एक लीला ऐसी भी
(राधा और कृष्ण का प्रेम ...जहाँ एक ओर राधा अपने
प्रेम भावनाओं में बह रही हैं ...अपने मन के भाव को कृष्ण के साथ बाँट रही
है...वहीँ दूसरी ओर वो अपने मन और कृष्ण को ये समझाने में असमर्थ है कि वोउ नके
जाने पर कितनी दुखी है ...प्रेम और जुदाई के भाव को लेकर लिखी गई रचना )
(प्रेम के भाव )
मंद मंद समीर की
सूर्योदय बेला में
शीतल स्पर्श से तुम्हारे
पुलकित है मन मेरा |
मधुर भरी रजनी की
अलसायी आँखों में
सुरभित झोंकों से
गुंजित है बांसुरी-वंदन
तुम्हार |
वायु के मृदु अंक में
खिली हर कली कली
मधुर संगीत की धुन पर
भ्रमर, ये अंग अंग मेरा |
खुले आकाश तले
तुम्हारी ,हथेलियों पर रख कर
सर अपना
झूमती हूँ मैं पल पल ||
(और जुदाई के वक्त )
कैसे कहूँ अब तुम से
विचलित हूँ जाने से
तुम्हारे ,
झुलस जाऊँगी विरह
कुछ किरण,कुछ धूप
कुछ पकड़ में आने लायक
तुम्हारा ये छलिया रूप
कुछ मंद ,कुछ तेज
यह संगम कैसे समझाऊं
मैं |
तुम्हारे प्रेम की अग्नि में
तप गई मैं प्रेम दीवानी
किसको अब दिखलाऊं मैं |
भस्म हुई फिरती हूँ,
कैसे तुम्हें समझाऊं मैं |
हे प्रभु ! क्यों इतना
स्नेह बरसाते हो
कि मन भ्रमित हो जाता
है और
फिर,रिमझिम नैना बरसते हैं |
माना,मैंने
एक दृष्टि तुम्हारी
हर लेती है हर पीड़ा
मेरी
क्यों अब इन नैनो को
उम्र भर ...राह ताकने
की
सजा दिए जाते हो |
जितनी भीगी प्रेम में तुम्हारी
उतना ही अब शुष्क किए
जाते हो
होठों पर कैसे लाऊं
करुण पुकार मैं अपनी
उम्र भर का इंतज़ार, अब तुम्हारा
क्यों मुझे दिए जाते हो ?
कैसे बतलाऊं तुम्हें ,
न दिन,न रात
साँझ की बेला में घटी
ये बात
तुम्हारी ये निशब्द सी
लीला
और उम्र भर का वियोग
तुम्हारा
मुझे असहनीय पीड़ा दिए
जाता है
कैसे कहूँ अब तुम से कि
विचलित हूँ तुम्हारे
जाने से
कैसे कहूँ अब तुम से कि
विचलित हूँ तुम्हारे
जाने से ||
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