सरोकार की मीडिया

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Wednesday, August 29, 2018

सभी एटीएम ग्राहक - सावधान रहें

सभी एटीएम ग्राहक - सावधान रहें
सभी एटीएम ग्राहक - सावधान रहें.. उन्‍हें क्‍या करना चाहिए और क्‍या नहीं करना चाहिए इस बात पर गौर करें.....
क्या करें
·       अपना एटीएम लेनदेन पूर्ण गोपनीयता से करें, अपनी व्यक्तिगत पहचान संख्या (एटीएम पासवर्ड) दर्ज करते हुए उसे कभी भी किसी भी व्यक्ति को न देखने दें।
·       लेनदेन पूर्ण होने के बाद यह सुनिश्चित करें कि एटीएम स्क्रीन पर वेलकम स्क्रीन दिखाई दे रही है।
·       सुनिश्चित करें कि आपका वर्तमान मोबाइल नम्बर बैंक के पास रजिस्टर्ड है जिससे आप अपने सभी लेनदेनों के लिए अलर्ट संदेश प्राप्त कर सकें
·       एटीएम के आसपास संदेहजनक लोगों की हलचल या आपको बातों में उलझाने वाले अजनबी व्यक्तियों से सावधान रहें।
·       एटीएम मशीनों से जुड़े हुए ऐसे अतिरिक्त यंत्रों को देखें जो संदेहस्पद दिखाई देते हों।
·       यदि एटीएम / डेबिट कार्ड गुम गया हो या चुरा लिया गया हो, तो इसकी सूचना तुरंत बैंक को दें, यदि कोई अनधिकृत लेनदेन हो, तो उसे रिपोर्ट करें।
·       लेनदेन संबंधी अलर्ट एसएमएस और बैंक विवरणों की नियमित रूप से जाँच करें।
·       यदि नकदी संवितरित नहीं की गई हो और एटीएम में नकदी खत्म”/”cash out” दर्शाया नहीं गया हो, तो नोटिस बोर्ड पर लिखे टेलीफोन नंबर पर उसकी सूचना दें।
·       आपके खाते से राशि डेबिट करने के लिए फोन पर आए एसएमएस की तुरंत जाँच करें।
क्या न करें
·       कार्ड पर अपना पिन नम्बर न लिखें, अपना पिन नम्बर याद रखें।
·       अजनबी व्यक्तियों की सहायता न लें। कार्ड का उपयोग करने के लिए अपना कार्ड किसी भी व्यक्ति को न दें।
·        बैंक कर्मचारियों एवं परिवार के सदस्यों सहित अपना पिन किसी भी व्यक्ति को न बताएं।
·       जब आप भुगतान कर रहे हों, तब कार्ड को अपनी नजरों से दूर न होने दें।
·       लेनदेन करते समय, आप मोबाइल फोन पर बात न करें।

