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Friday, August 3, 2012

कैसे-कैसे लोग पाए जाते हैं इस समाज में.......??


कैसे-कैसे लोग पाए जाते हैं इस समाज में.......??

समाज में कैसे-कैसे लोग रहते, रहते नहीं पाए जाते हैं, यह जानना हो तो यात्रा करते रहना चाहिए। इंसान की हकीकत, उसकी फिदरत, चाल-चलन, रहन-सहन, पारिवारिक संस्कृति और नैतिकता सब कुछ देखकर पता लगाया जा सकता है कि, किस-किस प्रवृत्ति के इंसान इस समाज में वास करते हैं। मुझे यात्रा करने का एक लंबा अनुभव रहा है। मैं ललितपुर से प्रतिदिन 90 किमी. ट्रेन से झांसी एम.ए. व एम.फिल के दौरान पढ़ाई के साथ-साथ यात्रा का भी अनुभव प्राप्त किया। यात्रा के दौरान लोगों के देखकर समझने का भी मौका मिला कि कौन-सा व्यक्ति किस नैचर का है, कौन क्या काम करता होगा। वैसे रेलवे कर्मचारी यानि टिकट चैकिंग स्टाफ को तो दूर से ही पहचान लेता हूं कि यह साधा कपड़ों में टिकट चैकर है।
यात्रा के लगभग साढ़े तीन साल का सफर बहुत से उतार-चढ़ाव के बावजूद अच्छा ही गुजरा। शायद मेरी किस्मत में कुछ ज्यादा ही सफर करना लिखा है तो अभी भी यात्राएं होती रहती हैं। पहले प्रतिदिन होती थी अब महीने में 8-9 हो ही जाती हैं। इसी क्रम के चलते मैं, दिनांक 3 अगस्त, 2012 को अपना बायोडेटा लेकर एस.वी.एन विश्वविद्यालय, सागर देने जाना था। तो सुबह-सुबह ललितपुर स्टेशन पहुंच गया। स्टेशन पहुंचकर पता चला कि कुछ समय के उपरांत सदन एक्सप्रेस आ रही है जो बीना तक पहुंचाएंगी। मैंने सागर का सीधा टिकट ले लिया सोचा कि ललितपुर से बीना और फिर बीना से सागर के लिए रेलगाड़ी देख लूगा। कुछ समय के बाद ट्रेन एक नंबर प्लेटफॉर्म पर आ गई। पहले सोचा कि श्यानकक्ष में बैठ लूगा क्योंकि आमतौर पर जर्नल बोगी बहुत ही भरी आती हैं। परंतु सदन की जर्नल बोगिया लगभग खाली ही जैसी थी जिसमें आसानी से जगह मिल सकती थी। मैं सीधा जर्नल बोगी में जाकर बैठ गया, बैठने के बाद देखा तो एक मित्र भी वहीं पर पहले से बैठा हुआ था तो उससे बाते होने लगी। बातों को सिलसिल लगभग चलता ही रहा। एक घंटे के सफर के बाद ट्रेन बीना स्टेशन पर पहुंच गई। बीना स्टेशन पहुंचकर पता किया कि सागर वाली ट्रेन कब और किस प्लेटफॉर्म पर आएगी, जानकारी मिली कि सागर जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म 4 पर खड़ी है और चलने ही वाली है। मैं दौड़कर 4 नंबर प्लेटफॉर्म पर पहुंच गया, ट्रेन खड़ी हुई थी। में एक बोगी में चढ़ गया, चूंकि बरसात के कारण सीटे लगभग गीली ही थी। एक दो सीटें देखने के बाद एक लंबी सीट पर जाकर बैठ गया। जहां पर पहले से एक युवक लेटा हुआ था। सामने वाली सीट पर दो महिलाएं और एक बच्ची बैठी हुईं थीं जिनमें से एक अविवाहित थी। लेटे हुए युवक और उन महिलाओं के बातचीत के पता चला कि एक महिला उस युवक की पत्नी तथा छोटी लड़की उनकी बच्ची है तथा अविवाहित महिला उनके रिश्तेदार की लड़की हो सकती है।
