी कैसे mahindra SUV जैसी बड़ी गाड़ी सवार को टोंक दिया। इतनी बड़ी गाड़ी खरीदने का अब क्या फायदा रहा। आप अपनी महिला सहयात्री जो आपकी कंपनी से डस्मिस्ड थी, को कंपनी को ज्वाइन करा रहे थे, को अपना भोकाल दिखाने और सिपाही को भयभीत करने के उद्देश्य से सिपाही की ओर तेजी से गाड़ी बढ़ा देते हैं। सिपाही डर जाता है । गाड़ी छोड़ दूर हट जाता है। आप फिर भी मानते ..गाड़ी को हिट करके क्षतिग्रस्त कर देते हैं। सिपाही को कुछ समझ नहीं आता वो भी डरकर गोली चला देता है, भागकर थाने पहुंचता है, सूचना देने। लेकिन कोई बेचारे की नहीं सुनता।
खैर मुकदमा लिखना था, लिख गया। सिपाही दोनों जेल गए। सभ्य नागरिक को मुआवजा मिला, पत्नी को राजपत्रित अधिकारी की नौकरी मिल जाएगी।
प्रश्न यह है कि बर्बाद कौन हुआ? गरीब परिवार का सिपाही, जो अपने परिवार का इकलौता कमाने वाला होता है। नौकरी गई, जो जमीन जेवर घर पर होगा, मुकदमे की पैरवी में चली जाएगी।
पुलिस जो बेचारी रात-रात भर जागती है, कि कहीं कोई SUV वाला बलात्कार करके लाश ना फेंक दे या कोई असलहा या नारकोटिक्स सप्लायर तो नहीं है? कोई चोर इत्यादि तो नहीं है? वहीं पुलिस बेबस और लाचार होकर अपने ही अंग को काट कर फेंक रही है। उसकी मेहनत और कुर्बानियों का उसकी छवि के हनन के रूप में उसको यही सिला मिलना था।
प्रश्‍न यह भी उठता है कि क्‍या सिपाही जानता था..कि आप कौन हैं? आपकी जाति क्या है। नहीं वह बिलकुल भी आपसे परिचित नहीं था। सिपाही की SUV सवार से कोई दुश्मनी भी नहीं है? फिर क्यूं वह बेवजह किसी पर गोली चलाएगा? वैसे एक बात जहन में कौंध रही है कि गाड़ी आधी रात के बाद सड़क पर बेवजह क्यूं रुकी थी? गाड़ी के अंदर क्‍या हो रहा था। क्‍या विवेक ने अपनी पत्‍नी को बताया था कि वह अपनी कंपनी से डिसमिस्‍ड चल रही महिला के साथ है और वह उसे घर छोड़ने जा रहा है। जबकि विवेक की अपनी पत्‍नी से कुछ समय के अंतराल फोन पर बात हो रही थी। वहीं क्‍या उस लड़की ने अपने घरवालों को बताया था कि वह अपनी कंपनी के अधिकारी के साथ है और वह उसे घर छोड़ेंगा। ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया। तो वह दोनों आधी रात में सड़क के किनारे गाड़ी रोक कर गाड़ी के अंदर कौन-सा कंपनी का काम कर रहे थे। अब सवाल यह भी उठता है कि कहीं विवेक उक्‍त महिला को (जो कंपनी से डिसमिस्‍ड चल रही थी) पुन: कंपनी में बहाली के एवज में कुछ................ (जैसा अधिकांश होता र‍हता है)। वैसे एक सवाल और बनता ही है कि यदि सिपाही चाहता तो उस लड़की को भी गोली मार सकता था, जब वह विवेक तिवारी को गोली मार सकता है तो फिर उस लड़की को जिंदा क्‍यों छोड़ दिया। ताकि वह उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सके। क्‍योंकि सिपाही या फिर आम आदमी भी इतना बेवकूफ नहीं होता, कि वह एक को गोली मार दे और साथी को जिंदा छोड़ दे ताकि उसके खिलाफ वह शिकायत दर्ज करवा सके। कुछ तो दाल में काला है या फिर पूरी की पूरी दाल काली है। जिस तरह मामले को घूमाया जा रहा है यह मामला वैसा नहीं है।
वैसे सभी सिपाहियों को मालूम होता है, किसी असलहे की क्या कारगर रेंज होती है? पुलिस के ऊपर आरोप लगते ही मात्र उसके ऊपर कार्यवाही ही होती है, जांच तो बाद में होती है, फिर क्यूं वह किसी पर गोली चलाएगा। हम रात दिन पुलिस के खिलाफ हो रही कार्यवाहियों के दृष्टांत देखते हैं। हम जानते हैं कि गोली चलेगी, तो जेल जाना है। जब तक अपनी जान पर नहीं बन आएगी, गोली नहीं चलेगी।
निष्पक्षता से देखा जाए तो सभ्य नागरिक की करतूत से ऐसे हालात बेवजह बन गए,जो बाद में ऐसी घटना के कारण बने। सभ्य नागरिक ने दो सिपाहियों की बलि ले ली और उनके घर तबाह कर दिए। आपको संविधान प्रदत्त अपने सारे अधिकार पूरे के पूरे याद हैं... क्या कोई कर्तव्य भी याद है? भारत के कानून का सम्मान करना और law enforcement agencies से सहयोग करना आपको किसी ने नहीं बताया?

