सरोकार की मीडिया

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Thursday, February 14, 2019

सप्‍ताह भर की मोहब्‍बतें.....


सप्‍ताह भर की मोहब्‍बतें.....
सभी को प्रेम दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं..... आशा है आप सभी का प्रेम सप्‍ताह अच्‍छी तरह गुजरा होगा....क्‍या यह आपका प्रेम का हफ्ता था या फिर सिर्फ हफ्ते भर का प्रेम था। खैर इस प्रेम दिवस (पश्चिमी सभ्‍यता की चासनी में डुबा हुआ) के उपलक्ष्‍य पर नए प्रेमी-प्रेमिकाओं की उत्‍पत्ति हुई होगी, वहीं पुराने प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम में असीमित बढ़ोत्‍तरी हुई होगी...... ऐसा महौल देखकर प्रतीत होता नहीं... वहीं कुछ लोगों के दिल (बिना हड्डी वाला) टूटा भी होगा और कुछ प्रेमी-प्रेमिकाओं की शादी (किसी और से) हो चुकी होगी। अन्‍य से विवाह का कारण तरह-तरह की बंदिंशें, जाति, धर्म, परिजनों का न मानना आदि बहाने ....यह सब जब भी प्रेमी-प्रेमिकाओं को आपस में शादी करने की बात आती है तब ही उत्‍पन्‍न होते हैं, प्रेम के नाम पर नहीं.... प्रेम के नाम पर न तो ऊंच-नीच देखी जाती है, न ही जाति-धर्म.... यह हर बंदिंशों से परे होता है। ऐसा कहा जा सकता है, परंतु इसके पीछे की पृष्‍ठभूमि से सभी भली-भांति परिचित होते हैं। परंतु अंजान बनने, या अंजान बने रहने का दिखावा करते रहते हैं। दिखावे-सा ही तो हो गया है आज का प्‍यार..... जानू, बेबी, सोना, जान, लव यू... लव यू कहते रहो (झूठा ही सही, पल भर के लिए प्‍यार तो करो) तो समझों आप प्‍यार करते हैं, अपनी प्रेमी-प्रेमिकाओं की नजरों में.... और आज के प्रेम से कौन-सा शख्‍स परिचित नहीं है कि यह सिर्फ-सिर्फ किसकी पूर्ति हेतु किया जा रहा है.... पूर्ति हुई नहीं कि प्रेम गंधे के सिर से सींग की भांति गायब हो जाता है। इसके  बाद भी प्रेम, प्‍यार, लव, चाहत, मोहब्‍बत आदि का दिखावा करना पड़ता है ताकि पूर्ति होती रहे।  और जब ....खत्म हो जाता है इश्क़ जिस्मों का.... फिर लोग तोहफे को सड़कों पर यूँ ही  छोड़ जाते है। या फिर आप सभी जानते हैं कि क्‍या-क्‍या होता है। कहने की जरूरत नहीं है। इसे सिर्फ समझा जा सकता है।
हालांकि आंकड़ों से प्रेम को नापा जाए तो 97 प्रतिशत मामलों में पूर्ति के उपरांत प्रेम नदारत हो जाता है। और उनके बीच इसके कुछ समय सीमा तक ही प्रेम संबंध बने रहते हैं फिर वह किसी न किसी कारण को बता कर एक-दूसरे से किनार कर लेते हैं। हां मात्र 3 प्रतिशत ही लोगों अपने प्रेम को कोई नाम दे पाते हैं। वहीं इन 3 प्रतिशत लोगों में वो लोग भी शामिल हो जाते हैं जो प्रेम को नाम देने के उपरांत अपने जीवन साथी से तालुकात ही नहीं रखना चाहते... और वह विवाह-विच्‍छेद कर दूसरे के साथ प्रेम में बंध जाते हैं। सोचने वाली बात है कि अब आपका प्रेम कहां नदारत हो गया। देखा तो यहां तक गया है कि एक प्रेमी-प्रेमिकाओं के न जाने कितने लोगों से प्रेम संबंध होते हैं, यह कौन-सा प्रेम होता है समझ से परे हैं.....शायद पश्चिमी सभ्‍यता से और कुछ नहीं बस यही सीखा गया है। हालांकि जितना मुझे समझ आता है यह सब मांग और पूर्ति का खेल है (इक्‍नोमिक्‍स में पढ़ा था)। जहां जितनी मांग होती है पूर्ति होने की संभावनाएं उतनी ही प्रबल होने लगती है। चाहे कैसे भी और किसी से भी। ।
