देख तमाशा नग्नता का
शायद मेरे पूरे जीवन में सिर्फ और सिर्फ यात्रा
करना ही लिख है तभी तो एम.ए. और एम.फिल के दौरान ललितपुर से झांसी पूरे साढे़ तीन
साल यात्रा की, वो भी प्रतिदिन। हां रविवार ओर अवकाश
के दिन थोड़ी राहत जरूर मिल जाती थी। इसके बाद पीएचडी में प्रवेश हुआ तो हर माह एक
दो यात्राएं कभी घर तो कभी शोध कार्य के संबंध में यहां-वहां आना-जाना पड़ता ही
रहा। फिर पीएचडी पूर्ण हुई तो नौकरी के लिए दर-दर भटकने का सफर शुरू हो गया। नौकरी
तो अभी तक नहीं हासिल हुई,
परंतु पोस्ट डॉक्टरल में चयन जरूर हो
गया। तो सोचा चलो दो साल तो कुछ करने को मिला। इसके साथ-साथ नौकरी के लिए जंग जारी
है। वैसे मैंने इस माह बहुत-सी यात्रा कर ली जैसे वर्धा से घर, घर से राजस्थान, जबलपुर, बिलासपुर, भोपाल, वर्धा और फिर दिल्ली का सफर। एक माह में 12 यात्राएं। बहुत होती है, हैं न?
हालांकि किस्मत में जो लिख गया है सफर करते
रहना, तो किस्मत का लिखा कौन टाल सकता है? वैसे दिनांक 14 को मैं एक साक्षात्कार हेतु दिल्ली
गया था। चूंकि साक्षात्कार का समापन कुछ शीघ्र हो गया तो मेरे पास लगभग 9 से 10 घंटे का समय बच गया, क्योंकि
मेरी दिल्ली से वापसी की ट्रेन रात्रि 11
बजे थी। साक्षात्कार पूर्ण होने के उपरांत बस से वापस निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन
पहुंचा, चूंकि बस वाले ने मुझे रोड़ पर ही उतार
दिया था, तो रेलवे स्टेशन के समीप की बने
इंद्रप्रस्थ पार्क पर मेरी दृष्टि गई, सोचा
समय-ही-समय है हमारे पास। क्यों न कुछ समय पार्क में ही बिता लिए जाए। पर मैंने यह
कदापि नहीं सोचा था कि मेरा पूरा समय कुछ घंटों में ही तब्दील हो जाएगा। पार्क में
प्रवेश करते ही मेरी आंखें वहां पर पहले से बैठे एक प्रेमी जोड़े पर गई जिनको देखकर
उनकी उम्र का अंदाजा आसानी से लगया जा सकता था यानी नाबालिग प्रेमी जोड़ा। जो अपनी
और सामाजिक तमाम शर्मोहया को ताक पर रखकर प्रेम में लिप्त थे। उनको उनकी खुली
अवस्था में देखकर दिमाग ठनक गया। उस जोड़ें को उनके उसी हाल पर छोड़ पार्क के भीतरी
भाग में प्रवेश करने लगा। तो देखा कि एक नहीं, दो
नहीं, तीन नहीं, लगभग 40 से 50 प्रेमी जोड़ें। नाबालिग से लेकर अघेड़
उम्र के जोड़ें। कोई इस झांड़ी में तो कोई उस झाड़ी में, सिर्फ ओट ही कभी थी उनके लिए। वहां से
गुजरते हुए एक सफाई कर्मी से इस संदर्भ में वार्तालाप की तो उसने कहा कि, मैं यहां पिछले 15 सालों से काम कर रहा हूं और पिछले 15 सालों से ही इन सब लोगों के कारनामों
को देख रहा हूं। इसके बाद मैंने वहां पर तैनात कुछ सुरक्षा कर्मी से बात की तो पता
चला कि यह पार्क सुबह 6 बजे खलता है ओर रात्रि के 8 बजे के बाद बंद होता है। यहां पर सब
कुछ होता है प्यार के नाम पर। सब कुछ का तात्पर्य समझने के बाद भी नसमझ बनते हुए
जाना तो ज्ञात हुआ कि प्यार में लिप्त यह जोड़ें मौका मिलते ही अपनी शारीरिक
जरूरतों की पूर्ति भी कर लेते हैं। मैंने पूछा कि बिना किसी रोक-टोक के, जबाव मिला कि जब पुलिस वाले और हमारे
अधिकारी इन पर रोक नहीं लगाते, तो
हमें क्या पड़ी है जो हो रहा है होने देते हैं। फिर मन नहीं माना तो पिछले गेट पर
तैनात तीन पुलिस कर्मियों के पास जा पहुंचा। बात करने पर पता चला कि सरकार ही कोई
रोक नहीं लगाना चाहती, और यह तो यहां प्यार की पूर्ति हेतु
आते हैं इसमें गलत क्या है?
