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Saturday, September 5, 2020

शिक्षा-नीति को चौराहे की..... कुतिया बनाने वालों से

 शिक्षा-नीति को चौराहे की..... कुतिया बनाने वालों से

तीज त्योहारों की तरह हर साल शिक्षक दिवस भी आता है। पूजाआराधना में जैसे गोबर की पिंडी को गणेश मानकर पूज लिया जाता है वैसे ही एक दिन के लिए सभी गोबर गणेश बन जाते हैं। यह एक अनिवार्य कर्मकाण्ड है जो हर साल यह अहसास दिलाता है कि अपने यहां शिक्षक भी पूजे जाते हैं।

कर्म जहां जड़ हो जाता है वहीं से कांड शुरू होता है। अपने यहाँ कर्म और कांड का रेशियो ट्वंटी एट्टी का होता है। ट्वंटी परसेंट कर्म एट्टी परसेंट कांड। इसी औसत में हमारे शिक्षा संस्थानों में पढाई होती है।

गणेश विसर्जन के दूसरे दिन से पितृपक्ष शुरू होता है। यह भी कर्मकाण्ड ही है। मातापिता की सेवा ट्वंटी परसेंट शेष उनका कांड। बेटा विलायत में था डेढ साल पहले माँ से बात करके अपने दायित्व का कोटा पूरा कर लिया था। लौटा तो यहां घर में कांड हो चुका था। माँ की हड्डी की ठटरी मिली। अब वो पितर बन चुकी है।  बेटा गया जाकर माँ की आत्मा का  तर्पण कर आया इति श्री कर्मकाण्डम्। सच्चे सपूतों यही गुणधर्म है।

देश में शिक्षा भी कर्मकान्डी है। यहां कर्म कम कांड ज्यादा होते हैं। जेएनयू का कन्हैया कांड, हैदराबाद का बेमुला कांड। फिर ऐसे ही कई कई लोकल कांड। न पढाई की फुर्सत, न पढाने का वक्त।

रागदरबारी वाले श्रीलाल शुक्ल कह गए.. भारत की शिक्षानीति.. चौराहे पर खड़ी ऐसी कुतिया है कि हर राहगीर लतिया के निकल जाता है..। आजादी के बाद से उस बेचारी कुतिया को मुकाम नहीं मिला। वो,आए तो बोले ऐसा भोंको..वह ऐसा भोंकने का अभ्यास कर ही रही थी कि ये,आ गए। इन्होंने कहा भोकने में कुछ लय सुर मिलाओ तब चलेगा..कुतिया बेचारी भौचक खड़ी है वहीं उसी चौराहे में राहगीरों से लात खाते हुए।

सवा अरब की आबादी। एक लाख से ज्यादा शैक्षणिक संस्थान। दुनिया के श्रेष्ठ दो सौ संस्थानों में एक भी नहीं। हम चल पड़े हैं विश्वगुरु बनने। हालत ढाँक के तीन पात। सगोत्रीय शिक्षाविदों की तलाश में पढाई ठप्प।

लड़कों को पढाई चाहिए भी कहाँ। डिग्रियां मिल रही हैं। इंन्जीनियर बने दुबई में कारपेंटरी कर रहे। माँ बाप खुश कि बेटा बडे़ पैकेज में है। एमबीए किया इटली पहुंचे पिज्जा बेचने लगे। नब्बे फीसद शिक्षा संस्थानों के यही हाल हैं। शेष दस प्रतिशत में आधों का ब्रेन ड्रेन होकर समुंदर पार हो गया। जो बचे उन्हें नेताओं ने अपने पीछे लगा लिया। अँधेर नगरी चौपट्ट राजा, टकेसेर भाजी टकेसेर खाजा।

शिक्षक दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बने चौरासी वर्षीय पंडिज्जी बिना थके, बिना रुके धकापेल बोले जा रहे थे। मंच पर बैठे नेताजी अध्यक्षता कर रहे थे। चैनलिया बसहबाजों की भाँति उठकर बीच में बोल पड़े --पंडिज्जी देश में सब बुरई बुरा नहीं हो रहा। अच्छा भी हो रहा है। हम तरक्की कर रहे हैं। आगे बढ रहे हैं। ग्रोथ की रफ्तार देखिए। दूसरी आँख भी खोलिए।

आज पंडिज्जी का दिन था, वे फिर बमके.. ..कैसी ग्रोथ? भ्रष्टाचार में एशियाई लायन, भूख के सूचकांक में अफ्रीकियों से अंगुल भर ऊपर,आर्थिक विषमता ऐसी कि पांच फीसद लोगों के पास देश की नब्बे फीसद दौलत,महिला दमन के मामले में अरब मुल्क लजा जाएं। बड़े चले आए दुनिया की महाशक्ति बनने.. दादा के माथे नौ नौ मेहर...। एक तमंचा तक तो आयात करते हो। पूरी दौलत लुटाए दे रहे हो हथियार खरीदने में कहते हो हम बड़ी ताकत हैं।

पंडिज्जी भारत छोडो आंदोलन के संग्रामी थे। आजादी के बाद अध्यापक हो गए.। शिक्षक दिवस के दिन वरिष्ठ शिक्षाविद के नाते उनका नाम तय किया गया था। पंडिज्जी के सिर पर गाँधी टोपी मध्यकाल के नेताओं को भी मात कर रही थी।

पंडिज्जी उपसंहार करते हुए मुद्दे पर आए..देश में सामाजिक विषमता का अध्ययन करना है तो शिक्षकों की स्थिति पर करिए। दो हजार पाने वाला भी शिक्षक, दो लाख पाने वाला भी। जो कम पाए वो हाड़तोड़ पढाए,जो ज्यादा पाए मटरगस्ती करे। अरे जो शिक्षा की बुनियाद रख रहे हैं उन्हें कमसे कम मजूरों के बराबर मजूरी तो दो। एक ने सफाई कर्मियों की तरह शिक्षाकर्मी बना दिया,दूसरे ने तरक्की देकर गुरुजी बना दिया, पहले तदर्थं शिक्षक थे अब वही अतिथि विद्वान हो गए।

ग्रोथ, सिर्फ़ लफ्फाजी की ग्रोथ। शिक्षकों की यह फ्रस्टेट पीढी से गढ़कर कैसी पौध निकलेगी और निकल रही है सब सामने है। सो मैं इसलिए कह रहा हूँ कि ये कर्मकाण्ड बंद करिए और फिर जो मरजी हो करिए। हमने अपना जमाना जिया तुम लोग जियो या मरो अपना क्या..?

