बलात्कार का एक चेहरा यह भी
बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो पीड़ित महिला को भीतर तक तोड़ देता है। जिसके कारण पीड़िता जीते जी मर जाती है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि, ‘‘बलात्कार की पीड़ित महिला, बलात्कार के बाद स्वयं अपनी नजरों में ही गिर जाती है, और जीवन भर उसे उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है जिसे उसने नहीं किया।’’
बलात्कार को किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं किया जा सकता, वस्तुतः दुनिया भर की औरतें बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों का शिकार होती हैं। बलात्कार अब शहरों की सीमाओं को लाघंकर गांव-कस्बों में भी पहुंच गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि ‘भारत देश में प्रतिदिन लगभग 50 मामले बलात्कार के थानों में पंजीकृत होते हैं।’ इस प्रकार भारत भर में प्रत्येक घंटे दो महिलाएं बलात्कारियों के हाथों अपनी अस्मत गंवा देती है। लेकिन आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई ब्यां नहीं करती।
हालांकि बलात्कार अधिकतर अनजाने लोगों द्वारा किया जाता है, लेकिन अब ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं जिनमें किसी परिचित द्वारा ही बलात्कार किया गया। इन परिचितों में सहपाठी, सहकर्मी, अधिकारी, शिक्षित और नियोक्ता अधिक होते हैं। ‘‘विश्व स्वास्थ संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, ‘‘भारत में प्रत्येक 54वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’’ वही महिलाओं के विकास के लिए केंद (सेंटर फॉर डेवलॅपमेंट ऑफ वीमेन) द्वारा किए गए एक अध्ययन ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए वो चैकाने वाले थे। इसके अनुसार, ‘‘भारत में प्रतिदिन 42 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 35वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’’
क्या यह पूरी सच्चाई ब्यां करती है कि बलात्कार के आंकड़ों से बलात्कारों की संख्या निर्धारित की जाए। शायद हम एक पक्ष की बात करते नजर आयेंगे, क्योंकि अगर बलात्कार की पृष्ठभूमि की बात करें तो हम स्वतः समझ जायेंगे कि आज के परिप्रेक्ष्य में बलात्कार हो रहा है या मात्र किसी दबाव या रंजिश के चलते इसको स्त्री समुदाय एक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। शायद मेरी इस टिप्पणी से बहुत सारे लोग सहमत न हो पर, हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
अगर बलात्कार की खबरों पर चर्चा करें तो ऐसी बहुत सारी खबरें हमारे सामने से गुजरती है जिसको गले से उतारना मुश्किल लगता है। एक खबर, ‘28 साल के युवक ने 32 वर्ष की महिला को अपनी मोटर साइकिल में लिफ्ट दी, और फिर खेत में ले जाकर बलात्कार किया। एक और खबर, 20 साल के युवक ने 19 साल की लड़की को पुलिया के नीचे खीच कर बलात्कार किया। ऐसी तमाम खबरों से हम समाचारपत्र व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा रूबरू होते रहते हैं। इनमें कितनी सच्चाई है यह मैं और आप नहीं बल्कि वो दोनों ठीक तरह से बता सकते हैं।
आज के परिपे्रक्ष्य में जिस तरह का माहौल हमारे बीच में तेजी से पनपा है उससे हम सब अंजान नहीं हैं कि किस तरह युवक और युवती दोनों में प्रेमालाप पनपता है और फिर एक समय सीमा के उपरांत यह प्रेम शारीरिक संबंधों में तबदील हो जाता है। ऐसा नहीं है कि प्रेम के बाद इन लोगों के बीच संबंध बने ही, परंतु अधिकांश 10 में से 9 लोगों के बीच संबंध स्थापित हो ही जाते हैं, जो समाज की नजर से नहीं आते। इसे एक विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण कहें या फिर शरीर में आये हारमोन का बदलाव, सोचने वाली बात है। वहीं इस लुकाछिपी के खेल में कभी-कभार इनके संबंधों की जानकारी लड़की के परिजनों को पता चल जाती है तो सारी प्रेम कहानी एक सिरे से खारिज कर लड़की के परिवार वाले लड़की पर दबाव बनाकर लड़के पर बलात्कार का झूठा आरोप लगवा देते हैं। जिसकी सुनवाई हमेशा से ही लड़की के पक्ष में होती है। क्यांेकि लड़की को पीड़ित के दृष्टिकोण से देखा जाता है।