यह दिल्ली है भई। यहां सब कुछ जायज है
कुछ नजायज नहीं है। तब मैंने उनसे कहा कि यहां प्रेमी जोड़े के अलावा भी बहुत सारे
लागे आते-जाते होंगे? उन पर क्या असर होता होगा। तब तपाक से
जबाव मिला उनके लिए ही तो हम बैठे हैं। फिर मैंने कहा कि इसका नाम इंद्रप्रस्थ
पार्क के स्थान पर लव प्वाइंट या प्रेमालिंगन पार्क क्यों नहीं कर दिया जाता। जबाव
भी विचित्र मिला, सरकार चाहेगी तो वो भी कर दिया जाएगा।
उन पुलिस वालों से बात करने के उपरांत मैं पुनः
पार्क में आ गया। जहां पर अभी-अभी एक प्रेमी जोड़ा आया जिसमें लड़के की उम्र मो 25 के आस-पास होगी परंतु लड़की की उम्र तो
14 से भी कम लग रही थी। दोनों को गौर से
देखा, लड़का हाथ में हेलमेट लिए हुए था ओर
लड़की अपने कंधों पर एक बैग। जिसको देखने के बाद कोई भी समझ सकता था कि यह स्कूल की
छात्रा होगी। वो भी 9 या 10 की। आते ही वो एक झाड़ी के बीचों-बीच चले गए। फिर वो भी शुरू हो गए, अपनी प्रेम लीलाओं को अंजाम देने। सारी
लोक-लाज को तांक पर रखकर। एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जिस संस्कृति को
कभी भारतीय संस्कृति ने स्वीकार नहीं किया। और शायद स्वीकार भी न कर सके। इस तरह
का नग्न खेल। वहीं वहां पर मौजूद लोग गिद्ध की भांति देख रहे थे, तांक-झांक कर रहे थे, कहीं कुछ अच्छा देखने को मिल जाए। क्या
जवान और क्या बूढ़ा। सभी लगे थे तांक-झांक में। कोई छिप कर देख रहा था, कोई पास जाकर अपनी आंखों को सेंक रहा
था और वो लोग बिना झेंप और खौंफ के, शर्म
के हया के, लाज-लज्जा के, पारिवारिक मान-सम्मान के, दिखा रहे थे अपने प्यार का तमाशा। देख
तमाशा देख हमारे नग्नता के प्यार का।
इतना सब देखने के बाद मन क्षीण होने लगा, सोचने लगा क्या होगा इनका, क्या भविष्य होगा? वहीं मां-बाप पर क्या गुजरेगी यदि इसकी
जानकारी उनको लग जाए। वैसे तो यह बात सही है कि मां-बाप कहां तक अपने बच्चों के
पीछे-पीछे घूम सकते हैं। न ही पूरे समय निगरानी रख सकते हैं वो अपना काम करें या
बच्चों पर निगरानी रखें। वह तो बस यही बता सकते हैं कि क्या अच्छा है और क्या
बुरा। यह तो बस बच्चों को सोचना चाहिए कि वो अपने मां-बाप को धोखा दे रहे हैं, और अपने जीवन के साथ एक बुरा मजाक। जो
सिर्फ वासना की पूर्ति और वक्त के साथ-साथ जो ठंड़ा पड़ने लगता है। जिसके साथ अभी
हैं वो फिर पूर्ति होने के बाद साथ में नहीं रहता या रहना नहीं चाहता। क्योंकि जिस
चीज की उसे तमन्ना थी उसको उसने पा लिया। अब वह ता उम्र उसे बर्दास्त नहीं करना
चाहता। निकल पड़ता है किसी और की तलाश में। वहीं लड़कियां भी अब ऐसा ही करने लगी है
एक छोड़ एक। जहां पैसा और शोहरत दिखाई दी वहीं दौड़ जाती है। यह सोचे बिना कि क्या
