सरोकार की मीडिया

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Thursday, October 18, 2018

देवियों का अपमान न होने दे


देवियों का अपमान न होने दे


हो गई नौ दिनों की पूजा..... चलो अब इनको ट्रैक्‍टर, ट्रक में लाध कर कहीं बहा आते हैं और फिर जो चंदा बच गया था उसको आपस में बांट लेते हैं। जिससे कल दारू और मुर्गा की पार्टी का आयोजन किया जाएगा। वैसे देवियों को नौ दिन क्‍यों स्‍थापित करते हैं जब मन में श्रद्धा भाव है तो 2-4 माह या फिर पूरे साल क्‍यों नहीं रखते...... रखना चाहिए पूरे साल तक और पूरे साल तक पूजा-अर्चना करनी चाहिए। तब देखिए कौन पूरे साल तक देवियों के पांडलों में रहता है। छोड़ देंगे 1 आध माह के उपरांत इनको इनके हाल पर.... जहां इंसान के वनस्‍पत कुत्‍ते, बिल्‍ली, सुअर और कौंओं का जमावडा बना रहेगा। क्‍योंकि इनमें इंसानों जैसी बुद्धि तो होती नहीं, (अब इंसान भी जानवर बन चुके हैं) तो यहां वहां मुंह जरूर मारेंगे। वैसे जितने भी श्रद्धालू हैं जो जहां-तहां विराजमान(पांडल लगाकर बिठा दी गई) देवियों के पास सच्‍चे मन से जाते हैं जिनके मन में किसी के प्रति द्वेषभाव नहीं होता... वहां लड़कियों को नहीं ताड़ते......तो शायद एक भी इंसान ऐसा नहीं मिलेगा जिसका मन सच्‍चा और पावन हो.... सबके मन में द्वेष, ईष्‍या, दूसरों को अपने से कमतर दिखाने की चाहत, मानसिक प्रवृत्ति के लोग, अश्‍लीलता से परिपूर्ण.... फिर भी पहुंच जाते है देवियों के पास... मांगने......क्‍या यह देवियां वास्‍तव में आप जैसों की मनोकामना पूर्ण करती होंगी, मुझे तो नहीं लगता.... क्‍योंकि यदि देवियां सभी की मुरादें पूरी करने लगे तो शायद ही कोई सुखी न रह सके... क्‍योंकि लोग अपने से ज्‍यादा दूसरों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, यदि आप किसी के लिए अहित मांग रहे हैं तो कोई आपके लिए भी अहित मांग रहा होगा। वैसे इन मिट्टी की बनी मुर्तियों में शक्ति होती है समझ से परे लगता है, यदि वास्‍तव में इनके पास शक्तियां होती तो वो इंसान इनके समीप ही नहीं भटकने पाता जो बुरी सोच के साथ आता है। यह तो बस एक अंधविश्‍वास की आस्‍था है जिसको लोग ढोए जा रहे हैं ताकि हमारा अहित न हो सके। एक डर है बस और कुछ नहीं..... जिसको सदियों से पंडितों ने मनुष्‍यों के मस्तिष्‍क में इस तरह घुसा दिया है जो इतनी आसानी से नहीं निकलना वाला। और शायद ही कभी निकल सके।
धर्मग्रंथों में लिखा है कि भगवान से पहले माता-पिता का दर्जा होता है, फिर उनके बुर्जुग होने के उपरांत उनका तिरस्‍कार क्‍यों करने लगे हैं, वृद्धाआश्रम भरे पड़े हैं, यह किनकी माताएं हैं जो इन आश्रम में अपने जीवन के अंतिम क्षणों को काट रही हैं...... आपको अपनी माता-पिता की चिंता नहीं होती.... इन देवी-देवताओं को प्रसन्‍न करने में लगे रहते हैं और उन माता-पिता को छोड़ देते हैं जिन्‍होंने आपको इस मुकाम पर लाकर खड़ा किया ताकि आप समाज में जी सके। आपकी हर चीजों को अपना पेट काटकर पूरा किया फिर भी उनका तिरस्‍कार क्‍यों करते हैं। वैसे हम और आपको यह बात कदापि नहीं भूलनी चाहिए कि कोई भी अजर-अमर होकर इस संसार में नहीं आया.... जब अवतरित(धर्मशास्‍त्रों के अनुसार) देवी-देवताओं को जाना पड़ा तो हमारी क्‍या औकात है। हम और आपको एक न एक दिन बुढ़े होना ही है, और हमको भी किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ने