सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को संसद ने 15 जून, 2005 को पास किया था, जिसे 12 अक्टूबर, 2005 को पारित किया गया. सरकार द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम 2005 को पारित करने का मुख्यि कारण समाज में व्याप्त हो चुकी भ्रष्टाचार, दलाली, गैर कानूनी ढंग से किया जाने वाला कार्य, गरीब जो अधिकारों से वंचित हैं आदि पर अंकुश लगाने के लिए किया गया. इस विधेयक के द्वारा कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है किसी भी सरकारी विभाग एवं सरकार द्वारा संचालित गैर-सरकारी विभागों से सूचना मांगने का अधिकार प्रदान करता है. सूचना प्राप्त करने के लिए निर्धारित शुल्क के रूप में 10 रू. का पोस्टल ऑर्डर, अगर आप अनुसूचति जाति/ जनजाति/ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार के सदस्य हैं तो निशुल्क. प्रदान की जाएगी. परन्तु इसके लिए इनके जाति प्रमाण पत्र या बीपीएल की छाया प्रति संग्लक करनी पडेगी. सूचना को राज्य में किसी भी भाषा में (भारत में बोली जाने वाली भाषा) मांगी जा सकती है, मांगी गई सूचना को हस्तलिखित या टाइप कराकर, स्वायं या डाक के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है. सूचना अधिकार अधिनियम विधेयक के नियमानुसार सूचना की आपूर्ति करने के लिए निम्न समय अवधि को लागू किया गया है जैसे-
• सामान्यक स्थिति में सूचना की आपूर्ति के लिए -30 दिन में.
• जब सूचना व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित हो, तब सूचना की आपूर्ति -48 घंटों में.
• जब आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के जरिये प्राप्त है वैसी स्थिति में सूचना की आपूर्ति को दोनों स्थितियों में 5 दिनों का समय जोडकर प्रदान की जाएगी.
ये सूचना अधिकार अधिनियम 2005 विधेयक की सामान्य कार्य प्रणाली है जिसको संक्षेप में व्यक्त् किया गया है. जिसको सरकार आसान, सहज, समयबद्ध और सस्ता माध्याम मान रही है उसकी जटिल प्रक्रिया पर विधेयक बनाते समय गौर नहीं किया गया. देखने में लगनी वाली आसान, कितनी जटिल और विलंम वाली है ये तो सूचना मांगने वाला ही आसानी से बता सकता है. कि सूचना मांगने पर उसे क्यां-क्या झेलना पडता है. इस जटिल प्रक्रिया को सामान्य व्यक्ति आसानी से नहीं झेल पाता तो सोचने वाली बात है कि गरीब व्यक्ति कैसे अपने अधिकारों की मांग कर सकने में सक्षम हो पता होगा.
सूचना मांगने की संपूर्ण प्रक्रिया पर गौर करें तो समझ में आ जाएगा कि क्या–क्या् होता है. सबसे पहले लिखित आवेदन, टाइप या हस्तलिखित यदि अनपढ है तो किसी का सहारा, इसके बाद 10 रूपये का पोस्टल ऑर्डर, यदि अनुसचित जाति/ जनजाति/ गरीबी रेखा से नीचे के सदस्य है तो शुल्क में छूट. इसके बाद जहां से सूचना मांगी जा रही है यदि वो नजदीक है तो ठीक नहीं तो, डाक के माध्यम से प्रेषित करना पडेगा, इसके लिए 25 रूपये डाक का खर्च. इस सब प्रक्रिया के बाद 30 दिनों का लंबा समय का इंतजार की सूचना मिल जाएगी. ऐसा भी नहीं है. 30 दिनों के भीतर सूचना नहीं मिलती तो 15 दिनों के भीतर एक पत्र प्रथम अपीलीय अधिकारी को प्रेषित करना होगा, जिसमें 25 रूपये का डाक खर्च लगेगा. इसके बाद भी सूचना मुहैया नहीं करायी जाती तो पुन एक पत्र 25 रूपये खर्च करके डाक के माध्यम से द्वतिय अपीलीय अधिकारी को प्रेषित करना पडेगा. इन सब प्रक्रिया के बाद भी सूचना मिलेगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता. संबंधित विभाग द्वारा सूचना प्रदान करा दी जाती है तो उसमें भी भ्रमित या सारी सूचना ही गलत प्रदान की जाती है. अब कहां जाए, रह जाता है राज्य/केन्द्र सूचना आयोग. अपनी समस्या के निस्तारण के लिए आपको राज्य/केन्द्र् सूचना आयोग में आवेदन करना होगा. इसको भी रजिस्टर्ड डाक से यानी के 25 रूपये का पुन खर्च करके प्रेषित करना होता है. वहां से कुछ समय के अंतराल में आपको आवेदन की समस्या के निस्तारण के लिए बुलाया जाता है, वहां पहुंचने में लगभग 100 से 200 रूपये खर्च हो जाते है ये खर्च दूरी के हिसाब से बढाता ही जाता है. पहली बार में ही निस्तारण हो जाए तो ठीक नहीं तो दुबारा आपको फिर बुलाया जाता है, लगभग उतना ही खर्च फिर हो जाता है. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद राज्य/केन्द्र सूचना आयोग संबंधित विभाग के अधिकारी को आदेश देते हैं कि शीघ्र-अति-शीघ्र उक्त व्यक्ति को सूचना प्रदान करें. नहीं तो नियमानुसार जुर्माना हो सकता है. तब जाकर सूचना प्राप्त् होती है.
