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Saturday, November 26, 2011

टीआरपी की नीति और विज्ञापन

                                                    टीआरपी की नीति और विज्ञापन


टीवी का एक अपना अलग अर्थशास्त्र है, जिसके तहत टीवी काम करता है। किसी भी चैनल की अर्थव्यवस्था उसके विज्ञापन पर निर्भर करती है। विज्ञापन उसी टीवी चैनल को मिलता है जिसका टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) अच्छा है। टीआरपी एक निज़ी संस्था के जरिए किया गया टीवी चैनलों का सर्वेक्षण है, जिससे यह पता चलता है कि किस चैनल को कितने दर्शक मिल रहे हैं।
वर्ष 1986 में टीआरपी की यात्रा ‘आई एम आर बी’ (इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो) के माध्यम से अस्तित्व में आई। मंडलोई, लीलाधर, इनसाइड लाइव, आधार प्रकाशन, पंचकूला, हरियाणा, 2006.  (इनसाइड लाइव, लीलाधर मंडलोई, पृ.-108) इस पूरी व्यवस्था और इसके सूत्रपात्र के पीछे बाजार का दबाव था। यही कारण था कि भारत में इसे सबसे बड़ा बाजार मुंबई से शुरू किया गया। शहरों में इस सर्वेक्षण के पीछे यह भी उद्देश्य था कि चैनल के आधार पर यह पता लगाया जाए कि शहर में ऐसे कितने दर्शक हैं, जो क्रय क्षमता रखते हों, जो टीवी कार्यक्रमों की जीवनशैली को अपनाएं और वे बाजार के अधीन होते जाएं। आज टीआरपी सभी टेलीविजन चैनलों की हृदयगति है। हिंदी में इसे हम टीआरपी की जगह ‘दर्शक मीटर’ कह सकते हैं। यह वह पैमाना है, जिसके द्वारा चैनलों की लोकप्रियता को प्रतिशत में एक निश्चित अवधि के लिए दर्शाया जाता है।
टीवी कार्यक्रम देखने वाले दर्शकों की संख्या से जुड़ा यह तकनीकी शब्द जिस तरह प्रचलित हुआ है, वैसा ही प्रिंट मीडिया की प्रसार संख्या को जानने के लिए एक तरीका है- ‘एबीसी’ अर्थात् ‘ऑडिट ब्यूरो ऑफ सुर्कलेशन’। टीवी और टीआरपी को लेकर एक मुहावरा बना है- ‘फलां टीवी चैनल टीआरपी के लिए विवाद दिखा रहा है।’’ यह टीआरपी ही विज्ञापन जगत के करोड़ों रुपयों की दुनिया का भाग्यविधाता है। विज्ञापनदाताओं का सीधा गणित टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट से चलता है। अतः यह समझना जरूरी है कि विज्ञापन और टीआरपी का क्या संबंध है।
टीआरपी मीटर प्रत्येक शुक्रवार को टेलीविजन ऑडियंस मेजरमेंट के माध्यम से इस बात का पता लगाती है कि किस चैनल को और किस कार्यक्रम को देखने के लिए सबसे ज्यादा दर्शक मिले। उसके बाद दौड़ शुरू होती है, विज्ञापनदाताओं की। विज्ञापन का मूल उद्देश्य उत्पाद से परिचय कराने के साथ-साथ उसे बेचना अर्थात् ज्यादा-से- ज्यादा ग्राहक तैयार करना भी होता है। और, विज्ञापनदाताओं के इस मूल उद्देश्य को पूरा करने की संभावना एक हद तक ज्यादा देखे जाने वाले चैनल और कार्यक्रम पूरी करते हैं। इसीलिए विज्ञापन एजेंसियां ज्यादा टीआरपी वाले चैनल या कार्यक्रम को अपना विज्ञापन देती हैं, जिसके लिए करोड़ों की बोलियां लगायी जाती हैं। इस पूरी प्रक्रिया को एक उदाहरण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है। उदाहरण प्रस्तुत है-
‘‘सर्दियां आने वाली हैं। हम कुछ खास आपकी त्वचा के लिए लेकर आ रहे हैं। कमिंग सून।’’ ऐसे विज्ञापन अक्सर )तु परिवर्तन से पहले आते हैं। और, बाद में संबंधित उत्पाद का विज्ञापन आता है। दर्शक के दिमाग में नए-नए तरीके से पकड़ बनना विज्ञापन का पहला काम होता है। भले ही वह उत्पाद न खरीदे। हालांकि, विज्ञापन का असर उपभोक्ता के दिमाग पर वे लम्बे समय तक रखने में कामयाब होते हैं।
दरअसल, ‘कमिंग सून’ के विज्ञापन कुछ खास चैनलों पर आते हैं, जिन्हें देखने के लिए दर्शक चैनल नहीं बदलता और इसी आधार पर टीआरपी का घोड़ा लम्बी दौड़ लगाने में सफल हो जाता है। स्टारप्लस पर आने वाला एक प्रसिळ कार्यक्रम ‘कौन बनेगा करोड़पति’ भारतीय टेलीविज़न के सबसे चहेते कार्यक्रमों की शृंखला में उच्च स्थान रखता है। यह कार्यक्रम अपनी दूसरी पारी वर्तमान समय में दिखा रहा है। