रुपया बनाम गांधी
मैं कौन हूं, सभी जानते हैं। कभी इस हाथ तो कभी उस हाथ बदलता ही गया हूं मैं। मेरी
ही वजह से लोग अपनी बहुओं को जिंदा जला देते हैं। मेरे ही कारण लोग अपहरण, लूट, डकैती, चोरी, खून-खराबा, भाई-भाई का दुश्मन बनने पर मजबूर हो
जाते हैं। मुझे पाने और ज्याद से ज्यादा सजोंकर रखने के लिए हमारे नेता इस देश को
और जनता को लूटने तक में जरा भी नही हिचकिचाते। मेरी कमी के कारण ही गरीब जनता कभी
आत्महत्या तो कभी हत्या का भी सहारा ले लेती है। और तो और मेने न होने से वो अपना
और अपने परिवार का पेट भरने के लिए किसी के बिस्तर की चादर बनने पर मजबूर भी हो
जाते हैं। सब मेरे ही कारण हो रहा है।
हालांकि मेरे लोगों ने अपनी-अपनी सुविधानुसार
कई नामों से सुशोभित भी कर रखा है। टका, रोकड़ा, राशि, पेटी, खोखा और तो और लोग मुझे प्यार से
लक्ष्मी भी बुलाते हैं। हां मैं रुपया हूं, रुपया।
मेरा एक नाम गांधी भी है। मेरे कई रंग, कई
रूप भी हैं। लाल, हरा, कथ्थई, गुलाबी, आसमानी, लोग मुझे इस नाम से भी जानते हैं। वैसे
मैंने कभी किसी एक हाथों की शोभा नहीं बढ़ाई। कभी इस हाथ तो कभी उस हाथ बदलता ही
गया हूं मैं। मैं सब चीजों में परिवर्तित हूं। मेरे अस्तित्व के बिना एक पत्ता भी
इस देश में नहीं हिल सकता। क्योंकि मैं गांधी हूं। रूका नहीं हूं इक पल भी, चलता ही चला जा रहा हूं। वर्षों हो गए
हैं मुझे चलते, भागते हुए। मैं आगे-आगे, जनता मेरे पीछे-पीछे। भाग रही है, पगलों की तरह? मुझे पाने के लिए मरने-मारने पर उतारू।
देखकर खुशी मिलती है मेने न होने पर भी मेरा अस्तित्व आज भी उसी तरह बरकरार है।
हां कभी-कभी मुझे विदेशी ताकतों के सामने नीच जरूर होना पड़ता है। यह सब इन नेताओं
का ही कियाधरा है जो मुझे आज तक विदेशी ताकतों से मुक्त नहीं करा पाए हैं। वैसे
विदेशी ताकतों के सामने मेरी औकात सिर्फ और सिर्फ 37.55 प्रतिशत ही बची है। जिसको
देखकर दुख होता है, रोना भी आता है। अब यह मेरे बस की बात
नहीं रही, इसको सुधारने के लिए।
जैसा मैंने कहा कि, मेरे कई रंग रूप हैं, पहला रूप तो आप लोगों से ऊपर देख ही
लिया है। दूसरा रूप से भी आप लोग भलीभांति परिचित होंगे? क्योंकि मैं गांधी हूं। मैं कभी-कभी
दान करने वाली चीज बन जाता हूं। लूटने वाली चीज भी मैं और लूटाने वाली चीज भी मैं।
मैं पहले कोठों पर, अब तो छोटी-बड़ी सभी तरह की पार्टियों
में शराब, शबाव दोनों के लिए बिकना ही पड़ता है।
और तो और कभी किसी के जिस्म को पाने के लिए, तो
कभी बार बालाओं के ऊपर से निछावर होकर उसके पैरों के नीचे से भी गुजरना पड़ता है, मजबूरी है मेरी। और क्या कहूं टेबल के
नीचे से, पर्दे के पीछे से, काम के एवज में, पाने के खातिर सब मेरा ही सहारा लेते
हैं। क्योंकि मैं गांधी हूं। मुझे सभी लोग छुपा कर रखते हैं ताकि किसी की बुरी नजर
न लग जाए। क्योंकि मैं गांधी हूं-मैं हूं तो तुम्हारा अस्तित्व बना हुआ है। मैं
नहीं तो तुम सब फिर किसी के गुलाम बन सकते हो। इसलिए छोड़ना नहीं कभी मेरा दामन, पकड़े रहना, फैविकॉल से चिपकाकर। क्योंकि मैं गांधी
हूं...............हां गांधी, यानि के रुपया।
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