सम्पूयण खर्चों और दिनों के विवरण पर नजर दौडायें तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आयेंगे-
आवेदन का खर्च 10 रू. पोस्टल ऑर्डर 30 दिन
डाक द्वारा प्रेषित करने पर 25 रू. डाक खर्च
प्रथम अपीलीय अधिकारी को पत्र 25 रू. डाक खर्च 15 दिन
द्तिया अपीलीय अधिकारी को पत्र 25 रू. डाक खर्च 07 दिन
केन्द्र/राज्य सूचना आयोग को पत्र 25 रू. डाक खर्च
प्रथम बार निस्तारण के लिए 100-200 रूपये (भाडा व्यय) 10 दिन (लगभग)
दुबारा निस्ता्रण के लिए 100 -200 रूपये (भाडा व्यय) 05 दिन (लगभग)
कुल 510 रूपये ( पेपर व्यय सम्मिलित नहीं है) 67 दिन (लगभग)
इसके बाद सूचना प्राप्त हो तो क्या फायदा ऐसी सूचना से. सामान्यं आदमी इस झमेले में पडने से बचता रहता है उसके पास पैसा तो है परन्तु समय का अभाव. वहीं गरीब जनता जिसके पास न तो समय होता है (क्यों कि दिन भर मेहनत-मजदूरी करके ही अपने परिवार के भरण-पोषण कर पाता है) और न ही इतना रूपया, कि वो सूचना आयोग के चक्कर लगा सके.
इससे एक बात तो साफ होती है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 कितना सहज, सरल और समयबद्ध है. यह केवल उच्चत वर्गीय समाज के लिए ही कारगर सिद्ध हो रहा है. आम जनता तो अपने अधिकारों की लडाई लड पाने में सक्षम नहीं हो पाते, फिर इतनी खचीर्ली और लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद सूचना हासिल कैसे कर सकते हैं, और क्यान फायदा ऐसे सूचना अधिकार का.
• सामान्यक स्थिति में सूचना की आपूर्ति के लिए -30 दिन में.
• जब सूचना व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित हो, तब सूचना की आपूर्ति -48 घंटों में.
• जब आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के जरिये प्राप्त है वैसी स्थिति में सूचना की आपूर्ति को दोनों स्थितियों में 5 दिनों का समय जोडकर प्रदान की जाएगी.
ये सूचना अधिकार अधिनियम 2005 विधेयक की सामान्य कार्य प्रणाली है जिसको संक्षेप में व्यक्त् किया गया है. जिसको सरकार आसान, सहज, समयबद्ध और सस्ता माध्याम मान रही है उसकी जटिल प्रक्रिया पर विधेयक बनाते समय गौर नहीं किया गया. देखने में लगनी वाली आसान, कितनी जटिल और विलंम वाली है ये तो सूचना मांगने वाला ही आसानी से बता सकता है. कि सूचना मांगने पर उसे क्यां-क्या झेलना पडता है. इस जटिल प्रक्रिया को सामान्य व्यक्ति आसानी से नहीं झेल पाता तो सोचने वाली बात है कि गरीब व्यक्ति कैसे अपने अधिकारों की मांग कर सकने में सक्षम हो पता होगा.
