आधार कार्ड, जियो सिम और नोटबंदी का त्रिकोणीय संबंध
आधार कार्ड भारत
सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को जारी किया जाने वाला
पहचान पत्र है। इसकी स्थापना 28 जनवरी, 2009 को एक अधिसूचना
के द्वारा योजना आयोग के संबद्ध कार्यालय के रूप में 115
अधिकारियों और स्टाफ की कोर टीम के साथ की गई। वही जियो मुकेश
अंबानी की कंपनी जिसका पूरा नाम (रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड,
RJIL) है। इसकी शुरूआत 27 दिसंबर, 2015 धीरूभाई
अंबानी के 83वें जन्म दिवस के अवसर पर की थी। रिलायंस जियो ने 4 सितंबर, 2016 सोमवार से सभी यूजर के लिए इसे लॉच कर दिया। और
वेलकम ऑफर के साथ जियो कंपनी ने सभी यूजरों को 31 दिसंबर
2016
तक जियो की सर्विस को पूरी तरह से मुफ्त दिया। जिस बढ़कार 31 मार्च, 2017 कर दिया गया था। मुफ्त में सिम और कॉलिंग मिलने के एवज में हर छोटे-बड़े राज्यों में मारामारी देखी गई। इस सिम को पाने के लिए उपभोक्ता को
आधार कार्ड की छायाप्रति लगानी अनिवार्य थी।
अब
बात करते हैं नोटबंदी की, तो भारत के 500 और
1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण, जिसे
मीडिया ने छोटे रूप में नोटबंदी कहा, जिसकी घोषणा 8 नवबंर 2016
को रात आठ बजे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक राष्ट्र को किए गए संबोधन के द्वारा की गयी। यह
संबोधन टीवी के द्वारा किया गया। इस घोषणा में 8 नवबंर की
आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपये
के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया। हालांकि
भारतीय इतिहास में यह पहली बार नोटबंदी नहीं हुई है इससे पहले भी दो बार नोटबंदी
हो चुकी है। अगर इसके इतिहास में जाए तो जनवरी 1946
में, 1000 और 10,000 रुपए
के नोटों को वापस ले लिया गया था और 1000, 5000 और 10,000
रुपए के नए नोट 1954 में पुनः शुरू किये गए
थे। 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने फिर से 1000,
5000 और 10,000 रुपए के नोटों का विमुद्रिकरण
किया था ताकि जालसाजी और काले धन पर अंकुश लगाया जा सके।
सरकार
ने कहा कि आप बैंकों
से अपने पुराने नोट 30
दिसबंर, 2016 तक बदल
सकते हैं। एक बार में आप 4000 रूपए तक बैंक से बदल सकते हैं।
नोटों को बदलने के लिए आपको आधार कार्ड की एक फोटो कॉपी तथा एक फॉर्म भरने के
उपरांत आपके पुराने नोट बदले गए। नोट बदलने की तारीख को 30
दिसबंर, 2016 से बढ़ाकर 31 मार्च 2017 तक कर दिया गया था।
अब आते हैं मूल मुद्दे पर..... एक तरफ
मुकेश अंबानी की जियो जो मुफ्त में अपनी सेवाएं दे रही थी जिसके लिए आपको आधार
कार्ड की जरूरत थी, वहीं नोट बदलने के लिए भी आधार कार्ड जरूरी था। एक तरफ जियो के लिए लोग
लाइनों में लगे देखे गए, वहीं दूसरी ओर अपने पुराने नोटों को
बदलने के लिए भी पूरा देश लाईन में लगा दिखाई दिया। अब इसको इत्तेफाक कहें यह एक
सोची समझी साजिश कि दोनों की तिथियों एक ही थी.......जियो ने पहले 31 दिसंबर, 2016 तक अपनी सेवाएं मुफ्त में दी। वहीं नोटों का पहले बदलने की तिथि 30
दिसंबर, 2016 ही थी। जियो ने इसे बढ़कार
31 मार्च, 2017 कर दिया गया तो भारत सरकार ने भी नोटों को बदलने की तिथि भी 30
दिसंबर से बढ़ाकर 31 मार्च, 2017 तक कर दी थी।
मुझे
तो यह बहुत ही बड़ा आधार कार्ड घोटाला नजर आता है कि तत्कालीन सरकार द्वारा काला
धन का हावाला देते हुए 500 और 1000 रूपए के नोट बंद किया गए थे और यह भी कहा गया
था कि नोटबंदी से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा। ना तो काला धन नजर आया और न ही
आतंकवाद खत्म हुआ। फिर नोटबंदी का फायदा आखिर हुआ क्या.... हुआ बहुत फायदा हुआ..