Saturday, September 29, 2018

#डरिए......आप पुलिस के साये में हैं


#डरिए......आप पुलिस के साये में हैं
डरिए आप लखनऊ में हैं.....रात्रि में विवेक तिवारी द्वारा गाड़ी न रोकने पर पुलिस ने मारी गोली....मैं पुलिस द्वारा किए गए इस कृत्‍य की भर्त्‍सना करता हूं। और इस दु:ख में उसके परिवार के साथ खड़ा हूं। वैसे तिवारी के स्‍थान पर यदि खान, पठान, अली, अहमद, मंसूरी, परवेज इत्‍यादि में से कोई होता तो जरूर उसे अभी तक आतंकवादी करार दे दिया होता.... और सारे न्‍यूज चैनलों पर एंकर भौंक रहे होते उसका विश्‍लेषण कर रहे होते, कि योगी सरकार में पुलिस ने काफी मसक्‍कत के बाद एक आंतकवादी को मार गिराया। जिसके पास से एक तमंचा और दर्जनों कारतूस (पुलिस द्वारा रखे गए) बरामद हो चुके होते। और उसका साथी भाग गया होता, जिसकी तलाश पुलिस कर रही होती। वहीं सोशल मीडिया पर योगी सरकार और पुलिस वालों की वाह वाही हो रही होती....परंतु यह तो तिवारी जी निकले... जो योगी और पुलिस के गले में फांस बनकर फंस गए..... वैसे कोशिश तो इस मामले को भी सुलटाने की खूब की गई... कि रात्रि में गाड़ी को रोका जा रहा था, और तिवारी जी ने हम पर तीन बार गाड़ी चढ़ाने की कोशिश की.... और अपनी आत्‍म सुरक्षा के चलते मुझे गोली चलानी पड़ी। गोली गलती से चल गई। पुलिस ने कहा गलती हो गई, अरे भई गलती हो गई, तुमने तो किसी का बेटा, पति और बेटियों के सिर से बाप का साया ही छीन लिया... उसी पर पुलिस वाले की पत्‍नि अपने खूनी पति का ही साथ देती दिखाई दे रही है। यदि कोई तेरे पति को मार दे और कहे कि गलती हो गई फिर.......सही है खाकी वर्दी का गुरूर ही कुछ अलग होता है.......जो पुलिस आम आदमी की सुरक्षा के लिए होती है उसी से आम आदमी खौंफ खाता है। फिर ऐसी पुलिस का क्‍या फायदा जिससे आम आदमी हमेशा डरा सहमा रहे.......वैसे योगी सरकार ने युवाओं के एक साथ बैठने पर (लड़का-लड़की) प्रतिबंध लगाया हुआ है और पुलिस वालों को छूट दे दी है कि कोई भी सार्वजनिक स्‍थलों, पार्कों में एक साथ दिखे तो उसकी अच्‍छी तरह से खबर ली जाए... अब शायद योगी सरकार ने रात्रि में किसी महिला(कोई भी हो) के साथ निकालने पर भी पाबंदी लगा दी है और कहा है कि देखते ही गोली मार दी जाए। बाकि मामला आप स्‍वयं हेरफेर करके निपटा सकते हैं  क्‍योंकि आप पुलिस में जो हैं। हमारा पूरा सहयोग तुम लोगों के साथ है।
हालांकि इस मामले की जांच तो होगी ही परंतु इस मामले में ऊपर से लेकर नीचे तक जितने भी पुलिस वाले मिले हो सबको सजा होनी चाहिए.....यानि अधिकारियों को भी सजा मिलनी चाहिए.... बाकि योगी सरकार का राज है जांच कीजिए और इसे भी इनकाउंटर दिखा दीजिए......