वाली है, तब यदि आपको भी आपकी तरह ही आपकी औलाद त्‍याग दे तो कैसा लगेगा। जैसा आपके माता-पिता को लग रहा है ठीक वैसा ही लगने वाला है क्‍योंकि यह प्रकृति है और प्रकृति का नियम है कि जो जैसा करता है उसका ठीक वैसा ही फल इसी संसार में मिलता है। फिर यह मत कहते फिरिएगा कि हमारी औलादें हमारे साथ ऐसा कर रही है। शायद फिर आपको अपने किए पर पछतावा हो कि हमने अपने माता-पिता के साथ अच्‍छा व्‍यवहार नहीं किया। उसी का परिणाम आज हम भुगत रहे हैं।
मेरे कहने का तात्‍पर्य यह है कि भगवानों में आस्‍था है तो अच्‍छी बात है परंतु माता-पिता में भी आस्‍था रखे, यह देवी-देवता तुमको खाने को नहीं दे जाएंगे जब तक आप मेहनत नहीं करोगे, काम नहीं करोगे... कोई भी देवी-देवता आपके मुंह में निवाला देने नहीं आएगा। श्रद्धा अच्‍छी बात है परंतु अंधविश्‍वास से परिपूर्ण श्रद्धा समाज को विकास के पथ पर अग्र‍सरित न करते हुए काल के ग्रास तक ले जाने का काम करती है।
चलिए हम मुद्दे पर आते हैं क्‍योंकि आज नवरात्रि का आखिर दिन है और कल आप सबको विराजित मुर्तियों को लेकर जाना है उनको कहीं किसी तालाब, नदी में बहाने..... यदि इन मुर्तियों की हकीकत जाननी हो तो एक-दो दिन बाद जरा उस नदी, तालाबों का भी रूख कर लीजिए तो वास्‍तविक हकीकत से खुद-ब-खुद रूबरू हो जाएंगे कि क्‍या-क्‍या हुआ इन देवियों की मूर्तियों के साथ। जिन देवियों को आपने बड़ी श्रद्धा के साथ नौ दिनों तक रखा था, पूर्जा-अर्चना की, आज वो खंड-खंड में विभक्‍त हो चुकी हैं... और उनके ऊपर कुत्‍ते, सुअर, कौंए विराजमान हैं। क्‍या आपको देखकर बुरा नहीं लगता कि यह क्‍या किया हमने अपनी माताओं के साथ। श्रद्धा के नाम पर यह तमाशा सा प्रतीत नहीं होता.... यदि यह तमाशा नहीं है तो अपनी माताओं का अपमान कैसे देख सकते हैं। या फिर यह सिर्फ एक औपचारिकता मात्रा है देवियों को नौ दिन रखकर उनका अपमान होते हुए देखने की। वैसे यह आस्‍था कैसी है जहां देवियों का भी बंटवारा देखने को मिलता है। यदि किसी भी एक शहर की बात की जाए तो उस शहर में सैंकड़ों मूर्तियां यहां-वहां, गली-कूचों में, चौराहों पर विराजमान दिखाई पड़ ही जाएंगी... जिसको देखकर ऐसा प्र‍तीत होता है कि इन सबमें अपने धर्म के प्रति एकता का भाव ही नहीं है..... तभी तो हर जगह यह देवियां देखने को मिल जाती है। ठीक है अच्‍छी बात है मैं किसी धर्म और लोगों की उनके प्रति आस्‍था पर प्रश्‍नचिह्न नहीं लगा रहा बस मन में सवाल है वो कर रहा हूं कि एक शहर में एक ही देवी को विराजमान किया जाए ताकि लोगों में एकता का भाव बने, और नदियां,तालाब प्रदुषित होने से भी बच जाए। वैसे माताओं को अपमान से बचने के लिए इन मुर्तियों को विशाल बनाने की अपेक्षा छोटे रूप में बनवाया जाए और उस मूर्ति को किसी मंदिर में स्‍थापित कर दिया जाए, ताकि इन देवियों का अपमान न हो.... वैसे आपकी आस्‍था और श्रद्धा है चाहे नदी में बहाए या नाले में, चाहे गली में बिठाए या कूचों में, फिर चाहे देवियों के पांडलों में आने वाली लड़कियों को ताड़े या फिर आप चंदे में से बचे हुए रूपयों से दारू पीए या मुर्गा खाए... आप स्‍वतंत्र हैं। बस अं‍त में एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि इन देवियों का इस तरह अपमान न होने दे।

Thursday, October 11, 2018

अभी तो यह आगाज है...आगे-आगे देखिए होता है क्‍या ?