हम और आपको नहीं बल्कि मुकेश अंबानी को....
क्योंकि सरकार ने कहा कि आप एक दिन में 4000 रूपए आधार कार्ड लगाकर कर बदल
सकते हैं वहीं जियो ने सिम के एवज में लोगों से आधार कार्ड एकृत्रित किए। मुकेश
अंबानी ने स्वयं कहा था कि 31 मार्च, 2017 तक 15
करोड़ लोग जियो का इस्तेमाल करने लगे हैं।
अब
आते है गणीतीय सिद्धांत पर तो ज्ञात होता है कि एक आधार कार्ड पर आप 4000 रूपए बदल
सकते थे तो 15 करोड़ आधार कार्ड यानि 15 करोड़ x 4000
= 600000000000 रूपए काला
धन सफेद हो गया। सरकार द्वारा लागू नोटबंदी से मुकेश अंबानी ने अपना सारा काला धन
सफेद कर लिया। और आम जनता मुफ्त मे सिम पाने के लिए और अपने नोट बदलने के लिए
लाइनों में खड़ी रही। दूसरी तरफ अंदर ही अंदर खेल होता रहा। इस खेल की पृष्ठभूमि
की स्किप्ट एक दिन में नहीं लिखी गई होगी। काफी गुणा गणित कर इसे तैयार किया गया
होगा। तब जाकर मुकेश अंबानी जैसे खरबपतियों का पैसा सफेद हो गया। क्योंकि देखा
गया था कि बैंक किसी और के आधार कार्ड पर रूपया नहीं बदल रही थी। तो मुकेश अंबानी
जैसे लोगों का पैसा कैसे बदल गया जबकि एक दिन में मात्र 4000 रूपए ही बदल सकते थे।
और 250000 रूपए के पुराने नोट ही जमा कर सकते थे। तो अंबानी जैसे लोग लाइनों तो
खड़े नजर नहीं आए। फिर इनका पुराने रूपया कहां से और कैसे बदला गया सोचने वाली बात
है। इसके साथ-साथ आप इस बात पर भी गौर कीजिए कि 31 मार्च, 2017 तक जियो कंपनी ने सिम देने के लिए आधार की फोटो कॉपी ली फिर बाद में
ऑन लाइन वैरिफीकेशन करवाया गया। इस खेल में सरकार और रिर्जब बैंक का किरदार मुख्य
भूमिका में है। यदि और अंदर धुसा जाए तो रघुराम राजन को 4 सितंबर, 2016 को इस्तीफा दिलाकर 5 सितंबर, 2016 को उर्चित
पटेल (अंबानी के रिश्तेदार) को भारतीय रिर्जब बैंक का गर्वनर नियुक्त किया गया।
इस
आधार कार्ड, जियो सिम और नोट बंदी का त्रिकणम वाकई
चाणक्य बुद्धि की देन रहा है। बस आप आंकड़ों और तारीखों पर गौर कीजिए आप खुद ब
खुद समझ जाएंगे कि सरकार और रिर्जब बैंक की मिलीभगत द्वारा किस-किस का रूपया काला
से सफेद हुआ है और जनता तो है ही उल्लू... खड़ी हो गई लाइन में। सही बात है यह
भारत है यहां मुफ्त में गू (पैकिंग कर) (लेवल लगाकर) मिलने लगे तो लोग उसके लिए भी
लाइन में खड़े हो जाएंगे क्योंकि मुफ्त की आदत हो गई है।
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