Thursday, August 23, 2018

धर्मों की आड़ में जीव हत्‍या न करें


धर्मों की आड़ में जीव हत्‍या न करें

बलि प्रथा /कुर्बानी मानव जाति में वंशानुगत चली आ रही एक सामाजिक प्रथा अर्थात सामाजिक व्यवस्था है। इस पारंपरिक व्यवस्था में मानव जाति द्वारा मानव समेत कई निर्दोष प्राणियों की हत्या यानि कत्ल कर दिया जाता है। विश्व में अनेक धर्म ऐसे हैं, जिनमें इस प्रथा का प्रचलन पाया जाता है। यह मनुष्य जाति द्वारा मात्र स्वार्थसिद्ध की व्यवस्था है, जिसे बलि-प्रथा/कुर्बानी कहते है।
सभी धर्मों में जीव-हिंसा को पाप माना गया है। जो धर्म प्राणियों की हिंसा का आदेश देता है, वह कल्याणकारी कैसे हो सकता हैं और इसमें किसी भी प्रकार से विश्वास नहीं किया जा सकता। धर्म की रचना ही संसार में शांति और सद्भाव बढ़ाने के लिए हुई है। यदि धर्म का उद्देश्य यह न होता तो उसकी इस संसार में आवश्यकता न रहती। संसार के आदिकाल में पशुओं के समान ही मनुष्य वन्य जीव-जन्तुओं का वध किया करता था। उसकी सारी प्रवृत्तियां भी पशुओं के समान ही थीं। वह उन्हीं के समान हो-हो खो-खो करके बोला करता था, नंगा फिरता और मांद गुफाओं में रहा करता था, धीरे-धीरे मनुष्य ईश्वरीय तत्त्व का विकास हुआ। उसकी बुद्धि जागी और वह बहुत-सी पाशविक प्रवृत्तियों को अनुचित समझकर उन्हें बदलने लगा। उसने आखेट जीविका का त्याग कर कृषि और पशुपालन अपनाया वल्कल से प्रारंभ कर कपास निर्मित वस्त्र पहनने प्रारंभ किए। हिंसा वृत्ति के शमन से सामाजिकता का विकास किया, समाज व परिवार बनाया और दया, करुणा, सहायता, सहयोग का मूल्य समझकर निरंतर विकास करता हुआ, इस सभ्य अवस्था तक पहुंचा।
ज्यों-ज्यों मनुष्य का विकास होता गया, त्यों-त्यों वह स्थूल से सूक्ष्म की ओर-शरीर से आत्मा की ओर-- और लोक से परलोक की ओर विचारधारा को अग्रसर करता गया और अंत में उसने परमात्मा तत्त्व के दर्शन कर लिए। स्थूल से जो जितना सूक्ष्म की ओर बढ़ा है, वह उतना ही सभ्य तथा सुसंस्कृत माना जाएगा और जिसमें जितनी अधिक पाशविक अथवा आदि प्रवृत्तियां शेष हैं, वह उतना ही असभ्य एवं असंस्कृत माना जाएगा। पाशविक प्रवृत्तियों में जीव-हिंसा सबसे जघन्य प्रवृत्ति है। जिसमें इस प्रवृत्ति की जितनी अधिकता पाई जाए, उसे बाहर से सभ्य परिधानों को धारण किए होने पर भी भीतर से उतना ही अधिक आदिम असभ्य मानना चाहिए।
वैसे यों खाने के लिये कोई मांस खाकर व्यक्तिगत निंदा का पात्र बने तो बना करे, किंतु धर्म के नाम पर पशुवध करने का उसको या किसी को कोई अधिकार नहीं है। जिस कल्याणकारी धर्म का निर्माण अहिंसा, सत्य, प्रेम, करुणा और दयामूलक सिद्धांतों पर किया गया है, उसके नाम पर अथवा उसकी आड़ लेकर पशुओं का वध करना धर्म के उज्ज्वल स्वरूप पर कालिख पोतने के समान ही है। ऐसा करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। जो ऐसा करता है, वह वस्तुतः धर्म-द्रोही है और लोक-निंदा और अपयश का भागी है।
