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Thursday, January 26, 2017

अम्बेडकर को कभी खारिज़ नहीं किया जा सकता

अम्बेडकर को कभी खारिज़ नहीं किया जा सकता


संवेदना और स्वयंवेदना में अंतर होता है। आप ठीक वो नहीं महसूस कर सकते हैं जो कोई और महसूस कर रहा है। स्वयंवेदना को संवेदना के बरक्स रखने का दावा दरअसल बिलकुल खोखला है। आप सिर्फ सुनकर, समझकर और गुनकर अंदाज़ा लगाते हुए कहतें हैं कि मैं समझ सकता/सकती हूँ। मसलन एक गर्भवती महिला कैसे महसूस करती है, क्या सहन करती है वो एक महिला ही समझ सकती है वो भी वैसी महिला जो खुद उस स्थति से गुज़र रही है या गुज़र चुकी है। जैसे एक अल्पसंख्यक की मुश्किलें बहुसंख्यक बिल्कुल वैसे ही नहीं समझ सकता जो कोई अल्पसंख्यक फ़ेस करता है। जैसे एक दलित महिला/पुरुष की तकलीफें, रोज़ाना होने वाला भेदभाव, उनके प्रति सामजिक व्यवहार और नज़रिया प्रेक्टिसेस को एक्जैक्ट एक सवर्ण नहीं समझ सकता। संवेदनशीलता होना मनुष्य होने की अनिवार्य शर्त समझती हूँ मैं। संवेदनशील होकर आप स्वयंवेदना को नकार नहीं सकते। यदि आप ऐसे कर रहें हैं तो झाँकिये खुद में ही कि कहीं खुद के छिप जाने या इम्पोर्टेंस कम होने की कुंठा तो नहीं है ना। अपने आप को अलग़-अलग़ तरीक़े से बनाये रखने, अपनी इम्पोर्टेंस बनाये रखने के लिए दूसरे प्रश्नों को गौण नहीं बना सकते आप। ये साफ़तौर पर उन प्रश्नों को नकारने का प्रपंच दिखता है, जो भारतीय समाज में प्राथमिक हैं।
इनदिनों कुछ मार्क्सवादियों ने खुले रूप में बाबासाहेब आंबेडकर और अम्बेडकरवादियों को गरियाने का ठेका ले रखा है। इन्हें बाबासाहेब अम्बेडकर से दिक़्क़त है, अम्बेडकरवादियों से दिक़्क़त है, संविधान से दिक़्क़त है, लोकतंत्र से दिक़्क़त, गणतंत्र से दिक़्क़त है। इन्हें लगता है कि सूट-बूट पहने अम्बेडकर दलितों के प्रतिनिधि नहीं हो सकते। तो भाई नुमाइंदगी कौन करेगा?...... तो नुमाइंदगी मार्क्सवादी करेंगे। वही लोग जो प्राचीन काल में शास्त्र पढ़ाते थे और अब कार्लमार्क्स पढ़ाते हैं। जो बहुत होशियारी से वर्ग की बात करके वर्ण की बात छुपा जाते हैं। जाति का मुद्दा इनके लिए नहीं है ना। अब सोचिये कोई पांडे, त्यागी, उपाध्याय, सिंह,राय, चटर्जी, मुख़र्जी को क्या जातिवाद का सामना करना पड़ता है? क्यों आपके लिए जाति मुद्दा होगा? सिर्फ़ आपके सरनेम के कारण समाज आपके साथ कैसे व्यवहार करता है और हमारे साथ कैसे व्यवहार करता है जानते हैं आप भी। ये कह रहें हैं कि आंबेडकर और अम्बेडकरवादियों ने ही इनकी क्रांति का मार्ग अवरुद्ध कर रखा है। वाह जनाब! बहुत बढ़िया, आप ख़ारिज करने की कोशिश करोगे अम्बेडकर को क्योंकि अम्बेडकर सिर्फ़ दक्षिणपंथियों के लिए गले की हड्डी नहीं है , मार्क्सवादियों के लिए भी है। लगते होंगे आपको अम्बेडकरवादी पूंजीवाद के प्रतिनिधि इसके लिए आपकी समझ और व्यवहार पर मुझे सहानुभूति है। अगर मुठ्ठी भर दलितों की हालत सुधरने से आपको लगता है कि दलित पूंजीवादी हैं तो यह उनके समझ के मसले से ज़्यादा यह तकलीफ़ का मसला दिखता है। सशक्त हो गये और हो रहे दलितों को भी जातिवाद का सामना करना पड़ता है, यह आप समझ भी नहीं पाओगे क्योंकि चोटीधारी होने की प्रिविलेज़ आपको मिल सकती है पर एक दलित व्यक्ति को नहीं है। ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद करते हुए आप जाति के प्रश्न को वर्ग का मुद्दा बनाकर छुपातें हैं, आप भुगतते नहीं हैं ना इसलिए जाति का प्रश्न आपके लिए नहीं होगा हमारे लिए है। कास्टलेस, जेंडरलेस, रिलीजनलेस ऐसे ही नहीं हो जायेगा, देखिये अपनी ही प्रेक्टिसेस को। जेएनयू में इंटरव्यू के मुद्दे पर धारण किया मौन और उसके पीछे की पॉलिटिक्स, पश्चिम बंगाल का क़त्लेआम भूला नहीं जायेगा, किसी लेफ़्टपार्टी में कितने दलित-आदिवासी-पिछडों को पद दिए गए हैं, आदिवासी नहीं पिस रहें हैं क्या नक्सलवाद की आड़ में, मार्क्स को जप-जप कर भी अपनी ही जाति में शादी करते वक़्त सारी क्रांति हवा हो जाती है। दलित मुद्दों पर अपर कास्ट सवर्ण बात करेंगे वाह! दलित डिस्कोर्स से एक व्यक्ति नहीं मिलता ऑक्सफ़र्ड के सेमिनार में बात रखने के लिए। क्यों भाई सारी योग्यता अपर कास्ट सवर्णों में ही है क्या ? जाति का मुंह देखकर व्यवहार करने वाले समाज में देखिये मीडिया कवर कन्हैया को मिलता है, कवर न दिलीप को मिला न राहुल सोनपिम्पले को। जेएनयू में इंटरव्यू को सिलेक्शन का मापदंड बनाने के ख़िलाफ़ चल रहे अनशन को रवीश कुमार पांडे जातिगत भेदभाव की बजाय भाषा का मुद्दा बता देतें हैं, क्या ये वाक़ई भाषा का मुद्दा है? अपर कास्ट के राइटरों और लेफ्टिस्टों को जिस तरह हाथोंहाथ लिया जाता है, वैसे बहुजनों को नहीं। इसलिए आप नहीं बोलोगे ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़, आप नहीं कहोगे कि जाति मुद्दा है, आप नहीं कहोगे की आप खुद भी जातिवादी हो .......तो चिल्लाते रहो। खोखली क्रांति आपको मुबारक़। अब मार्क्स का भक़्त ब्राह्मण तो कम से कम यह नहीं बताएगा कि हमारा प्रतिनिधि कौन होगा। अम्बेडकर को कभी खारिज़ नहीं किया जा सकता। अंबेडकर व्यक्ति नहीं है विचारधारा है। इंसानों के रूप में कंसीडर किये जातें हैं अब हम।

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