Wednesday, September 19, 2018

दीक्षांत समरोह के नाम पर खादी कुर्ता, पायजामा व साड़ी घोटाला


दीक्षांत समरोह के नाम पर खादी कुर्ता, पायजामा व साड़ी घोटाला
15 अक्‍टूबर, 2018 को महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में होने वाले तृतीय दीक्षांत समारोह में उपाधि प्राप्‍तकर्ता विद्यार्थियों के लिए स्‍नातकीय परिधान के संबंध में विश्‍वविद्यालय द्वारा नोटिस जारी किया गया है कि दीक्षांत समारोह में पुरूषों हेतु निर्धारित स्‍नातकीय परिधान ((खादी का सफेद कुर्ता , पायजामा व खादी की गांधी टोपी व अंगवस्‍त्र) महिलाएं हेतु निर्धारित स्‍नातकीय परिधान (खादी की सफेद साड़ी, 3 इंच के लाल बार्डर सहित व लाल ब्‍लाउज एवं खादी की गांधी टोपी व अंगवस्‍त्र) होगी। विश्‍वविद्यालय द्वारा अधिकृत विक्रेता द्वारा खरीदने पर यह कुर्ता व पायजामा आपको 1000 रूपए में व खादी की सफेद साड़ी 700 रूपए में मिल सकती है। हां यदि विद्यार्थी चाहे तो स्‍वयं खरीद सकता है जिसमें कुर्ता कॉलर सहित पूरी बांह का तथा पायजामा अलीगढ़ी होना आवश्‍यक है। वहीं महिलाएं यदि स्‍वयं खरीदती है तो उसमें सफेद साड़ी,लाल बार्डर सहित तथा सफेद पेटीकोट एवं लाल ब्‍लाउज लेना होगा, जिसमें गोल गले का सादा लाल रंग का ब्‍लाउज आस्‍तीन सहित (कुहनी तक) होना आवश्‍यक है।
यह बात तो ठीक है कि गांधी के नाम पर और गांधी की नगरी में स्‍थापित विश्‍वविद्यालय द्वारा खादी को बढ़ावा देने के लिए खादी का कुर्ता व पायजामा एवं खादी की साड़ी का प्रयोग विद्यार्थियों को उपाधि देने के लिए कर रहा है पर ऐसा पहले दो हो चुके दीक्षांत समारोह में नजर नहीं आया, फिर अब क्‍या हो गया। जो खादी-खादी चिल्‍ला रहे हैं। यह बात समझ से परे है। हां यदि विश्‍वविद्यालय खादी को ही बढ़ावा देना चाहता है तो  पूरे विश्‍वविद्यालय में यह नियम लागू क्‍यों नहीं कर दिया जाता कि कुलपति महोदय से लेकर समस्‍त शिक्षक व कर्मचारी एवं सभी छात्र-छात्राएं खादी वस्‍त्र ही पहनेंगे, जो नहीं पहनेंगा उसका विश्‍वविद्यालय में प्रवेश वर्जित रहेगा। तो यह बात समझ आती कि उपाधि हेतु खादी का प्रयोग सही है। परंतु ऐसा नहीं है। फिर खादी ही क्‍यों......वहीं एक बात समझ में और नहीं आ रही कि 1000 रूपए देकर कुर्ता, पायजामा व 700 रूपए देकर खादी की साड़ी विद्यार्थी आखिर क्‍यों खरीदे। इसकी व्‍यवस्‍था विश्‍वविद्यालय स्‍वयं करवाता है, क्‍योंकि विश्‍वविद्यालय के पास दीक्षांत समारोह के लिए बजट है उस बजट पर परिधान भी सम्‍मलित होते हैं। जिन्‍हें विद्यार्थी उक्‍त परिधान का शुल्‍क देकर प्राप्‍त कर लेता है और कार्यक्रम समाप्ति के उपरांत उक्‍त परिधान को वापस कर देता है। विश्‍वविद्यालय कुछ राशि काटकर संपूर्ण राशि वापस कर देता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि विश्‍वविद्यालय के मठाधीश परिधान के नाम पर आए हुए रूपयों को हजम करना चाह रहे हो और तो और विश्‍वविद्यालय द्वारा निर्धारित किए गए अधिकृत विक्रेताओं से मोटा डिस्‍काउंट डकार रहे हो। इस तरह दोनों जगहों से मुनाफा ही मुनाफा। क्‍योंकि ऐसा अभी तक नहीं हुआ और अब हो रहा है तो बात मन में बुरी तरह खटक रही है। बाकि तो बाद में पता चल जाएगा जब पर्ते-दर-पर्ते भेद खुलेंगे... कुछ सूचना के अधिकार से तो कुछ आपसी मेल-मिलाप से। बात तो निकलकर सामने आ ही जाएगी कि किसकी जेब कितनी गर्म हुई। और यह भी निकल कर आएगी कि यह तो दीक्षांत समरोह के नाम पर खादी घोटला हो गया।


