सरोकार की मीडिया

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Thursday, May 30, 2019

ईमानदार लोग आज भी हैं


ईमानदार लोग आज भी हैं
कहते हैं कि कोई भी विभाग घूसखोरी से अछुता नहीं है। गाहे-बगाहे लेन-देन की प्रक्रिया का संचालन होता रहता है। कभी दबाव में, तो कभी अपना काम निकलवाने के एवज में हथेलियां गर्म होती रहती है। इन सबके बावजूद हर विभाग में सभी घूसखोर नहीं हैं बहुत से ऐसे कर्मचारी/अधिकारी आज भी मौजूद हैं जो अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं चाहे उनके ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव क्‍यों ना पड़े। यह सब मैं किसी विभाग के कर्मचारी/अधिकारी की चापलूसी के कारण नहीं बल्कि, ईमानदार व्‍यक्ति से सबको परिचित करवाने के लिए लिख रहा हूं।
दिनांक 28 मई को शाम के लगभग 7-8 बज रहे होगें मैं किसी काम से घंटाघर पर खड़ा हुआ था और अपने एक मित्र से बात कर रहा था। तभी यातायात पुलिस की जीप सायरन बजाती हुई सावरकार चौक से घंटाघर आ रही थी, तो वहा पर खड़े फल ठेले वाले और भी अन्‍य ठेले वाले अपने-अपने ठेले को साइड में करने लगे। तभी यातायात पुलिस की जीप घंटाघर पर आ पहुंची। तो उसमें बैठे दरोगा नरेंद्र सिंह ने देखा कि एक झांसी की गाड़ी जिसका मालिक उसे अपनी सुविधा के अनुसार रोड़ के बीचों बीच खड़ा करके चला गया था। कुछ देर देखने के उपरांत जब गाड़ी मालिक नहीं आता दिखा तो दरोगा के अपने साथी सिपाही से उस गाड़ी में कब्‍जा लगाने को कहा। दरोगा का आदेश मिलते ही सिपाही ने उस गाड़ी में कब्‍जा लगा दिया। तभी कुछ देर बाद उक्‍त गाड़ी मालिक आया तो देखा कि गाड़ी में कब्‍जा लगा हुआ है। गाड़ी मालिक ने दरोगा से कब्‍जा हटाने के लिए कहा तो दरोगा नरेंद्र सिंह ने कहा कि पहले अपनी गाड़ी देखिए कैसी खड़ी है। इसके एवज में आपको अर्थ दंड का भुगतान करना पड़ेगा ताकि आप पुन: ऐसा न करे। तो गाड़ी मालिक ने कुछ ले देकर कब्‍जा हटाने को कहा, तब दरोगा नरेंद्र सिंह ने साफ-साफ कहा कि यह पैसा मेरी जेब में नहीं जा रहा, यह पैसा सरकार के खाते में जमा होगा।
कुछ देर बातचीत होने के बाद उक्‍त गाड़ी मालिक ने अपने पिता को फोन करके बुला लिया। गाड़ी मालिक के पिता आ गए तो उन्‍होंने पहले तो मामले को रफादफा करने के लिए कहा। फिर कहने लगे कि मेरी जानपहचान उक्‍त मंत्री से है कहिए तो मैं आपकी बात करवा देता हूं। गाड़ी छोड़ दो। मुझे लगा कि दरोगा जी मंत्री के दबाव में आकर गाड़ी को छोड़ देगें, या रूपया लेकर गाड़ी को जाने देगें। परंतु में गलत था। सब कुछ देखा रहा था। उक्‍त व्‍यक्ति ने पूरी तरह दबाव बनाने, व कुछ कम ले देकर मामला निपटाने की पूरी कोशिश की। परंतु दरोगा जी टस से मस नहीं हुए। और कहा कि अर्थ दंड का भुगतान करों और रसीद लो। मैं आप लोगों को भुगतान की रसीद दे रहा हूं। जब उक्‍त गाड़ी मालिक की कहीं से दाल गलती नजर नहीं आई तो उन्‍हें अर्थ दंड का भुगतान करना ही पड़ा। दरोगा जी ने अर्थदंड रसीद देकर पुन: ऐसी पार्किग न करने की हिदायत देते हुए गाड़ी में लगा कब्‍जा निकलवा दिया।
यह सब देखकर आर्श्‍चय हुआ कि दरोगा जी चाहते तो कुछ लेकर भी गाड़ी छोड़ सकते थे, परंतु नहीं उन्‍होंने ऐसा कुछ नहीं किया। उक्‍त दरोगा जी को देखकर लगता है कि ईमानदार लोग आज भी हैं।

