दलितों, पिछड़ा और मुसलमानों का विरोधी था- गांधी
सन्
1930-31 में बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर द्वारा अंग्रेज़ सरकार से भारतीयों के
लिए स्वराज देने तथा दलितों के लिए
विधानमंडलों में अलग निर्वाचन क्षेत्र देने की मांग रखी थी। प्रथम गोलमेज सम्मेलन
में कांग्रेस और गांधी ने भाग नहीं लिया लेकिन दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गांधी ने
भाग लिया और अपनी गलत और अमानवीय सोच का परिचय देते हुए दलितों के लिए अलग चुनाव
क्षेत्र और राजनीतिक अधिकार देने का डटकर विरोध किया । गांधी का कहना था कि ‘’दलित वर्ग हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा है, इसलिए
दलित वर्ग को हिंदू वर्ग से अलग नहीं किया जा सकता।‘’ गांधी
का कहना था कि ‘’मैं प्राणों की बाजी लगाकर इस तरह के
राजनीतिक बंटवारे का मैं विरोध करूंगा।‘’
दलितों को मिले अधिकार
के विरोध में गांधी ने पुणे की यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया था। अब रही बात
कि गांधी नहीं चाहता था कि दलितों को निर्वाचन क्षेत्र में अधिकार मिले, क्योंकि उसने स्वयं कहा था कि ‘’मैं प्राणों की बाजी लगाकर इस तरह के राजनीतिक बंटवारे का मैं विरोध
करूंगा।‘’ तो क्या गांधी भारत और पाकिस्तान का बंटवारा चाहता
था....जिस प्रकार उसने दलितों को मिलने वाले अधिकार के विरोध में आमरण अनशन शुरू कर
दिया था उसी प्रकार भारत और पाकिस्तान के विभाजन पर भी कर सकता था। परंतु नहीं किया...
क्योंकि वह चाहता था कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो और पूर्ण सत्ता कांग्रेस
के पक्ष में आ जाए और वह इस सत्ता को ग्रहण न करते हुए भी सत्ता को अपनी मर्जी के
हिसाब से चलाता रहे.... और हुआ भी ठीक वैसा ही... विभाजन के उपरांत सत्ता कांग्रेस
के पक्ष में चली गई और उसकी बागडोर गांधी के हाथों में। गांधी जिस तरह चलाना चाहते, सत्ता उसकी तरफ करवट बदलती। इसे कहते हैं ऊपर राम और बगल में छुरी का काम
करना... गांधी के मुंह पर राम-नाम का जाप रहता था परंतु, गांधी
के मन में इतना मैल भरा हुआ था कि वह दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों
को मिलने वाले अधिकारों का विरोध करता रहता था ताकि सत्ता निम्न वर्गों के हाथों
में न चली जाए...और जो वर्ग अभी तक हम लोगों की गुलामी करते आ रहे हैं वह हमारे समक्ष
कंधे से कंधा मिलाकर,आंखों में आंखें डालकर खड़े न हो सके।
No comments:
Post a Comment