ईमानदार
लोग आज भी हैं
कहते
हैं कि कोई भी विभाग घूसखोरी से अछुता नहीं है। गाहे-बगाहे लेन-देन की प्रक्रिया का संचालन होता रहता है। कभी दबाव में, तो कभी अपना काम निकलवाने के एवज में हथेलियां गर्म होती रहती है। इन सबके
बावजूद हर विभाग में सभी घूसखोर नहीं हैं बहुत से ऐसे कर्मचारी/अधिकारी आज भी मौजूद
हैं जो अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं चाहे उनके ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव क्यों
ना पड़े। यह सब मैं किसी विभाग के कर्मचारी/अधिकारी की चापलूसी के कारण नहीं बल्कि, ईमानदार व्यक्ति से सबको परिचित करवाने के लिए लिख रहा हूं।
दिनांक
28 मई को शाम के लगभग 7-8 बज रहे होगें मैं किसी काम से
घंटाघर पर खड़ा हुआ था और अपने एक मित्र से बात कर रहा था। तभी यातायात पुलिस की जीप
सायरन बजाती हुई सावरकार चौक से घंटाघर आ रही थी, तो वहा पर खड़े
फल ठेले वाले और भी अन्य ठेले वाले अपने-अपने ठेले को साइड में करने लगे। तभी यातायात
पुलिस की जीप घंटाघर पर आ पहुंची। तो उसमें बैठे दरोगा नरेंद्र सिंह ने देखा कि एक
झांसी की गाड़ी जिसका मालिक उसे अपनी सुविधा के अनुसार रोड़ के बीचों बीच खड़ा करके
चला गया था। कुछ देर देखने के उपरांत जब गाड़ी मालिक नहीं आता दिखा तो दरोगा के अपने
साथी सिपाही से उस गाड़ी में कब्जा लगाने को कहा। दरोगा का आदेश मिलते ही सिपाही ने
उस गाड़ी में कब्जा लगा दिया। तभी कुछ देर बाद उक्त गाड़ी मालिक आया तो देखा कि गाड़ी
में कब्जा लगा हुआ है। गाड़ी मालिक ने दरोगा से कब्जा हटाने के लिए कहा तो दरोगा
नरेंद्र सिंह ने कहा कि पहले अपनी गाड़ी देखिए कैसी खड़ी है। इसके एवज में आपको अर्थ
दंड का भुगतान करना पड़ेगा ताकि आप पुन: ऐसा न करे। तो गाड़ी मालिक ने कुछ ले देकर
कब्जा हटाने को कहा, तब दरोगा नरेंद्र सिंह ने साफ-साफ कहा कि
यह पैसा मेरी जेब में नहीं जा रहा, यह पैसा सरकार के खाते में
जमा होगा।
कुछ
देर बातचीत होने के बाद उक्त गाड़ी मालिक ने अपने पिता को फोन करके बुला लिया। गाड़ी
मालिक के पिता आ गए तो उन्होंने पहले तो मामले को रफादफा करने के लिए कहा। फिर कहने
लगे कि मेरी जानपहचान उक्त मंत्री से है कहिए तो मैं आपकी बात करवा देता हूं। गाड़ी
छोड़ दो। मुझे लगा कि दरोगा जी मंत्री के दबाव में आकर गाड़ी को छोड़ देगें, या रूपया लेकर गाड़ी को जाने देगें। परंतु में गलत था। सब कुछ देखा रहा था।
उक्त व्यक्ति ने पूरी तरह दबाव बनाने, व कुछ कम ले देकर मामला
निपटाने की पूरी कोशिश की। परंतु दरोगा जी टस से मस नहीं हुए। और कहा कि अर्थ दंड का
भुगतान करों और रसीद लो। मैं आप लोगों को भुगतान की रसीद दे रहा हूं। जब उक्त गाड़ी
मालिक की कहीं से दाल गलती नजर नहीं आई तो उन्हें अर्थ दंड का भुगतान करना ही पड़ा।
दरोगा जी ने अर्थदंड रसीद देकर पुन: ऐसी पार्किग न करने की हिदायत देते हुए गाड़ी में
लगा कब्जा निकलवा दिया।
यह सब
देखकर आर्श्चय हुआ कि दरोगा जी चाहते तो कुछ लेकर भी गाड़ी छोड़ सकते थे, परंतु नहीं उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। उक्त दरोगा जी को देखकर लगता है
कि ईमानदार लोग आज भी हैं।
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