अपने को हिन्दू/ मुसलमान कहने और मानने वाले अनेक धर्म ऐसे हैं, जिनमें पशु-बलि/कुर्बानी की प्रथा समर्थन पाए हुए हैं। ऐसे लोग यह क्यों नहीं सोचते कि हमारे देवताओं/अल्‍लाहों एवं ऋषियों/ पैगबरों ने जिस विश्व-कल्याणकारी धर्म का ढांचा इतने उच्च-कोटि के आदर्शों द्वारा निर्मित किया है, जिनके पालन करने से मनुष्य देवता/अल्‍लाह बन सकता है, समाज एवं संसार में स्वर्गीय वातावरण का अवतरण हो सकता है, उस धर्म के नाम पर हम पशुओं का वध करके उसे और उसके निर्माता अपने पूज्य पूर्वजों को कितना बदनाम कर रहे हैं। यह सोचने वाली बात है।
धर्म के मूलभूत तत्त्व-ज्ञान को न देखकर अन्य लोग धर्म के नाम पर चली आ रही अनुचित प्रथाओं को धर्म का आधार मान कर उसी के अनुसार उसे हीन अथवा उच्च मान लेते हैं, अश्रद्धा अथवा घृणा करने लगते हैं। इस प्रकार धर्म को कलंकित और अपने को पाप का भागी बनाना कहां तक न्याय-संगत और उचित है। इस बात को समझे और पशु-बलि/कुर्बानी जैसी अधार्मिक प्रथा का त्याग करें।
क्‍योंकि पशु-बलि/कुर्बानी करने वाले लोग बहुधा देवी-देवताओं/अल्‍लाहों को प्रसन्न करने के लिए ही उनके सामने अथवा उनके नाम पर जानवरों और पक्षियों आदि निरीह जीवों का वध किया करते हैं। इस अनुचित कुकर्म से देवी- देवता/अल्‍लाह प्रसन्न हो सकते हैं, ऐसा मानना अंध-विश्वास की पराकाष्ठा है। उनकी महिमा को समाप्त करना और हत्यारा सिद्ध करना है। अपने प्रति ऐसा अन्याय करने वालों से देवी देवता/अल्‍लाह प्रसन्न हो सकते है, यह सर्वथा असंभव है।
हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं के कारण हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म में कई ऐसी अंतरविरोधी और विरोधाभाषी विचारधाराओं का समावेश हो चला है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपरा की देन है। जिस तरह वट वृक्ष पर असंख्य लताएं, जंगली बेले चढ़ जाती है उसी तरह हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म की हजारों वर्षों की परंपरा के चलते कई स्थानीय परंपराओं की लताएं भी धर्म पर चढ़ गई है। उन्हीं में से एक है बलि/ कुर्बानी परंपरा या प्रथा।
बली प्रथा/कुर्बानी : देवताओं/ अल्‍लाहों को प्रसन्न करने के लिए बलि/कुर्बानी का प्रयोग किया जाता है। बलि प्रथा/कुर्बानी के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की बलि/कुर्बानी दिए जाने का प्रचलन है। हिंदू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है। वहीं मुस्लिम धर्म में अल्‍लाह को खुश करने के लिए कुर्बानी दी जाती है। वैसे धर्म और आस्‍था के नाम पर किसी भी प्रकार की बलि प्रथा/कुर्बानी की इजाजत नहीं दी गई है।..यदि आप मांसाहारी है तो आप मांस खास सकते हैं लेकिन धर्म की आड़ में नहीं। हालांकि जैसा सभी धर्मों में कहा गया है कि जीव हत्‍या पाप है इसके बाद भी लोग अपने धर्म को परे रखकर धर्म के नाम पर ही जीवों की लगातार हत्‍या कर रहे हैं यह कहां तक उचित प्रतीत होता है। एक तरफ आप अपने-अपने धर्म को सर्वोपरि मानते है दूसरी तरफ उसकी अवहेलना करते हैं। वाह रे इंसान.... अपने स्‍वार्थ सिद्धि हेतु आप कुछ भी कर सकते हैं।
वैसे आपको बली/कुर्बानी देनी है तो अपने प्रियजनों की देकर देखिए... कौन सा भगवान/अल्‍लाह आज के समय में आकर उसे पुन: जीवन दान देता है। बाकि किसी भी प्राणी की हत्‍या आपको पाप का भागीदार बनाती है। तो धर्म के नाम पर इस तरह का कृत्‍य छोड़कर धर्मों में लिखी बातों को ही मानना हो तो प्राणी की रक्षा करें न की हत्‍या।