सूचना मांगने की संपूर्ण प्रक्रिया पर गौर करें तो समझ में आ जाएगा कि क्या–क्या् होता है. सबसे पहले लिखित आवेदन, टाइप या हस्तलिखित यदि अनपढ है तो किसी का सहारा, इसके बाद 10 रूपये का पोस्टल ऑर्डर, यदि अनुसचित जाति/ जनजाति/ गरीबी रेखा से नीचे के सदस्य है तो शुल्क में छूट. इसके बाद जहां से सूचना मांगी जा रही है यदि वो नजदीक है तो ठीक नहीं तो, डाक के माध्यम से प्रेषित करना पडेगा, इसके लिए 25 रूपये डाक का खर्च. इस सब प्रक्रिया के बाद 30 दिनों का लंबा समय का इंतजार की सूचना मिल जाएगी. ऐसा भी नहीं है. 30 दिनों के भीतर सूचना नहीं मिलती तो 15 दिनों के भीतर एक पत्र प्रथम अपीलीय अधिकारी को प्रेषित करना होगा, जिसमें 25 रूपये का डाक खर्च लगेगा. इसके बाद भी सूचना मुहैया नहीं करायी जाती तो पुन एक पत्र 25 रूपये खर्च करके डाक के माध्यम से द्वतिय अपीलीय अधिकारी को प्रेषित करना पडेगा. इन सब प्रक्रिया के बाद भी सूचना मिलेगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता. संबंधित विभाग द्वारा सूचना प्रदान करा दी जाती है तो उसमें भी भ्रमित या सारी सूचना ही गलत प्रदान की जाती है. अब कहां जाए, रह जाता है राज्य/केन्द्र सूचना आयोग. अपनी समस्या के निस्तारण के लिए आपको राज्य/केन्द्र् सूचना आयोग में आवेदन करना होगा. इसको भी रजिस्टर्ड डाक से यानी के 25 रूपये का पुन खर्च करके प्रेषित करना होता है. वहां से कुछ समय के अंतराल में आपको आवेदन की समस्या के निस्तारण के लिए बुलाया जाता है, वहां पहुंचने में लगभग 100 से 200 रूपये खर्च हो जाते है ये खर्च दूरी के हिसाब से बढाता ही जाता है. पहली बार में ही निस्तारण हो जाए तो ठीक नहीं तो दुबारा आपको फिर बुलाया जाता है, लगभग उतना ही खर्च फिर हो जाता है. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद राज्य/केन्द्र सूचना आयोग संबंधित विभाग के अधिकारी को आदेश देते हैं कि शीघ्र-अति-शीघ्र उक्त व्यक्ति को सूचना प्रदान करें. नहीं तो नियमानुसार जुर्माना हो सकता है. तब जाकर सूचना प्राप्त् होती है.
सम्पूयण खर्चों और दिनों के विवरण पर नजर दौडायें तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आयेंगे-
आवेदन का खर्च 10 रू. पोस्टल ऑर्डर 30 दिन
डाक द्वारा प्रेषित करने पर 25 रू. डाक खर्च
प्रथम अपीलीय अधिकारी को पत्र 25 रू. डाक खर्च 15 दिन
द्तिया अपीलीय अधिकारी को पत्र 25 रू. डाक खर्च 07 दिन
केन्द्र/राज्य सूचना आयोग को पत्र 25 रू. डाक खर्च
प्रथम बार निस्तारण के लिए 100-200 रूपये (भाडा व्यय) 10 दिन (लगभग)
दुबारा निस्ता्रण के लिए 100 -200 रूपये (भाडा व्यय) 05 दिन (लगभग)
कुल 510 रूपये ( पेपर व्यय सम्मिलित नहीं है) 67 दिन (लगभग)
इसके बाद सूचना प्राप्त हो तो क्या फायदा ऐसी सूचना से. सामान्यं आदमी इस झमेले में पडने से बचता रहता है उसके पास पैसा तो है परन्तु समय का अभाव. वहीं गरीब जनता जिसके पास न तो समय होता है (क्यों कि दिन भर मेहनत-मजदूरी करके ही अपने परिवार के भरण-पोषण कर पाता है) और न ही इतना रूपया, कि वो सूचना आयोग के चक्कर लगा सके.
इससे एक बात तो साफ होती है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 कितना सहज, सरल और समयबद्ध है. यह केवल उच्चत वर्गीय समाज के लिए ही कारगर सिद्ध हो रहा है. आम जनता तो अपने अधिकारों की लडाई लड पाने में सक्षम नहीं हो पाते, फिर इतनी खचीर्ली और लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद सूचना हासिल कैसे कर सकते हैं, और क्यान फायदा ऐसे सूचना अधिकार का.
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