उच्च शिक्षा संस्थान में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार
मैं इस विषय पर कोई आलेख/लेख लिखने के बिलकुल पक्ष में नहीं था, फिर भी लिख रहा हूं। क्योंकि किसी न किसी को एक दिन भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ता है। मैं साफ-साफ आप लोगों के समक्ष अपनी व्यथा रख रहा हूं, और आप सभी से उम्मीद रखता हूं कि मेरी इस कोशिश में आप सब मेरा साथ जरूर देगें।
बात बीते कुछ ही दिन हुए हैं यानि 28 मार्च, 2012 की बात है। मैंने और मेरे जैसे सैकड़ों बेरोजगार साथियों ने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञाप्त सहायक कुल सचिव पद हेतु आवेदन पत्र प्रेषित किया था। जिसके लिए विश्वविद्यालय ने 28 मार्च को लिखित परीक्षा तथा 29 मार्च को लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण प्रतिभागियों को 1:15 यानि एक सीट पर 15 लोगों को साक्षात्कार हेतु लिया जाएगा। समय और तिथि को ध्यान में रखते हुए दूर-दूर से प्रतिभागी विश्वविद्यालय पहुंचे। जहां दो भवनों में परीक्षा का आयोजन किया गया था, एक कॉमर्स ब्लॉक दूसरा साइंस ब्लॉक। मुझे साइंस ब्लॉक के कक्ष संख्या 101 में परीक्षा देनी थी। जिसमें 23 प्रतिभागी उपस्थित थे। परीक्षा प्रारंभ हुई सभी को अंक तालिका के रूप में ओएमआर शीट व प्रश्न पत्र का वितरण कर दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद क्षेत्रियता की बू आने लगी। वहां पर उपस्थित कुछ कर्मचारी जो परीक्षा कक्ष में परीक्षा का संचालन भी कर रहे थे अपने प्रतिभागियों को उनके यथा स्थान पर आकर प्रश्नों के हल को बताने लगे। जब कुछ प्रतिभागियों ने इसका विरोध किया तो कक्ष संचालन ने कहा कि प्रश्न पत्र के बारे में बताया जा रहा है। यहां तक भी ठीक था, इसके बाद उन्हीं कुछ प्रतिभागियों ने प्रश्न पत्र के प्रश्नों को हल करने के लिए मोबाइल फोन का सहारा लिया, तो कुछ ने अपने हितैसियों से फोन पर तो कुछ ने गुगल पर सर्च करके प्रश्नों को हल किया। यह कक्ष संख्या 101 का हाल था। बाकी के कक्षों में क्या हुआ इससे में अनभिज्ञ हूं।
वैसे तो कक्षों में सहायक कुल सचिव हेतु आयोजित परीक्षा का संचालन हो रहा था, साथ ही साथ कुछ मुन्ना भाई जो वहां के लोकल छात्र थे अपने दबदबे का प्रदर्शन कर रहे थे। 12 बजकर 30 मिनट पर परीक्षा संपन्न हुई। तभी परीक्षा संचालक ने कहा कि परीक्षा का परिणाम 4 बजे नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दिया जाएगा। सभी प्रतिभागियों ने 12:30 से 4 बजे तक वहीं पर रूककर परिणाम आने तक इंतजार करने का फैसला लिया। परीक्षा का परिणाम और पूरे-पूरे 4 घंटे 30 मिनट का इंतजार, वैसे तो इंतजार 1 मिनट का भी सालों के समान लगता है और हमें तो 4 घंटे 30 मिनट इंतजार करना था। 4 बजे चुके थे परंतु परिणाम नोटिस बोर्ड पर चस्पा नहीं हुआ। कारण पूछने पर बताया गया कि बहुत सारे प्रतिभागी हैं देर तो लगती ही है। एक आध घंटे में लगा दिया जाएगा। एक घंटे के उपरांत भी परिणाम नहीं आया। पुनः पूछा, फिर वही जबाव। ऐसा करते-करते 6 बज चुके थे तभी एक कर्मचारी ने कहा कि परीक्षा के परिणाम पर कुलपति के हस्ताक्षर होने हैं तो फाईल प्रशासनिक भवन ले जायी गई है। आप सभी वहां से अपने परिणाम पता कर सकते हैं। तो सभी के सभी प्रतिभागी प्रशासनिक भवन की ओर रवाना हो गये। वहां जाकर पता चला कि अभी भी परिणाम नहीं आया है। परिणाम आने का जैसे नाम ही नहीं ले रहा था लग रहा था कि चूहे के बिल से किसी हाथी को निकाला जा रहा हो।