Saturday, August 4, 2018

एक आशियान इनके लिए भी............हो


एक आशियान इनके लिए भी............हो

सरकार चाहे जिसकी भी रही हो या बन जाए, शायद ही निम्‍न गरीबों (भीख मांग कर अपना गुजारा करने वाले) को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं पहुंच पाती हो। हां सरकार द्वारा जो भी योजनाएं गरीबों के लिए बनाई जाती हैं वो बनती तो गरीबों के लिए हैं परंतु उन तक नहीं पहुंच पाती हैं। यह लाभ अमीर वर्ग के लोग अपने आप को गरीब दर्शा कर लूट लेते हैं। चाहे राशन हो या रहने के लिए दी जाने वाली छत। यह अमीर वर्ग के लोग चंद पैसे उक्‍त कर्मचारियों को खिलाकर गरीबों का हक छीन लेते हैं। और सरकार समझती है कि गरीबों को दी जानी वाली योजनाओं का लाभ उन तक पहुंच चुका है, पर ऐसा नहीं है जिनको लाभ मिलना चाहिए उन तक शायद ही कभी पहुंचा हो। क्‍योंकि देखा जा सकता है कि उक्‍त अमीर वर्ग के यह लालची जिनका नाम अन्‍त्‍योदय राशन कार्ड (बीपीएल) में दर्ज है और यह लोग बाकायदा गरीबों का हक छीनते दिखाई दे जाते हैं। तभी तो चाहे बीएसपी द्वारा कांशीराम आवास योजना बनाई हो, एसपी द्वारा लोहिया आवास योजना हो या फिर बीजेपी द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना हो।
इन आवासों में गरीब वर्ग के कम और अमीर वर्ग के लोग अधिकांशत: मिल जाएंगे जिनके पास खुद की दो पहिया से चार पहिया तक की गाड़ी होती है। और तो और कुछ लोगों ने तो सरकार द्वारा मिले आवास को किराए पर भी दे रखा है जिसकी खैर खबर शायद कभी सरकार लेती हो कि वास्‍तव में जरूरत मदों को इन योजनाओं का लाभ मिल रहा है या सिर्फ कागजों पर ही खुद को गरीब दर्शाकर अमीर वर्ग को तो नहीं दिया जा रहा।
यदि ऐसा नहीं है तो इन लोगों के बारे में सरकार कौन सी योजनाएं संचालित करती है जो अपनी जीविकोपार्जन हेतु दिनभर भीख मांगते हैं और रात्रि में यहां-वहां जहां रात गुजर जाए वहीं रात गुजारकर पुन: सुबह भीख मांगने निकल जाते हैं और फिर वहीं रात गुजारने की चिंता इनके सामने खड़ी हो जाती है। क्‍योंकि यह वो लोग है जिनको सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ नहीं मिला। और यह वहीं लोग हैं जिनको इनके घरवालों ने (बच्‍चों ने) घर से बेघर करके इस स्थिति में ला खड़ा कर दिया, कि वह भीख मांगकर अपना गुजर बसर करने पर मजबूर हो जाते हैं। जिन लोगों ने अपने बच्‍चों की हर खुशी के लिए अपने मुंह तक का निवाला भी दे दिया हो। फिर जब बच्‍चे सक्षम हुए, बड़े हो गए और उनके माता-पिता असक्षम हुए और बुढ़े हो गए, तो निकाल देते हैं घर से। जो घर उन लोगों ने अपने खून-पसीने की कमाई से बनाया था।
सरकार को ऐसे लोगों पर भी ध्‍यान देने की जरूरत है क्‍योंकि संविधान में सभी को जीने और रहने के लिए छत का प्रावधान दिया गया है। और यदि सरकार इन लोगों को रहने व खाने की व्‍यवस्‍था नहीं कर सकती तो वह इतना तो की ही सकती है कि इन लोगों को (भीख मांगकर गुजर-बसर करने वालों को) बुलाकर इनकी समस्‍या का समाधान करने के लिए, इनके बच्‍चों को समझाना चाहिए कि वह अपने बुर्जुग मां-बाप को अपने पास रखे, और यदि वह लोग अपने मां-बाप को साथ रखने के लिए नहीं माने तो इनके बच्‍चों पर कार्यवाही करनी चाहिए ताकि उक्‍त लोगों की समस्‍या का पूर्णत: समाधान हो सके। और यह लोग भी अपने जीवन के अंतिम पल ठीक-ठाक तरीके से तो गुजार सके।

