सरोकार की मीडिया

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Monday, December 4, 2017

ईवीएम बनाम बैलेट पेपर

ईवीएम बनाम बैलेट पेपर


महापौर(ईवीएम)
कुल पद-16 
निर्वाचन परिणाम-16
भाजपा जीती-14
हारी-2

नगर पंचायत अध्यक्ष(बैलेट पेपर)
कुल पद-438
निर्वाचन परिणाम-437
भाजपा जीती-100
भाजपा हारी-337

नगर पंचायत सदस्य(बैलेट पेपर)
कुल पद-5434
निर्वाचन परिणाम-5390
भाजपा जीती-662
भाजपा हारी-4728

नगर पालिका परिषद अध्यक्ष(बैलेट पेपर)
कुल पद-198
निर्वाचन परिणाम-195
भाजपा जीती-68
भाजपा हारी-127

नगर पालिका परिषद सदस्य(बैलेट पेपर)
कुल पद-5261
निर्वाचन परिणाम-5217
भाजपा जीती-914
भाजपा हारी-4303
भाजपा को ईवीएम का सहारा है।

Sunday, December 3, 2017

जहर बेचता हूं.......

जहर बेचता हूं.......

एक काम के सिलसिले में उरई जाना हुआ, जब मैं घर से निकला तो मैंने उरई जाने के लिए राप्‍ती सागर एक्‍सप्रेस ट्रेन पकड़ी, जो अपने निर्धारित समय से 4 घंटे की देर से चल रही थी। सुपरफास्‍ट, शताब्‍दियों और माल गाडियों से पीटने-पीटाने के उपरांत आखिर ट्रेन आ ही गई। चूंकि तत्‍काल जाना पड़ा तो आरक्षण था नहीं, और जनरल बोगियों की हालत ऐसी थी जैसे इन बोगियों में यात्री नहीं भेड़-बकरियां यात्रा कर रही हो... तो जनरल बोगी में न चढ़ते हुए आरक्षिण बोगी में घुस गया। कुछ समय के उपरांत टिकट चेकिंग करने वाला टीसी आया जिसने टिकट पूछा... तो जनरल का टिकट उसकी ओर बढ़ा दिया। जिसको देखकर उसने तत्‍काल प्रभाव से कहा....यह तो जनरल टिकट है और आप आरक्षित बोगी में है तो फाइन भरना पड़ेगा... कुछ देर भहस के उपरांत उसने फाइन न लेते हुए जनरल और आरक्षित के बीच का डिफरेंट बना दिया। चूंकि आरक्षित सीटें पहले से ही भरी हुई थी तो सीट मिलना असंभव था। इसके बाद मैं एक साइट लोवर सीट पर गया जहां पहले से ही एक या‍त्री लेटा हुआ था। जैसे ही मैंने उससे आग्रह किया तो उसने थोड़ा ना नुकुर के बाद मुझे थोड़ी सी जगह दे दी। कुछ समय के बाद हम दोनों में बातें शुरू हो गई। पहले बातों का सिलसिला आम बातों से शुरू हुआ... कहां जाना है कितना समय लगेगा बगैरा-बगैरा। जबाव में मैंने उससे कहा कि यदि ट्रेन लेट नहीं हुई तो लगभग 3 घंटे लगेगें... जिसके प्रति उत्‍तर में उसने सिर्फ सिर को हिलाकर उत्‍तर देना मुनासिब समझा। फिर एक सन्‍नाटा छा गया....
कुछ समय के उपरांत उस सन्‍नाटे को मैंने ही तोड़ा और उससे पूछा कि आप कहा जा रहे हैं और आप क्‍या करते हैं.... पहले सवाल का जबाव मिला कि मैं लखनऊ जा रहा हूं और दूसरे सवाल के जबाव ने मानों अचरच में डाल दिया। जब उसने कहा कि मैं जहर (स्‍लो प्‍वाइजन) बेचता हूं.... तरह-तरह का जहर.... जिसे बड़े-बड़े उद्योगपति निर्मित करते हैं और हम थोड़े से मुनाफे के लिए बेचते हैं। उसकी यह बात समझ में नहीं आई कि जहर बेचते हैं और किस तरह का जहर.... तब उसने बात साफ की कि मैं एक पान की गुमटी चलाता हूं... जहां मैं तरह-तरह की तंबाकू, गुटखा, सिगरेट, बीड़ी बेचने का काम करता हूं। जिसे लोग अपने शौक के लिए इस्‍तेमाल करते हैं.....दिन भर में मेरे पास सैंकड़ों लोग आते हैं... और यह जहर मांगते हैं.... कोई राजश्री मांगता है, कोई करमचंद, कोई गुरू, कोई विमल, कोई रजनीगंधा, कोई कैप्‍टन, कोई गोल्‍ड फैलेक मांगते हैं और हम इसी तरह के और भी जहर हम अपनी दुकान पर बेचते हैं।
