गुल्लक
गुल्लक कुछ यादों की
कुछ बातों की
गुल्लक याद दिलाती है
बचपन की
गुल्लक
जो अहसास है
उस वक़्त का जब
अपने बुजुर्ग,
जेब की रेजगारी
उस में डाल दिया करते थे
आज ना वो बुजुर्ग है और ना ही
वो रेजगारी
गुल्लक
जो अहसास है
मेरी उन यादों का
जिस में कभी खुशी के पल
तो कभी उदासी डालती थी
कभी पैसे की कमी
तो कभी आभाव की बातें
डाला करती थी
कभी बसंत के रंग
तो कभी होली की हुड़दंग
कभी कंजकों की जोड़-तोड़
कभी राखी के धागो का बंधन
तो कभी दीवाली की खुशी
सभी हिस्सा है मेरी
गुल्लक का
पहली गुल्लक
मिट्टी की
जो, मन की हर छोटी छोटी इच्छा पर
टूट जाती थी
दूसरी गुल्लक
वो चाबी वाली
जिसकी चाबी
कभी माँ तो कभी भाई के
हाथो में रहती थी
और वक़्त पड़ने पर
जुगाड़ पॉलिसी ही काम आती थी
और ये तीसरी गुल्लक
एक सफ़ेद चादर सी
मेरी यादों की
जहां सिर्फ
मेरा ही आवागमन है
यहाँ जीवन है
बारिश की बूंदों सा
जीवन के रंगो की
खूबसूरती का
उसकी लय-ताल का
मेरी हर खुशी का
और मेरी हर मुस्कान का
जो कैद है
मेरी इस गुल्लक में |
सभार-- अंजु चौधरी अनु
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