चूंकि युवक पूरी सीट पर लेटा हुआ था तो मैंने कहा कि महोदय आप उठकर बैठ जाए, जबाव मिला तबीयत कुछ खराब है, सिर चकरा रहा है। मानवता के नाते मैंने कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा। वहीं छोटी बच्ची अपने खेल में मगन और दोनो महिलाएं आपस में बातचीत में मशरूफ। तभी एक आदमी जो देखने में किसी सभ्य परिवार से लगता था मेरी सामने वाली सीट पर आकर बैठ गया जहां पहले से दोनों महिलाएं बैठी हुई थीं। आदमी बैठने के साथ ही उस अविवाहित महिला से सटकर बैठ गया। पहले उस महिला ने कुछ आपने आपको उस से दूर करने की कोशिश की। इसके उपरांत विवाहित महिला ऊपर वाली खाली सीट पर जाकर लेट गई। तब कुछ जगह हो चुकी थी तो बैठी महिला उससे थोड़ी-सी दूरी बनाकर यानी खिसक गई। ट्रेन कुछ दूरी तय करने के बाद एक स्टेशन पर खड़ी हुई उस स्टेशन से लगभग बहुत से यात्री चढ़े। जिनमें से कुछ मेरी सामने वाली सीट पर, कुछ मेरी सीट पर बैठ गए। पहले से बैठे युवक को जैसे इसी मौके की तलाश थी, धीरे-धीरे उसकी मानसिक प्रवृत्ति उजागर होने लगी। वह अपना हाथ उस लड़के के ऊपरी भाग में फेरना शुरू कर दिया। मैंने सोचा लड़की इसका विरोध करेगी, परंतु मैं गलत था लड़की शांत बैठी, अपने साथ हो रहे अत्याचार को सह रही थी। वह आदमी बिना किसी डर के अपने गलत काम को अंजाम दे रहा था, साथ ही वह लड़की बिना किसी विरोध के उस आदमी को बढ़ावा।
बहुत देर यही सब चलते रहने के बाद सोचा कि क्या कारण हो सकते हैं कि यह लड़की किसी भी प्रकार से विरोध नहीं कर रही है। तभी ख्याल आया कि वास्तव में महिलाओ पर होने वाले अत्याचार की पृष्ठभूमि, कहीं-न-कहीं इनकी सहमति भी होती है, नहीं तो यह लड़की इसका विरोध तो करती। अपने रिश्तेदार को भी बता सकती थी, परंतु नहीं। जैसे चुपचाप सहन करना महिलाओं की नीयती बन चुका है सह रही थी।
उस लड़की के साथ वह आदमी मानसिक बलात्कार कर रहा था और हम जैसे चुपचाप हाथों पर हाथ रखकर बैठे हुए थे। तभी जहन में आया विरोध तो करना ही चाहिए। मैंने उस आदमी के गाल पर एक जोरदार तमांचा जड़ दिया, सारी बोगी सन्न रह गई कि आखिर यह क्या हुआ? किस कारण से इस युवक ने इस आदमी पे हाथ उठा दिया। इतना सब होने के बाद लड़की अभी भी खमोश थी। और उस आदमी के हाथ मेरी गिरेबान पर। समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए तो बताया कि यह ऐसा कर रहा था। इसके बावजूद लड़की ने कुछ नहीं बोला। ले देकर मुझे ही शर्मिन्दा होना पड़ा और माफी भी मांगनी पड़ी।
मामला वहीं खत्म नहीं हुआ, गलती न करने के बाद भी माफी मांगी फिर भी वो आदमी मुझे घमकाता ही जा रहा था। रहा नहीं गया सोचा जो होगा देखा जाएगा। मैंने एक के बाद एक तीन और चांटे रसीद कर दिया और बोला करना हो कर लो। कुछ ही समय के बाद सागर स्टेशन आ जाएगा तुम चाहे तो पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकते हो। जब मैंने पुलिस का नाम लिया तो उसकी सट्टी-पिट्टी गुल हो गई। मैं सागर स्टेशन आने के बाद स्टेशन पर उतरा तो लगा अब पुलिस को मामला बनेगा, परंतु वह आदमी न जाने कहां नदारत हो चुका था। मैंने भगवान का शुक्रिया अदा किया चला एक मुसीबत से बचे।
इसके बाद, दिमाग तभी से लड़की के विरोध न करने का कारण नहीं जान सका। कि किस कारण से उसने विरोध नहीं किया और मैं एक बहुत बड़े झमेले मे पड़ सकता था।

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