Tuesday, September 18, 2018

मुंह सबके पास है मारते रहिए


मुंह सबके पास है मारते रहिए

अनूप जलोटा से जलन का मूल कारण सिर्फ यह है कि इस तरह की सुंदर और हसीन बाला उनके पास नहीं है, और वो भी इस उम्र में.....जिस उम्र में लोग मोहमाया छोड़, भक्ति की ओर अग्रसर होते हैं। उस उम्र में यह भक्ति से संभोग की ओर प्रस्‍थान कर रहे हैं.... तो जलन होना स्‍वाभाविक है..... वैसे यह जलोटा का टैलेंट है। इस तरह का टैलेंट बाबाओं के पास भी होता है.... हनीप्रीत को तो आप जानते ही होगें... उसे कैसे भूल सकते हैं.....। हालांकि इस तरह किसी व्‍यक्ति की व्‍यक्तिगत जीवन को समाज के सामने उछालना क्‍या आप सभी को शोभा देता है। जरा सोचिए यदि कोई आपके व्‍यक्तिगत जीवन को इस तरह समाज के सामने उछाले तो आपको कैसा लगेगा। जब जलोटा से उस लड़की को कोई आपत्ति नहीं है (जब मियां बीबी राजी तो क्‍या करेगा काजी) तो आप लोग क्‍यों उनके रिश्‍ते में टांग आड़ा रहे हैं.... कुछ समय पहले जब दिग्‍विजय सिंह ने शादी की थी तो उनके पीछे पड़ गए.... अरे भई लड़की बालिग है और अपना बुरा भला खुद सोच सकती है.... फिर भी आप लोग टांग अड़ाने से बाज कहां आने वाले...... क्‍योंकि जलन जो ठहरी..... हालांकि किसी के व्‍यक्तिगत रिश्‍तों में टांग अड़ाने के वजह अपने रिश्‍तों को संभालिए.... तो बेहतर होगा..... बाकि मुंह सबके पास है मारते रहिए.... कोई न कोई तो आ ही जाएगा.....नहीं तो घर की दाल ही बेहतर है।

Thursday, September 13, 2018

प्रेमिका की शादी के दौरान प्रेमी के अल्‍फाज


प्रेमिका की शादी के दौरान प्रेमी के अल्‍फाज

प्रेमिका की शादी कहीं और हो जाती है
तब प्रेमी कहता है...

आज दुल्हन के लाल जोड़े में
उसकी सहेलियों ने उसे सजाया होगा

मेरी जान के गोरे हाथों पर
सखियों ने मेहंदी को लगाया होगा

बहुत गहरा चढ़ेगा मेहंदी का रंग
उस मेहंदी में उसने मेरा नाम छुपाया होगा

रह रहकर रो पड़ेगी
जब भी उसे मेरा ख्याल आया होगा

खुद को देखेगी जब आइने में
तो अक्श उसको मेरा भी नजर आया होगा

लग रही होगी एक सुंदर सी बला
चांद भी उसे देखकर शर्माया होगा

आज मेरी जान ने अपने मां बाप की इज्जत को बचाया होगा
उसने बेटी होने का फर्ज निभाया होगा

मजबूर होगी वो बहुत ज्यादा
सोचता हुं कैसे खुद को समझाया होगा

अपने हाथों से उसने
हमारे प्रेम खतों को जलाया होगा

खुद को मजबूर बनाकर उसने
दिल से मेरी यादों को मिटाया होगा

भूखी होगी वो मैं जानता हुं
पगली ने कुछ ना मेरे बगैर खाया होगा

कैसे संभाला होगा खुद को
जब फैरों के लिए उसे बुलाया होगा

कांपता होगा जिस्म उसका
जब पंडित ने हाथ उसका किसी और के हाथ में पकड़या होगा

रो रोकर बुरा हाल हो जाएगा उसका
जब वक्त विदाई का आया होगा

रो पड़ेगी आत्मा भी
दिल भी चीखा चिल्लाया होगा

आज उसने अपने मां बाप की इज्जत के लिए
उसने अपनी खुशियों का गला दबाया होगा..