बलात्कार का एक और चेहरा हमारे समाने परिलक्षित होता है जिसकी हकीकत से सभी बेखबर और पुलिस के नजरियें से इन खबरों को प्रकाशित करने वाले पत्रकार और समाज का एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग इस तरह के प्रेमालाप को बलात्कार मान लेता है। मैं यह नहीं कर रहा हूं कि बलात्कार नहीं होते, बलात्कार होते हैं, नन्हीं बच्चियों के साथ, वृद्धाओं के साथ, सामूहिक लोगों द्वारा, अपनी हवस का शिकार इन लड़कियों को बना लेते हैं। जो कभी-कभी समाज के समाने आ जाती हैं और बहुत बार एक चार दीवारी में दम तोड़ देती हैं। फिर भी एक लड़का एक लड़की के साथ बलात्कार नहीं कर सकता जब तक उनकी सहमति न हो। इस बात को खारिज करने के लिए महिला समुदाय मेरे विपक्ष में खड़ी हो सकती हैं, इसके साथ-साथ शायद एक वर्ग मेरे भी पक्ष में खड़ा हो जो मेरी बात से सहमति रखता हो, कि बलात्कार का एक और चेहरा जो समाज के समाने नहीं आ पाता और उसे बलात्कार का नाम दे दिया जाता है।
इस आलोच्य में कहा जाए तो बलात्कार के कानून में संशोधन की आवश्यकता महसूस होती है। कि बलात्कार की पूछताछ दोनों पक्षों से सख्ती से होनी चाहिए, यदि बलात्कार हुआ है और सारे सबूत बलात्कारी के विपक्ष में जाते है तो उसे सजा होनी चाहिए। जबकि पुलिस पूरे मामलें को एक पक्ष से न देखकर विभिन्न दृष्टिकोणों से इसकी जांच करें कि क्या इनके बीच कभी कोई प्यार जैसा संबंध या फिर किसी रंजिश के चलते तो ऐसा नहीं किया जा रहा है। इसकी गहनता से जांच होनी चाहिए। तब जाकर बलात्कार की हकीकत सबसे समाने आ सकेगी।
1 comment:
गजेन्द्र जी,
लेख की कुछ बातों से सहमत कुछ से नहीं.बलात्कार के बाद यदि महिला इस हद तक टूट जाती हैं तो इसका एक कारण हम खुद भी हैं जो कई बार जाने अनजाने में पीडिता को ही और दुखी कर देते हैं.आपने भी एक जगह 'अस्मत लुटा चुकी' शब्दों का प्रयोग किया हैं कृप्या ऐसी शब्दावली से बचें.आज हमारा समाज स्त्रियों को लेकर जो रवैया रखता हैं मुझे नहीं लगता कि ऐसे में किसी महिला द्वारा बलात्कार का बल्कि छेडछाड का भी झूठा इल्जाम लगाना इतना आसान हैं बल्कि कई मामले तो सामने ही नहीं आ पाते.बहुत से लडके शादी का झाँसा देकर अथवा कोई दूसरी तरह का कोई लालच देकर लडकियों से संबंध बना लेते हैं पर बाद में मुकर जाते हैं मेरी नजर में यह बलात्कार या यौन शोषण ही हैं.एक महिला के सम्मान और विश्वास का बलात्कार.हाँ कुछ मामले ऐसे होते हैं जिसमें लडकी या महिला बहुत सोच समझकर फायदे के लिए संबंध बनाती हैं और इसके बदले में वो जो चाहती हैं मिलता भी हैं लेकिन जब लडका अपनी तरफ से संबंध खत्म करने की बात करता हैं तो उस पर यौन शोषण का आरोप लगा देती हैं.ये जरूर गलत हैं.आपने परीजनों के दबाव में आकर लडकी के बयान वाली बात कही बहुत से मामलों में वह भी सही हैं.जहाँ तक बात हैं पीडिताओं से कडी पूछताछ करने की तो मैं इसके पक्ष में बिल्कुल नहीं हूँ.यह अमानवीय हैं.एक बार सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका हैं कि बलात्कार पीडिता पर सबूतों के लिए दबाव डालना स्त्रीत्व के खिलाफ हैं और फिर आप तो जानते ही हैं कि पुलिस का रवैया महिलाओं को लेकर पहले ही कितना खराब हैं.
फिर भी कहूँगा कि आपके कुछ सवाल अच्छे हैं.लेकिन कमी हमारे अंदर भी हैं कि हमने एक ऐसा समाज बना दिया हैं जिसमें महिला हर हाल में दोयम हैं यही कारण हैं कि कई बार पुरुष दोषी नहीं भी होता हैं तो भी गलत वही लगता हैं और महिला पीडित.पहले आईये इस असमानता को खत्म करने की पहल करें फिर देखिए पुरुषों को लेकर भी कैसे सभी का नजरिया बदलता हैं.
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