पडिज्जी ने यह सवाल छोड़ते हुए जयहिंद कर लिया। नेता जी ने पंडिज्जी के भाषण को ऐतिहासिक बताते हुए कहा सहिष्णुता ऐसी ही हो कि कोई कटु से कटु कहे तो कान में कड़वे तेल की तरह डालों फिर खूंट समेत नकाल दो। स्कूल के बच्चों ने लयबद्धता के साथ तलियाँ पीटीं।

प्राचार्य महोदया ने शाल श्रीफल, पत्रम्  पुष्पम् के साथ पंडिज्जी का सम्मान किया।  फिर आभार मानते हुए बोलीं--बाय-द-वे आपका स्पीच वंडरफुल रहा। पंडिज्जी अपने वंडरफुल स्पीच से मुदित थे। दिहाड़ी वाले गुरूजी और अतिथि विद्वान नाश्ते के दोने लगाने में मस्त थे। संचालक ने घोषणा की कि आज का यह समारोह यहीं समाप्त हुआ। अगले वर्ष इसी दिन फिर मिलेंगे। पंडिज्जी नेताजी की सफारी में बैठकर बच्चों को टाटा बायबाय करते हुए चले गए।

साभार.... जयराम शुक्‍ल

 

 

Monday, August 10, 2020

वैश्विक महामारी के दौर में सोशल मीडिया की भूमिका का विश्लेषणात्मक अध्ययन

 वैश्विक महामारी के दौर में सोशल मीडिया की भूमिका का विश्लेषणात्मक अध्ययन

प्रस्तावना

सोशल मीडिया एक ऐसा मंच, जहां समाज के लोग अपने विचारों, सलाह लेने, मार्गदर्शन प्रदान करने, सूचना ग्रहण व प्रेषित करने के लिए उपयोग करते हैं। यह एक समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सूचना प्रेषित करने का एक सुगम माध्यम है। क्योंकि सोशल मीडिया ने संचार बाधाओं को पूर्णतयः दूर कर दिया है और विकेन्द्रीकृत संचार चैनल का निर्माण किया है। 

जहाँ एक तरफ समाज यह समाज को एक साथ जोड़ने का काम करता है वहीं दूसरी तरफ एक क्रांति के साथ-साथ सामाजिक विघटन का कारण भी साबित हुआ। आज का समाज, विशेष रूप से युवा वर्ग, एक ऐसे राजनीतिक साम्प्रदायिक एवं धार्मिक विघटनाकारी ताकतों का शिकार हो रहा है जो व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के साथ साथ देश के आंतरिक सुरक्षा एवं शांति के लिए खतरनाक है। इसे सोशल मीडिया का नकारात्मक पहलू कह सकते हैं।

वहीं देखा जा जाए तो समाज को सीखने और वर्चुअल नेटवर्क पर बड़े समूह से जुडने का एक बड़ा पायदान मिला है, लोगों को अपनो से दूर रहकर भी पास होने की एक अलग खुशी भी मिली है। इस खुशी का अंदाजा आज के समय में फैली वैश्विक महामारी (कोराना वाइरस) से लगाया जा सकता है जहां सरकार द्वारा पूरे देश में संपूर्ण लॉक डाउन की घोषणा की गई और लोगों को सोशल डिस्टेसिंग (घरों में रहने) की सलाह दी। ताकि यह वाइरस आपके घरों तक न पहुंच सके। वहीं इस लॉकडाउन में लोग को सोशल मीडिया की वर्चुअल जिंदगी इन दिनों वास्तविक से अच्छी लग रही है, क्योंकि यहां कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा नहीं है। परंतु तकरीबन सबकी गतिविधियां वायरस के भय से उपजी चिंता से उबरने के उपायों के इर्द-गिर्द है।

सोशल मीडिया विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादातर लोग इन दिनों पतंगा बन गए हैं और सोशल मीडिया उनके लिए एक दीया। जिसके इर्द-गिर्द सभी लोग मंडरा रहे हैं। सभी लोग सुबह से लेकर सोने से पहले तक फेसबुक, व्हाटसएप, ट्विटर या इंस्टाग्राम स्क्रॉल करते रहते हैं और एक दूसरे के साथ विचारों का आदन-प्रदान करते रहते हैं। क्योंकि लोगों में बेचैनी का आलम बना हुआ है। हर 5 से 10 मिनट में अपने मोबाइलों को चेक करते हैं कि कहीं उनके परिजनों, दोस्तों, सरकार द्वारा वायरस के संबंध में कोई सूचना प्रसारित तो नहीं की गई। इस बेचैनी में राहत तब मिलती है जब पता चलता है कि हम अकेले नहीं है, बल्कि बहुतेरे लोग इस बेचैनी से प्रभावित है।

वैसे वर्तमान समय में लोग देश दुनिया की खबरों से फटाफट अपडेट के आदी हो चुके हैं। वहीं कुछ लॉकडाउन के पहले सोशल मीडिया से लोगों के मोहभंग होने की बात भी खूब हो रही थी। इसकी लत सेहत पर गंभीर असर डालती है। यह भी मान चुके थे, पर अब ये सब बातें पीछे छोड़ दी गई हैं। शोध बताते हैं कि आपदा के समय सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ा है। ‘‘सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक लॉकडाउन के बाद से डाटा की खपत में तकरीबन 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।’’ जिससे इस बात का अंदाजा असानी से लगाया जा सकता है कि लॉकडाउन में सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है।

लॉकडाउन के परिप्रेक्ष्य और सोशल मीडिया की भूमिका के संबंध में दुनिया की जानी-मानी ‘‘स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी (कम्युनिकेशन विभाग) के प्रोफेसर जेन हेंकॉक का कहना है, सोशल मीडिया पर होने वाली चर्चा और गतिविधियां बताती हैं कि हमारे समाज की क्या मनोदशा है और इस आपदा पर वह कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है। समाज से जुड़े रहने का यह एहसास मन को राहत देता है। यहां हैशटैग लगातार बदल रहे हैं।’’

इस बारे में मनोविज्ञानिकों का कहना है कि यह हमारी आदत है कि हम इंस्टैंट यानी तुरंत राहत चाहते हैं। पुरानी चीजें हमें जल्दी बोर कर देती हैं। पर यदि आप ऐसी स्थिति में आने से पहले खुद को रोक नहीं पा रहे तो आसानी से सोशल मीडिया आपको अपने शिंकजे में ले सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कैसे सोशल मीडिया लोगों को लॉकडाउन के इन दिनों में रचनात्मक भी बना रहा है। वे उन लोगों का जिक्र करते हैं जो सोशल मीडिया की मदद से डर और घबराहट दूर कर रहे हैं।

अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको सोशल मीडिया वांछित लाभ नहीं दे रहा तो इससे कुछ वक्त दूर रहने का प्रयास ही आपके हित में है। इस बारे में ‘‘डॉक्टर राबर्टा बैब कहती हैं, सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रयोग नहीं समझते तो यह संभव है कि कुछ समय बाद आपके मन में डर, गुस्सा और फीयर ऑफ मिसिंग आउटयानी कुछ खो जाने का भय भरने लगेगा। रॉबर्टा बैब के मुताबिक यदि आप सोशल मीडिया का प्रयोग निरुद्देश्य और संयमहीन तरीके से कर रहे हैं तो यह इन मुश्किल दिनों में आपको अवसाद में डाल सकता है। याद रहे, इस अवसाद से बचने का सक्रिय प्रयास भी आपको ही करना होगा।’’