अभी तो यह आगाज है...आगे-आगे देखिए होता है क्‍या ?

एक बीजेपी नेता द्वारा चुनाव-प्रचार के दौरान जनता से वोट मांगते हुए .. और वोट मांगते समय वहां की जनता ने उनका बहुत ही उत्‍साहपूर्वक जूत-चप्‍पलों की माला को गले में डालकर स्‍वागत किया। जी जनता त्रस्‍त हो चुकी है और यह तो अभी आगाज है, जनता को कब तक उल्‍लू बनाया जा सकता है? हर चीज की हद होती है, कब तक जनता को पपलू बनाओगें? अब सोती हुई जनता जाग चुकी है इस मंहगाई की मार से.......और सत्‍ता में आने से पहले जो चुनावी वादे किए थे वो सब जुमले ही रह गए। न तो अभी तक राम मंदिर बना, और न ही मंहगाई कम हुई। दिन-प्रतिदिन रूपया ऐसा गिर रहा है (एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री बनने से पहले स्‍वयं मोदी ने कहा था कि, रूपया ऐसे कैसे इतनी जल्‍दी गिर जाता है इतना तो बांग्‍लादेश की करेंसी भी नहीं गिरती) तो भाई अब कैसे गिर रहा है शायद समझ आ रहा होगा।
आपने उज्‍ज्‍वला के तहत गैसे सिलेंडर तो दिलवा दिए अब उनमें गैस क्‍या आपके नेता भरेंगे... क्‍योंकि अब एक सिलेंडर की कीमत 927 रूपए हो चुकी है वहीं पट्रौल और डीजल के दाम आसमान छू रहे है (शायद कुछ समय बाद पट्रौल 100 रूपए में बिकने लगे)। इससे अच्‍छा तो पड़ौसी देश में है जहां भारत से कम कीमत में पट्रौल-डीजल मिल रहा है। रही बात 2 रूपए 50 पैसे कम करने की (बीजेपी शासित राज्‍यों में 5 रूपए) तो दिन प्रतिदिन पैसा बढ़ाकर कुछ रूपया कम कर दिया तो क्‍या एहसान कर दिया जनता पर। आप तो दोगलेपंथी से यहां भी बाज नहीं आए, आपने अपनी पार्टीधारी राज्‍यों में (बीजेपी शासित राज्‍य) 5 रूपए कम कर दिए और बाकि राज्‍यों के लोगों को यूं ही छोड़ दिया ताकि वहां की जनता और आपके नेता इस बात को तूल दे सके कि देखों कांग्रेस या अन्‍य पार्टी का राज है इसलिए रूपया कम नहीं हुआ। यदि तुम्‍हारे राज्‍य में बीजेपी की सरकार होती तो कुछ तो राहत मिलती।
मेरे अनुसार तुमने ऐसा इसलिए किया क्‍योंकि तुम भारत की जनता को एक दृष्टिकोण से नहीं देखते, तुम चाहते हो की आंदोलन होते रहे। दंगा-फसाद होते रहे। क्‍योंकि जैसे तुम हो उससे कहीं बदत्‍तर तुम्‍हारे नेता है और उससे बदत्‍तर राज्‍यों के मुख्‍यमंत्री। क्‍योंकि बीजेपी सरकार में इंसान को इंसान के नजरिए से नहीं, बल्कि धर्म और जाति के चश्‍मे से देखा जाता है। जिसमें सर्वोपरि ब्राह्मण, ठाकुर वैश्‍व, हिंदू होते है। मुसलमान और दलित लोगों को इंसान नहीं समझा जाता। तभी तो उन पर अत्‍याचार देखे जा रहे है। और आप चुप्‍पी साधे बैठे रहते हैं। जब भी इस संदर्भ में बात होती है तो तुम और तुम्‍हारे नेता सिर्फ निंदा, घोरनिंदा करके अपना पडला झाड़ लेते है। जैसे स्‍वच्‍छ भारत अभियान चल रहा हो।