Tuesday, September 11, 2018

पउआ 10 रूपए करो वर्ना........भारत बंद


पउआ 10 रूपए करो वर्ना........भारत बंद

अभी कुछ दिनों पहले एस सी/एस टी एक्‍ट के विरोध में सवर्ण जाति के लोगों ने, फिर मंहगाई को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भारत बंद करवाया था। उसके पहले दलितों ने भारत बंद करवाया था। जिसे देखों जब देखों भारत बंद करवाता रहता है। वैसे यह अच्‍छा तरीका इजाद किया है विरोध दर्ज करने का। तो फिर हम क्‍यों चुप रहे..... हम भी गुस्‍से में हैं। और हमारे गुस्‍सा का मूल कारण है शराब। जी हां शराब... जिसकी कीमतों में सरकार लगातार वृद्धि करती जा रही है। हम सदियों से चुप हैं इसका यह मतलब नहीं कि, हम कभी आवाज नहीं उठाएंगे। हम भी आवाज उठाएंगे..... शराबी एकता जिंदाबाद....शराबी एकता जिंदाबाद...... शराब की कीमत कम की जाए...... सरकार को इस ओर एक प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है क्‍योंकि देखा गया है कि पूरे भारत के प्रत्‍येक राज्‍यों में शराब की कीमतों में काफी अंतर है। सबसे सस्‍ती शराब हरियाणा में, उसके बाद पंजाब में फिर दिल्‍ली.... इसी क्रम में मिलती है। वहीं मध्‍य प्रदेश में तो शराब की बोतलों पर दो-दो कीमतें दर्ज हैं और उस दर्ज कीमत के ऊपर भी मध्‍य प्रदेश में प्रत्‍येक पउआ पर 10 रूपए अतिरिक्‍त ले लिए जाते हैं। यह तो शराबियों के साथ बहुत नाइंसाफी है। इस ओर किसी का ध्‍यान नहीं जाता कि यह शराब के ठेकेदार लोगों को किस तरह लूटने का काम कर रहे हैं।
सरकार को यह ज्ञात होना चाहिए कि शराब सोम रस है... इसका उपयोग लोग खुशी का इजहार करने में, गम को भुलाने में करते हैं। किसी के घर शादी हुई..... चल शराब पीते हैं, बच्‍चा पैदा हुआ..... चल शराब पीते हैं, लड़की ने घोखा दे दिया... चल शराब पीते हैं, नौकरी लग गई.... चल शराब पीते हैं, चुनाव जीत गए या हार गए…. चल शराब पीते हैं। कहने का तात्‍पर्य साफ है कि शादी हो, त्‍योहार हो, ऑफिस हो, पार्टी हो, जीत हो, हार हो, खुशी हो, गम हो.... हर जगह.....शराब एक ऐसी चीज हैं जिसके बिना सब कुछ सुना-सुना-सा प्रतीत होता है। आपको पता होगा कि, आपकी सरकार बिना इसके वितरण के सत्‍ता में नहीं आई है....... बहुत से सांसद, विघायक, मंत्रियों और नेताओं ने इसका वितरण किया तब जाकर आप सत्‍ता पर काबिज हो सके हैं। फिर भी शराब की कीमत आप लोग बढ़ाते जा रहे हैं। आप लोग नहीं समझ रहे हैं कि शराब एक शराबी के लिए कितनी महत्‍वपूर्ण चीज है और आप लगातार इसकी कीमतों में इजाफा करते जा रहे हैं। शर्म आनी चाहिए..... आप सबके बारे में सोचते हैं...... अमीरों के बारे में, गरीबों के बारे में, पुरूषों, महिलाओं, बच्‍चों  के बारे में......कभी हम और हमारे जैसे करोड़ों शराबियों के बारे में सोचा है आपने.... या आपकी सरकार ने.......... कभी यह सोचा है कि जब एक शराबी शराब पीता है तो चकने वाले का, पानी की बोतल बेचने वाले का, गिलास बेचने वाले का और सिगरेट बेचने वाले का, हॉटल वालों का घर चलता है। उसके बाद भी कोई सरकार हम शराबियों के बारे में नहीं सोचती। शराबियों को डर के साये में शराब का सेवन करना पड़ता है। कहीं कोई पुलिस वाला पकड़कर हवालात में बंद न कर दे। जब सरकार खुले में शराब बेच सकती है तो शराबियों को खुले में पीने का अधिकार भी देना चाहिए।
सरकार को अब इस ओर ध्‍यान देना ही पड़ेगा नहीं तो हम भी भारत बंद करवाएंगे......क्‍योंकि एक तरफ जहां सरकार ने पूरे देश में जीएसटी लगाकर एक जैसे टैक्‍स को लागू कर दिया है तो फिर संपूर्ण देश में शराब की कीमतें भी एक जैसी होनी ही चाहिए.... ताकि शराबी एक जैसी कीमतों पर कहीं से भी शराब खरीद सके, और बिना किसी रोक-टोक के उसका सेवन कर सके। वैसे एक दाम करने पर सरकार को ही फायदा है अवैध शराब की बिक्री बंद हो जाएगी और सरकार और प्रशासन इस ओर से अपना ध्‍यान हटाकर दूसरे महत्‍वपूर्ण कार्यों में लगा सकती है। तो सरकार हमारी इन मांगों पर ध्‍यान दे...... कि शराब की कीमतें पूरे देश में एक जैसी हो..... शराबियों को कहीं भी पीने का अधिकार मिलें......और पुलिस प्रशासन शराबियों को परेशान न करें......और मूल बात की शराब की कीमतें कम की जाए.... नहीं तो........भारत बंद ।