इस विषय में समाजशास्त्रियों ने कहा है कि पश्चिमी समाज के मुकाबले भारतीय समाज में सोशल मीडिया आज भी नई चीज है। यह एक आधुनिक टूल है, जिसकी मदद से समाज की बॉन्डिंग और इसकी परंपरा आधुनिक बनाने में मदद मिल रही है। अब लॉकडाउन में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए एक-दूसरे से शारीरिक दूरी से पैदा हुई रिक्तता की भरपाई में इससे मदद मिल रही है। सोशल मीडिया की पहुंच और क्षमता को देखते हुए हमें इसका अधिक से अधिक सकारात्मक उपयोग करना चाहिए।

उद्देश्य

·       कोरोना वायरस में सोशल मीडिया की भूमिका का अध्ययन करना।

·       कोरोना वायरस के दौर में सोशल मीडिया के उपयोग का विश्लेषण करना।

उपकल्पना

·       कोरोना वायरस ने सोशल मीडिया के अन्य संचार के माध्यम से अलग प्लेटफॉम प्रदान किया है।

·       कोरोना वायरस के दौर में लोग सोशल मीडिया का उपयोग अपनी जरूरतों के हिसाब से कर रहे है।

शोध प्रविधि-

·       निदर्शन प्रविधि- निदर्शन प्रविधि का प्रयोग करते हुए कोविड-19 और सोशल मीडिया के संबंध में जानकारी प्राप्त करने हेतु ऑन लाइन 200 लोगों का चयन किया गया है। 

·       प्रश्नावली प्रविधि- डेटा संकलन हेतु प्रश्नावली प्रविधि का प्रयोग किया गया है।

·       अवलोकन प्रविधि- डेटा  संकलन हेतु अवलोकन प्रविधि का प्रयोग किया गया है।

शोध सीमा-

  • प्रस्तुत शोध पत्र के अंतर्गत केवल ऑन लाइन लोगों का चयन कर उनके मतों का समावेश किया गया है। 

देशभर में कोरोनावायरस के संक्रमण के कारण लॉकडाउन चल रहा है। इस दौरान लोग अपने घरों में है। लोगों से लगातार यह आग्रह किया जा रहा है कि वह अपने घरों में रहें, ताकि इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। ऑफिस या फिर कामकाजी लोगों के लिए घर में रहना एक तरीके से मुश्किलों भरा है। हालांकि उन्हें अपने परिवार और अन्य कामों के लिए टाइम भी मिल जा रहा है। लोग अपने घरों में है इसलिए वह किताबें पढ़ना पसंद कर रहे हैं, फिल्में देखना पसंद कर रहे हैं, किचन में खाना बनाना पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी खूब किया जा रहा है। एक सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान लगभग हर भारतीय ने सोशल मीडिया पर 4 घंटे से भी ज्यादा का वक्त बिताया है।

सोशल मीडिया का यह इस्तेमाल इसके पहले की सप्ताह की तुलना में 87% ज्यादा है क्योंकि अब लोग अपने घरों में बंद है और उन्हें समय व्यतीत करने के लिए सोशल मीडिया का अच्छा खासा साथ मिल रहा है। सोशल मीडिया के अलावा वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और लाइव टीवी देखने वाले उपभोक्ताओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है। हालांकि रेडियो के क्षेत्र में नुकसान हुआ है और कहा जा रहा है कि आउट ऑफ होम मीडिया रेडियो के उपभोक्ताओं में कमी आई है। दरअसल लोग घरों में सोशल मीडिया पर अपने रिश्तेदारों से वीडियो कॉलिंग के जरिए बात करना हो या फिर टिक टॉक या फिर अन्य सोशल साइट्स के जरिए खुद को मनोरंजन करना हो, लोग सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं।

इससे पहले औसतन लोग सोशल मीडिया पर लगभग 150 मिनट बिताते थे। वहीं 75% लोग सोशल मीडिया पर अब ज्यादा समय बिताने लगे हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर ज्यादा टाइम खर्च करने लगे तो आंकड़ा बढ़कर अब 280 मिनट से भी ज्यादा हो गया है। लोगों की माने तो वह लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल न्यूज देखने और अपने फैमिली और फ्रेंड से लगातार संपर्क में रहने के लिए कर रहे हैं। शोध के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने पिछले 5 दिनों में सब्सक्रिप्शन में 80% की वृद्धि दर्ज की है। वहीं वॉच टाइम में 50% की बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट ब्राउजिंग में भी लगभग 72ः का उछाल देखा गया है जो कि पहले की तुलना में बहुत ज्यादा है। इंटरनेट का इस्तेमाल सबसे ज्यादा कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारियों के लिए किया जा रहा है।

हैमरकॉफ कंज्यूमर स्नैपशॉट द्वारा कराए गए सर्वे से यह तथ्य निकल कर सामने आया है। यह सर्वे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई के लगभग 1300 उपभोक्ताओं के बीच किया गया था। इस सर्वे से जो निकल कर आया उसमें यह देखने को मिला कि ओटीटी मीडिया कंजप्शन में लगभग 71% की बढ़ोतरी हुई है। इस सर्वे में यह भी निकल कर आया कि इंटरनेट का इस्तेमाल लगभग 7 बजे से ही शुरू हो जाता है जो कि पिछले हफ्ते में या 10 से 12 के बीच हुआ करता था। हालांकि लोगों ने यह भी स्वीकार किया कि वह सुबह 8 से 9 के बीच में टीवी भी देखते हैं।

लॉक डाउन में सोशल मीडिया का उपयोग विभिन्न पहलुओं में किया जा रहा है जैसे-

शैक्षणिक परिप्रेक्ष्यः- कोरोना वायरस (कोविड-19) को रोकने के लिए शासन ने निर्देश जारी कर स्कूल-कॉलेज बंद रखने का फैसला लिया। ताकि भीड़ न हो। और कोरोना वायरस बच्चों में न फैले। इसके एवज में सरकार न सभी शौक्षिणक संस्थानों को बंद करवा दिया। कोरोना वायरस के चलते बंद हुए शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ रहे बच्चों और एमएचआरडी के समक्ष एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हुई कि बच्चों की शिक्षा का कैसे पूर्ण कराया जाए, तथा उनको घर बैठे ही कैसे उनका अध्ययन अध्यापन कराया जाए। ताकि छात्र-छात्राओं की हो रही पढ़ाई प्रभावित न हो। इसके साथ ही मार्च-अप्रैल माह बच्चों की परीक्षा का माह होता है और कोरोना वायरस के चलते वो भी समय से पूर्ण नहीं हो पाई। इस समस्या का निदान भी सोशल मीडिया ने ही तलाश कर दिया। एमएचआरडी ने देश-दुनिया के शैक्षणिक संस्थानों के बच्चों की ऑनलाइन क्लास तथा ऑनलाइन परीक्षा लेने का निर्णय लिया, जो बहुत हद तक कारगर साबित हो रहा है। शिक्षक सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म (जूम क्लास, फेसबुक, गुगल क्लासरूम, यूट्यूव, व्हासटएप) इत्यादि माध्यम के द्वारा बच्चों को स्टडी मटेरियल प्रदान कर ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं तथा बहुत से संस्थान सोशल मीडिया के माध्यम से ही छात्रों की ऑनलाइन परीक्षा लेने पर विचार कर रहे हैं। यह इनका सकारात्मक पक्ष है वहीं इनका नकारात्मक पक्ष यह है कि इन ऑनलाइन क्लासों से केवल मध्यम वर्गीय व उच्च वर्गीय परिवार के बच्चों की लाभांवित हो रहे हैं। वहीं निम्न वर्गीय बच्चे इससे वंचित रह रहे हैं, क्योंकि उनके पास इनका उपयोग करने के उचित संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि बच्चों की पढ़ाई में कोई परेशानी न हो इसलिए पालक कहीं न कहीं से इंटरनेट का रिचार्ज भी करवा रहे हैं। वहीं सरकार ने कक्षा 11 तक के सभी छात्रों को प्रमोसशन दे दिया है। 