अगर जवानों के संदर्भ में बात की जाए तो ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब पाकिस्‍तान भारत पर हमला नहीं करता हो और दो-चार सिपाही शहीद न होते हो। कहां गया एक के बदले 10 सिरे लाने वाला प्रधानमंत्री। क्‍या पद-सत्‍ता मिलते ही सारे वादे गांधी की झोली में डाल लिए। सत्‍ता है सरकार है फिर जबाव क्‍यों नहीं देते.... ? एक बार में ही खत्‍म क्‍यों नहीं कर रहे। क्‍या यह सोच रहे हो की मरने दो.... हमारे बाप का क्‍या जा रहा है?
तुमने सभी को आधारकार्ड से लिंक करवा दिया तो वोटर कार्ड को भी आधार कार्ड से लिंक करवा दो.... ताकि फर्जी वोट न डल सके। वो तो तुमसे हुआ नहीं गया। नोट बंद करने से पहले अपना और अपने नेताओं का कालधन सफेद करवा लिया और फिर नोटबंदी करके देश की जनता को लाइन में खड़ा करवा दिया। कभी इस बात का विश्‍लेषण किया कि (वास्‍तव में यदि यही उद्देश्‍य था इसके इतर नहीं था) जिस उद्देश्‍य से (कालाधन, भ्रष्‍टाचार, आतंकवाद रोकने के लिए) नोटबंदी की थी वो क्‍या पूरा हुआ। जबाव स्‍वत: मिल जाएगा कि नहीं इनमें से  कोई चीज कम नहीं हुई सब अपने यथास्‍थान पर बरकरार है। तो क्‍या सिर्फ अपने नेताओं का कालाधन सफेद करने के लिए ही नोटबंदी का षड्यंत्र रचाया गया था? जिसमें आप बखूबी कामयाब हुए। क्‍योंकि जनता तो उल्‍लू है लग गई लाइन में। वैसे नोटबंदी के दौरान आपकी पार्टी का कोई भी नेता लाइन में खड़ा नहीं दिखाई दिया। जिससे तो यही साबित होता है कि पहले ही काला सफेद हो गया था। हां कुछ विपक्षी नेता एक बार लाइन में खड़े जरूर नजर आए 4000 रूपए निकलने के लिए..... उनका पैसा शायद अभी तक खत्‍म नहीं हुआ।
अभी कुछ दिनों से जिस राज्‍य के आप मुख्‍यमंत्री रह चुके हो उसी राज्‍य से उत्‍तर प्रदेश और बिहार के लोगों को भगाया जा रहा है और आप चुप्‍पी साधे तमाशा देख रहे हो। आपको पता होगा कि उत्‍तर प्रदेश और बिहार में भी गुजराती लोग रहते हैं यदि ऐसा उनके साथ हो तो कैसा लगेगा। हां आप भी गुजराती है और बनारस से सांसद भी, यदि आपको ही यहां से बेइज्‍जत करके उत्‍तर प्रदेश और बिहार की जनता भगाए, आपका त्रिस्‍कार करे तो कैसा लगेगा... ? ? ?  क्‍योंकि तुम्‍हारी तरह वह भी इंसान है। और संविधान कहता है कि किसी को देश में कहीं भी आने-जाने, वहां निवास बनाने और काम करने से नहीं रोका जा सकता। आपके सामने ही संविधान का मजाक उड़ाया जा रहा है और आप कुछ नहीं कर रहे। तज्‍जुब वाली बात है।
