आरक्षण स्वत: खत्म हो जाएगा....
सही कहते हैं कि आरक्षण से देश पीछे चला गया है
इसको खत्म होना ही चाहिए,
परंतु इस बात पर किसी ने गौर किया कि आरक्षण की जो व्यवस्था है वो दुनिया में
सबसे पहले भारत में ही लागू की गई। जिसे हम वर्ण व्यवस्था के नाम में भी जानते
हैं। जिसमें एक पढ़ेगा, दूसरा राज करेगा, तीसरा व्यापार करेगा और चौथा इन सबकी सेवा करेगा। यही आरक्षण व्याप्त
था भारत में.......जो आरक्षण हम आज देखते हैं वो संवैधानिक आरक्षण है यह तब लागू
हुआ जब संविधान बना। इसके पहले जनेऊ आरक्षण था जो आज भी बिना किसी रोक-टोक के समाज
में व्याप्त है। मैं आरक्षण के पक्ष में नहीं हूं, दलित
आरक्षण आज खत्म कर देगें यदि उन्हें हर क्षेत्र में बराबर का दर्जा दे दिया
जाए... क्योंकि आज भी भारत के कई हिस्सों में दलितों को कमतर या अछूत माना जाता
है। वहीं मंदिरों में पंडित महंतों को ही क्यों मंदिरों को मठाधीश बनाया जाता है
इस बात पर भी बात होनी चाहिए। ऐसा कोई मंदिर बता दे जहां पर एक दलित महंत बनाया
गया हो........तो भारत भर में ऐसा कोई मंदिर आपको खोजने से नहीं मिलेगा। पहले इस वर्ण
व्यवस्था को खत्म करने के सिफारिश की जाए आरक्षण अपने आप खत्म हो जाएगा.....क्योंकि
वर्ण व्यवस्था मनुवादी सोच और अपने हित में दिया गया ऐसा आरक्षण है जो सिर्फ और सिर्फ
दलितों के शोषण की वकालत करता हुआ नजर आता है।
वैसे आज सभी लोग (तीनों वर्ण) अर्थ के आधार पर आरक्षण
की मांग करते हुए नजर आते हैं कि अर्थ के आधार पर आरक्षण दिया जाए चाहे वह किसी भी
जाति समूह का क्यों न हो... सही है अर्थ के आधार पर आरक्षण दे... परंतु पहले चौथे
वर्ण को बराबर तो लाए.......जिसे आजादी के बाद भी बराबर नहीं आने दिया.... हमेशा उसका
तिरस्कार किया गया..... वैसे संवैधानिक अधिकार नहीं मिला होता तो आज भी दलितों की
स्थिति वैसी ही बनीं रहती जैसी संविधान बनने के पहले थी.... वह आज भी गुलामों की तरह
इन तीनों वर्णों की गुलामी करता हुआ दिखाई देता..... कभी इस बारे में किसी ने सोचना
मुनासिब नहीं समझा कि इनके साथ हमारे पुर्वजों ने और अब हम क्या कर रहे हैं......वह
आरक्षण…… आरक्षण...... और सिर्फ ........आरक्षण। अरे भई जिसके पास दो वक्त
की रोटी के लिए भी कुछ नहीं था और यह तीनों वर्ण तीन वक्त की रोटी दबा कर खा रहे थे
तब किसी ने इस बात का विरोध नहीं किया कि दलितों को भी दो वक्त की रोटी खाने/देना
चाहिए.... तब सिर्फ उनका शोषण करते रहे.... अब यदि वह संवैधानिक आरक्षण के बलबूते वर्ण
व्यवस्था को तोड़कर समकक्ष खड़े हो रहे हैं तो मिर्ची लग रही है कि यह शूद्र वर्ण
हमारे समकक्ष कैसे खड़ा हो सकता है जिसे हमारे नीचे होना चाहिए वह आज कंधे-से-कंधा
मिलाकर खड़ा हो रहा है। इस बात पर मिर्ची लग
रही है... तो जनेऊ आरक्षण का विरोध क्यों नहीं करते.....बराबर लाए फिर विरोध करें....
आरक्षण अपने आप खत्म हो जाएगा।
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