सामाजिक परिप्रेक्ष्य:- कोरोना वायरस के चलते लागू किया गया लॉकडाउन उन लोगों के लिए परेशानी का सबब बना जो प्रतिदिन कमाकर अपने परिवार का गुजर बसर कर रहे थे। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हुई अपना और अपने परिवार का भेट कैसे भरा जाए इस लॉकडाउन में। इस समस्या का निवारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। सामाजिक संगठनों ने व्हाट्सएप और फेसबुक पर अपने नंबर देकर लोगों से यह अपील कर रहे हैं कि उनके आस-पास यदि कोई भूखा है तो उसकी जानकारी दें जिससे उन लोगों तक तत्काल खाना पहुंचाया जा सके। ताकि इस महामारी के समय में कोई भूखा न रहे।

वहीं बहुत से सामाजिक संस्थानों के साथ-साथ सामाजिक युवा कार्यकर्ता सोशल मीडिया के माध्यम से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर जरूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाने से लेकर उनकी हर तरह की मदद कर रहे हैं।

इस परिदृश्य में आगे बात कि जाए तो कोरोनो वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए घोषित लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया आमजन की मदद से लेकर समस्याओं के समाधान में भी अहम भूमिका निभा रहा है। पुलिस और प्रशासनिक अमले से लेकर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर खासे सक्रिय हैं। मुसीबत में फंसे लोगों के ट्वीट, पोस्ट या मैसेज के आधार पर सभी जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने-अपने स्तर पर तत्काल सक्रिय हो रहे हैं। सोशल मीडिया के संदर्भ में कई लोगों का यह भी कहना है कि यदि सोशल मीडिया न होता तो शायद लोगों की मदद करने में खासी दिक्कतें आती और कौन जरूरतमंद है, इसका पता लगाने में खासी दिक्कत होती। इसके साथ ही सोशल मीडिया यूजर्स यह भी अपील कर रहे हैं कि सोशल मीडिया का उपयोग अफवाह फैलाने के लिए या गलत जानकारी देने के लिए नहीं बल्कि मुसीबत में फंसे लोगों की मदद के लिए ही किया जाए। यह सब सोशल मीडिया के द्वारा ही संभव हुआ। 

कामकाम के परिप्रेक्ष्य में- कोरोना महामारी से बंद हुए सभी संस्थानों में जैसे काम को पूरी तरह ठप्प कर दिया था। वहीं सोशल मीडिया ने सोशल डिस्टेसिंग बनाए रखते हुए बिना घर से निकले यानि Work From Home की सुविधा मुहैया करवाई है। जिसमें सरकारी व निजी कर्मचारी अपने घर बैठे-बैठे ही सोशल मीडिया (ईमेल, फेसबुक, व्हाट्सएप, जूम) इत्यादि माध्यमों से अपने काम को पूरा कर रहे हैं। जिससे लॉकडाउन खुलने के उपरांत काम का बोझ न बढ़े।

आपराधिक परिप्रेक्ष्यः कोरोना महामारी के दौर में यदि कोई अफवाह फैलती है तो उसका खंडन करने में भी सोशल मीडिया से अच्छी मदद मिल रही है। इसके अलावा थाना स्तर के डिजिटल वालंटियर्स की मदद से आसानी से आमजन की गतिविधियों की निगरानी भी पुलिस कर रही है। असामाजिक तत्वों द्वारा यदि कोरोना को लेकर सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने का काम किया जाता है तो उसकी पुष्टि भी पुलिस प्रशासन द्वारा करके उसके विरूद्ध दंडात्मक कार्यवाही भी की जा रही है। पुलिस प्रशासन ने कई अपराधिक तत्वों के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 153A/188/505 और डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत गिरफ्तार कार्यवाही की है।

ज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्यः- कोरोना वायरस की महामारी को रोकने के लिए उठाए जा रहे एहतियाती कदमों के बीच पुरुष और महिलाएं सोशल मीडिया के माध्यम से तरह-तरह के व्यंजनों को बनाने का तरीका, अन्यउपयोग वस्तुओं से उपयोग की वस्तुएं बनाने का तरीका, सेहत के लिए योगा अभ्यास, महिलाएं अपने सौंदर्य को बनाए रखने तथा बच्चे, महिलाएं और पुरुष अपने ज्ञान में वृद्धि करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं।  इसके लिए वह ऑनलाइन वीडियो तथा विशेषज्ञों से राय भी ले रहे हैं।

राजनैतिक परिप्रेक्ष्य:- लॉकडाउन की वजह से विपक्षी पार्टियों की गतिविधियां सीमित हो गई हैं। जिसने नेताओं को अपने-अपने बंगलों में समेटकर रख दिया है। पार्टी विपक्ष की भूमिका अब फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया के माध्यमों से निभाई जा रही है। तथा सरकार की सही रणनीति के पक्ष में और गलत रणनीतियों के विपक्ष में अपनी प्रतिक्रिया भी सोशल मीडिया के माध्यम से समय-समय पर दे रहे हैं।

प्रश्नवली के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पर निम्न मत प्राप्त हुए जो इस प्रकार हैं-

उत्तरदाताओं से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण-

ग्राफ संख्या:- 1


 उपरोक्त ग्राफ से यह ज्ञात होता है 200 उत्तरदाताओं में से 188 (94 प्रतिशत) ने कहा कि वह लॉकडाउन में सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं वहीं 12 उत्तरदाताओं (6 प्रतिशत) ने अपना मत दिया कि वह लॉकडाउन में सोशल मीडिया का उपयोग नहीं कर रहे हैं।  अतः आंकड़ों से ज्ञात होता है कि लोग लॉक डाउन के समय में सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं।  

 ग्राफ संख्या:- 2


 उपरोक्त ग्राफ से यह ज्ञात होता है 200 उत्तरदाताओं में से 71 (35.5 प्रतिशत) का मत है कि वह लॉक डाउन में फेसबुक का उपयोग कर रहे हैं। वहीं 54 उत्तरदाताओं (27 प्रतिशत) व्हाट्सएप, 35 उत्तरदाताओं (17.5 प्रतिशत) यूट्यूब, 27 उत्तरदाताओं (13.5 प्रतिशत) ट्वीट तथा 13 उत्तरदाताओं (6.5 प्रतिशत) इंस्टाग्राम का उपयोग कर रहे हैं। अतः आंकड़ों से ज्ञात होता है कि लॉकडाउन के समय में सर्वाधिक लोग फेसबुक का उपयोग कर रहे हैं।  