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसको भारतवर्ष में प्रायः सभी क्षेत्रों में पसंद किया जा रहा है। इसके आंकलन का पैमाना टीआरपी है। अर्थात् टीआरपी के माध्यम से यह पता चलता है कि किस दिन और कितना समय कौन-सा चैनल टीवी पर सबसे ज्यादा चला है। जाहिर है कि यदि हम ‘कौन बनेगा करोड़पति’ नामक कार्यक्रम देखते हैं, तो टीआरपी मीटर में समय के साथ कार्यक्रम व चैनल का नाम भी सेव हो जाता है। इस विधि में आंकलन शुक्रवार को होता है, जिससे पता चलता है कि सोमवार से शुक्रवार शाम 8 से 9 बजे तक भारतीय टेलीविजन में सबसे ज्यादा स्टार प्लस देखा गया है। क्योंकि, इस अवधि में इस चैनल पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम चलता है। अब टीआरपी तय करता है कि कार्यक्रम के समय में आने वाले विज्ञापन अपना कितना समय खरीदते हैं। यह समय खरीदने की प्रक्रिया बोली से तय होती है। उदाहरणस्वरूप यदि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम के समय विज्ञापन का समय 10 मिनट है, तो इस दस मिनट में कितने विज्ञापन दिखाए जा सकते हैं, यह चैनल तय करता है। और, अब शुरू होती है यहां से विज्ञापनदाताओं की भूमिका। मान लीजिए 30 सेकेंड के विज्ञापन के लिए ‘स्टार प्लस’ को नोकिया फोन Õ 20 लाख देता है। यदि उसी समय के लिए वोडाफोन ने ‘स्टार प्लस’ को 25 लाख देना स्वीकार करता है, तो वह समय (विज्ञापन) वोडाफोन का होगा। इस प्रक्रिया में जहां विज्ञापन को ज्यादा बाजार उपलब्ध होता है, वहीं दूसरी ओर चैनल भी अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर लेते हैं। टीआरपी, चैनल, कार्यक्रम और विज्ञापन के इस गठबंधन में यदि कोई ईकाई कमजोर पड़ती है, तो वह है- ‘व्यक्ति’। यहां व्यक्ति ;समाजद्ध की भूमिका केवल ‘उपभोक्ता’ की बन कर रह जाती है। भले ही इस पूरी प्रक्रिया में ‘व्यक्ति’ केन्द्र में हो, लेकिन वहां मानवता जैसी भावना का स्थान ‘व्यक्ति विशेष’ बड़ी चतुरता से ले जाता है।
समग्रतः टीआरपी और विज्ञापन की नीति के सामने व्यक्ति आज बहुत ही सूक्ष्म इकाई बन कर रह गया है। विज्ञापनदाता को चैनल या कार्यक्रम से कोई लम्बा चैड़ा लेना-देना नहीं होता है। इस पूरी शृंखला में टीआरपी का सिक्का ही चलता है। इस टीआरपी के लिए चैनल चाहे वह खबरिया चैनल हो या फिल्मी चैनल हो या तथाकथित पारिवारिक चैनल हो, अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए कुछ उल-जलूल कार्यक्रम प्रसारित करते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर कलर्स चैनल का ‘बिग बॉस’, एनडीटीवी ईमेजिन का ‘स्वयंवर’ आदि कई ऐसे कार्यक्रम पेश किए जाते हैं, जिनके चलते उन्हें दर्शक मिलते हैं। इन दर्शकों का मिलना ही अब चैनलों के जीवत रहने का एक मात्र उपाय रह गया है। क्योंकि, जिस चैनल के पास जितने दर्शक (टीआरपी) हैं उसे विज्ञापन उतनी ही आसानी से मिल जाते हैं। अस्तु, संप्रेषण के संसाधनों में टीआरपी की यह दखल दिन-प्रतिदिन प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अति संवेदनशील बनती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप चैनल अपनी-अपनी निज़ी लाभोपार्ज़न व सीमित मनोवृत्ति के आधार पर कार्यक्रम बना रहे हैं, ताकि उनकी टीआरपी न बिगड़े। एक अनुमान के मुताबिक 2020 तक विज्ञापन का कारोबार लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। मंडलोई, लीलाधर, इनसाइड लाइव, आधार प्रकाशन, पंचकूला, हरियाणा, 2006.  (इनसाइड लाइव, लीलाधर मंडलोई, पृ.-12)

6 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 28/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Dr. Gajendra Pratap Singh said...

यशवन्‍त माथुर जी मेरे आलेख को अपने नयी पुरानी हलचल पर प्रकाशित करने के लिए धन्‍यवाद

Bharat Bhushan said...

टीआरपी के लिए मीडिया कितना ऊलजुलूल हो जाता है, देखने लायक है. इस जानकारीपूर्ण आलेख के लिए आभार.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

गजेन्द्र जी,..
आपके इस आलेख को मैंने ध्यान से पढा
टी०आर०पी० विज्ञापन के बावत बहुत ही
सुंदर जानकारी दी,आभार,...
मेरे पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है,...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी जानकारी दी है ..

Manav Mehta 'मन' said...

सार्थक पोस्ट ...