पालिका चुनाव में पत्नियों के दम पर किस्मत आजमाने को तैयार नेता
नगर पालिका परिषद के चुनाव की आहट होते ही जिस तरह से उन महिलाओं को अपनी निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए जो अभी तक पर्दे में थी उनको पर्दे से बाहर कर होल्डिंग्स, बैनर के जरिए जनता के बीच लांच कर अपने को प्रदर्शित करते हुए नेता जनता की सेवा करने का दम भर रहे हैं।
सरकार ने जिस मकसद से महिलाओं के लिए ललितपुर नगर की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की है मुझे नहीं लगता कि वर्तमान की परिस्थितियों को देखते हुए महिलाओं को ताकत मिलेगी। क्योंकि चुनाव की आहट मिलते ही शहर में लगे होडिंग्स और बैनर साफ दर्शा रहे हैं कि महिलाओं के साथ उनके पतियों/बेटों की भी तस्वीर लगी हुई है यानि उन महिलाओं का अस्तित्व अभी तक सिर्फ और सिर्फ घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। जो महिला सीट होते ही इन नेताओं ने इन्हें भुनाने की कवायदें तेज कर दी। वैसे यह सोचने वाली बात है कि यदि ललितपुर की नगर पालिका परिषद की सीट महिला के लिए आरक्षित नहीं होती तो क्या यह महिलाएं होडिंग्स और बैनर में अपने पति के साथ दिखाई देती। तो जबाव स्वत: ही मिल जाता कि फिर क्या जरूरत थी इनकी।
खैर आज ऐसे-ऐसे लोग अपने निजी
स्वार्थ के लिए अपने घर की महिलाओं को चुनाव के लिए प्रदर्शित कराते हुए दिख रहे
हैं जिनका समाज में कभी कोई योगदान ही नहीं रहा और ना ही उनका जनता के बीच कभी
आगमन ही रहा। वैसे जनता को चाहिए कि ऐसे लोग जब भी उनके पास वोट मांगने के लिए आएं
तो उनसे पूछे कि अभी तक उनके द्वारा समाज में कितना योगदान दिया गया या जिन्हें वह
चुनाव में ला रहे हैं उनका कितना योगदान अब तक समाज के लिए रहा या फिर नगर पालिका
में आने वाले फंड के बन्दरबांट की क्या तैयारी पूरी हो चुकी है। नगर पालिका परिषद के चुनाव की आहट होते ही जिस तरह से उन महिलाओं को अपनी निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए जो अभी तक पर्दे में थी उनको पर्दे से बाहर कर होल्डिंग्स, बैनर के जरिए जनता के बीच लांच कर अपने को प्रदर्शित करते हुए नेता जनता की सेवा करने का दम भर रहे हैं।
सरकार ने जिस मकसद से महिलाओं के लिए ललितपुर नगर की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की है मुझे नहीं लगता कि वर्तमान की परिस्थितियों को देखते हुए महिलाओं को ताकत मिलेगी। क्योंकि चुनाव की आहट मिलते ही शहर में लगे होडिंग्स और बैनर साफ दर्शा रहे हैं कि महिलाओं के साथ उनके पतियों/बेटों की भी तस्वीर लगी हुई है यानि उन महिलाओं का अस्तित्व अभी तक सिर्फ और सिर्फ घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। जो महिला सीट होते ही इन नेताओं ने इन्हें भुनाने की कवायदें तेज कर दी। वैसे यह सोचने वाली बात है कि यदि ललितपुर की नगर पालिका परिषद की सीट महिला के लिए आरक्षित नहीं होती तो क्या यह महिलाएं होडिंग्स और बैनर में अपने पति के साथ दिखाई देती। तो जबाव स्वत: ही मिल जाता कि फिर क्या जरूरत थी इनकी।
मेरा प्रश्न यह भी है कि जो नेता अपनी-अपनी पत्नियों/माताओं को चुनाव में उतार रहे हैं तो क्या नगर पालिका महिलाएं चलाएंगी या फिर उनके पति देव चलाएंगे। वैसे यह बात तो जग जाहिर है कि जब-जब महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हुई है उनकी सत्ता इनके पुत्रों या पतियों के द्वारा ही संचालित की जाती रही है। जैसे प्रधान पति, पर्षाद पति इत्यादि। इनमें महिलाओं की भूमिका मात्र एक प्यादे के समान होती है जिस खाने में उनके पति चलाएंगे वह वही चलेगी।
आज चुनाव में अपराधी, भूमाफिया, साइकिल चोर, सट्टा बाजारी किंग जैसे लोग भी अपनी किस्मत आजमाने निकले हैं जिन्हें कभी समाज से वास्ता नहीं रहा वह बैनरो में ईमानदार और कर्मठ दिखते हुए पैसे और शराब के दम पर चुनाव जीतना चाह रहे हैं । जनता को ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है और बहुत सोच समझ कर वोट करें क्योंकि यह चुनाव आपकी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने से संबंध रखता है।
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