ये किस गली जा रहे हैं
यात्रा का अनुभव अपने आप में बेहद सुखद और यात्रा कष्टकारी होती ही है। सेवाग्राम से नई दिल्ली पूरे 19 घंटे और कुछ मिनट की यात्रा के बाद मैं नई दिल्ली पहुंच गया। वहां से सीधे में आईएसबीटी बस अड्डे जा पहुंचा, तो पता चला कि यहां बस अड्डे का कार्य चल रहा है और श्रीनगर गढ़वाल जाने वाली बस यहां से नहीं, आनंद बिहार बस अड्डे से मिलेगी। क्या करू जाना तो था तो आनंद बिहार बस अड्डा जा पहुंचा। और पता करने लगा कि कौन-सी बस श्रीनगर गढ़वाल जाएगी, तो पता चला कि रात्रि के 9 बजे बस मिलेगी, इसके पहले कोई बस नहीं है। अब करो इंतजार।
बस अड्डे पर एक ब्रेंच पर जाकर बैठ गया, सोचा ये जगह अच्छी है इंतजार करने के लिए। तभी मेरी नजर एक लड़का और एक लड़की पर जा टकी। जिनको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि इनकी उम्र अभी 15 पार नहीं की होगी। और तो और पहली नजर में देखकर कर कोई भी ये अनुमान लगा सकता था कि ये दोनों भाई-बहन होंगे। हालांकि उनके बात-चीत के तौर-तरीके से ऐसा कदापि नहीं लग सकता था। शायद मैं भी गलत था, वो भाई-बहन नहीं थे। कुछ देर खड़े रहने के बाद वो दोनों मेरी ब्रेंच के पीछे पड़ी एक और ब्रेंच पर जाकर बैठ गये। कुछ समय के उपरांत लड़के ने अपनी जेब में से एक पर्ची निकाली और लड़की को दिखाने लगा। मेरा ध्यात उनकी बातों में ही था, इसलिए कमोवस मैं खड़ा हो गया, और देखा तो लगा कि किसी सिम के साथ आई हुई निर्देशिका लग रही थी। परंतु जब मैंने ध्यान से देखा तो वो आईपिल के साथ में आई हुई उस दवाई की निर्देशिका थी, जिसको दोनों लोग पढ़ रहे थे। तभी लड़के ने कहा कि कुछ किया भी नहीं और आईपिल खा ली, तभी लड़की ने जवाब दिया कि कहां कुछ नहीं किया,किया तो था। यदि कुछ हो जाएगा तो क्या, इसलिए खा ली। मेरे दोस्त तरूण ने भी तो अनामिका को खिलाई थी।
मेरी जगह कोई भी होता तो जरूर यही सोचता, कि दोनों के बीच शरीरिक संबंध जरूर बने होंगे। मैं अश्चर्य चकित हुआ कि इतनी सी उम्र में शरीरिक संबंध। फिर सोचा छोड़ों, हमको क्या लेना है। जब मां-बाप का ध्यान इनकी तरफ नहीं जाता तो मुझे क्या पड़ी है।
हालांकि निर्धारित समय पर बस आ गई जिसका टिकट मैंने लिया, और सीट पर जाकर बैठ गया। तभी वो दोनों भी उसी बस में आकर बैठ गये। कुछ समय के बाद लड़के ने अपने मोबाइल से उस लड़की को फिल्म दिखाना शुरू कर दिया, उनके चेहरे के हाव-भाव से पता चल रहा था कि वो दोनों किसी उत्तेजनक वस्तु को देख रहे हैं। मेरी दृष्टि पड़ते ही लड़के ने मोबाइल छिपा लिया। बस 10 बजे नई दिल्ली से श्रीनगर गढ़वाल के लिए रवाना हुई। रास्ते भर उनकी रंगरलियां देखने लायक थी, इतनी छोटी-सी उम्र और ये सब। फिर सोचा छोड़ों, उभरती हुई जवानी के मजे ले रहे हैं ले लेने दो। वैसे हम सब आजाद है और सभी को अपने हिसाब से जीने की पूर्ण छूट।
श्रीनगर से मैं 29 मार्च को हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पहुंचा। 11 बजकर 45 मिनट पर खाना खाकर रात्र की ट्रेन दक्षिण एक्सप्रेस जो कि रात्रि 10 बजकर 50 मिनट पर थी उसका इंतजार करने के लिए मैं स्टेशन से सटे राजीव गांधी पार्क जा पहुंचा। जहां कुछ समय के बाद मुझे नींद आ गई। जब नींद टूटी तो वहां पर 7-8 लड़के जिनकी उम्र 14-15 रही होगी। वो आपस में गाली देकर बात कर रहे थे, कोई किसी को अपना बाप, तो कोई किसी को अपना जीजा बनाने पर अमादा था। और तो और जिसका हम सब धुत्तकार कर भगा देते है उसको भी ये लड़के अपना जीजा बना रहे थे। तभी पार्क में एक जोड़ा आया जो शादीशुदा था। उसको देखकर उन लड़को ने कहा कि क्या माल है भई, तभी एक लड़के ने कहा कि जा रहे होगें अपना काम करने। उन्हीं में से एक ने कहा काश मिल जाए।
इतनी कम उम्र में यह सब विचार। कहां से उपजी है ऐसी सोच। शायद सभी को सोचने पर मजबूर कर दे कि क्या शिक्षा प्रणाली में दोष है या मां-बाप की परवरिश में। जो ऐसी प्रवृत्ति इन बच्चों में पनप रही है। किसी न किसी का दोष तो जरूर है आज की जनरेशन का या फिर मां-बाप का, जो अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते कि वह किस गली जा रहे हैं। अगर बच्चे ऐसी प्रवृत्ति में लिप्त होते जा रहे हैं तो आने वाले समय में देश का भविष्य क्या होगा, ये वक्त के गर्भ में कैद है।
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