रह-रहकर एक बात मन में कौंधती है कि आखिर मीडिया किस ओर जा रहा है. मीडिया जनता का पहरूआ था, हितैसी था. अब वो बात नहीं रही. ये पहरूआ अब उद्घोगप तियों के आगे दुम हिलाने लगा है और जनता को काटने. यह जो भी घटित हो रहा है सब टीआरपी की माया है. टीआरी जो न करा दें, मीडिया से. सब करने को तैयार है. किसी को नंगा तो किसी को पूरा नंगा करके दिखाना तो इसके लिए आम बात है. जनता भी क्या करें, जो पहरूआ था वो ही नंगा करने लगा है. अश्लीलता परोसने का काम तो इसके अन्द.र बखूब कूट-कूट कर भरा है या फिर भर दिया गया है,क्योंकि वर्तमान परिप्रेक्ष्या में अश्लीलता ही टीआरपी का पैमाना नाप रही है.
मीडिया द्वारा बार-बार दिखाये जाने वाली अश्लीलता के कारण, युवा पीढी अश्लीलता के माया जाल में इस कदर फंस चुकी है कि उससे निकलना मुश्किल ही नहीं न मुमकिन हैं. चारों तरफ अश्लीलता की मंडियां लगी हुई हैं, चाहे समाचार पत्र-पत्रिकायें, विज्ञापन, होडिंग, टीवी, न्यूज चैनल एवं इंटरनेट ही क्यों न हो. अश्लीलता बेचने का काम बखूबी हो रहा है. कहना न होगा कि मीडिया दलाल की भूमिका में आ चुका है. यदि कोई इस तरह परोसी जा रही अश्लीलता का विरोध करता है तो ये लोग साफ कहते हैं कि हमें वी यंग बनना चाहिए, किस तरह के ढर्रे में जी रहे हो, वी यंग बनों. क्योंकि हम जो बाजार में बिकता है वही दिखाते हैं.दिखाने के नाम पर जो जी में आता है दिखाते ही रहते हैं, आखिर 24 घंटे कैसे खबरें ही खबरें दिखा सकते है; क्योंकि टेलीविजन की शुरूआत तो मनोरंजन के लिए ही हुई थी.मीडिया के लिए मनोरंजन का मतलब मात्र-और-मात्र अश्लीलता को भिन्न-भिन्न एगलों से केसे डिफरेंट करके परोसा जाए, और व्यवसायियों से कैसे मौटी रकम बसूल कर सकें.
मीडिया ने तो अपने आप को अश्ली्लता के रंग में रंग लिया है.चारों तरफ युवा पीढी भी अश्लीरलता को अपना चुकी है. ये युवा पीढी मीडिया द्वारा परोसी जाने वाली अश्लील सामग्री को सही माने या गलत, इसके बाद भी युवा पीढी इसको अपना रही है. क्योंकि अश्लीलता में एक तरह का लगाव होता है जो युवा पीढी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है. इस आकर्षण को मीडिया ने भाप लिया है. और अश्लीलता को परोसने का काम शुरू कर दिया है. बिना की रोकटोक के. वैसे अश्लीलता को समाज में फैलने से रोकने के लिए धारा 292-294 तक में कानून बनाये गये हैं, कि कोई भी व्यक्ति अश्लीलता को प्रदर्शित नहीं करेगा, और न ही स्त्री के नग्न शरीर को या फिर स्त्रीं के किसी आपत्तिजनक छाया चित्रों को या फिल्म को नहीं दिखा सकेगा. यदि कोई ऐसा करता है तो वह सजा का भोगी होगा. और उसे कडी से कडी सजा दी जाएगी. इसके बावजूद भी सभी कानूनों को तांक पर रखते हुए परोसते रहते है अश्लीलता.
अश्ली्लता को रोकने के लिए बने कानून कहां तक संज्ञान में लाए जाते है समझ से परे है. क्योंकि समाचार पत्र हो या न्यूज चैनल सभी जगह अश्लीलता परोसी जा रही है और किसी के खिलाफ कोई कार्रवाही नहीं होती. इंटरनेट की बात को छोड दें. शायद इंटरनेट इस कानून के दायरे में नहीं आता.सारी मर्यादाओं को लांघकर ये भी अश्लीलता को उच्च स्तर पर परोसता रहता है.क्योंकि इनको भी अपना धंधा चलाना है.आज इंटरनेट पर लगभग 386 साइटें ऐसी है जिनमें मात्र अश्लीलता ही दिखाती है. इन सबकों ध्यान में रखते हुए हम कर सकते है कि मीडिया अब धंधा पत्रकारिता पर उतारू हो चुकी है. इक ऐसा धंधा, जिसमें मुनाफा ही मुनाफा हो हानि न हो. तभी तो टीआरपी और अपने वीवरसिपों को बढाने के लिए अश्लीलता को सभ्य समाज में फैलाने का काम मीडिया ही कर रहा है. और उसने एक नई पत्रकारिता को जन्म भी दे दिया है. ये पत्रकारिता, अश्लील पत्रकारिता या फिर धंधा पत्रकारिता हो सकती है.जिसमें सिर्फ-और-सिर्फ धंधा किस तरह से किया जाए और अश्लीलता को किस तरह से दिखाकर अपने चैनलों को लाभ पहुंचाया जाए. ताकि चैनल नम्बर वन की पदवी हासिल कर सकें.
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