कचड़ा खाती हमारी माताएं
गाय को माता का दर्जा दिया गया है। सिर्फ दर्जा ही दिया गया है (मानने
वाले सिर्फ माता मानते हैं) और अधिकांश लोग इसको सिर्फ एक जानवर के रूप में देखते हैं।
हां यह बात और है कि सुबह सुबह बहुतरे लोग पुण्य कमाने की दृष्टि से गाय को रोटी खिलाते
हैं ताकि उनके द्वारा किए गए पाप कुछ कम हो सकें। वैसे गाय को घरों के साथ-साथ चौराहों
पर, सड़कों के बीच में बैठे हुए, यहां-वहां कचड़ा में से
अपना भोजन तलाशते हुए आसानी से देखा जा सकता है... चाहे गांव हो या शहर.... गांव में
गायों की स्थिति बहुत हद तक ठीक है वहीं शहरों में तो आलम यह है कि जब तक गाय दुध देने
का काम करती है तब तक उसको घर में बांध कर रखा जाता है जैसे ही उसने दुध देना बंध किया
वैसे ही उसको छोड़ दिया जाता है यहां-वहां भटकने के लिए... कूड़ा, कचड़ा, पन्नी और भी बिषैली चीजों को खाने के लिए....गाय
भी क्या कर सकती है जब उसका घनी ही उसको छोड़ देता है तो अपना पेट भरने के लिए कुछ
ना कुछ तो खाना ही पड़ेगा, फिर चाहे वो कचड़ा ही क्यों ना हो...
यह इंसान है, मतलबी इंसान, जो अपने बुढ़े
मां-बाप को भी घर से निकाल देता है वो गाय को क्या घर में रखेंगा....जिस तरह से समाज
ने बच्चों द्वारा निकाले गए बूढ़े मां-बाप को पनाह देने के लिए वृद्धाआश्रम बनावा
दिया है उसी प्रकार समाज ने इन गायों के लिए गाउशाला का निर्माण करवा दिया है.... यह
बात तो ठीक है... क्या समाज के बुद्धजीवि व्यक्तियों, कानून
ने, इस संदर्भ में कभी नहीं सोचा कि उन बच्चों पर भी कार्यवाही
होनी चाहिए जो अपने मां-बाप को इस तरह दर-दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं... इस पर सबकी
बोलती बंद हो जाती है, बहुत से लोग यह तर्क देकर अपना पल्ल झाड़
लेते है कि यह उनका आपसी मामला है इसमें हम क्या कर सकते हैं.... फिर इस तरह गायों
पर वबाल क्यों मचाने लगते हो... जरा जाकर उस गाय के धनी की खबर भी तो लेकर देखों जो
जरूरत निकल जाने पर छोड़ देते हैं... या फिर बेच देते हैं। हालांकि जब आप गाय के प्रति
हम और आप इतने संवेदनशील हैं तो फिर जहां पर इन गायों को भटकते हुए देखते है उसको अपने
साथ घर क्यों नहीं ले आते... उसकी देखभाल क्यों नहीं करते.... बस एक दिखावा करते
हैं कि हमें अपनी गाउ माता की रक्षा करनी है... जरा कभी अपने- अपने घरों में झांककर
भी देख लिया करों जो अपने माता-पिता का इस तरह अनादर करते रहते हैं वो क्या खाक गाय
की सेवा करेंगे....वैसे सेवा की बात करें तो सिर्फ गायों के लिए ही इतना उतावलापन आखिर
क्यों.... और भी तो बहुत से जानवर है उनकी भी तो रक्षा की जा सकती है...क्योंकि सभी
धमों में लिखा गया है कि प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए, जिससे
आपके पापों को दोहन होगा... नहीं बस गाय को पकड़कर बैठ जाते हैं....
यह एक पक्ष है गाय के संदर्भ में दूसरे पक्ष पर बात करें तो गाय का नाम
लेते ही इसका नाम स्वत: धर्मवाद से जुड़ जाता है। जो कभी कभी दंगों का रूप भी इख्तियार
कर लेता है। जिसमें इंसान, इंसान के खून का इस कदर प्यासा हो जाता है कि उसे कुछ
नहीं दिखता, बस दिखता है तो किसी को आहत कैसे किया जाए.... रही
बात गाय को काटने की तो पशुओं पर अत्याचार करना पाप है.... परंतु जब उसका मालिक ही
उसको चंद पैसों की लालच में बूचड़खानों को बेच देता है उस पर कोई कार्यवाही क्यों
नहीं की जाती..... जब गाय का मालिक ही उसको किसी भी कारणों से नहीं बेचेगा (चाहे वो
दूध दे या ना दे) तो यह बूचड़खाने तो स्वत: बंद हो जाएंगे.... पर इस ओर किसी की दृष्टि
शायद ही जाती हो....खैर मेरे कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि यदि हम गाय को माता
मानते हैं तो इस तरह मतलब निकल जाने पर कुड़ा-कचरा खाने के लिए न छोड़े....
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