समान अधिकारों की बात आखिर कैसे.......
आज महिलाएं अपने अधिकारों की बात करती
नजर आती हैं क्योंकि सदियों से पुरूष समाज महिलाओं का शोषण करता आ रहा है। जिसके
परिप्रेक्ष्य में कहा जाए तो पश्चिमी महिलाएं कुछ हद तक अपने अधिकारों के प्रति
सजग व जगरूक हुई हैं और वह लगातार अपने अधिकारों की मांग पर पुरजोर वकालत करती
रहती हैं। यह महिलाएं पुरूषवादी चंगुल से अपने आपको काफी हद तक आजाद करा पाने में
सक्षम हुई हैं पर भारतीय महिलाएं सिर्फ वकालत करती दिखाई प्रतीत होती हैं। वह आज
भी पुरूषवादी, पितृसत्तात्मक के मकड़जाल में इस तक फंसी
पड़ी हैं जिससे निकालना तो चाहती है पर निकल नहीं पा रही है क्योंकि वह आज भी
अपने आप को पुरूषों पर निर्भर मानती है कि बिना पुरूष के उसका अस्तित्व कुछ भी
नहीं है। वह पूर्णत: पुरूषों पर आश्रित हो चुकी हैं। इसी कारण पुरूष भी उसे कमतर
समझ उसका शोषण करता रहता है। क्योंकि आज भी भारतीय महिलाओं की जो छवि बनी हुई है
वह कोमल और कमजोर की बनी हुई है। वैसे इसमें कोई दोराह की बात नहीं है कि भारतीय
महिलाओं ने बहुत हद तक अपनी इस छवि को साफ कर एक आत्मनिर्भर, परिपक्य, शासक्त छवि के रूप में समाज के सामने
खुद को पेश किया है। परंतु पूर्णत: नहीं कर पाई हैं। इसके पीछे महिलाओं का पुरूष
सोच से चलना प्रमुख कारण है।
वैसे इस संदर्भ में आगे बात कि जाए तो आज
देखने को मिल जाता है कि महिलाओं को काफी अधिकारी प्राप्त हैं जिनका वह बखूब
उपयोग कर रही है ताकि उनका शोषण न किया जा सके। परंतु महिलाएं आज जिस समानता की
वकालत करती हैं क्या वह स्वयं सामान अधिकार चाहती हैं या फिर यह सब एक नाटक की
कडि़यां मात्र है जिसमें वह पुरूष के समकक्ष अधिकार तो चाहती है पर सामान रूप से नहीं, क्योंकि आज जो देखने को मिलता है कि महिलाओं को हर जगह पुरूषों के वनस्पत
अधिक दर्जा दिया जाता है, उदाहरणस्वरूप ले तो बस में महिलाओं
के लिए आरक्षित सीटें, ट्रेनों में आरक्षित सीटें, टिकट बिना लाइन में लगे मिल जाना, इस तरह के और भी उदाहरण
है जिनमें महिलाओं को अधिक दर्जा दिया जाता है क्योंकि सरकार भी व महिलाएं स्वयं
भी मानती हैं कि वह आज भी कमजोर है। वहीं पश्चिमी महिलाएं इस तरह की मांग नहीं करती
है वह पुरूषों के समान लाइन में लगती हैं और अपना सामान स्वयं उठाती हैं। परंतु भारतीय
महिलाएं नहीं।
जब समान अधिकारों की बात हो रही है तो फिर
आरक्षित चीजें आखिरकार क्यों.....खत्म कर देनी चाहिए....फिर समान अधिकारों की बात
करें तो जायज लगे कि आपका पुरूषवर्ग शोषण करता है और हमें अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं।
पहले स्वयं ही इस मकड़जाल से आजाद होने की कोशिश तो करें.... तभी आप आजाद हो पाएंगें
नहीं तो दिल बहलाने के लिए गालिबन ख्याल अच्छा है।
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