विज्ञापनों से सुरक्षा
विज्ञापन अपना ढिढोरा पीटने का एक चतुर मार्ग है। अब किसी सामान को चित्रकला के माध्यम से प्रचारित करने का एक नयाब तरीका निकल गया है। आज सफलतम व्यवसायी वही है जो प्रभावशाली विज्ञापन का गुण जानते हैं। सामान की गुणवत्ता का उतना महत्व नहीं होता है जितना कि लोगों को आकर्षित करने का महत्व होता है। उपभोक्ता अपनी जेब से आसानी से पैसे नहीं निकालते किंतु चतुर विज्ञापनदाता जागरूक और कंजूस उपभोक्ता की जेबों से भी पैसे निकाल सकते हैं।
विज्ञापन देने के कई माध्यम हैं। प्रेस विज्ञापन का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं व्यापक माध्यम है क्योंकि यह अधिकतम पाठकों तक पहुंचता है। विज्ञापन के अन्य मीडिया स्रोतों के रूप में रेडियों, सिनेमा, दूरदर्शन, शो-कार्ड, विघुत कौंधशक्ति इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। प्रतिदिन विज्ञापन के नए तरीकों को अपनाया जा रहा है।
पिछले पचास वर्षों के दौरान विज्ञापन इतने महत्वपूर्ण तथा कपटी हो गए हैं कि वे रेफ्रिजरेटर खरीदने के लिए वास्तव में एस्कीमों को भी पे्ररित कर सकते है। विज्ञापन की नई विधियों, साधनों और दाव-पेचों द्वारा बेईमान व्यापारियों और निर्माताओं ने भोली-भाली जनता को अपना शिकार बनाया है। इस प्रकार बिक्री काफी बढ़ गई है एवं भारी लाभ कमाया जाता है। प्रतिस्पर्धात्मक विज्ञापन में विज्ञापनदाता अपने सामान को अपने प्रतिद्वन्दी के सामान से अधिक बेहतर बताने की कोशिश करता है और इस प्रकार अपने सामान के उपभोक्ता समूह को आकर्षित करता है। इस प्रकार से एक बार उसका सामान बाजार में जम जाने पर उसके उपभोक्ता निश्चित हो जाते है तथा उसके सामानों की मांग स्थाई हो जाती है तथा उसकी बिक्री से एक नियत आय सुनिश्चित हो जाती है।
आज की विज्ञापन विधियों का सामान एवं सेवाओं की बिक्री पर विशिष्ट प्रभाव है। किंतु हानिप्रद उत्पादों को विज्ञापन क्रेताओं पर घातक प्रभाव डालते हैं। अतः लोगों को गलत और भ्रामक विज्ञापनों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए सुरक्षा की जरूरत महसूस होने लगी है। विनाशकारी विज्ञापन के गलत एवं भ्रामक कथन को इस प्रकार विज्ञाप्ति किया जाता है कि यह जनता के लिए लाभकारी एवं उपयोगी प्रतीत होता है।
आज के विज्ञापन की नवीनतम फैशनप्रिय विधि युवा एवं खूबसूरत महिलाओं को विज्ञापन में दिखाना है। शायद यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज के विज्ञापन में महिलाओं के शरीर का प्रदर्शन अपरिहार्य बन गया है। विज्ञापित वस्तुओं एवं सेवाओं का महिलाओं से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता है। विज्ञापन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं आकर्षक पहलू यह है कि युवा एवं खूबसूरत महिला को बाईं ओर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है। शायद इस विधि के पीछे यह विचार रहा होगा कि पाठक अत्यंत सम्मोहक महिला को देखकर आकर्षित होंगे तथा उसके बाद उस पर लिखे संदेश भी पढ़ लेंगे। हिंदी समाचारपत्र आम तौर पर भारतीय और हमारे प्राचीन मूल्यों को बरकरार रखने का स्वांग मात्र करते हैं। अधिक बिकने