क्यों जलाते हो रावण को ..............
रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण के साथ-साथ महा
तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था। इन सब के
बावजूद वह एक दलित व शुद्र भी था। जिसने अपना होश संभलते ही देखा कि बाहुबली लोग
(देवतागण) सदियों से हमारे समुदाय के लोगों पर अत्याचार व अधिकारों को दोहन करते आ
रहे हैं। ताकि यह हमेशा निम्न ही बने रहें, कभी
उभर न पाएं। इन निम्नता को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए रावण ने इन बाहुबलियों
से न जाने कितनी बार युद्ध किया। तब जाकर रावण के समुदाय को एक पहचान मिल सकी।
क्योंकि इन बाहुबलियों ने साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति के चलते हमेशा इनके अधिकारों दमन किया ताकि यह सर न
उठा सके। परंतु यह कब तक मुनासिब था। कोई तो इस अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद
करता। रावण ने भी वो ही किया जो एक बुद्धिमान और पराक्रमी योद्धा को करना चाहिए था, अपने अधिकारों के लिए युद्ध।
रावण का अपने समुदाय, जाति के अधिकारों को पाने के लिए युद्ध
करना इन बाहुबलियों को कभी गवारा न हुआ। तभी तो समय-समय पर बाहुबली अपनी निछता
दिखाते रहे, जिसका जबाव रावण ने बखूबी दिया।
अपनी-अपनी हार को बर्दास्त न कर पाने के चलते यह सभी बाहुबली एक हो गए। ताकि रावण
का खात्मा किया जाए। परंतु सब विफल ही रहे।
जैसा कि सभी को ज्ञात है कि रावण की बहन का
शूपणखां था। शूपणखां एक अति सुंदर और गुणवान युवती थी। जिसका रंगरूप देखकर कोई भी
मोहित हो सकता था। एक बार वह अपनी सेहलियों के साथ वन विहार करने निकली। तभी वनवास
काट रहे राजा दशराथ के दोनों पुत्र राम-लक्ष्मण की दृष्टि शूपणखां पर पड़ी। दृष्टि
पड़ते ही दोनों मोहित हो गए। तभी इन्होंने शूपणखां से छेड़खानी करना तथा
अभद्रतापूर्ण व्यवहार करना आरंभ कर दिया। अपनी अस्मत को बचाने के लिए उसने पुरजोर
कोशिश की। अपनी इच्छापूर्ति न देखने हुए लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। ताकि वो
किसी को भी अपना मुंह न दिखा सके और न ही यह बता सके कि उसके साथ ऐसा कुछ हुआ है।
अब आप ही बताएं कि किसी की बहन के नाक-कान काटकर कुरूप बना देने पर कौन-सा भाई चुप
बैठ सकता है। रावण भी चुप नहीं बैठा, उसने
प्रतिज्ञा ली कि जैसा राम-लक्ष्मण ने मेरी बहन के साथ किया है मैं भी ठीक वैसा ही
करूंगा। बाद में उसे ज्ञात हुआ कि राम-लक्ष्मण के कोई बहन नहीं है। और वो दोनों
अपनी कारगुजारियों को अंजाम देने के बाद अपनी पत्नी सीता जो उनके साथ वनवास में थी
उसको अकेला छोड़कर वहां से भाग निकले। तब रावण ने राम की पत्नी सीता को केंद्र में
किया और उसका अपहरण कर लिया। ताकि राम अपनी पत्नी को छुड़ाने के लिए जरूर आएगा तभी
उससे और उसके भाई से अपनी बहन का बदला लूंगा।
परंतु इन दोनों ने जंगल से भाग कर सभी बाहुबली
को झूठा संदेश दिया कि रावण अब बहू-बेटियों को अपना शिकार बनाने लगा है। जब सभी
बाहुबलियों ने राम और लक्ष्मण का साथ देना उचित समझा, जिससे उनकी बहू-बेटियों सुरक्षित रह
सके। वहीं रावण सीता का अपहरण करके उसे अपने महल में बनी एक अशोक बाटिका ले जाकर
बंद कर दिया। जहां वह कुछ सालों तक रही। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने
कहा था कि हे सीते! तुम्हारा पति तुमको छोड़कर भाग गया है अगर चाहों तो तुम मेरी
पत्नी बन सकती हो और यदि तुम मेरे प्रति कामभाव नहीं रखती तो मैं तुझे कभी स्पर्श
नहीं करूंगा। अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण ने मर्यादा का ही
आचरण किया है। वह चाहता तो सीता के साथ जोर-जबर्दस्ती भी कर सकता था। परंतु उसने
ऐसा कदापि नहीं किया क्योंकि उसमें शिष्टाचार व ऊंचे आदर्श वाली मर्यादाएं मौजूद
थीं और वह नारी का मान-सम्मान करना जानता था। वह इन बाहुबलियों के जैसा नहीं था