Saturday, September 8, 2018

आए हैं तो चढ़ौत्री तो चढ़ाईए


आए हैं तो चढ़ौत्री तो चढ़ाईए
...................कहे या मंदिर........ चढ़ावा दोनों जगह चढ़ाना पड़ता है। जिस प्रकार पूरे भारत देश में 33 करोड़ देवी-देवताओं का बास है। उसी प्रकार पूरे देश में इनका ही राज कायम है। आपको किसी भी प्रकार की समस्‍या है तो आईए और चढ़ावा चढ़ा कर अपनी समस्‍या का समाधान करवा सकते हैं। भगवान विराजमान है। जितना बड़ा भगवान यदि आपकी समस्‍या का समाधान कर रहा है तो उसे उतना ही अधिक चढ़ौत्री चढ़ानी पड़ेगी। बिना चढ़ौत्री के आपकी समस्‍या ज्‍यों-के-त्‍यों बनी रहेगी। एक बार आप मंदिर में भगवान के समक्ष चढ़ौत्री चढ़ाना भूल सकते हैं, भगवान इस संदर्भ में आपसे कुछ नहीं कहेंगे। हां वहां पर विराजमान पंडित इस संदर्भ में कुछ जरूर कर सकते हैं कि बिना चढ़ौत्री के भगवान अपनी कृपा आपके और आपके परिवार के ऊपर नहीं बनाएं रखेंगे। परंतु यहां तो आपको चढ़ाना ही चढ़ाना है भूल नहीं सकते। भूल गए तो समझ लीजिए आपके साथ क्‍या-क्‍या हो सकता है। वहां पर विराजमान उक्‍त देवी-देवता नाराज हो सकते हैं और आपकी समस्‍या घटने के स्‍थान पर और भी बढ़ सकती है। वैसे अधिकांश लोग इस मंदिर में जाने से कतराते रहते हैं, परंतु किंहीं कारणों से (अपनी समस्‍या के निवारण हेतु) लोगों का तांता इन मंदिरों में लगा रहता है। ऐसा कोई दिन गुजरता, जब इन मंदिरों में भक्‍तों की भीड़ नहीं लगती हो...... कभी-कभी मंदिरों में भक्‍तों की भीड़ जमा नहीं होती, तो उक्‍त देवी-देवता अपने भक्‍तों को बुलावा भिजवा देते हैं, नहीं तो स्‍वयं जाकर ही भक्‍तों को उठा लाते हैं या उठवा लेते हैं। यदि देवी-देवता स्‍वयं जाकर भक्‍तों की समस्‍या का समाधान करते हैं तो चढ़ावा कम चढ़ाना पड़ता है। क्‍योंकि वहां पर देवी-देवता कम होते हैं। और यदि यह भक्‍त एक बार मंदिर में आ गए तो सभी देवी-देवताओं को चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। क्‍योंकि मंदिर में विराजमान छोटे-बड़े देवी-देवताओं में चढ़ावा विभाजित किया जाता है। जितना बड़ा भगवान उसे चढ़ावा अधिक दिया जाता है। क्‍योंकि चढ़ावा नीचे से लेकर ऊपर तक चढ़ता है। नहीं तो कोई भी देवी-देवता आपसे रूष्‍ठ हो सकता है।
आप लोग सोच रहे होंगे यह कैसा मंदिर है जहां बिना चढ़ावा के कुछ नहीं होता.... तो आप ठीक ही समझ रहे हैं कि इन मंदिरों में बिना देवी-देवताओं को चढ़ावा चढ़ाए आपकी समस्‍या का कभी समाधान  नहीं हो सकता। क्‍योंकि लोग गाहे-बगाहे अपने कृत्‍यों के चलते, अपनी समस्‍याओं के चलते, कभी-कभी तो बिना कुछ किए भी, इन देवी-देवताओं के चंगुल में फंस जाते हैं या फंसा दिए जाते हैं। तब आपके पास और कोई रास्‍ता नहीं बचता। यदि आपको फंसा दिया गया है या अपने कृत्‍यों के चलते फंस गए हैं तो चढ़ावा चढ़ाईए और मुक्‍त हो जाए। क्‍योंकि इन देवी-देवताओं से पीछा छुड़ाने का एक मात्र उपाए हैं चढ़ौत्री....। हां यह बात और है कि आप किसी प्रभुद्धशाली पंडित से सिफारिश करवा सकते हैं जिससे चढ़ौत्री की राशि कुछ कम जरूर हो सकती है परंतु चढ़ौत्री से मुक्ति नहीं मिलेगी.... चढ़ानी तो पड़ेगी। वैसे जिन लोगों के पास चढ़ावे के लिए कुछ नहीं होता तो उन्‍हें यह देवी-देवता बड़े घर का रास्‍ता भी दिखा देते हैं। तो आपको यदि बड़े घर का रास्‍ता नहीं देखना हो तो बिना किसी हिचकिचाहट के जब भी कभी आप फंस जाए या फंसा दिए जाए तो बस देवी-देवताओं को प्रसन्‍न कर दीजिए और ताकि आप मुक्‍त हो सके।
नोट- उक्‍त लेख किसी मंदिर, देवी-देवताओं या अन्‍य किसी व्‍यक्ति विशेष या किसी सरकारी संस्‍था से सरोकार नहीं रखता, यदि ऐसा होता है तो मात्र इसे एक संयोग समझा जाए। उक्‍त लेख का उद्देश्‍य किसी की भावना को आहत पहुंचाना नहीं है।  

