क्यों हत्या करते हो अपने
देवी/देवताओं की....
गणेश चतुर्थी के पहले घर-घर जाकर चंदा
इकट्ठा, फिर गणेश जी की जगह-जगह, गली कुचों में स्थापना (चंद दिनों के लिए) जिसको देखकर लगता है कि हम
किस एकता की बात करते हैं। जब भगवान की स्थापना में ही एकता दिखाई नहीं देती तो
फिर इंसानियत में एकता कहां से दिखाई देगी। खौर स्थापना के चंद दिनों के बाद फिर
ढोल-नगाड़ों के साथ गणेश विसर्जन.... और बाद में
बचे हुए पैसे से या तो पार्टी या फिर बंटवार...ऐसा आने वाले नवरात्रि में
भी होगा...वैसे मूर्ति चंद दिनों के लिए रखने का आखिर कारण क्या है, क्यों नहीं सदैव के लिए (जहां जिसकी इच्छा हो) एक मूर्ति रख दी जाए और
उसकी ही पूजा-अर्चना की जाए.... आप लोग मूर्तियां लाते तो बड़े शौक से है, पूजा-अर्चना भी बड़े मन लगाकर करते हैं और फिर बाद में नदी, तलाबों में फेंक आते है। आखिर जानने की कोशिश की कभी किसने की जिस देवता/देवी की प्रतिमा की पूजा-अर्चना करने के उपरांत विसर्जन कर दिया था उस
मूर्ति का आखिर क्या हश्र होता है... विसर्जन के बाद कभी सुबह देखकर आए तो पता चल
जाएगा कि आखिर बड़ी श्रद्धा के साथ जिनको लाए थे उसने साथ क्या किया हमने.... वो मूर्तियां
आपको कहीं सिर, कहीं हाथ, कहीं पैर में
विभक्त दिखाई देती मिल जाएगी….. देखिए आपने अपने देवी/देवता
के साथ क्या किया.... उनका अपमनान किया, उनकी हत्या कर दी.....साथ
ही जल को प्रदूषित किया वो तो अलग की बात है, क्योंकि श्रद्धा
और धर्म के नाम पर जब इंसान का कत्ल किया जा सकता है तो जल को दूषित करना कौन सी बड़ी
बात है। खैर मेरे कहना मात्र इतना है कि यदि
भगवान के प्रति आपकी आस्था है तो बहुत अच्छी बात है पर अपने ही भगवान की इस प्रकार
हत्या तो न करें, जिसको देखने के बाद स्वत: ही लगे की यह हमने
क्या कर दिया.....तो मूर्ति को लाए और उसे हमेशा के लिए अपने पास रखें, ताकि उनके साथ यह हश्र न होने पाए...... बाकि तो आप सब समझदार है.....
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