ग्राफ संख्या:- 3


 उपरोक्त ग्राफ से यह ज्ञात होता है 200 उत्तरदाताओं में से 93 (46.5 प्रतिशत) लोगों के कहा कि लॉक डाउन के समय में वह सोशल मीडिया का उपयोग समय व्यतीत करने के लिए कर रहे हैं। और 32 उत्तरदाताओं (16 प्रतिशत) लोग कोरोना की जानकारी प्राप्त करने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं। तथा 56 उत्तरदाताओं (28 प्रतिशत) अपने ज्ञान में वृद्धि करने के लिए एवं 19 उत्तरदाताओं (9.5 प्रतिशत) अपने कामकाम को पूरा करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। अतः आंकड़ों से ज्ञात होता है कि लॉकडाउन के समय में लोग सोशल मीडिया का उपयोग समय व्यतीत करने के लिए सर्वाधिक कर रहे हैं।  

ग्राफ संख्या:- 4

 उपरोक्त ग्राफ से यह ज्ञात होता है 200 उत्तरदाताओं में से 116 (58 प्रतिशत) लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस से संबंधित सकारात्मक खबरें प्रसारित हो रही हैं। वहीं 84 उत्तरदाताओं (42 प्रतिशत) ने अपना मत नकारात्मक पक्ष में दिया कि सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस के संदर्भ में नकारात्मक खबरें प्रसारित हो रही है। अतः आंकड़ों से ज्ञात होता है कि सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस से संबंधित सकारात्मक खबरें प्रसारित हो रही है।  

 ग्राफ संख्या:- 5

 उपरोक्त ग्राफ से यह ज्ञात होता है 200 उत्तरदाताओं में से 133 (66.5 प्रतिशत) ने अत्याधिक सहमत के पक्ष में मत दिया कि लॉक डाउन के दौर में सोशल मीडिया से लोग लाभांवित हो रहे हैं और 61 उत्तरदाताओं (30.5 प्रतिशत) ने सहमत के पक्ष में अपने विचार ब्यक्त किए। जबकि 0 उत्तरदाताओं (0 प्रतिशत) न सहमत न असहमत के पक्ष में थे। वहीं 2 उत्तरदाताओं (1 प्रतिशत) ने असहमत पर अपना मत दिया तथा 4 उत्तरदाताओं (2 प्रतिशत) ने लॉकडाउन के दौर में सोशल मीडिया से लोग लाभांवित पर अत्याधिक असमति व्यक्त की। अतः आंकड़ों से ज्ञात होता है कि लॉकडाउन के दौर में सोशल मीडिया से लोग लाभांवित हो रहे हैं।

निष्कर्ष

करोना वायरस ने पिछले कुछ महीनों में दुनिया बदल दी है। लोग हफ्तों से घरों में बंद हैं। भारत में भी लॉकडाउन को एक महीने से ज्यादा का समय पूरा हो चुका है। घरों में बंद लोगों के पास कोरोना से जुड़ी सूचनाओं का सबसे तेज सोर्स सोशल मीडिया है, यही नहीं लोगों की हर सोशल मीडिया पोस्ट या एक्टिविटी कोरोना से या लॉकडाउन एक्टिविटी से जुड़ी हुई है। इसके कारण लोग सोशल मीडिया बर्न आउट के शिकार भी हो रहे रहे हैं। दरअसल, सोशल मीडिया बर्न आउट सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से उपजी स्थिति होती है। जब हर कुछ मिनटों में आप अपना अकाउंट और नोटिफिकेशन चेक करते हैं और अपेक्षाकृत नई सूचना या अपडेट न मिलने पर झुंझलाहट, निराशा और कई बार अवसाद का शिकार भी हो सकते हैं।

सोशल मीडिया बर्न आउट की एक और गंभीर स्थिति होती है, जब आप सही और गलत खबर के मध्य अंतर नहीं कर पाते हैं। कोविड 19 में भी यही हो रहा है। लोग संक्रमण के आकंड़ों, उपचार, लॉकडाउन से जुड़ी खबरों को फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सप्प पर सर्च कर रहे हैं तथा शेयर कर रहे हैं और इससे इतना अधिक डाटा उत्पन्न हो रहा है कि यूजर के समक्ष सही-गलत, रियल- फेक के अंतर को समझने की चुनौती उत्पन्न हो रही है। हमें यह समझना होगा की सोशल मीडिया कितनी भी तेज गति से चले, करोना से संबंधित अपडेट और जानकारियां अपनी गति से चलेंगी। सामान्यतः दिन में एक या दो बार सरकार के स्तर से अधिकृत सूचनाओं को जारी किया जाता है। इन्हीं सूचनाओं को विभिन्न माध्यम से  दिनभर अलग-अलग कोणों से परोसते हैं।

प्रश्नावली के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि 94 प्रतिशत लोग लॉकडाउन में सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं जिसमें वह 35.5 प्रतिशत तक फेसबुक का उपयोग कर रहे हैं।  46.5 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वह फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया का उपयोग लॉकडाउन में समय व्यतीत करने के लिए कर रहे हैं। वैसे कोरोना वायरस के संदर्भ में 58 प्रतिशत लोगों का मत है कि सोशल मीडिया पर सकारात्मक खबरें प्रसारित हो रही है। जिससे 66.5 प्रतिशत लोग अत्याधिक सहमत हैं कि लॉक डाउन के दौर में सोशल मीडिया से उन्हें लाभांवित कर रहा है।

इस तरह जहां एक ओर सोशल मीडिया की सकारात्मक शक्तियों से लोग लाभांवित हो रहे हैं तो दूसरी ओर नकारात्मक शक्तियों से सामाजिक भेदभाव भी बढ़ रहा है। जिस कारण एक विश्वास की भी कमी आ रही है। जहां व्यक्ति एक-दूसरे से नफरत कर रहा है। समाज में वैयमनुष्यता को जन्म देने और जहर फैलाने वाली अराजक तत्वों से लडना होगा। आज के समाज को यह भी समझना अत्यंत आवश्यक है कि इस मंच पर क्या शेर करे और क्या न करें। सोशल मीडिया के नकारात्मक पक्ष को इस महामारी के समय में दरकिनार तो नहीं किया जा सकता क्योंकि हर चीज के दो पहलू होते हैं। एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक। बस लोगों को ही निर्धारित करने की आव्रश्यकता है कि वह इस वैश्विक महामारी के दौर में सोशल मीडिया का उपयोग किस परिप्रेक्ष्य में करना चाह रहे हैं। क्योंकि हम सभी की जिम्मेवारी है की एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो, अन्यथा आने वाला कल बहुत ही भयावह होगा।

संदर्भ ग्रंथ सूची

·  https://m.uttamhindu.com/article/social-media-leads-to-disintegration-of-society/46735

·https://www.jagran.com/news/national-during-coronavirus-lockdown-people-are-getting-bored-of-social-media-jagran-special-20176811.html

·  https://www.prabhasakshi.com/national/-lockdown-87-percent-traffic-on-social-media-people-are-spending-4-hours-daily

