Sunday, November 18, 2018
डर-सहमे शिवराज
कल सुबह भोपाल से घर लौटते समय सामने यात्रा करने वाले
सहयात्री द्वारा एक समाचार पत्र खरीदा गया (समाचारपत्र का नाम गुप्त रखा गया है)।
जिसको सहयात्री द्वारा पढ़ने के उपरांत अपनी सीट पर फेंक दिया गया। सोचा समय है हम
भी इसका वाचन कर लेते हैं। तो सहयात्री से अनुरोध करते हुए अखबार मांग लिया, जिसे सहयात्री ने बिना किसी
संकोच के दे दिया। अखबार हाथ में आते ही सबसे पहले मेरी दृष्टि समाचार पत्र में
प्रकाशित एक विज्ञापन पर पड़ी। यह विज्ञापन बीजेपी, मध्यप्रदेश
द्वारा वर्तमान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में निकाला
गया था। जिसमें कांग्रेस के पापों को गिनाते हुए कहा गया कि कांग्रेस ‘गरीबों के दर्द पर ‘गरीबी हटाओं’ का नमक छिड़कते रहे’ और बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान
‘मजदूर को मजबूर ना होने का ‘संबल’ देते रहे। वहीं जब अखबार का पन्ना पटला ही था तो दूसरा विज्ञापन चासनी से
परिपूर्ण प्रकाशित था। जिसमें कहा गया कि गरीबों की हर समस्या का समाधान खोजने वाली
देश की पहली सरकार, भाजपा सरकार है। साथ ही 2003 में मध्यप्रदेश
जहां बीमारू की क्या स्थिति था, वहीं 2018 तक वह समृद्ध हो गया
है। यह तो अच्छी बात है कि मध्यप्रदेश शिवराज
सिंह चौहान के पिछले 15 सालों में बीमारू से समृद्ध हो गया है परंतु इस बात की पुष्टि
कौन और कैसे की जा सकती है कि मध्यप्रदेश वर्तमान में समृद्धि की ओर अग्रसर है। बस
योजना बना देने से क्या वास्तविक जरूरतमंदों को योजना का लाभ मिल सका है या वह भी
ऑफिस-ऑफिस के खेल में फंसा रहा। क्या आंकड़े वास्तविक हकीकत को बयां करते हैं।
वैसे मध्यप्रदेश में
पिछले 15 सालों से बीजेपी (शिवराज) की सत्ता कायम है। तो जब आपके द्वारा इतनी सारी
योजनाओं से सभी को लाभ हुआ है तब आप इतने डरे-सहमे हुए खुद को महसूस क्यों कर रहे
हैं। आपने काम किया है तो आपको उसका फल जरूर मिलेगा, और यदि सिर्फ कागजी खानापूर्ति हुई है और जरूरतमंदों
सिर्फ ठगा गया है तो उसका नतीजा भी आपके सामने आ ही जाएगा। अपने मियां मिठ्ठू क्यों
बन रहे हैं कि हमने यह किया, हमने वह किया। कोई गरीबों की मदद
करे फिर यह जताए कि हमने यह किया हमने उसके लिए वह किया। क्या शोभा देता है।
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