एक
विचारणीय प्रश्न है
जो
भगवान/अल्लाह अपने घर की स्वयं रक्षा ना कर पाता हो, जिसके
घरों को इंसान तोड़ देता हो, जिसके घरों में चोरी हो जाती हो,
जिसको इंसान स्वयं चुराकर देश-विदेशों में बेच देते हों। यहां तक कि
भगवान और अल्लाह के घरों में रात को ताला डाल दिया जाता हो। जिसको स्वयं अपनी
रक्षा के लिए इंसानों के सहारे की जरूरत पड़ती हो वो भगवान इंसानों की रक्षा कैसे
कर सकता है? यदि भगवान/अल्लाह ही रक्षा करते हैं तो फिर बॉडर
पर जवानों को क्यों तैनात किया है। बॉडर पर जवानों के स्थान पर मंदिर/मस्जिद बनवा
देनी चाहिए वो देश ही रक्षा करते रहेंगे। और जो अरबों रुपए देश की सुरक्षा में
खर्च किए जाते हैं उनको देश के विकास में लगा देना चाहिए। हां एक बात और जो पूरे
देश में थाना, चैकी, कोतवाली है उनके
स्थान पर भी मंदिर/मस्जिद बनवा दें और उनमें भगवान/अल्लाह को विराजमान कर दे उनकी
योग्यता के अनुसार। ताकि वो ही होने वाले अपराध (चोरी, डकैती,
बलात्कार, हत्या, लूट
इत्यादि) को खत्म करते रहेंगे। सारा किस्सा ही खत्म। सारे भगवान/ अल्लाह अपने अपने
हिसाब से देखते रहेंगे और जब भी पाकिस्तान, चीन या फिर कोई
अन्य देश हमला करेगा तो उसका जबाव भी देते रहेंगे।
हां
एक बात और अस्पतालों को भी खत्म कर देना चाहिए। क्योंकि भगवान/अल्लाह जो हैं।
इंसानों की सारी बीमारी, दुख, तकलीफें
खत्म करने के लिए। फिर अस्पतालों और डॉक्टरों की क्या जरूरत है? वर्तमान समय में करोना काल के लिए अस्पतालों की क्या जरूरत? भगवान/अल्लाह जो हैं वह ही सबको ठीक कर देंगे। क्यों परेशान हो रहे हो?
अपने-अपने देवी-देवताओं से कहो कि तुम्हें ठीक कर दें। फिर क्यों डॉक्टर
और अस्पताल दिखने लगता है। मंदिर/मस्जिद जाए।
देखिए
भाई मिर्ची नहीं लगनी चाहिए मैं किसी की आस्था और धर्म के खिलाफ बात नहीं कर रहा
हूं। मैं अपने भगवान/अल्लाह की बात कर रहा हूं। क्योंकि गांधी जी ने कहा था ईश्वर
अल्लाह तेरो नाम। और हमें यह भी पढ़ाया गया है कि भगवान एक है। तो मैं अपने
भगवान/अल्लाह के संदर्भ में बात कर रहा हूं। जो वर्तमान समय में स्वयं लाचार है।
जिनके नाम पर लोगों को आपस में लड़ाया जाता है। उनके नाम पर उनका डर दिखाकर लोगों
को लूटा जाता है। यदि इसे उक्त पुजारियों/मौलवियों द्वारा लूट कहे तो गलत नहीं
होगा। और इन पर कोई कार्रवाही भी नहीं होती। खैर राम नाम की लूट है लूट सके तो
लूट। इक दिन ऐसा आएगा की प्राण जाएंगे छूट।
2 comments:
लिखना जरूरी है। मिर्चीप्रूफों को मिर्चियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मन की बात कहनी ही चाहिये सबके पास मन है।
सही कहा सर जी लिखने से कौन रोक सकता है फिर चाहे किसी को मिर्ची ही क्यों न लगे
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