·       https://www.navodayatimes.in/news/khabre/coronavirus-covid-19-heath-ministry-narendra-modi-/141014/

·         https://hindi.webdunia.com/hindi-essay/social-media-essay-117061900033_1.html

·         https://www.samachar4media.com/media-forum-news/a-journalist-booked-by-andaman-police-for-objectionable-social-media-posts-on-covid-19-53372.html

·         https://www.patrika.com/chitrakoot-news/social-media-covid-19-lockdown-up-chitrakoot-5945064/

·         https://www.amarujala.com/jammu/social-media-becoming-helpful-in-social-distancing-shopkeepers-started-initiative-in-kashmir?pageId=1

·         https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/varanasi/lock-down-i-am-stuck-i-have-to-investigate-corona-support-social-media-for-all-complaints

·         https://www.india.com/hindi-news/lifestyle/social-media-become-the-biggest-help-for-women-in-lockdown-4009810/

·         https://www.jagran.com/politics/national-coronavirus-in-mp-congress-role-in-lockdown-limited-to-tweet-and-letter-20226661.html

·         https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/palamu/coronavirus-lockdown-palamus-youth-are-setting-an-example-of-social-media-usage

·        https://hindi.news18.com/news/chhattisgarh/dhamtari-corona-virus-latest-update-covid-19-news-took-support-of-social-media-in-lockdown-children-studying-through-whatsapp-chhab-cgpg-3003178.html

·         https://www.bbc.com/hindi/india-52101362

·         https://www.amarujala.com/columns/blog/coronavirus-covid-19-fake-social-media-updates-lockdown-increases-social-media-users

Saturday, August 8, 2020

दिशा सालियान की मौत से जुड़ा है सुशांत सिंह की मौत का राज

 दिशा सालियान की मौत से जुड़ा है सुशांत सिंह की मौत का राज

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के ठीक पहले 8 जून को उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियान ने सुसाइड कर लिया था। उनके सुसाइड को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि दिशा एक पार्टी में गई थीं, जहां उनका गैंगरेप हुआ और फिर उनकी हत्या कर दी गई। क्‍योंकि दिशा सालियान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जब वायरल हुई तो उसमें इस बात की पुष्टि भी हुई कि दिशा के प्राइवेट पार्ट एवं शरीर पर चोट के निशान थे। जिससे इस बात से कोई दोहराह नहीं किया जा सकता, कि दिशा सालियान के साथ पहले रेप किया गया और फिर उसकी हत्‍या कर दी गई।

सूत्रों कि मानें तो जिन लोगों ने दिशा के साथ गलत किया था। उनसे बारे में सुशांत सिंह को पता लग गया था और वह इस बात का खुलासा जल्‍द ही मीडिया के सामने करने वाले थे। उन्हीं लोगों के सजिश रच कर सुशांत सिंह को अपने रास्‍ते से हटा दिया ताकि उनका नाम सामने न आ सके। इस मामले में बिहार के डीजीपी भी यह बात कह चुके हैं कि दिशा की मौत से ही सुशांत की मौत का लिंक जुड़ा हुआ है।

क्‍योंकि सुशांत सिंह राजपूत प्रेस वार्ता करके मीडिया में अपनी बात रखना चाहते थे और मीडिया को बताने चाहते थे कि जो हाल जिया खान का हुआ था, वही हाल दिशा सालियान का भी करना चाहते हैं। यह मैं होने नहीं दूंगा। जब तक वह मीडिया के सामने अपनी बात रखते जब तक सुशांत सिंह को ही साफ कर दिया गया।

दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की पूर्व प्रबंधक दिशा सलियान (Disha Salian) की मौत की सीबीआई जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है। वकील पुनीत ढांडा की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया कि दोनों की मौत बहुत संदिग्ध परिस्थितियों में और आपस में जुड़ी हुई हैं। वहीं अभिनेत्री रिया चक्रवती की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रतिभाशाली अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की मौत की सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।

याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी। यह भी बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की मौत के मामले पर संज्ञान लेकर मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate, ED) की एक टीम चार्टर्ड अकाउंटेंट संदीप श्रीधर से भी पूछताछ कर चुकी है। ईडी की टीम रिया के सीए रितेश शाह से भी पूछताछ करने वाली है। मामलूम हो कि सुशांत सिंह राजपूत 14 जून को मुंबई के उपनगर बांद्रा में अपने घर में मृत पाए गए थे। 

अगर सुशांत सिंह की मौत को देखा जाए तो इसका लिंक दिशा सालियान की मौत से जुड़ा हुआ है। बीजेपी सांसद और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बयान ने भी हंगामा खड़ा कर दिया है। नारायण राणे ने सुशांत की मौत को उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की संदिग्ध मौत से जोड़ते हुए रिया चक्रवर्ती का भाई शौविक चक्रवर्ती, आदित्‍य पंचोली का बेटा सूरज पंचोली,  डीनो मोरिया जैसे एक्टर का नाम लिया है। साथ ही इस मामले में आदित्य ठाकरे को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। वैसे देखा जाए तो यह कोई मनी लॉन्ड्रिंग का मामला नहीं बल्कि हत्‍या का मामला है। जिससे शायद जांच एंजेन्‍सी भटक रही है या भटकाई जा रही है क्‍योंकि यह मामला साफ है कि इसका लिंक दिशा सालियान की मौत से जुड़ा है। यदि दिशा सालियान की मौत से पर्दा हट जाता है तो सुशांत सिंह की मौत की गुथ्‍थी भी सुलझ जाएगी।

वहीं दिशा की मां जिस बात से बार बार इंकार करती नजर आ रही थी कि वह 'पार्टी में नहीं गई थी। दिशा का बर्थडे 26 मई को आता है और उसके भाई जैसे दोस्त इंद्रनील का बर्थडे 25 मई को, हर साल दोनों साथ में सेलिब्रेट करते हैं। लेकिन इश साल लॉकडाउन के कारण वो सेलिब्रेट नहीं कर सके। इसलिए उसकी मौत से पहले वाली रात उन्होंने पार्टी की। कहूं तो ये पार्टी भी नहीं थी इसमें केवल 6 दोस्त थे, ये छोटा सा गेट टू गेदर था। यह बात सामने निकल कर आती है कि दिशा की मौत से पहले वाली रात उन्‍होंने पार्टी की थी। उस रात पार्टी में क्‍या हुआ इसका सच भी सामने नहीं आ पाया है। लेकिन जो बातें निकल कर सामने आ रही है कि पार्टी में दिशा के घर पर उनके मंगेतर रोहन, हिमांशु और कॉलेज के दो दोस्त नील और दीप आए हुए थे। सभी उस रात पार्टी कर रहे थे और ड्रिंक कर रहे थे। और इसके बाद क्‍या हुआ इसका खुलासा नहीं हो सका है।