Thursday, September 6, 2018

बारिश रोकने के लिए करवाएं...मेढ़क-मढ़की का तलाक


बारिश रोकने के लिए करवाएं...मेढ़क-मढ़की का तलाक

देश में कुछ माह पहले तक बारिश न होने से परेशान तथागत नेताओं द्वारा विधिवत तरीके से मेढ़क-मेढ़की की शादी करवाई थी, और तथाकथित अंधविश्‍वास में आस्‍था रखने वाले लोगों ने तरह-तर‍ह, से जगह-जगह पर पूजा-अर्चना की थी, ताकि भारत देश के लोगों से नाराज चले आ रहे इंद्र देव प्रसन्‍न हो जाए और वर्षा करा दे। तथागत नेताओं द्वारा करवाई गई मेढ़क-मेढ़की की शादी से इंद्र देव इतने प्रसन्‍न हो गए कि लगातार बारिश ही बारिश करवा रहे हैं। जिसका नजारा आप सभी देख ही रहे होगें कि देश में जगह-जगह पर बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं। जिस कारण से सौंकड़ों लोग मर गए हैं और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। और लगातार हो रही बारिश की स्थिति से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी प्रसन्‍नता इतनी जल्‍दी खत्‍म होने वाली नहीं है। तो जिस किसी ने भी पूजा-अर्चना की हो और बारिश के लिए मेढ़क-मेढ़की का विवाह करवाया है उनसे मेरा और समस्‍त देशवाशियों का आग्रह है कि वह उन मेढ़क-मेढ़की की तलाश करके और उनको कृपया करके न्‍यायालय में ले जाकर उनका विधिसंवत तरीके से विवाह-विच्छेदन (तलाक) करवा दीजिए, नहीं तो पंचायत ही बिठाकर उनको अलग-अलग ही करवा दीजिए। जिससे प्रसन्‍न इंद्र देव थोड़ा सा नाराज होकर बारिश तो रोक देगें।  ऐसा कृपया जल्‍दी करें कहीं उन मेढ़क-मेढ़की के बच्‍चे-बुच्‍चे ने हो जाए, नहीं तो और आफत होगी।
वैसे तथाकथित अंधविश्‍वास में आस्‍था रखने वाले लोगों से मैं यह जानना चाहता हूं कि आप सब ने तरह-तरह के पाखंड (पूजाअर्चना) करके बारिश तो करवा दी परंतु इसे रोकने के लिए कौन-से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है और किस की शादी या किस जीव का विवाह-विच्‍छेदन (तलाक) करवाया जाता तो कृपया करके उसको भी करवा दीजिए ताकि बारिश रूक जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि बारिश करवाने के लिए ही पूजा-अर्चना का पता हो इसे रूकवाने का कोई तरीका आपके पास ना हो।
क्‍योंकि जब मैं छोटा था तो एक कहानी पढ़ी हुई थी कि आदमी लालच के कारण एक बाबा को प्रसन्‍न करता है और वह बाबा उससे प्रसन्‍न होकर उसे एक चक्‍की दे देते हैं। तब वह लालची इंसान उस बाबा से कहता है कि यह चक्‍की मेरे किस काम की, तो बाबा कहता है कि यह जादुई चक्‍की है तुमको जब जिस वस्‍तु की आवश्‍यकता हो इस चक्‍की से मांग लेना, यह तुमको वह वस्‍तु दे देगी। जब तुम इस चक्‍की को आदेश करोगे कि रूक जा तो यह रूक जाएगी। चक्‍की को चलाने व रोकने के लिए बाबा उसे एक मंत्र देता है। जिसे वह इंसान याद कर लेता है और बाबा की दी हुई चक्‍की को लेकर अपने घर आ जाता है। और सोचता है कि कहीं दूर शहर में जाकर ऐशोआराम की जिंदगी जिऊंगा और वह अपने परिवार को लेकर समुद्र के रास्‍ते चलने लगता है। कुछ समय बाद उसके परिवार को भूख लगती है तो वह उस चक्‍की को आदेश देता है और वह वस्‍तुएं उस चक्‍की से निकलना शुरू हो जाती है। खाने के सारी वस्‍तुएं मिल जाने के बाद उसे लगता है मैं तो नमक निकलना भूल ही गया और वह चक्‍की को आदेश देता है कि नमक निकालो.... और चक्‍की से नमक निकलना शुरू हो जाता है। वह इतना खुश था कि चक्‍की को रोकने का मंत्र ही भूल गया और नमक निकलता रहा.... निकलता रहा। जिसके वजन से नाव डूब गई और वह लालची इंसान अपने परिवार सहित समुद्र में डूबकर मर गया।  
मेरा यह कहानी बताने का तात्‍पर्य सिर्फ इतना है कि आप सबके पास बारिश करवाने के तरह-तरह के फार्मुला हैं तो रोकने का जो भी फार्मुला आप लोगों ने इजाद किया हो तो कृपया करके उसको शीघ्र-अति-शीघ्र अमल में लाए। क्‍योंकि आप सब के कारण ही देश में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। और लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं।

Tuesday, September 4, 2018

आरक्षण स्‍वत: खत्‍म हो जाएगा....


