सरोकार की मीडिया

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Wednesday, February 13, 2013

तुम्हारे बिन यह ऊंचाईयां बर्दास्त नहीं होती


तुम्हारे बिन यह ऊंचाईयां बर्दास्त नहीं होती

जिंदगी के उतार-चढ़ाव देखने के बाद आखिरकार मैं जीवन के लगभग एक तिहाई साल काटने में कामयाब रहा। हां इन एक तिहाई सालों में बहुत से पल मानों मैंने सौ-सौ सालों के समान जीए हों और कुछ खट्टे-कड्वे पलों को तो मैं मरते समय तक नहीं भुला सकता। सही है अच्छे वक्त और बुरे वक्त को इंसान कभी भी नहीं भुला पता।
आज जीवन के इस पड़ाव पर पहुंचने के बार भी ऐसा लगता है मानों कहीं कोई पीछे छूट गया हो। जिसने आह भरी थी और आवाज़ भी दी थी, शायद हमारे कानों ने सुनने की कोशिश नहीं की। बेहरा बना रहा या बेहरेपन का नाटक करता रहा और वो जाते-जाते भी आवाज़ देता रहा, कि मैं बेवफा नहीं हूं हालात ही कुछ ऐसे रहे होगें! लाख कहा, मिन्नतें की, पर मैंने तो जैसे न सुनने की ठान रखी थी और सुना भी नहीं।
मेरे बेहरेपन और रिश्तों में आई खटास के चलते वो दूर ही होते चले गए, कभी न वापस आने के लिए। मैं भी यही सोचता रहा कि मुझे उनके प्यार की जरूरत नहीं है, रह सकता हूं उनके बिन। कोशिशें लगातार की, करता रहा, पिछले कई सालों से करता आ रहा हूं, उनको भुलाने की। हां यह बात सही है कि न तो उनकी यादों को भुला पाया और न ही उनकी गलतियों को। मैं तो कोशिश करता रहा अपनी ही गलतियों को भुलाने की। जिसमें में बहुत हद तक कामयाब जरूर हुआ, परंतु पूरी तरह से नहीं। उसकी यादों और साथ बिताए पल मुझें कभी कामयाब नहीं होने देते। आज भी बिन बुलाए कहीं भी, कहीं भी चले आते हैं-जैसे वा ेअब भी आवाज़ दे रहा हो कि एक बार तो मेरी वेदना सुनों, मुझ पर विश्वास तो करों कि मैं केवल अपना हूं। उनके विश्वास को मैंने ही चकनाचूर कर दिया।
वो तो कभी भी किसी महफिल में मेरी बुराई सुनते ही भड़क जाया करता था, बर्दास्त नहीं कर पाता था, लड़ने को हमेशा तैयार। कहता था अपने दोस्तों से, मुझे अपने प्यार पर पूरा विश्वास है वो मुझें कभी भी धोखा नहीं दे सकता। हां यह सही है कि मैंने कभी उसे धोखा नहीं दिया और न कभी सपने में सोचा उसे धोखा देने के लिए। क्योंकि मैं उससे दिलों जान से प्यार करता हूं। परंतु गलतियां कहां से उपजी, आज तक समझ नहीं पा रहा हूं, किस की नज़र लगी हमारे प्यार को, जो चूर-चूर हो गया, कभी न जुड़ने के लिए।
आज भी रो लेता हूं मान कर अपनी ही गलती, कि सुन लेता उसकी बात, या अनसुनी कर देता लोगों की बात, कुछ तो करता। पर गलतफहमी तो नहीं पालता। जहां कहीं हो लौट आओं, तुम्हारे बिन यह ऊंचाईयां बर्दास्त नहीं होती।  

Tuesday, February 5, 2013

ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आ जा??????


ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आ जा??????
एक व्यक्ति जो कुछ पल पहले तक हमारे साथ हंस बोल रहा था, खा-पी रहा था, उसके होने का एहसास था। और क्षणिक भर में सब कुछ यूं अचानक कैसे बदल जाता है एक हिच्की के साथ? इस अचानक आई हिच्की से दिल की धड़कन थम जाती है, आंखें बंद हो जाती हैं खून का बहाव रूक जाता है, हाथ-पैर काम करना बंद कर देते हैं। और उस जीवित प्राणी के शरीर में दौड़ने वाली ऊर्जा, जिसे हम आत्मा करते हैं शरीर का त्याग कर देती है। यानि जीविन इंसान अब मृत हो चुका है। उस एक हिच्की के साथ सब कुछ पीछे छूट जाता है। मां, बाप, भाई, बहन, पत्नी, बेटा-बेटी, सगे-संबंधी सब बंधनों से एक साथ मुक्ति। यह कैसी मुक्ति। जो कुछ पलों पहले तक हमारे साथ हुआ करता था अब वो नहीं है हमारे बीच। उसका यूं चुपचाप चले जाना इस दुनिया से और छोड़ जाना अपने पीछे परिजनों को रोते बिलखते। उसके जाने की यह असीम वेदना आंखों से और दिल से यूं निकलती है जिससे किसी पत्थर का भी दिल पिघल जाए। उस एक परिजन के बीच से जाने के उपरांत ऐसा प्रतीत होता है मानों उसके रूकसत होते ही हमारे शरीर में जान ही न बची हो। सब कुछ लुट चुका हो, और अब कुछ भी न बचा हो लुटने के लिए। अगर सब कुछ लुटा देने के बाद भी वो शख्स हमारे बीच में पुनः लौट पाता, तो परिजन अपना सब कुछ हंसी-खुशी से लुआ देते। परंतु ऐसा नहीं, ऐसा बार जाने के बाद वहां से कोई सदा लौट कर वापस नहीं आती।
जीवन-मृत्यु के काल चक्र के चक्रव्यूह से कोई भी अछूता नहीं रह सका है। जो इस संसार में एक बार आया है उसे जाना ही पड़ा है। किसी को पहले किसी को बाद में, जाना सभी को है। नियति भी यही कहती है। कि राजा हो या रंक अंत सब का एक सा होता है। यानि मृत्यु??
परंतु किसी की मृत्यु इतनी वेदना क्यों दे जाती है कि उसके जाने के बाद दिल-दिमाग धरातल में आकर ठहर जाता है। वेदना, चीखें, दुख के बादल अपने आप बरसने लगते हैं। इस दुख की घड़ी में किसी की सांत्वना भी मरहम का काम नहीं करती। क्योंकि वह तो चला जाता है और छोड़ जाता है एक शून्य जिसे कोई भर नहीं सकता। केवल एक ही प्रार्थना निकलती है कि ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आ जा??????