वहीं बेरोजगारों के साथ भी मजाक कर दिया, चुनाव से पहले करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले थे, चुनाव के उपरांत उनको नौकरी दिलवाने के वजह पकौड़े बेचने की सलाह दे डाली..... भाई पूरे देश के बेराजगार पकौड़े बनाने लगेगें तो खरीदे का कौन.... तुम या तुम्‍हारी पार्टी के लोग ? ? वहीं किसान आत्‍महत्‍या कर रहे हैं उनको अपनी फसलों को उचित मूल्‍य नहीं मिल रहा है। कर्ज में डूबते जा रहे है जिससे तंग होकर (अपनी और अपने परिवार की दुर्दशा को देखते हुए) आत्‍महत्‍या कर लेते हैं और जब वह अपनी मांगों को लेकर तुम्‍हारे पास आने की कोशिश करते हैं तो उन पर लाठी-डंडे बरसाए जाते हैं,धन्‍य है प्रभू। ऐसा ही होना चाहिए इन किसाने के साथ क्‍योंकि इन लोगों ने आपको जो चुना। वैसे आप सिर्फ अंबानी,बिडला, टाटा का ही भला कर सकते हो क्‍योंकि कहीं-न-कहीं कुछ तो माया की चढ़ौत्री तो चढ़ रही होगी.... ? तभी तो इन जैसे उद्योगपतियों का कर्जा माफ कर दिया गया और तो और कुछ तो देश को करोड़ों का चूना लगाकर भाग भी गए। और आप देखते रहे। आप पर किसानों का कर्जा माफ नहीं करवाया जा सका।
खैर जनता धीरे-धीरे जाग रही है (सिंहासन खाली करो कि जनता आती है)। जुमलेबाजियों और झूठे विकास के पौने पांच साल का गुस्‍सा अब धीरे-धीरे निकलने लगा है। जिसका दृश्‍य बीजेपी के नेताओं द्वारा की जाने वाली रैलियों और कैंपिंग में देखा जा रहा है कि किस तरह वह बीजेपी नेताओं का जनता जूते-चप्‍पलों से  स्‍वागत कर रही है। अभी तो यह आगाज है आगे-आगे देखिए होता है क्‍या....... ?

Wednesday, October 10, 2018

मूर्ति पूजा : एक अध्‍ययन


मूर्ति पूजा  : एक अध्‍ययन
मूर्तियां तीन तरह के लोगों ने बनाईं - एक वे जो वास्तु और खगोल विज्ञान के जानकार थे, तो उन्होंने तारों और नक्षत्रों के मंदिर बनाए । ऐसे दुनियाभर में सात मंदिर थे । दूसरे वे, जो अपने पूर्वजों या प्रॉफेट के मरने के बाद उनकी याद में मूर्ति बनाते थे । तीसरे वे, जिन्होंने अपने-अपने देवता गढ़ लिए थे । हर कबीले का एक देवता होता था । कुलदेवता और कुलदेवी भी होती थी ।
भारत में वैसे तो मूर्तिपूजा का प्रचलन पूर्व आर्य काल (वैदिक काल) से ही रहा है । भगवान कृष्ण के काल में नाग, यक्ष, इंद्र आदि की पूजा की जाती थी। वैदिक काल के पतन और अनीश्वरवादी धर्म के उत्थान के बाद मूर्तिपूजा का प्रचलन बढ़ गया। वेद काल में न तो मंदिर थे और न ही मूर्ति, क्योंकि इसका इतिहास में कोई साक्ष्य नहीं मिलता। वैसे इंद्र और वरुण आदि देवताओं की चर्चा जरूर होती है, लेकिन उनकी मूर्तियां थीं इसके भी साक्ष्य नहीं मिलते हैं ।
यदि कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि वेद काल के पहले प्राकृतिक शक्तियों की पूजा का विधान था । प्राचीन अवैदिक मानव पहले आकाश, समुद्र, पहाड़, बादल, बारिश, तूफान, जल, अग्नि, वायु, नाग, सिंह आदि प्राकृतिक शक्तियों की ताकत से परिचित था । और वह इन्‍हीं की पूजा-अर्चना करता था । क्‍योंकि वह जानता था कि यह मानव शक्ति से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है इसलिए वह इनकी प्रार्थना करता था । बाद में धीरे-धीरे इसमें भी बदलाव आने लगा । वह मानने लगा कि कोई एक ऐसी शक्ति भी है, जो इन सभी को संचालित करती है ।