(इंद्र जैसा )जो दूसरों की बहू-बेटियों के साथ बलात्कार करते रहते थे और उनको किसी
प्रकार की कोई सजा नहीं मिलती थी। अगर इंद्र की बात करें तो एक अय्याश, दारूबाज, जिसके यहां लड़कियों का नंगा नाच होता था और जहां सभी बाहुबली
अपनी-अपनी कामवासना की पूर्ति करते रहते थे। अगर इंद्र को दल्ला कहा जाए तो कोई
हर्ज नहीं होना चाहिए। जो अपनी गद्दी को बचाने के चक्कर में हमेशा ही इन
बाहुबलियों का आवभगत में जुटा रहता था। जिसकी गद्दी को रावण के पुत्र मेघनाथ ने
युद्ध में जीत लिया था। जिसको पाने लिए उसने भी अपने सारे लोग राम-लक्ष्मण के पक्ष
में खड़े कर दिए।
चूंकि लंका जहां सीता को हरण कर रावण ने रखा था
वो भारत से बहुत दूरी पर था। जहां तक पहुंचना नमुमकिन ही था। परंतु इन लोगों ने
रात-दिन एक करके समुद्र पर सेतु का निर्माण किया ताकि लंका तक पहुंचा जा सके। कई
महीनों के बाद सेतु बनकर तैयार हो सका। तब सब लोगों ने राम-लक्ष्मण के साथ लंका पर
चढ़ाई कर दी। जब रावण को इसकी सूचना मिली कि एक विशाल बाहुबलियों की सेना ने लंका
पर चढ़ाई कर दी तो वह जरा भी नहीं डिगा और उसने युद्ध करना ठीक समझा। परंतु रावण के
छोटे भाई जो विशाल सेना को देखकर भयभीत हो चुका था उसने राम से हाथ मिलना ही
मुनासिब समझा। और वह राम से जा मिला। राम से मिलने के बाद उसने राम से एक शर्त रखी
की जीतने के उपरांत आप मुझे ही इस लंका का अधिपत्य सौंपेंगे। तब मैं आपको रावण की
सारी कमजोरियों को बताउंगा,
जिससे आप उसको मार सकते हैं। राम को
विभीषण की बात मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था तो उसने हामी भर दी। फिर
विभीषण बताता गया और राम और उसकी सेना उन कमजोरियों पर हमला करती गई। एक के बाद एक
विभीषण ने रावण के सारे पुत्रों को मरवा दिया और साथ में अपने भाई कुंभकर्ण को भी।
अब रावण अकेला बचा तो उसने स्वयं ही रणभूमि में जाने का निणर्य किया परंतु अपने
हथियार नहीं डाले। और राम से युद्ध करते-करते वो मार गया। यानि एक और प्रतापी
शुद्र का इन दबंग लोगों ने दमन कर दिया।
रावण के मरने के उपरांत जैसा कि राम और विभीषण
में तय हुआ था वैसा ही हुआ। राम ने विभीषण का राज्याभिषेक करके उसके लंका सिंहासन
सौंप दिया। सिंहासन सौंपने के बाद उसने अपनी पत्नी को भी अशोक बाटिका से मुक्त
कराया। अब उसके मन में यही भाव चलते रहे क्या मेरी पत्नी सीता अब भी पतिव्रता ही
है तो अपनी शंका का दूर करने के लिए उसने उसको अग्नि पर चलवाया। अग्नि पर चलवाने
के बाद वह सीता को लेकर वापस अपने राज्य आ गया। जहां कुछ लोगों की टीका-टिप्पणी के
चलते उसने अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकाल दिया। जैसा सदियों से यह बाहुबली
करते आ रहे थे।
इस लेख को लिखने के बाद कुछ सवालात मेरे जहन
में अभी भी बरकरार हैं अगर आपके पास इन प्रश्नों को जबाव हो तो मुझे देने की कृपा
करें-
1.क्या
अपने अधिकारों के प्रति लड़ना गलत है?
2.किसी
की बहन के साथ कुछ गलत होगा तो क्या भाई चुप बैठ सकता है?
3.इंद्र
बलात्कार करके साफ बच निकलता है फिर भी उसे क्यों पूजा जाता है?
4.क्या
विभीषण को अपनी जान व सिंहासन को मोह नहीं था? अगर
नहीं तो उसने अपने भाई रावण का साथ न देकर राम का साथ क्यों दिया?
5.राम
ने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली?
6.राम
ने सीता को घर से क्यों निकाला?
7.क्या
आज जो विजय दशमी मनाई जाती है यह दलित पर बाहुबली की जीत के लिए तो नहीं मनाई जाती?
8.क्या
नारी का अपमान करने वाला भगवान हो सकता है?
ऐसे बहुत सारे प्रश्न मेरे मन में हमेशा से
उठते रहे हैं और उठते रहेंगे? क्योंकि
रावण, रावण ही था और रावण ही रहेगा! जिसके
पुतलों को जलाना नहीं बल्कि उनकी पूजा करनी चाहिए.................
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