वैसे सभी जानते हैं कि यह जहर है जो उनके शरीर को एक बार में खत्‍म नहीं करेगा अपितु धीरे-धीरे उस दशा में ले आएगा जहां उसके शरीर में पाई जाने वाली कोशिकाएं इतनी क्षीण हो जाती है कि वह शरीर में उत्‍पन्‍न रोगों से लड़ने में असक्षम प्रतीत होगी। जब यह कोशिकाएं बीमारियों में लड़ने में असक्षम हो जाती है तो मनुष्‍य का शरीर विभिन्‍न-विभिन्‍न रोगों से ग्रस्‍त हो जाता है और आखिरकर उसकी मौत हो जाती है।
उसके इस प्रतिउत्‍तर से मैं भौंचक्‍का सा हो गया... कि इस पान गुटमी वाले ने कितना सही और सटीक जबाव दिया। उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मैं किसी के घर जहर देने नहीं जाता.. लोग स्‍वयं ही मेरे पास आते हैं। जिस तरह शराब बेचने वाला घर-घर जाकर शराब नहीं बेचता, वह स्‍वयं ही शराब की दुकानों पर जाता हैं और शराब खरीदते हैं पीते हैं और अपने आपको बर्बाद करते हैं। जबकि उनको पता है कि शराब के सेवन से उनके शरीर को नुकसान पहुंचेगा उसी प्रकार हम लोग कहीं नहीं जाते यह लोग स्‍वयं ही हमारे पास आते हैं और जहर की मांग करते हैं..... फर्क सिर्फ इतना है कि इन पुडियों पर जहर की जगह उन कंपनियों के ब्रांड का नाम लिखा होता है। यदि जहर भी लिखा होगा तो खरीदने वाले उसे भी खरीद कर खाते..... वहीं सरकारों को देखिए करोड़ों रूपया विज्ञापनों पर खर्च करती है कि इसके सेवन से ऐसा हो जाएगा....इसके सेवन से वैसा हो जाएगा... पर कभी सरकारों ने सोचा है कि यदि इनको हटा ही दिया जाए तो सारे फसाद की जड़ ही खत्‍म... पर वह नहीं चाहती क्‍योंकि उनको इन सब की बिक्री पर दुगना टैक्‍स मिलता है, और फिर इनसे ही डॉक्‍टरों की दुकानें, दवाईयों की दुकाने और इन पर कार्य करने पर लाखों लोगों का घर भी तो इसी से चलता है.. तो वह कैसे इनकी बिक्री पर रोक लगा सकती है। वह तो सिर्फ खानापूर्ति करती है और विज्ञापनों पर रूपया खर्च करके समझती है कि हमने तो अपनी इतिश्री कर दी अब आप जाने.... हम भला लोगों को खाने-पीने से कैसे रोक सकते हैं। अरे भई जब बिकेगा ही नहीं तो लोग खाएंगे कहां से.... तुम बिकवा रहे  हो तो लोग खा रहे हैं।

उनकी इन बातों से मन सोचने पर जरूर मजबूर हो गया कि सरकार करोड़ों रूपया इन विज्ञापनों पर खर्च करती है पूर्णत: प्रतिबंध क्‍यों नहीं लगा देती.... यदि देखा जाए तो करोड़ों दुकानों पर यह जहर खुले आम बेचा जा रहा है... हां कुछ समय पहले सरकार ने गुटखा पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया था परंतु हुआ यह कि पहले लोग गुटखा फाड़ कर सीधे ही खा लेते थे  पर अब उसको मिलाते और हिलाते देखा जा सकता है। खैर मेरा स्‍टेशन आ गया था.. तो हमने उससे विदा ली और उरई  स्‍टेशन पर उतर गया। परंतु उसकी यह बात आज भी मेरे जहन में कौंध रही है कि मैं तो जहर बेचता हूं.......