जब शाम से रात होने लगी तो हम सभी ने कुलपति से मिलने का आग्रह किया तो जबाव मिला कि कुलपति महोदय किसी मीटिंग में हैं मुलाकात नहीं हो सकती। तभी कुछ समय के बाद कुलपति अपने वाहन में सवार होकर अपने घर के लिए रवाना हो गये। हम सभी वाहन को ताकते रह गये। इसके बाद आग्रह किया कि कब तक आने की संभावना है जैसा हो वैसा बता दीजिए, तो कहा गया कि 10-15 मिनट में आ जाएगा। 15 से 25 मिनट भी हो गये, परिणाम अभी तक नहीं निकाला गया। जबकि कुछ लोगों को प्रशासनिक भवन में आना जाना लगातार जारी था। जिसमें से कुछ लोकल के प्रतिभागी भी थे। जिनको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये कुछ न कुछ कर रहे हैं। यह सब देखते-देखते सभी ने कुल सचिव से मिलने की बात कही तो कुल सचिव पीछे के रास्ते से पैदल निकले और जाने लगे, जब हमने उनसे कहा तो उन्होंने जबाव दिया कि मैं कुल सचिव नहीं हूं। वहीं कुछ कर्मचारी आपस में बात कर रहे थे कि किसी बाहर के प्रतिभागी का नहीं होना चाहिए।
अब सभी का सब्र जबाव दे चुका था। सभी प्रतिभागी प्रशासनिक भवन में प्रवेश हुए। जहां एक-दो कर्मचारी थे जो कुल सचिव के कार्यालय में ताला लगा रहे थे। सभी ने ताला नहीं लगाया दिया। तो कुछ प्रतिभागियों ने कुल सचिव की नेम प्लेट को उखाड़ दिया। फिर सभी प्रतिभागी रोड पर आ गये, और रास्ते पर बैठकर अपने अधिकार की मांग करने लगे। जब रास्ते जाम होने लगा तो पुलिस प्रशासन भी आ पहुंचा, पुलिस प्रशासन को भी हमने सारी बात बताई। लगभग 30 मिनट जाम लगने के बाद परिणाम जैसे किसी जिंद की तरह बाहर आ गया। जिस पर किसी भी उच्च अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं थे। और न ही किसी भी प्रतिभागी को प्राप्त अंक, कि किस प्रतिभागी को कितने अंक प्राप्त हुए। और तो और 1:15 के हिसाब से 5 सीटों पर 60 लोगों का चयन होना था वहीं केवल 50 लोगों की सूची ही चस्पा की गई। तो उस सूची को भी प्रतिभागियों ने आक्रोश में आकर फाड़ दिया। इसके बाद जब मीडिया आई तो फिर उच्च अधिकारी की मोहर पर किसी फर्जी हस्ताक्षर के साथ पुनः वही सूची लगा दी गई। जिसको देखकर लगभग अधिकांश प्रतिभागी वापस लौटने लगे।
वैसे तो दूर-दूर से आये प्रतिभागियों की परेशानी और आये खर्च जिसमें हजारों रूपये खर्च हुए। मेरे 5 दिन और 2205 रूपये खर्च हुए। अगर इसी तरह का भेदभाव करना था तो तो दिखावे के लिए हम सभी को सहायक कुल सचिवव के पद हेतु क्यों बुलाया गया था।
अब आप ही निणर्य ले कि एक उच्च शिक्षण संस्थान जिसको केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल है वो ही ऐसी प्रवृत्ति को अंजाम देने लगे तो वहां से पढ़ने वाले छात्रों में किस प्रकार की शिक्षा का प्रभाव होगा ये सभी जानते हैं। यहां पर नानक जी का एक उपदेश याद आता है कि यहां के छात्र व कर्मचारी यहीं पर रहे बाहर न जाए।
आप से पुनः अपील है कि मेरी इस मुहीम में मेरा साथ दें। और इस परीक्षा के परिणाम को निरस्त कर पुनः यूजीसी और एचआरडी मिनिस्ट्री अपने स्तर पर सहायक कुल सचिव की परीक्षा का आयोजन अपने चयनित स्थान पर करे ताकि निष्पक्ष काबिल/योग्य प्रतिभागियों का चयन हो सके।
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