Friday, May 3, 2019

तुम्‍हारी औकात से परे


तुम्‍हारी औकात से परे
2019 के लोक सभा चुनाव के चार चरण संपन्‍न हो चुके है बाकि तीन चरणों के चुनाव होना बाकि है। यह सात चरणों के चुनावों के परिणाम क्षेत्रों के सांसदों व प्रधानमंत्री का फैसला करेंगे, यह सब जानते हैं। इसमें नया क्‍या है। सही है नया तो कुछ भी नहीं, और नया क्‍या हो सकता है। मैं तो बस चुनाव में खड़े कुछ दिग्‍गज उम्‍मीदवारों की चर्चा कर रहा हूं। राहुल गांधी जो अमेठी और रायबरेली के इतर और कहीं चुनाव नहीं लड़ते। वही मुलायम सिंह और अखिलेश मैनपुरी व सैफई छोड़कर कहीं अपना दांव नहीं अजमाते। इसके साथ ही इस सूची में और भी उम्‍मीदवार हैं जिनकी अपनी अपनी मांद है। और यह अपनी माद छोड़कर और कहीं शिकार खेलने नहीं जाते। डर लगता है कहीं और इनका शिकार न कर ले जाए। और वर्षों से कमाई इज्‍जत मिट्टी में न मिल जाए। यही सब मोदी के अंदर भी देखा गया है कि वह वाराणसी के इतर और कहीं अपनी किस्‍मत नहीं आजमा रहे। यानि अपनी अपनी मांद छोड़कर कहीं और शिकार करना नहीं चाहते....... यदि वास्‍तव में आपने विकास किया है तो अपनी मांद को छोड़कर राहुल, मुलायम, मायावती, अखिलेश, ममता, लालू के गढ़ में जाकर सेंघ लगाए तो जाने कि वास्‍तव में आप शिकारी हो। अपनी-अपनी गली में तो कुत्‍ता भी शेर होता है। छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों से लड़ने में क्‍या विकासगिरी है। लड़ना है तो दूसरों के घर में घुसकर लड़ों, सबको उनकी औकात समझ आ जाएगी। कौन कितने पानी में है।
अब करते हैं विकास की बात तो विकास के नाम पर जो चस्‍मा सरकार ने जनता की आंखों पर पहना रखा है उससे सिर्फ कालपनिक विकास दिखाई देता है वास्‍तविक विकास तो कोसों दूर है। यदि बड़े-बड़े उद्योगपतियों की जेबों को भरना विकास है तो हम जरूर कहेंगे कि विकास हुआ है। और यदि नहीं तो जरा गरीब किसानों और मजदूरों की जिंदगी का अवलोकन करें तो आपका विकास जमीन पर धूल चाटता नजर आएगा। खैर विकास तो हुआ है देशभर में लाखों टेक्‍सी की बिक्री हुई है जो आपने बेरोजगारों को रोजगार मुहैया करवाया है साथ ही पकौड़े जैसी विघा जो कम पढ़े-लिखे गरीब तबकों तक ही सीमित थी उस तुमने उच्‍च शिक्षित वर्गों के लिए भी खोल दी है। इसी का नाम विकास है। तो विकास तो हो रहा है।
खैर चुनाव के परिणाम 26 मई को आ जाएंगे कि किसकी कितनी औकात थी और उसने क्‍या-क्‍या हासिल कर लिया। विकास के नाम पर हो, धर्म जाति के नाम पर, गरीबों के नाम पर, आपने वोट हासिल किए हो परंतु देखना तो अब है कि तुम्‍हारी औकात कितनी है। क्‍या विकास तुम्‍हारी औकात से परे है या फिर दूसरे की मांद में सेंध लगाना।