यह कैसी समानता है........... ?
मैं जिस मुद्दे पर यह लेख लिखने जा रहा हूं, हो सकता है कि बहुत-सारे लोग इस लेख से
सरोकार न रखें, या यह भी हो सकता है कि मेरे इस गंभीर
मुद्दे पर आप सब सहमत हो जाएं। कुछ भी हो सकता है। जनता जनार्दन है, वो ही सर्वेसर्वा होती है। क्योंकि
जहां जनता का बहुमत पक्ष में होता है वहां पर बहुमत सरकार बना देती है, वहीं बहुमत विपक्ष में हो तो, सदियों से सिंहासन पर काबिज राजाओं को
जड़ से भी उखड़ फेंकती है। बस हवाओं के रूख की बात है, जिस ओर चलने लगे। परंतु वर्तमान समय ठीक इसके विपरीत दिशा में घूमता
हुआ प्रतीत हो रहा है। यह वह दिशा है जो हमारे लोकतंत्र के चारों स्तंभों को अपनी
उंगुलियों पर घूमा रही है, या यूं कहें नचा रही है। वैसे इस विपरीत दिशा को लोकतंत्र का
पांचवां स्तंभ राजपालिका या नेतागणों की पालिका भी कह सकते हैं। क्योंकि ये वही
नेतागण हैं जो लोकतंत्र में अपने मन मुताबिक, लाभ
कमाने या अपना कोई हित साधने के लिए समय-समय पर भारतीय संविधान में बदलाव करते
दिखाई दे जाते हैं। चाहे इससे भारत को या लोकतंत्र को नुकसान क्यों न हो, क्या फर्क पड़ता है?
वैसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता या विधियों के
समान संरक्षण का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म का स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध तथा अनुच्छेद 16 में लोक नियोजन के विषय में अवसर की
समानता की बातें कहीं गई हैं या सिर्फ लिखी ही गई हैं। जिनका पालन केवल बाहुबली और
राजनेतागण अपने हित के लिए करते रहते हैं और जहां पर इनको लगने लगता है कि हमारा
संविधान इसकी इजाजत नहीं देता तो संविधान में सीधे तौर पर संशोधन करके अपना उल्लू
सीधा कर लेते हैं। क्योंकि वर्तमान समय में यही तो हो रहा है। न्यायपालिका से लेकर
व्यवस्थापालिका तक सब जानते हैं कि भावी समय में लगभग 80 प्रतिशत राजनेता (नेतागण) तरह-तरह के
अपराधिक मामलों में लिप्त हैं और उससे संबंधित मुकदमे छोटी-बड़ी अदालतों में लंबित
भी हैं। जिनमें कुछ राजनेताओं को सजा भी हो चुकी है कुछ को होना बाकी है। इसके
बावजूद वो हमारा व हमारे देश का स्वतंत्र रूप से प्रतिनिधित्व करते रहते हैं, बिना किसी रोक-टोक के? जबकि होना ठीक इसके विपरीत चाहिए था, कि यदि कोई नेता किसी भी आपराधिक
मामले में लिप्त पाया जाता है या उसको सजा हो चुकी है तो उस नेता को भारत सरकार के
किसी भी पद पर बने रहने व आगामी समय में चुनाव के लिए अजीवन बर्खास्त कर देना
चाहिए था। परंतु हो ठीक इसके विपरीत रहा है। अब तो अध्यादेश भी लागू हो चुका है कि
कोई भी राजनेता यदि किसी आपराधिक मामले में संलिप्त पाया जाता है तो भी उसे चुनाव
लड़ने का और चुनाव जीतने के उपरांत भारत सरकार के पदों पर बने रहने का अधिकार होगा।
यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि यह नेता हैं और हमाम में सब नंगे भी हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में समनता की बात कहीं गई है परंतु
यहां तो असमानता दिखाई प्रतीत हो रही है। क्योंकि एक तरह तो आपराधीकरण में लिप्त
नेता सरकारी पदों पर काजिब तो हो सकते है वहीं दूसरी तरफ इस बावत किसी ने (सरकार
हो या राजनेता) संविधान में संशोधन की न तो बात की और न ही पहल, कि यदि एक आम आदमी कारण बेकारण किसी
अपराध में संलिप्त पाया जाता है या उसे उस अपराध की सजा मिल चुकी है या मिलनी बाकी
है। फिर भी वो व्यक्ति सरकारी पदों पर आवेदन व दावेदारी प्रस्तुत कर सकता है।
परंतु ऐसा कुछ भी देखने व सुनने को नहीं मिला। यह तो सरकार व सरकार पर काबिज
राजनेताओं द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का साफ तौर पर उल्लघंन है। जिस पर
लोकतंत्र को विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि मेरा मानना है कि यदि आपराधिक
प्रवृत्तियों में लिप्त सरकार चला सकते है तो आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त
सरकारी पदों पर काम क्यों नहीं कर सकते हैं। इस मुददे पर आप सब लोगों की राय चाहिए
ताकि मैं इस बावत् पीआईएल दर्ज करा सकूं कि यदि आपराधिक प्रवृत्तियों में
संलिप्त/लिप्त राजनेता भारत सरकार के उच्च पदों पर रहकर हमारा व हमारे देश का
नेतृत्व कर सकते हैं तो एक अभियुक्त/अपराधी/ सजा काट चुका व्यक्ति सरकारी पदों पर
नौकरी क्यों नहीं कर सकता है? जबाव
चाहिए। क्योंकि संविधान समानता की बात करता है फिर यह कैसी समानता है जो राजनेताओं
के लिए अलग और आम जनता के लिए अलग!
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