Thursday, August 2, 2018

गड्ढामुक्‍त बनाम पुन: गड्ढायुक्‍त


गड्ढामुक्‍त बनाम पुन: गड्ढायुक्‍त
चमकेगी हर सड़क, दौड़ेगा प्रदेश के स्‍लोगन के साथ सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्‍तर प्रदेश ने वर्तमान मुख्‍यमंत्री द्वारा पिछली सरकारों से चली आ रही गड्ढायुक्‍त सड़कों को गड्ढामुक्‍त कराने का दावा किया है। परंतु इन दावों में कितनी सच्‍चाई है यह प्रदेश की जनता बखूबी जान रही है। हां वर्तमान सरकार ने प्रदेश में गड्ढायुक्‍त सड़कों को गड्ढामुक्‍त बनाने के लिए सड़कों की मरहम पट्टी जरूर करवाई थी, और बहुत-सी जगहों पर पुन: सड़कों का निर्माण भी करवाया गया था। किंतु पहली बारिस ने ही सड़कों पर लगे घावों को फिर से हरा-भरा कर दिया। जिसका उदाहरण जिला ललितपुर में मात्र तीन माह पहले बनी सड़कें खुद-ब-खुद दे रही है कि उनके नवीनीकरण में क्‍या-क्‍या किया गया।  अब यह सड़कें फिर से गड्ढायुक्‍त हो चुकी है। जिसकी खबर लेने वाला कोई नहीं। फिर यह दावे आखिर क्‍यों....कि  अप्रैल 2017 से दिसंबर 2017 तक लगभग 107000 कि.मी. गड्ढायुक्‍त सड़कों में से लगभग 101000 कि.मी. सड़कों को गड्ढामुक्‍त किया गया। दावा तो यह भी करना चाहिए कि हमारी सरकार ने 101000 कि.मी. गड्ढायुक्‍त सड़कों को गड्ढामुक्‍त करवाया था और जिनमें में लगभग.....(अधिकांशत: सभी) पुन: गड्ढायुक्‍त बन चुकी हैं।  