हालांकि मुंबई पुलिस इससे अबतक इंकार कर रही है कि दोनों मामलों में कोई संबंध नहीं है। परंतु हालात देखकर यह कोई नहीं कह सकता कि दोनों मौतों में कोई संबंध नहीं है। अब चाहे मुंबई पुलिस पर इस मामले को रफा दफा करने का दबाव पड़ा रहा हो। क्‍योंकि नारायण राणे के बयान से महाराष्‍ट्र की राजनीति गरमा चुकी है। जिस तरह से राणे ने नामों को उजागर किया है इससे इस बात की पुष्टि तो जरूर होती है कि इन नामों का सुशांत सिंह राजपूत की मौत के साथ कोई न कोई संबंध जरूर है। वैसे इस बात से दोराह नहीं किया जा सकता कि जैसे पूर्व में हुई हत्‍याओं को सुसाइड करार दे दिया गया हो इन हत्‍याओं को भी सुसाइड करार देने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगेंगा। यदि वास्‍तव में सुशांत सिंह राजपूत की हत्‍या का सच जानना है तो सबसे पहले दिशा सालियान की हत्‍या की गुथ्‍थी सुलझानी होगी। नहीं तो सभी जानते है होना क्‍या है।

 

 

Wednesday, August 5, 2020

एक विचारणीय प्रश्न है

एक विचारणीय प्रश्न है

जो भगवान/अल्लाह अपने घर की स्वयं रक्षा ना कर पाता हो, जिसके घरों को इंसान तोड़ देता हो, जिसके घरों में चोरी हो जाती हो, जिसको इंसान स्वयं चुराकर देश-विदेशों में बेच देते हों। यहां तक कि भगवान और अल्लाह के घरों में रात को ताला डाल दिया जाता हो। जिसको स्वयं अपनी रक्षा के लिए इंसानों के सहारे की जरूरत पड़ती हो वो भगवान इंसानों की रक्षा कैसे कर सकता है? यदि भगवान/अल्लाह ही रक्षा करते हैं तो फिर बॉडर पर जवानों को क्यों तैनात किया है। बॉडर पर जवानों के स्थान पर मंदिर/मस्जिद बनवा देनी चाहिए वो देश ही रक्षा करते रहेंगे। और जो अरबों रुपए देश की सुरक्षा में खर्च किए जाते हैं उनको देश के विकास में लगा देना चाहिए। हां एक बात और जो पूरे देश में थाना, चैकी, कोतवाली है उनके स्थान पर भी मंदिर/मस्जिद बनवा दें और उनमें भगवान/अल्लाह को विराजमान कर दे उनकी योग्यता के अनुसार। ताकि वो ही होने वाले अपराध (चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या, लूट इत्यादि) को खत्म करते रहेंगे। सारा किस्सा ही खत्म। सारे भगवान/ अल्लाह अपने अपने हिसाब से देखते रहेंगे और जब भी पाकिस्तान, चीन या फिर कोई अन्य देश हमला करेगा तो उसका जबाव भी देते रहेंगे।

हां एक बात और अस्पतालों को भी खत्म कर देना चाहिए। क्योंकि भगवान/अल्लाह जो हैं। इंसानों की सारी बीमारी, दुख, तकलीफें खत्म करने के लिए। फिर अस्पतालों और डॉक्टरों की क्या जरूरत है? वर्तमान समय में करोना काल के लिए अस्पतालों की क्या जरूरत? भगवान/अल्लाह जो हैं वह ही सबको ठीक कर देंगे। क्यों परेशान हो रहे हो? अपने-अपने देवी-देवताओं से कहो कि तुम्हें ठीक कर दें। फिर क्यों डॉक्टर और अस्पताल दिखने लगता है। मंदिर/मस्जिद जाए।

देखिए भाई मिर्ची नहीं लगनी चाहिए मैं किसी की आस्था और धर्म के खिलाफ बात नहीं कर रहा हूं। मैं अपने भगवान/अल्लाह की बात कर रहा हूं। क्योंकि गांधी जी ने कहा था ईश्वर अल्लाह तेरो नाम। और हमें यह भी पढ़ाया गया है कि भगवान एक है। तो मैं अपने भगवान/अल्लाह के संदर्भ में बात कर रहा हूं। जो वर्तमान समय में स्वयं लाचार है। जिनके नाम पर लोगों को आपस में लड़ाया जाता है। उनके नाम पर उनका डर दिखाकर लोगों को लूटा जाता है। यदि इसे उक्त पुजारियों/मौलवियों द्वारा लूट कहे तो गलत नहीं होगा। और इन पर कोई कार्रवाही भी नहीं होती। खैर राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट। इक दिन ऐसा आएगा की प्राण जाएंगे छूट।  


Wednesday, July 29, 2020

कोरोना वायरस की आड़ में कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र तो नहीं चल रहा


कोरोना वायरस की आड़ में कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र तो नहीं चल रहा
अब दिमाग लगाकर सोचिए :: अगर कोरोना संक्रमित बीमारी है तो परिंदे और जानवर को अभी तक कैसे नहीं हुआ . यह कैसी बीमारी है जिसमें  सरकारी लोग और हीरो ठीक हो जाते हैं और आम जनता मर जाती है .. कोई भी घर में या रोड पर तड़प कर नहीं रता हॉस्पिटल में ही क्यों मौत आती है..
यह कैसी बीमारी है ...कोई आज पॉजिटिव है तो कल बिना इलाज कराए नेगेटिव हो जाता है..
कोरोना संक्रमित बीमारी है…..जो जलसे में / रैली में/ और लाखों के प्रोटेस्ट में नहीं जाता, लेकिन गरीब नॉर्मल खांसी चेक कराने जाए तो 5 दिन बाद लाश बनकर आता है..
गजब का कोरोना वायरस है ...जिस की कोई दवा नहीं.बनीफिर भी लोग 99% ठीक हो रहे हैं..
यह कौन सी जादुई बीमारी है......जिसके आने से सब बीमारी खत्म हो गई अब जो भी मर रहा है कोरोना से ही मर रहा है.???
जरा सोचिये…साबुन और सैनिटाइजर से कोरोना मर जाता है तो इस को मारने की दवाई क्यों नहीं बनाई
यह कैसा कोरोना है….हॉस्पिटल में गरीब आदमी के  जिस्म का महंगा पार्ट निकालकर लाश को ताबूत में छुपा कर खोल कर नहीं देखने का हुक्म देकर बॉडी दी जाती है..
#है_कोई_जवाब ::????  अगर है जरूरदेना,अगर नहीं है तो सोचना कोरोना की आड़ में क्या चल रहा है ::::
कुछ हास्पिटल से न्यूज आ रहीं हैं कि सुबह मरीज़ को भर्ती किया जाता है और शाम को न्यूज मिलती है कि मरीज़ की करोना से मौत हो गई...(क्या सुबह से शाम तक करोना की रिपोर्ट भी आ गयी और शाम को करोना से डेथ भी हो गयी, और लाश का अंतिम संस्कार भी हो गया) इनके हिसाब से तो करोना की कोई स्टेज ही नहीं होती, जो पहले पाजिटिव से नेगटीव हुए, वो कैसे ठीक हुए, 15-20 दिन मे तो कनीका कपूर भी ठीक होकर घर चली गयी, आखिर ऐसा कौनसा इलाज था जो कनीका की 5 रिपोर्ट पोजिटिव आई और 6 रिपोर्ट मे नेगटीव आई.. और गरीबो की सुबह रिपोर्ट पोजिटिव आती है और शाम को उसकी डेथ हो जाती है.. क्या गरीब और माध्यम बर्ग की सिर्फ एक ही रिपोर्ट आती है positive या negative या डेथ?  हैरानी की बात है की कोई खांसी, जुकाम, बुखार और कोई लक्षण नहीं फिर भी रिपोर्ट पॉजिटिव कहीं कोई किडनी स्कैम तो नहीं हो रहा है...?.
किडनी ही क्यों आंख, लीवर, ब्लड, प्लाजमा और भी बहुत पार्ट हैं क्या कोई बहुत बड़ा झोल हो रहा है अंतराष्ट्रीय बाजार में व्यक्ति के पार्टस की कीमत करोड़ो रूपये हैं,  क्या कोरोना की आड़ में कोई षड्यंत्र चल रहा है क्योंकि  मृत देह को घरवालों को देते नहीं ना ही कोरोना के नाम से घर वाले बॉडी लेते हैं  और बंद लिफाफे में क्या हुआ है बॉडी के साथ किसे पता। सबको मिलकर ऐसा कदम उठाना होगा जिससे कम से कम S.C. की निगरानी में जांच हो, ताकि हकीकत सामने आए...साभार अज्ञात

