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Thursday, May 14, 2020

इतिहास का एक पृष्ठ


इतिहास  का एक पृष्ठ

 सन 2014 से पहले  तक इतिहास का वो दौर था, जब 'हम भारत के  लोग' बहुत दुखी थे। एक तरफ तो फैक्ट्रियों में काम चल रहा था और कामगार काम से दुखी थे अपनी मिलने वाली पगार से दुखी थे। सरकारी बाबू की तन्ख्वाह समय-समय पर आने वाले वेतन आयोगों से बढ़ रही थीहर छ: महीने-साल भर में 10% तक के मंहगाई भत्ते मिल रहे थे, नौकरियां खुली हुईं थीं। 
अमीर-गरीब, सवर्ण-दलित सबके लिये यू.पी.एस.सी. था, एस.एस.सी था, रेलवे थी,  बैंक की नौकरियां थीं। प्राईवेट सेक्टर उफान पर था। मल्टी नेशनल कम्पनियां आ रहीं थी। जाब दे रहीं थीं। हर छोटे-बड़े शहर मे ऑडी और जगुआर जैसी कारों के शो रूम खुल रहे थे । हर घर में एक से लेकर तीन-चार तक अलग-अलग माडलों की कारें हो रही थीं।  प्रॉपर्टी में बूम था। नोयडा से लेकर पुणे बंगलौर तक, कलकत्ता से बंबई तक फ्लैटों की मारा-मारी मची हुई थी। मतलब हर तरफ हर जगह अथाह दुख-ही-दुख पसरा हुआ था।  लोग नौकरी मिलने सेतन्ख्वाह पेन्शन और मंहगाई भत्ता मिलने से दुखी थे।  प्राईवेट सेक्टर आई टी सेक्टर में मिलने वाले लाखों के पैकेज से लोग दुखी थे। कारों से ,प्रॉपर्टी से लोग दुखी थे।
फिर क्या था ...................प्रभु  से भारत की जनता का यह दुख देखा न गया।  तब उन्होंने  'अच्छे दिन' का एक वेदमंत्र लेकर भारत की पवित्र भूमि पर अवतार लिया। 
भये प्रकट कृपाला दीन दयाला ।
जनता ने कहा - कीजे प्रभु लीला अति प्रियशीला।
प्रभु ने चमत्कार दिखाने आरंभ किये। जनता चमत्कृत हो कर देखती रही। तमाम संवैधानिक संस्थायें रेलवे, एअरपोर्ट, दूरसंचार, बैंक आदि  जो नेहरू और इंदिरा  नाम के  क्रूर शासकों ने बनायीं थीं। उनका ध्वंस किया और उन्हें संविधान, कानून  और नैतिकता के पंजे से मुक्त किया। 
रिजर्व बैंक नाम की एक ऐसी ही संस्था  थी जो पैसों पर किसी नाग की भाँति  कुंडली मार कर बैठी रहती थी । प्रभु ने उसका तमाम पैसाजिसे जनता अपना समझने की भूल करती थी, तमाम प्रयासों से बाहर निकाल कर उस रिजर्व बैंक को पैसों के भार से  मुक्त किया। प्रजा को इन सब कार्यवाहियों से बड़ा आनन्द मिला और करतल ध्वनि से जनता ने आभार व्यक्त किया।  और प्रभु के  गुणगान में लग गयी।
प्रभु ने ऐसे अनेक लोकोपकारी काम किये। जैसे सरकारी नौकरियां खत्म करने का पूर्ण  प्रयासबिना यूपीएससी सीधा उप सचिव, संयुक्त सचिव नियुक्त करनामंहगाई भत्ता रोकना, आदि। पहले सरकारी कर्मचारी  वेतन आयोगों में 30 से 40% तक की वृद्धि से दुखी रहते थे। फिर सातवें वेतन आयोग में जब मात्र  13% की वृद्धि ही मिली तब जा के कहीं  सरकारी कर्मचारियों को संतुष्टि मिली । वरना मनमोहन सिंह नामक क्रूर शासक ने  तो कर्मचारियों को तनख्वाह में बढ़ोतरी और मंहगाई भत्ता की मद में  पैसे दे-देकर बिगाड़ रहा था।
प्रभु जब अपनी लीला मे व्यस्त थे तभी कोरोना नामक एक देवी चीन से प्रभु की मदद को आ गयीं। अब सारे शहर गाँव गली कूचे में ताला लगा दिया गया। लोगों को तालों मे बंद करके आराम करने का आदेश हो गया। अब सर्वत्र शान्ति थी। लोग घरों मे बंद होकर चाट पकौड़ी, जलेबी, मिठाई  का आनंद उठाने लगे। 
घर-घर रामायण पाठ और दर्शन होने लगा। रेलगाड़ी और हवाई जहाज जैसी विदेशी म्लेच्छों के साधन छोड़कर लोग पैदल ही सैकड़ों हजारो मील की यात्रा पर निकल पड़े। फैक्ट्रियां, दुकानें सब बंद कर दी गयी । कामगारों को नौकरियों से निजात दे दी गयी। सबको गुलामों और घोड़ों की तरह मुँह पर पट्टा बाधना अनिवार्य किया गया, जो लोग 2014 के पहले के तमाम लौकिक सुखों से दुखी थे उनमें प्रसन्नता का सागर हिलोरे मारने लगा। सर्वत्र रामराज छा गया। 
 यदि प्रभु के  सारे कृत्य वर्णन किये जाये तो सारे भारत की भूमि और सारी नदियों का जल भी लिखने के लिये कम पड़  जाये। थोड़ा लिखना बहुत  समझना आप तो खुद  समझदार हैं । आगे की लीला के लिए प्रभु के दूरदर्शन पर प्रकट होने की प्रतीक्षा करें उसके बाद करतल ध्वनि से स्वागत करते रहिये। जय हो त्रिकाल महराज की जय ।

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