Wednesday, August 1, 2018

कश्‍मीर को समस्‍या न मानें... पुख्‍ता समाधान खाजें


कश्‍मीर को समस्‍या न मानें... पुख्‍ता समाधान खाजें

धर्म साम्राज्य के पैरों ने आज समूचा भारत नाप लिया है। वैसे किसी देश, राज्‍य की भौगोलिक संस्‍कृतियां ही वहां की मुख्य कर्ता होती है और वहीं यह तय करती है कि वहां का विकास किस तरह हो। यानि एक लाइन में कहा जाए तो संस्‍कृतियां ही किसी देश, राज्‍य का भाग्‍य निर्माण का रास्‍ता तय कर सकती हैं। परंतु किसी राज्‍य को लेकर विवाद की स्थिति बन जाए तो संस्‍कृतियां भी उसका विकास करने में अक्षम साबित होगीं। जी मैं कश्‍मीर मुद्दे की बात कर रहा हूं.... 1947 में भारत के आजाद होने के उपरांत अक्टूबर 1947 को जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी। विलय-पत्र में न तो कोई शर्त शुमार थी और न ही रियासत के लिए विशेष दर्जे जैसी कोई मांग। इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया।
भारत के इस उत्तरी राज्य के 3 क्षेत्र हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। दुर्भाग्य से भारतीय राजनेताओं ने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति समझे बगैर इसे एक राज्य घोषित कर दिया, क्योंकि ये तीनों ही क्षे‍त्र एक ही राजा के अधीन थे। सवाल यह उठता है कि आजादी के बाद से ही जम्मू और लद्दाख भारत के साथ खुश हैं, लेकिन कश्मीर खुश क्यों नहीं? हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि पाकिस्तान की चाल में फिलहाल 2 फीसदी कश्मीरी ही आए हैं बाकी सभी भारत से प्रेम करते हैं। यह बात महबूबा मुफ्ती अपने एक इंटरव्यू में कह चुकी हैं। लंदन के रिसर्चरों द्वारा पिछले साल राज्य के 6 जिलों में कराए गए सर्वे के अनुसार एक व्यक्ति ने भी पाकिस्तान के साथ खड़ा होने की वकालत नहीं की, जबकि कश्मीर में कट्टरपंथी अलगाववादी समय समय पर इसकी वकालत करते रहते हैं जब तक की उनको वहां से आर्थिक मदद मिलती रहती है। वहीं से हुक्म आता है बंद और पत्थरबाजी का और उस हुक्म की तामिल की जाती है।
आतंकवाद, अलगाववाद, फसाद और दंगे- ये 4 शब्द हैं जिनके माध्यम से पाकिस्तान ने दुनिया के कई मुल्कों को परेशान कर रखा है। खासकर भारत उसके लिए सबसे अहम टारगेट है। क्यों? इस क्योंके कई जावाब हैं। भारत के पास कोई स्पष्ट नीति नहीं है। भारतीय राजनेता निर्णय लेने से भी डरते हैं या उनमें शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति विकसित हो गई है। अब वे आर या पार की लड़ाई के बारे में भी नहीं सोच सकते क्योंकि वे पूरे दिन आपस में ही लड़ते रहते हैं, बयानबाजी करते रहते हैं। सीमा पर सैनिक मर रहे हैं पूर्वोत्तर में जवान शहीद हो रहे हैं इसकी भारतीय राजनेताओं को कोई चिंता नहीं। इस पर भी उनको राजनीति करना आती है। कहते जरूर हैं कि देशहित के लिए सभी एकजुट हैं लेकिन लगता नहीं है। जब इस तर की स्थिति बनी तो नाकारा राजनेताओं ने कश्‍मीर को सबसे बड़ी समस्या मान लिया। और जब समस्‍या मान लिया तो समाधान आसान कैसे हो सकता है? किसी जमाने में स्कर्वी नाम की भयानक बीमारी से बड़ी संख्या में समुद्री यात्री मरा करते थे। एक मामूली डाक्टर ने बताया कि यह बीमारी नींबू का रस पीने से ठीक हो जाती है। ठीक होने भी लगी, लेकिन इतनी भयंकर बीमारी के इतने आसान इलाज की बात स्वीकार करने में ही सौ साल लगे। आज इस बीमारी के बारे में सुना भी नहीं जाता। यही स्थिति कश्‍मीर की वर्तमान समय में बनी हुई है क्‍योंकि इस समस्‍या का हल पिछले 70 सालों पहले ही निकल जाना चाहिए परंतु नहीं.... अभी तक इसका कोई पुख्‍ता हल खोजने की कोशिशें भी नहीं की गई।  