इसके अलावा हड़प्पा काल में देवताओं (पशुपति-शिव) की मूर्ति का साक्ष्य मिला है, लेकिन निश्चित ही यह आर्य और अनार्य का मामला था । शिवलिंग की पूजा का प्रचलन अथर्व और पुराणों की देन है । शिवलिंग पूजन के बाद धीरे-धीरे नाग और यक्षों की पूजा का प्रचलन हिंदू-जैन धर्म में बढ़ने लगा । बौद्धकाल में बुद्ध और महावीर की मूर्ति‍यों को अपार जन-समर्थन मि‍लने के कारण विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियां बनाई जाने लगीं । जो कि पत्‍थर की बनी होती थी ।
कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि पत्‍थर बोल नहीं सकते, वे हिल नहीं सकते । भगवान  भी बोल भी नहीं सकते । वे हिल भी नहीं सकते, अपना अच्छाबुरा भी नहीं सोच सकते, तो वे हमारा क्या बना बिगाड़ सकते हैं ? और हमारे भोलेपन की तो हद हो गई है कि हम ही में से एक आदमी गढ़े से मट्टी निकालता है। उसे सड़ाता है । पैरों और हाथों से गूंधता है, फिर उससे सरस्वती देवी की या रामसीता या गणेश की मूर्ती बनाता है । मूर्ती बनाते वक्त उसके गाल संवारता है और उसे कपड़ा पहना कर, बना संवार कर एक स्थान पर रखता है । फिर पंडित जी आते हैं और लोग इकठ्ठा होकर उसकी पूजा शुरु कर देते हैं । बुंदियां, जलेबियां, नारियल, फूलपत्तियां और रुपयेपैसे चढ़ाएं जाते हैं । निर्जीव मूर्ती से विनती की जाती है । वहां सिर झुकाए जाते हैं और बहुत सी चीजें की जाती हैं जिनकी जानकारी आपको अवश्य होगी।
प्रश्न यह है कि उस मूर्ती का बनाने वाला कौन है ? एक आम आदमी ही तो है, जिसने उसको बनाया, सजाया, संवारा । तो क्या भगवान इतना मजबूर है कि वह हमारातुम्हारा मुहताज हो ? फिर मट्टी की बनाई हुई वह मूर्ती क्या ईश्वर हो सकती है ? वह तो बोल भी नहीं सकती, सुन भी नहीं सकती, देख भी नहीं सकती, चल फिर भी नहीं सकती, या उस पर जो खानपान चढ़ाएं जाते हैं वह उसे खा पी भी नहीं सकती ।
वैसे ही ये पत्‍थर भी हैं । तुम चाहो तो किसी को लूटो, चाहो तो किसी को मारो, भगवान डायरेक्‍ट तुम्‍हें कुछ नहीं कहते, तो पत्‍थर भी कुछ नहीं कहता । न कुछ बिगाड़ता, न बनाता । और जहां तक तुम अच्‍छे-बुरे और बनाने-बिगाड़ने की बात कर रहे हो, वह भी तुम्‍हारी सोच के मुताबिक है । अच्‍छे में, बुरे में, बनाने में, बिगाड़ने में, हर हरकत में उसकी मर्जी तो है ही ।
