सरोकार की मीडिया

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Monday, September 30, 2013

नहीं चाहिए कोई भी नेता.........

नहीं चाहिए कोई भी नेता.............
मसला न पुरुष का है न महिलाओं का और न ही बच्चों का। मसला न हिंदू का है न मुसलमानों का और न ही सिंखों का है। मसला न जमीन का है न किसान का, न गांव का, न कस्बों का और न ही शहरों का। मसला न प्यार का है न इकरार का और न ही पावर का। मसला न जाति का है न धर्म का और न ही धर्म के ठेकेदारों का। मसला न पुलिस का है न अपराधियों का और न ही कानून का। मसला न जानकारी का है न खबर का है और न ही खबरिया चैनलों का। मसला न पार्टी का है न चुनाव का और न ही नेताओं का। मसला है देश का..........? देश लोगों से बनता है। लोग यानि समूह, समाज, भीड़ और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ को चेहरा देता है उसका नेता, और जो उस नेता का क्षेत्र विशेष होता है वही उसके लिए उसका देश होता है।
वैसे नेता जब आध्यात्मिक था तो देश बुद्ध था। जब नेता विलासी हुआ तो राजा मीहिर कूल। नेता कमजोर पड़ा तो सिकंदर और टूट गया तो बाबर। नेताओं ने व्यापार किया तो देश गुलाम हुआ और बागी हुए तो आजाद। जब देश आजाद हुआ तो नेता स्वार्थी हुए, और स्वार्थी हुए तो भ्रष्ट। भ्रष्ट हुए तो धनवान, धनवान हुए तो सफल और सफल हुए तो प्रगतिवान। लालच दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। जिस भीड़ को यह नेता चेहरा देते हुए वर्तमान समय तक पहुंचे हैं उस भीड़ की गरीबी, भूखमरी और लाशों पर अपनी-अपनी रोटियां सेंकते और राजनीति करते हमारे नेता। क्योंकि इन नेताओं का मनना है कि लालच खत्म तो तरक्की खत्म। तरक्की करना है तो लालच को साथ में लेकर चलना ही पड़ेगा। इस लालच की भूख ने आज पूरे देश को दांव लगा दिया है। मानों द्रौपदी को दांव पर लगा रहे हो, जीत गए तो ठीक नहीं तो सौंप देंगे किसी और के हाथों में नंगा होने के लिए। उसकी आबरू बचाने कोई नहीं आने वाला। कोई नहीं...................।
आज के नेताओं को अपने-अपने क्षेत्र विशेष का राजा यानि भगवान भी कहा जाता है। जिसके इशारे पर पुलिस, कानून और यहां तक की मीडिया भी नत् मस्तक हैं, जी हजूरी करते हैं। वहीं इन नेताओं के कारनामों की क्या बात की जाए, दरबार लगता है फरयादियों का। जिसमें फरयादी अपनी-अपनी व्यथा लेकर आते हैं। जिनको श्रीश्री 1008 भगवानों के पुजारी झूठे आश्वासन के साथ लौटा देते हैं। मंदिर हैं न? जो जितनी अधिक चढ़ौत्री चढ़ाएंगा उसे, वहां पर विराजमान पुजारीगण शीघ्र ही और समीप से भगवान के दर्शन करवा देंगे। वैसे अगर देखा जाए तो मंदिरों के पुजारी भी रिश्वत लेने लगे हैं धर्म के नाम पर, आस्था के नाम पर। इसके साथ-साथ कुछ बाहूबली लोग चढ़ौत्री अपने-अपने कामों को बिना किसी रोक-टोक के करवाने के लिए भी चढ़ाते हैं। दरबार लगा है भगवान का, चढ़ाओं चढ़ौत्री चढ़ाओं। भगवान तभी प्रसन्न होंगे, तभी उनकी कृपा दृष्टि भगतों पर बनेगी। चढ़ौती नहीं तो दर्शन नहीं, दर्शन नहीं तो कृपा नहीं। एक सीधा तर्क है कि जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठी होगा। वैसे भगवान के दरबार की आरती तो रात्रि की बेला में ही संपन्‍न होती है (कुछ अपवादों को छोड़कर)। वहीं पर इन पुजारियों के साथ मिलकर भगवान अपनी रासलीलाओं, कुरूक्षेत्र आदि क्रियाकलापों की रणनीति तय करते हैं। इस रणनीति को तय करने में शराब, कबाव, मुजरा, ढुमकें, नाटक, नौटंकी सभी का समावेश होना आम बात है। क्योंकि यह भगवान जो है और भगवान कुछ भी कर सकता है। अगर आप लोगों ने नास्तिकपन दिखाया या इन भगवानों के क्रियाकलापों के खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत भी की, तो भगवान के कोप के साथ में पुजारियों के श्राप से धरती का कोई भी प्राणी तुमको बचा नहीं सकता है। ऑफर जो है एक के साथ एक फ्री का।
अगर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमारे नेताओं को देखा जाए और उनकी राजनीति को समझा जाए तो महाभारत आपके आंखों के सामने साफ होती चली जाएगी। वैसे हम अपने प्रधानमंत्री को धृष्ट्रराज का दर्ज दें तो मेरे हिसाब किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए? दोनों में थोड़ा-सा अंतर जरूर है- एक देख नहीं सकता था और दूसरा देखना नहीं चाहता। एक बोलता कम था दूसरा बोलना ही नहीं चाहता। अगर इनकों कुंभकर्ण का दर्जा भी दे तो भी चल सकता है। नाक के नीचे कुछ भी होता रहें इस देश में या देश का, इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। अब जागने वाले हैं कुंभकर्ण महाराज। इनका समय आ गया है अपनी निंद्रा से जागने का। इनके जागने का मूल कारण एक लालच ही है, फिर से सिंहासन पर बैठने का। क्योंकि सत्ता पर काबिज होने की लत सभी नेताओं को लग चुकी है। साम, दाम, दंड और भेद किसी का भी सहारा क्यों न लेना पड़े, सत्ता में बने रहने के लिए। सत्ता शराब के जैसी हो गई है जो न छोड़ी जाए। क्योंकि सभी नेताओं को लत लग गई.......... लग गई............. लत ये गलत लग गई।

हालांकि हमारे देश में इन नेताओं ने पुरुष, महिला, बच्चें, हिंदू, मुस्लिम, सिख, जमीन, किसान, गांव, कस्बों, शहरों, प्यार, इकरार, पावर, जाति, धर्म, आस्था, पुलिस, अपराधी, कानून, जानकारी, खबर, मीडिया, पार्टी, चुनाव आदि का मसला बना रखा है। यह सब पूर्णतः हमारे देश से खत्म हो सकता है और हमारा देश प्रगति के साथ-साथ उन्नति के मार्ग पर भी अग्रसरित हो सकता है। इसके लिए हम सबको इस देश से नेताओं को खत्म करने की जरूरत है। नेता खत्म तो लालच खत्म। लालच खत्म तो भ्रष्टाचार खत्म। भ्रष्टाचार खत्म तो देश प्रगतिवान.....................। सोचिए क्या करना है आपको........................?

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