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Thursday, May 17, 2012

ज्ञान ही शक्ति है


ज्ञान ही शक्ति है

शक्ति प्राप्त करने की इच्छा मानव में जन्मजात होती है। इसक इच्छा का कारण यह है कि मानव को इस बात का बोध है कि वह मानसिक और नैतिक दृष्टि से सृष्टि के अन्य जीवों से श्रेष्ठ है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि श्रेष्ठ होने के नाते मानव का अन्य जीवों पर नियंत्रण और प्रमुख रहना चाहिए। इसके अलावा मनुष्यों में असमानता होने के बोध से भी एक द्वारा दूसरे पर शासन करने और प्रभुत्व जमाने की अभिलाषा पैदा होती है। विश्व का इतिहासजहां तक इसका मानव से संबंध हैशक्ति के लिए संघर्ष का इतिहास है। अतः जनजातियों और कबीलों के आदिकालीन लड़ाइयों से लेकर आज के विनाशकारी युद्धों तक इन सभी के पीछे एक ही धारणा है और वह शक्ति प्राप्ति की लालसा।
शक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है-शारीरिक और बौद्धिक। बौद्धिक शक्ति की तुलना में शारीरिक शक्ति निम्न स्तर की होती है। आदिकालीन लोगों को मुख्यतः शरीर की शक्ति का ही ज्ञान था। प्राचीन युग में शास्त्रों की शक्ति ही निर्णय करती थी और केवल ताकत का ही बोलबाला था। परंतु सभ्यता के विकास और मानव मस्तिष्क के विकास के साथ बौद्धिक शक्ति को श्रेष्ठ माना जाने लगा। बौद्धिक शक्ति की उत्पत्ति ज्ञान से होती है।
जब मानव पहली बार धरती पर आया था तो वह किसी प्रकार से पशुओं से बेहतर नहीं था। वह भी हिंसक पशु ही था और स्वयं भी जंगली जानवरों तथा प्रकृति की प्रतिकूल शक्ति के सामने एक असहाय प्राणी था। परंतु ईश्वर ने उसे बुद्धि दी थी और यही बुद्धि अंततोगत्वा उसका बचाव कर सकी। उसने आग का आविष्कार किया और उसके उपयोगों को जाना और आग के उपयोग के इसी ज्ञान ने धीरे-धीरे उसे शक्तिशाली बना दिया। समय के साथ-साथ उसके ज्ञान ने विश्व में आश्चर्य उत्पन्न कर दिये और बहुत से क्षेत्रों में मनुष्य का आधिपत्य हो गया।
आज का जीवन जिन महान खोजों और अविष्कारों पर आधारित हैवे सभी बुद्धि की शक्ति की अभिव्यक्ति ही है। पानी और बिजली जैसी प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके इन शक्तियों को मानव के उपयोग में लाया जाना भौतिकी के कारण ही संभव हो सका है। यांत्रिकी के ज्ञान से ही दूरी को घटाया जा सका और मनुष्यों में परस्पर बंधुत्व की भावनाओं का अनुभव कराया जा सका है। परमाणु ऊर्जा की युगांतरकारी खोज ने तो धरती पर मनुष्य के भावी जीवन की संपूर्ण धारणा में ही आमूल परिवर्तन ला दिया है। विज्ञान के क्षेत्र में आज मनुष्य द्वारा की गई अभूतपूर्वज्ञान और जानकारी प्राप्त करने की निरतंर खोज तथा शासन और अधिपत्य जमाने की भूख का ही परिणाम है।
वास्तव में कलाविज्ञानसंस्कृति और सभ्यता का विकास ज्ञान पर ही निर्भर है। प्रकृति ने अपने रहस्यों को ज्ञान शक्ति के साथ खोल दिया है। उसने शारीरिक शक्ति और बौद्धिक शक्ति दोनों को एक ही समय बनाया है। परंतु ज्ञान ने मनुष्य को न केवल बौद्धिक शक्ति ही दीबल्कि उसे शारीरिक शक्ति से बेहतरसुनिश्चित और अधिकाधिक अनुशासित और किफायती तरीके से प्रयोग करना भी सिखाया है। अतः अनुशासनव्यवस्था और किफायत उस शक्ति के आधार हैं जो ज्ञान द्वारा हमें प्रदान की गई है।
महान विचारों से महान् व्यक्ति बनते हैं और मानव स्वभाव की निरंतर यह विशेषता रही है कि वह अपने ज्ञान क्षेत्र से परे के सत्य की खोज करने का आदी है। अतः उत्तम भाव का प्रमुख गुण होता है संतुलन। ज्ञान की शक्ति तो बड़ी होती है। ज्ञान हममें दंभ उत्पन्न कर सकता है और इस  प्रकार इसके वास्तविक वरदान को छीन सकता है। विवेक विनम्र। इस बात का अनुभव कर लेने के बाद ही हम ज्ञान की शक्ति के महत्व को समझ पाते हैं और ज्ञान को अर्जित करना चाहते हैं जो हमें सत्य की खोज के योग्य बनाता है। हमें ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति का भरसक प्रयास करना होगा क्योंकि आधा ज्ञान खतरनाक होता है’ ज्ञान को पूर्णता से प्राप्त करो अथवा अधूरे ज्ञान से दूर रहो।

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