यदि सबको पता चले कि भगवान मर गए, तो क्‍या होगा? कई लोगों की दिनचर्या तो बहुत प्रभावित हो जाएगी। बड़ी दिक्‍कत होगी, किसे पूजेंगे, किसकी आराधना करेंगे, किसके लिए झुकेंगे? दोनों एक-दूसरे के बिना कुछ भी नहीं । अगर भगवान इंसान के बगैर कुछ होता तो वे इंसान को नहीं बनाता । जैसे ईंधन  के बिना कोई वाहन । या वाहन के बिना कोई ईंधन । दोनों एक-दूसरे के बिना बेकार । जब तक ईंधन, तभी तक वाहन । जब तक आत्‍मा, तब तक परमात्‍मा । जब तक इंसान तब तक भगवान ।
भगवान न तो मजबूर है और न मुहताज । जो उसे करना है, वह करता है । पर तुम्‍हारे लिए हर वक्‍त आदेश ज़ारी नहीं करता । उसने इंसान को समझ दी है, दिमाग दिया है, भावनाएं दी हैं, तो इंसान को उससे किसी आदेश को पाने का इंतज़ार छोड़ देना चाहिए । भगवान ने जो तुम्‍हें देना था, वह देकर धरती पर भेज दिया है । अब और क्‍या चाहते हो? खुद भी कुछ करो? अच्‍छा करो या बुरा, वह तुम पर निर्भर । उसका फल तुम पा ही लोगे । नरक या स्‍वर्ग, जहन्‍नम की आग या जन्‍नत के बाग ।
हालांकि किसी भी ऑब्‍जेक्‍ट को हम भगवान का प्रतीक समझकर पूजें, तभी यह सार्थक है। मूर्ति को ही भगवान समझकर पूजने बैठ जाने से नहीं हो सकता । ऐसे में न तुम पत्‍थर चूमकर परमात्‍मा को पा सकते हो, न हम मूर्ति को नहला-सजाकर । महापुरुषों ने मूर्ति पूजा का विरोध इसलिए ही किया क्‍योंकि हमारे भटकाने वालों ने कुमार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया । हम इतना भटक गए कि महापुरुषों को सख्‍त आदेश जारी कर देने पड़े । गुरु नानक, मुहम्‍मद साहब ने कहा- छोड़ो इन्‍हें, मूर्ति पूजा मत करोभगवान को, सर्वशक्तिमान को पूजो । मतलब मूर्ति तो तुम्‍हारी याद बनाए रखने के लिए है, प्रतीक है । तुम उसी प्रतीक की पूजा करने बैठ गए और समझने लगे कि यही भगवान है । इसे ही साधना है । हमें यह ख्‍़याल एक पल के लिए भी नहीं आया कि यह केवल प्रतीक है, मालिक कोई और है । तो इसलिए महापुरुषों को हमारा ध्‍यान सही रास्‍ते पर लाने के लिए कठोर शब्‍दों में, डराते हुए हमें कहना पड़ा- छोड़ो, मत करो मूर्ति पूजा । पर हमने हमारे महापुरुषों के वचन, आदेश भी किसी कोड़ा बरसाने वाले शासक के आदेश की तरह माने, पशुओं की तरह कोड़े से डरकर उनका अंधानुसरण किया ।
वैसे महापुरुषों ने सोचा होगा कि जब इन्‍हें मूर्ति पूजा करने से रोका जाएगा तो शायद ये कुछ समझें, पर हम नहीं समझे । हमने डरकर मूर्ति पूजा से तो ध्‍यान हटा लिया पर किन्‍हीं अन्‍य पत्‍थरों, पन्‍नों पर फोकस कर दिया । बात वहीं की वहीं आ गई । मूर्ति की जगह हम पन्‍ने पूजकया किताब पूज‍कहो गए. महापुरुषों का डांट-डपट से हमें सही रास्‍ते पर लाने का प्रयास भी विफल गया ।
अंत में कहना चाहूंगा-
मेरे महबूब की हर शै महबूब मेरी
समझोगे नहीं तुम मेरे ज़ज्‍बात-ए-मुहब्बत….