आरक्षण स्‍वत: खत्‍म हो जाएगा....
सही कहते हैं कि आरक्षण से देश पीछे चला गया है इसको खत्‍म होना ही चाहिए, परंतु इस बात पर किसी ने गौर किया कि आरक्षण की जो व्‍यवस्‍था है वो दुनिया में सबसे पहले भारत में ही लागू की गई। जिसे हम वर्ण व्‍यवस्‍था के नाम में भी जानते हैं। जिसमें एक पढ़ेगा, दूसरा राज करेगा, तीसरा व्‍यापार करेगा और चौथा इन सबकी सेवा करेगा। यही आरक्षण व्‍याप्‍त था भारत में.......जो आरक्षण हम आज देखते हैं वो संवैधानिक आरक्षण है यह तब लागू हुआ जब संविधान बना। इसके पहले जनेऊ आरक्षण था जो आज भी बिना किसी रोक-टोक के समाज में व्‍याप्‍त है। मैं आरक्षण के पक्ष में नहीं हूं, दलित आरक्षण आज खत्‍म कर देगें यदि उन्‍हें हर क्षेत्र में बराबर का दर्जा दे दिया जाए... क्‍योंकि आज भी भारत के कई हिस्‍सों में दलितों को कमतर या अछूत माना जाता है। वहीं मंदिरों में पंडित महंतों को ही क्‍यों मंदिरों को मठाधीश बनाया जाता है इस बात पर भी बात होनी चाहिए। ऐसा कोई मंदिर बता दे जहां पर एक दलित महंत बनाया गया हो........तो भारत भर में ऐसा कोई मंदिर आपको खोजने से नहीं मिलेगा। पहले इस वर्ण व्‍यवस्‍था को खत्‍म करने के सिफारिश की जाए आरक्षण अपने आप खत्‍म हो जाएगा.....क्‍योंकि वर्ण व्‍यवस्‍था मनुवादी सोच और अपने हित में दिया गया ऐसा आरक्षण है जो सिर्फ और सिर्फ दलितों के शोषण की वकालत करता हुआ नजर आता है। 
वैसे आज सभी लोग (तीनों वर्ण) अर्थ के आधार पर आरक्षण की मांग करते हुए नजर आते हैं कि अर्थ के आधार पर आरक्षण दिया जाए चाहे वह किसी भी जाति समूह का क्‍यों न हो... सही है अर्थ के आधार पर आरक्षण दे... परंतु पहले चौथे वर्ण को बराबर तो लाए.......जिसे आजादी के बाद भी बराबर नहीं आने दिया.... हमेशा उसका तिरस्‍कार किया गया..... वैसे संवैधानिक अधिकार नहीं मिला होता तो आज भी दलितों की स्थिति वैसी ही बनीं रहती जैसी संविधान बनने के पहले थी.... वह आज भी गुलामों की तरह इन तीनों वर्णों की गुलामी करता हुआ दिखाई देता..... कभी इस बारे में किसी ने सोचना मुनासिब नहीं समझा कि इनके साथ हमारे पुर्वजों ने और अब हम क्‍या कर रहे हैं......वह आरक्षण…… आरक्षण......  और सिर्फ ........आरक्षण। अरे भई जिसके पास दो वक्‍त की रोटी के लिए भी कुछ नहीं था और यह तीनों वर्ण तीन वक्‍त की रोटी दबा कर खा रहे थे तब किसी ने इस बात का विरोध नहीं किया कि दलितों को भी दो वक्‍त की रोटी खाने/देना चाहिए.... तब सिर्फ उनका शोषण करते रहे.... अब यदि वह संवैधानिक आरक्षण के बलबूते वर्ण व्‍यवस्‍था को तोड़कर समकक्ष खड़े हो रहे हैं तो मिर्ची लग रही है कि यह शूद्र वर्ण हमारे समकक्ष कैसे खड़ा हो सकता है जिसे हमारे नीचे होना चाहिए वह आज कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़ा हो रहा है।  इस बात पर मिर्ची लग रही है... तो जनेऊ आरक्षण का विरोध क्‍यों नहीं करते.....बराबर लाए फिर विरोध करें.... आरक्षण अपने आप खत्‍म हो जाएगा।