सरोकार की मीडिया

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Friday, May 8, 2015

गुल्लक

गुल्लक 

गुल्लक कुछ यादों की 
कुछ बातों की 
गुल्लक याद दिलाती है  
बचपन की

गुल्लक 
जो अहसास है 
उस वक़्त का जब 
अपने बुजुर्ग

जेब की रेजगारी 
उस में डाल दिया करते थे 
आज ना वो बुजुर्ग है और ना ही 
वो रेजगारी 

गुल्लक 
जो अहसास है 
मेरी उन यादों का 
जिस में कभी खुशी के पल 

तो कभी उदासी डालती थी  
कभी पैसे की कमी 
तो कभी आभाव की बातें 
डाला करती थी 

कभी बसंत के रंग 
तो कभी होली की हुड़दंग 
कभी कंजकों की जोड़-तोड़ 
कभी राखी के धागो का बंधन 
तो कभी दीवाली की खुशी 
सभी हिस्सा है मेरी 
गुल्लक का 

पहली गुल्लक 
मिट्टी की 
जो, मन की हर छोटी छोटी इच्छा पर
टूट जाती थी 
दूसरी गुल्लक 
वो चाबी वाली 
जिसकी चाबी 
कभी माँ तो कभी भाई के 

हाथो में रहती थी 
और वक़्त पड़ने पर
जुगाड़ पॉलिसी ही काम आती थी 

और ये तीसरी गुल्लक 
एक सफ़ेद चादर सी 
मेरी यादों की 
जहां सिर्फ 
मेरा ही आवागमन है 
यहाँ जीवन है 

बारिश की बूंदों सा 
जीवन के रंगो की 

खूबसूरती का 
उसकी लय-ताल का 
मेरी हर खुशी का 
और मेरी हर मुस्कान का 

जो कैद है 
मेरी इस गुल्लक में |

                                     सभार--  अंजु चौधरी अनु 


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