Thursday, May 14, 2020

इतिहास का एक पृष्ठ


इतिहास  का एक पृष्ठ

 सन 2014 से पहले  तक इतिहास का वो दौर था, जब 'हम भारत के  लोग' बहुत दुखी थे। एक तरफ तो फैक्ट्रियों में काम चल रहा था और कामगार काम से दुखी थे अपनी मिलने वाली पगार से दुखी थे। सरकारी बाबू की तन्ख्वाह समय-समय पर आने वाले वेतन आयोगों से बढ़ रही थीहर छ: महीने-साल भर में 10% तक के मंहगाई भत्ते मिल रहे थे, नौकरियां खुली हुईं थीं। 
अमीर-गरीब, सवर्ण-दलित सबके लिये यू.पी.एस.सी. था, एस.एस.सी था, रेलवे थी,  बैंक की नौकरियां थीं। प्राईवेट सेक्टर उफान पर था। मल्टी नेशनल कम्पनियां आ रहीं थी। जाब दे रहीं थीं। हर छोटे-बड़े शहर मे ऑडी और जगुआर जैसी कारों के शो रूम खुल रहे थे । हर घर में एक से लेकर तीन-चार तक अलग-अलग माडलों की कारें हो रही थीं।  प्रॉपर्टी में बूम था। नोयडा से लेकर पुणे बंगलौर तक, कलकत्ता से बंबई तक फ्लैटों की मारा-मारी मची हुई थी। मतलब हर तरफ हर जगह अथाह दुख-ही-दुख पसरा हुआ था।  लोग नौकरी मिलने सेतन्ख्वाह पेन्शन और मंहगाई भत्ता मिलने से दुखी थे।  प्राईवेट सेक्टर आई टी सेक्टर में मिलने वाले लाखों के पैकेज से लोग दुखी थे। कारों से ,प्रॉपर्टी से लोग दुखी थे।
फिर क्या था ...................प्रभु  से भारत की जनता का यह दुख देखा न गया।  तब उन्होंने  'अच्छे दिन' का एक वेदमंत्र लेकर भारत की पवित्र भूमि पर अवतार लिया। 
भये प्रकट कृपाला दीन दयाला ।
जनता ने कहा - कीजे प्रभु लीला अति प्रियशीला।
प्रभु ने चमत्कार दिखाने आरंभ किये। जनता चमत्कृत हो कर देखती रही। तमाम संवैधानिक संस्थायें रेलवे, एअरपोर्ट, दूरसंचार, बैंक आदि  जो नेहरू और इंदिरा  नाम के  क्रूर शासकों ने बनायीं थीं। उनका ध्वंस किया और उन्हें संविधान, कानून  और नैतिकता के पंजे से मुक्त किया। 
रिजर्व बैंक नाम की एक ऐसी ही संस्था  थी जो पैसों पर किसी नाग की भाँति  कुंडली मार कर बैठी रहती थी । प्रभु ने उसका तमाम पैसाजिसे जनता अपना समझने की भूल करती थी, तमाम प्रयासों से बाहर निकाल कर उस रिजर्व बैंक को पैसों के भार से  मुक्त किया। प्रजा को इन सब कार्यवाहियों से बड़ा आनन्द मिला और करतल ध्वनि से जनता ने आभार व्यक्त किया।  और प्रभु के  गुणगान में लग गयी।
प्रभु ने ऐसे अनेक लोकोपकारी काम किये। जैसे सरकारी नौकरियां खत्म करने का पूर्ण  प्रयासबिना यूपीएससी सीधा उप सचिव, संयुक्त सचिव नियुक्त करनामंहगाई भत्ता रोकना, आदि। पहले सरकारी कर्मचारी  वेतन आयोगों में 30 से 40% तक की वृद्धि से दुखी रहते थे। फिर सातवें वेतन आयोग में जब मात्र  13% की वृद्धि ही मिली तब जा के कहीं  सरकारी कर्मचारियों को संतुष्टि मिली । वरना मनमोहन सिंह नामक क्रूर शासक ने  तो कर्मचारियों को तनख्वाह में बढ़ोतरी और मंहगाई भत्ता की मद में  पैसे दे-देकर बिगाड़ रहा था।
प्रभु जब अपनी लीला मे व्यस्त थे तभी कोरोना नामक एक देवी चीन से प्रभु की मदद को आ गयीं। अब सारे शहर गाँव गली कूचे में ताला लगा दिया गया। लोगों को तालों मे बंद करके आराम करने का आदेश हो गया। अब सर्वत्र शान्ति थी। लोग घरों मे बंद होकर चाट पकौड़ी, जलेबी, मिठाई  का आनंद उठाने लगे। 
घर-घर रामायण पाठ और दर्शन होने लगा। रेलगाड़ी और हवाई जहाज जैसी विदेशी म्लेच्छों के साधन छोड़कर लोग पैदल ही सैकड़ों हजारो मील की यात्रा पर निकल पड़े। फैक्ट्रियां, दुकानें सब बंद कर दी गयी । कामगारों को नौकरियों से निजात दे दी गयी। सबको गुलामों और घोड़ों की तरह मुँह पर पट्टा बाधना अनिवार्य किया गया, जो लोग 2014 के पहले के तमाम लौकिक सुखों से दुखी थे उनमें प्रसन्नता का सागर हिलोरे मारने लगा। सर्वत्र रामराज छा गया। 
 यदि प्रभु के  सारे कृत्य वर्णन किये जाये तो सारे भारत की भूमि और सारी नदियों का जल भी लिखने के लिये कम पड़  जाये। थोड़ा लिखना बहुत  समझना आप तो खुद  समझदार हैं । आगे की लीला के लिए प्रभु के दूरदर्शन पर प्रकट होने की प्रतीक्षा करें उसके बाद करतल ध्वनि से स्वागत करते रहिये। जय हो त्रिकाल महराज की जय ।