वाले किसी भी समाचारपत्र को देखेंगे तो आपको मुख्य पृष्ठ पर अर्द्धनग्न मुद्रा से खूबसूरत नायिकाओं की उत्तेजन तस्वीरें मिलेंगी। इस समाचारपत्रों के लिए भारतीय नैतिकता तथा आर्दश निसंदेह पवित्र बातें है किंतु समाचारपत्रों की अच्छी बिक्री तभी संभव है जब आकर्षक लड़कियों की अर्द्धनग्न रंगीन तस्वीरें हों और इसी से समाचारपत्रों को अपनी रोटी के लायक धन की कमाई होती है। अधोवस्त्र से सुसज्जति सुंदरियां आसानी से धन कमा लेती हैं। अतः आदर्श मूल्यों के साथ समझौता करना अपरिहार्य हैं।
इस बात पर आम सहमति है कि उपभोक्तागण वस्तुओं की गुणवत्ता परखने में अक्षम हैं। उनकी इसी कमजोरी का गलत फायदा उठाकर विज्ञापनदाता इस तरह के विज्ञापन देते है कि उपभोक्ता उनके इस जाल से फंसकर संदेहास्पद गुणवत्ता की वस्तुएं खरीद लेते है किंतु इससे एकाधिकार बाजार का सृजन होता है जो मूल्य और गुणवत्ता की दृष्टि से मुक्त प्रतिस्पर्धा में आता है। इस बैंरड एकाधिकार से सम्मोहित होकर उपभोक्ता बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद खरीदने से इंकार कर देते है तथा कम गुणवत्ता वाली वस्तुओं को ऊंचे मूल्य पर खरीदने को तैयार हो जाते हैं। इससे उपभोक्तओं द्वारा अनावश्यक मांग बढ़ा दी जाती है चाहे मूल्य उनके लिए वहनीय हों या अवहनीय हों।
विज्ञापनों के दुरूपयोग से एक और खतरा यह है कि वस्तुओं के निर्माण से अधिक व्यय विज्ञापनों पर किया जाता है। इसके पीछे एकमात्र धारणा यह है कि विज्ञापन पर अधिक धन व्यय करके इसके लिए व्यापक बाजार बनाया जा सकता है। यह धारणा निस्संदेह सत्य है। किंतु इसके भी दो दुष्परिणाम हैं। एक तो यह कि वस्तु का मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक होगा, दूसरे इसकी गुणवत्ता निम्न स्तर की होगी। इसका कारण यह है कि विज्ञापन में काफी खर्च होता है। विज्ञापन में लगाई गई राशि के कारण वस्तुओं की लागत एवं मूल्य बढ़ जाते हैं। यदि विज्ञापन के व्यय की भरपाई के लिए मूल्य में वृद्धि नहीं होती है तो वस्तुओं के निर्माण में सस्ती एवं दोयम स्तर के पदार्थों का उपयोग ही एकमात्र विकल्प बचता है। किसी भी परिस्थिति में, अत्यधिक विज्ञापन लोगों के लिए हानिकारक हैं। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के युग में जब कई लोग वस्तुओं का उत्पादन करते है तो इन दोनों बुराइयों का होना अवश्यम्भावी हैं।
किंतु विज्ञापनों की इन बुराइयों का यह अर्थ कतई नहीं है कि विज्ञापन बुरी चीज है। किसी चीज का बुराई का अर्थ यह नहीं है कि वह महत्वहीन एवं अनुपयोगी है। हमें विज्ञापन का प्रयोग जनता को केवल उपलब्ध उत्पादों की जानकारी दिलाने के लिए करना चाहिए। विज्ञापन का उद्देश्य जन-सेवा होना चाहिए न कि आत्म-सेवा। यदि विज्ञापनों में ऐसी बातें हों तो ये उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए समान रूप से लाभकारी होंगे। यदि उत्पादक और वितरक जनसेवा के उद्देश्य से कार्य करें तो पेशेवर नैतिकता के ह्रास का कोई खतरा नहीं होगा। खतरा तो आम लोगों की वस्तुओं की कीमत पर निजी लाभ कमाने के कारण उत्पन्न होता है।
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