भारत के लोगों से एकजुट होने का आवहान
आजादी के 63साल पहले गांधी जी ने आवाज दी अंग्रेजों भारत छोडो्। गांधी जी का यह नारा पूरे भारत में एक आजादी की लहर बनकर गूंजने लगा था। आजादी की लडाई का यह अंतिम दौर था। 1942 में उठे इस बंवडर से यह स्पष्ट हुआ कि जब कोई राष्ट् जागता है तो उसकी शक्ति की कोई सीमाएं नहीं रहती। वो आपार शक्ति का स्रोत बन जाता है। एक तरफ तो सारे बडे नेताओं को जेलों में डाल दिया गया था परन्तु् सारा देश एक साथ जाग रहा था। उनका एक मात्र मकसद देश को आजादी दिलाना था। आजाद तो हम हो गये पर यहस जरूर भूल गये कि आजाद होने की सार्थकता आजाद रहने में है।
सभी का एक सपना था स्वंतंत्र भारत हो अपना। लेकिन स्वगतंत्र होने के बाद हमने अपने भारत को छेाटे छोटे टुकडों में, भाषाओं में, जातियों में, संप्रदायों में बांट दिया। अब भारत हमारी पहचान नहीं रहा, हिंदू, मुसलमान, सिख और बौद्ध होना हमारी पहचान बना चुका हैा कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक और राजस्थातन से लेकर असम तक फैला भारत हमें रास नहीं आया,और खालिस्ताबन, बोडोलैंड, आजाद कश्मींर जैसे रूग्णम मानसिकता वाले हमारे अपने भारत की सीमाएं बन गए। जो आंदोलन 1942 को शुरू हुआ था उसको आज तक जीवित रहना चाहिए था उसे जीवित रखने का दायित्वड किसी गांधी का नहीं, हमारा नारा होना चाहिए।
आज इंसान मेरा तेरा अपने स्वार्थ के लिए ही जी रहा है पहले राष्टीयता की भावना राष्ट की रीढ की हड्डी हुआ करती थी अब नहीं रही। वह न तो अब हमें अनुप्राणित करती है,और न ही उद्वेलित। यह वास्तथव में एक चिंता का विषय है कि हमने 63 सालों में क्या खोया, क्या पाया. किसी को इस बात की चिंता नहीं है इस देश के नागरिकों को भी नहीं। आज धर्म और जातीयता के नाम पर दंगे होते है परन्तुी आम आदमी को यह क्यों नहीं लगता कि उसके धर्म उसकी जाति के गौरव, दोनों पर कलंक है। जिस प्रकार धर्माधता दिन प्रति दिन बढती जा रही है उसके खबरों से हम सब अपरिचित नहीं है। यह एक सांप्रदायिकता के नाग की तरह है जो कभी भी हमें डंस सकता है। जिस तरह का अत्याचार पुरूष और खास तौर पर स्त्रियों के प्रति हो रहा है उससे तो यह लगता है कि आजाद भारत सो चुका है वो बेशुद हो चुका है उसको कोई भी फिर से गुलाम बना सकता है।
1942 में उठा नारा एक बार फिर उठना चाहिए इस नारा में अंग्रेजों, भारत छोडों का नारा नहीं बल्कि, क्षेत्रीयता, भारत छोडों, धर्माधता, भारत छोडों, जातीयता, भारत छोडों, सांप्रदायिकता, भारत छोडों का नारा बुलंद होना चाहिए। ताकि भारत स्व तंत्र के 63 साल बाद धर्माधता, जातीयता, क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, के चुंगल से आजाद हो सके।