अब बहुत सारे लोग यह कह सकते हैं कि मेरा प्रेम तो सच्‍चा है....आप हमारे प्रेम पर तोहमत लगा रहे हैं, तो सच्‍चे होने की कोई परिभाषा नहीं होती..... अपने गिरवाने में एक बार जरूर झांक कर देखिए कि कभी आपने अपने प्रेमी-प्रेमिका के इतर किस अन्‍य को उस नजर से नहीं देखा, तो वास्‍तविकता से स्‍वयं परिचित हो जाएंगे। क्‍योंकि इंसान दूसरों पर झूठ का पर्दा डाल सकता है परंतु खुद को धोखें में ज्‍यादा देर तक नहीं रख सकता।  
वैसे भी झूठ का पर्दा ज्‍यादा दिनों तक नहीं ठहरता। चाहे आपे कसमें खा लीजिए, वादे कर लीजिए... झूठ एक-न-एक दिन झाड बनकर आपके समक्ष परिलक्षित जरूर हो जाएगा। अगर प्रेम सिर्फ शादी के बंधन में बंधना मात्र है तो शादी से पहले और बाद के अपने-अपने रिश्‍तों को (जिन पर राख चढ़ा रखी है) गौर जरूर फरमाइएगा.... शायद अतीत के रिश्‍तों की आग आज भी धधक रही होगी। जिस चाह कर भी आप आज तक बुझा नहीं पाएं हैं। .. तो साथी को भम्रित कर, झूठ बोल सकते हैं कि नहीं मेरा आपके पहले किसी और से कोई रिश्‍ता नहीं था... विश्‍वास रखने वाला मान लेता है, परंतु सभी को ज्ञात है कि ऐसा कोई पेड़ नहीं जिसको हवा नहीं लगी हो। वैसे इसमें बुराई क्‍या है, लगनी भी चाहिए... जरूरत और मांग जो है... परंतु इसमें छुपाने वाली बात भी नहीं होनी चाहिए.... किया है तो खुलकर स्‍वीकार करें....यदि आपका साथी वास्‍तव में आपसे प्‍यार करता है तो स्‍वीकार करेगा.... नहीं तो अपने अतीत में उड़ाए गुर्लछारे आपके जीवन को छलनी जरूर कर देंगे... फिर आप सोच रहे हैं छुपाना चाहिए.... पर कब तक... राज को राज रहने दो...... परंतु भेद तो आज नहीं कल खुल ही जाएगा....फिर क्‍या मुंह दिखाया जाएगा... इसका परिणाम सिर्फ और सिर्फ विच्‍छेद होता है.... आप अपने रास्‍ते हम अपने रास्‍ते। अब सारी की सारी मोहब्‍बत चुल्‍हें में चली जाती है और रह जाती है प्रेम की राख मात्र।
मैं प्रेम का विरोध नहीं कर रहा हूं... मात्र यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि प्रेम हर बंधनों से परे होता है.... और एक प्रेम दुबारा नहीं होता......जिनको प्रेम दुबारा हो जाता है, उनका प्रेम प्रेम नहीं रहता.. मात्र जरूरत होता है, आज इससे कल उससे.....खैर सभी समझदार हैं जो प्रेम में चाहे, वह कर सकते हैं... बस अपने वर्तमान और भविष्‍य को मददेनजर रखते हुए..... एक बार पुन: सभी को हफ्ते भर का प्रेम दिवस मुबारक....

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