सही है जिस समस्‍या से बहुत सारे लोगों को फायदा पहुंचता हो उस समस्‍या का समाधान नहीं किया जाता, उसको और उलझाया जाता  है ताकि फायदा मिलता रहे। क्‍योंकि अब कश्‍मीर एक राज्‍य नहीं एक इंडस्‍ट्री है जहां से लाखों लोगों का कारोबार चलता है। राजनेता अपनी-अपनी रोटियां सेंकते हैं, आतंकवादी मासूमों को अपना शिकार बनाते हैं और इन आतंकवादियों के आका हथियारों का व्‍यापार करते हैं। क्‍योंकि समय-समय पर युद्ध नहीं होगा तो हथियारों को खरीदेगा कौन.... चाहे  आंतकवादी हो या फिर भारतीय सैनिक.. आतंकवादियों को आतंक फैलाने के लिए और भारतीय सैनिकों को रक्षा करने के लिए हथियारों की जरूरत तो पड़ती ही है।
वहीं जब भारतीय राजनीति ईश्वर-अल्लाह के नाम पर चलने लगती है तो जाहिर है वह हमें आज की समस्याओं का समाधान नहीं देती। क्या धर्म ने पाकिस्तान की समस्याओं का समाधान कर दिया है? नहीं, क्योंकि धर्म तो जिंदगी के बाद का रास्ता बनाता है।  हमें मालूम है कि कश्मीर के अलगाववादी आदोलन की असलियत क्या है। अगर कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में चला जाता तो वही सब कुछ पाकिस्तानी भू-स्वामीवर्ग और पाकिस्तानी सेना द्वारा वहां किया जाता, जो कबाइलियों ने 1947 में प्रारंभ किया था। वैसे अलगावाद, आतंकवाद, फसाद और दंगे जैसी कश्मीर की इन नकली समस्याओं के कारण जो असल समस्याएं शिक्षा, रोजगार और विकास की हैं, पीछे रह गई हैं। इस जाहिलियत के माहौल ने उन्हें राष्ट्रीय नागरिक नहीं बनने दिया। हम सशक्त देश हैं, पर कमजोरों की तरह व्यवहार करते हैं। गठबंधनों से आ रही सत्ताएं हमारी कमजोरी का मूल स्त्रोत बन गई हैं। घटक दलों के सामने दुम हिलाना और फिर उसी सास में चीन को चेतावनी देना कहां संभव है? क्‍योंकि हाथों में चुडियां पहन लेने से और हाथों पर हाथ रखकर बैठने से, बार-बार वार्ता करने से इस समस्‍या का समाधान नहीं खोजा जा सकता.... कोई न कोई पुख्‍ता फैसला तो लेना चाहिए........ क्‍योंकि भारतीय सैनिक इस समस्‍या का समाधान करने में काफी है परंतु उनके हाथों को इन राजनेता ने जकड़ रखा है। कश्मीर विवाद कश्मीर पर अधिकार को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 से जारी है। इसको लेकर पाकिस्तान ने भारत पर तीन बार हमला किया और तीनों बार उसे बुरी तरह से पराजय मिली। 1971 के युद्ध में तो भारत ने पलटवार करते हुए पाकिस्तानी सेना को इस्लामाबाद तक खदेड़ दिया था। और लगभग आधे पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया परंतु  पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के बाद भारत ने उदारता दिखाते हुऐ जीती हुई जमीन पुनः लौटा दी। इस तरह की उदारता आखिर क्‍यों और कब तक। यह सब जानते हैं कि लातों के भूत बातों से कहां मानते हैं.... शरीर के किसी अंग में जहर फैलने लगे तो उस अंग को काट देने में ही भलाई है ताकि वह पूरे शरीर को अपनी चपेट में न ले ले। ठीक ऐसे ही जब पाकिस्‍तान ही जहर फैलाने का काम कर रहा है तो उसको जड़ से ही काट देने की बुद्धिमता का प्रतीत है। कब तक गांधी ने पद्चिह्नों पर चला जा सकता है कि जब कोई एक गाल पर चांटा मरे तो दूसरा गाल आगे कर दिया जाए.... यह सिर्फ गांधी की भूमि नहीं..... भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद, लक्ष्‍मीबाई की भी है। जब कोई गाल पर चांटा मरें तो हाथ ही काट लिया जाए ताकि वह पुन: कोशिश ही न कर सके। क्‍योंकि वक्‍त रहते कश्‍मीर समस्‍या का समाधान नहीं खोजा गया तो आज के इस बुरे हालातों की स्थिति और भी बदतर हो सकती है।