देगी वो अपनी होने वाले पति को, या
पत्नी को। सिर्फ झूठ की बुनियाद पर टिकी एक जिंदगी। हरिशचंद्र या सती-सावत्री के
नाम पर।तमाशा बना दिया है प्यार का। मेरी यह बात बुरी लग सकती है यदि प्यार के नाम
पर जिस्मानी भूख मिटाने का इतना ही शौक है तो फिर अपने परिवार वालों से क्यों नहीं
कहते की हमारी शादी उससे करवा दें। तब नानी मरती है प्यार किसी से, जिस्मानी ताल्लुकात किसी से और शादी
किसी और से।
इतना सब कुछ देखने के बाद सिर्फ और सिर्फ यही
निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस तरह का खुला नग्नतापूर्ण प्यार कहीं-न-कहीं महिलाओं के
प्रति होने वाले अत्याचार के मूल में है। खुला नग्नतापूर्ण या यूं कहें अश्लीलता
परिपूर्ण दृश्य जिसको देखकर आम युवकों में उत्तेजना जरूर जगृत होती है और वो
कहीं-न-कहीं जाकर बलात्कार का कारण बनती है। वहीं दहेज और घरेलू हिंसा की बात करें
तो सारे परिप्रेक्ष्य में
यह खुला अश्लील प्यार ही है। क्योंकि लड़की की शादी जिससे वह प्यार करती है और मां-बाप अपनी मर्जी से कर देते हैं तो वह अपने पति व ससुराल वालों पर दहेज के लिए प्रताड़ना का आरोप लगा देती है (आज के प्ररिप्रेक्ष्य में और कुछ अपवादों को छोड़कर) और कहती है कि देखों मैंने मना किया था आप नहीं मानें। फिर मां-बाप भी चुप और वो फिर अपने प्रेमी की बांहों में। यहीं प्रेमी की बांहें घरेलू हिंसा का भी कारण बनती हैं क्योंकि शादी के बाद कभी-न-कभी पति या पत्नी को उसके जीवन के अतीत के बारे में पता चल ही जाता है। जिसकी राह सिर्फ और सिर्फ तलाक के धरातल पर जाकर खत्म होती है। तलाक यानि पूरी जिंदगी खंड-खंड में विभाजित। मां और बा पके विभाजन के साथ-साथ मासूम बच्चों का भी विभाजन।
अब क्या बचा जिंदगी में पछतावे के अलावा। और
पछतावा भी अपने कर्मों से। मां-बाप से झूठ का नतीजा। अब पछताएं होत क्या जब चिड़िया
चुग गई खेत। अगर ऐसा-वैसा कुछ नहीं हुआ तो आखिरी में इनके बच्चे यदि इन्हीं के पर
चिह्नों पर चल पड़ते हैं तो यह अपनी वास्तविक हकीकत से जरूर रूबरू हो जाएंगें कि
किस नग्नता का तमाशा हम लोगों ने खेला था। अब वो ही हमारे बच्चे कर रहे हैं। जिन
पर चाह कर भी वो रोक नहीं लगा सकते। क्योंकि जैसा बोओगें वैसा ही काटने को मिलेगा।
नग्नता परोसेगें तो संस्कृति, सभ्यता, नैतिकता, आदर कहां से मिलेगा। सोचो वक्त अभी हाथों ने नहीं निकला है सोचो? और कुछ करो?
1 comment:
iske liye kahi na kahi ldke hi jimmedar h jo vasna ke bhuke rhte h or ldkiyo ko fsate h or phir unhe chod dete h.........ye aapne hi likha h apne blog me...agr ldke sudhr jaye to ye nanga nach dekhne ko nahi milega.....
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