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Wednesday, September 19, 2018

दीक्षांत समरोह के नाम पर खादी कुर्ता, पायजामा व साड़ी घोटाला


दीक्षांत समरोह के नाम पर खादी कुर्ता, पायजामा व साड़ी घोटाला
15 अक्‍टूबर, 2018 को महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में होने वाले तृतीय दीक्षांत समारोह में उपाधि प्राप्‍तकर्ता विद्यार्थियों के लिए स्‍नातकीय परिधान के संबंध में विश्‍वविद्यालय द्वारा नोटिस जारी किया गया है कि दीक्षांत समारोह में पुरूषों हेतु निर्धारित स्‍नातकीय परिधान ((खादी का सफेद कुर्ता , पायजामा व खादी की गांधी टोपी व अंगवस्‍त्र) महिलाएं हेतु निर्धारित स्‍नातकीय परिधान (खादी की सफेद साड़ी, 3 इंच के लाल बार्डर सहित व लाल ब्‍लाउज एवं खादी की गांधी टोपी व अंगवस्‍त्र) होगी। विश्‍वविद्यालय द्वारा अधिकृत विक्रेता द्वारा खरीदने पर यह कुर्ता व पायजामा आपको 1000 रूपए में व खादी की सफेद साड़ी 700 रूपए में मिल सकती है। हां यदि विद्यार्थी चाहे तो स्‍वयं खरीद सकता है जिसमें कुर्ता कॉलर सहित पूरी बांह का तथा पायजामा अलीगढ़ी होना आवश्‍यक है। वहीं महिलाएं यदि स्‍वयं खरीदती है तो उसमें सफेद साड़ी,लाल बार्डर सहित तथा सफेद पेटीकोट एवं लाल ब्‍लाउज लेना होगा, जिसमें गोल गले का सादा लाल रंग का ब्‍लाउज आस्‍तीन सहित (कुहनी तक) होना आवश्‍यक है।
यह बात तो ठीक है कि गांधी के नाम पर और गांधी की नगरी में स्‍थापित विश्‍वविद्यालय द्वारा खादी को बढ़ावा देने के लिए खादी का कुर्ता व पायजामा एवं खादी की साड़ी का प्रयोग विद्यार्थियों को उपाधि देने के लिए कर रहा है पर ऐसा पहले दो हो चुके दीक्षांत समारोह में नजर नहीं आया, फिर अब क्‍या हो गया। जो खादी-खादी चिल्‍ला रहे हैं। यह बात समझ से परे है। हां यदि विश्‍वविद्यालय खादी को ही बढ़ावा देना चाहता है तो  पूरे विश्‍वविद्यालय में यह नियम लागू क्‍यों नहीं कर दिया जाता कि कुलपति महोदय से लेकर समस्‍त शिक्षक व कर्मचारी एवं सभी छात्र-छात्राएं खादी वस्‍त्र ही पहनेंगे, जो नहीं पहनेंगा उसका विश्‍वविद्यालय में प्रवेश वर्जित रहेगा। तो यह बात समझ आती कि उपाधि हेतु खादी का प्रयोग सही है। परंतु ऐसा नहीं है। फिर खादी ही क्‍यों......वहीं एक बात समझ में और नहीं आ रही कि 1000 रूपए देकर कुर्ता, पायजामा व 700 रूपए देकर खादी की साड़ी विद्यार्थी आखिर क्‍यों खरीदे। इसकी व्‍यवस्‍था विश्‍वविद्यालय स्‍वयं करवाता है, क्‍योंकि विश्‍वविद्यालय के पास दीक्षांत समारोह के लिए बजट है उस बजट पर परिधान भी सम्‍मलित होते हैं। जिन्‍हें विद्यार्थी उक्‍त परिधान का शुल्‍क देकर प्राप्‍त कर लेता है और कार्यक्रम समाप्ति के उपरांत उक्‍त परिधान को वापस कर देता है। विश्‍वविद्यालय कुछ राशि काटकर संपूर्ण राशि वापस कर देता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि विश्‍वविद्यालय के मठाधीश परिधान के नाम पर आए हुए रूपयों को हजम करना चाह रहे हो और तो और विश्‍वविद्यालय द्वारा निर्धारित किए गए अधिकृत विक्रेताओं से मोटा डिस्‍काउंट डकार रहे हो। इस तरह दोनों जगहों से मुनाफा ही मुनाफा। क्‍योंकि ऐसा अभी तक नहीं हुआ और अब हो रहा है तो बात मन में बुरी तरह खटक रही है। बाकि तो बाद में पता चल जाएगा जब पर्ते-दर-पर्ते भेद खुलेंगे... कुछ सूचना के अधिकार से तो कुछ आपसी मेल-मिलाप से। बात तो निकलकर सामने आ ही जाएगी कि किसकी जेब कितनी गर्म हुई। और यह भी निकल कर आएगी कि यह तो दीक्षांत समरोह के नाम पर खादी घोटला हो गया।


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