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Monday, January 30, 2012

गांधी के पीछे दुनिया सारी


गांधी के पीछे दुनिया सारी



29 जनवरी, 2012 शाम के 7 बजे दोस्त का फोन आया। बोला क्या कर रहे हो? मैंने कहा कुछ खास नहीं, तब उसने कहा, कल का कुछ याद है। मैंने तुरंत ही कहा, हां याद है। कल तुम्हारा जन्मदिन है मैं कैसे भूल सकता हूं? तो उसने कहा कि, कल हम पव में चलेंगे, कुछ रूपये का इंतजाम करके आना। मैंने कहा ठीक है, उसने इतना कहकर फोन काट दिया।
कल पव जाना है और कुछ रूपये भी साथ ले जाना है, इसी कशमकश में, मैंने अपने पेंट की पॉकेट  में हाथ डाला, और पर्स को निकाल लिया। पर्स खोलकर देखा तो उसमें हरे रंग का एक नोट दिखाई दे रहा था। जिस देखकर पहचाना जा सकता है कि वो नोट कितने का होगा, यानी पांच सौ का नोट। पांच सौ के नोट को पर्स से निकालने के बाद दुबारा उसे पर्स में रख लिया और अपने लैपटॉप  पर काम करने लगा। काम करते-करते रात के 9 बज चुके थे। सोचा खाना खा लिया जाए नहीं तो खाना नहीं मिलेगा। तब लैपटॉप  को स्लीप मोड पर रखकर, मैं खाना खाने मेस में चला गया। खाना खाने के बाद कुछ समय मैंने टहलते हुए मोबाइल को भी दिया। रात के 10 बजकर 30 मिनट को पुनः अपने लैपटॉप  को ऑन करके अधूरे काम को पूरा करने में जुट गया। तब याद आया कि दोस्त को 12 बजे जन्मदिन की बधाई देनी है। फिर इकाइक मेरा ध्यान पर्स में रखे 500 के नोट पर चला गया। मैंने पर्स को उठाकर नोट बाहर निकाल लिया, और देखने लगा। मेरी दृष्टि नोट पर छपी गांधी की तस्वीर पर गई, तब याद आया कि 30 जनवरी को तो गांधी की पुन्यतिथि है। आज के दिन गांधी को नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी थी। मेरा चिंतन मन गांधी के बारे में सोचने लगा, कि उन्होंने क्या अच्छा किया था और क्या बुरा? सोचते-सोचते 12 कब बज गए पता नहीं चला। मैं दोस्त को जन्मदिन की बधाई भी नहीं दे पाया। सोचा कल ही दे दूगां। फिर मेरा ध्यान गांधी जी की वस्तुओं पर चला गया कि आज भी उनकी वस्तुओं को सजोकर संग्रालय रखा गया है, खडाऊ, लाठी, धोती और उनका चस्मा, जो कभी-कभी गायब हो जाता है और पुनः कहीं से प्रकट भी हो जाता है। जिसे लोग असली मान लेते हैं। उनके बारे में सोचते हुए मेरी आंख लग गई।
सुबह के 10 बजे मैं सोकर उठा और अपनी दिनचर्या में लग गया। दोपहर के 1 बजे मैंने दोस्त को फोन लगाया। कि मैंने पव नहीं आ सकूगां, दोस्त ने कहा, क्यों किसी से मिलने जाना है? मैंने कहा नहीं। उसने पूछा तब क्या बात है? मैंने कहा, तुम्हें पता है कि आज गांधी जी की पुन्यतिथि है, दोस्त ने कहा, कहां गांधी के चक्कर में फंस गए, गांधी को मारो गोली और रात को ठीक 8 बजे पव पहुंच जाना। इतना कहकर फोन काट दिया। 
मैं बड़ी असमंजस की स्थिति में आ गया, एक तरफ गांधी जी की पुन्यतिथि, दूसरी तरफ दोस्त का जन्मदिन। मन मारके आखिरकार 8 बज में पव पहुंच ही गया। वहां पहुंचकर देखा तो कम-से-कम 70-80 जोड़े, शराब के नशे में बेसुध होकर डिस्को की धुन पर थिरक रहे थे, उनमें से कुछ जोड़ें आपत्तिजनक स्थिति में भी थे। जैसी पव की संस्कृति है वैसे ही। मैं और मेरे दोस्त ने भी एक-एक पैग का ऑर्डर  दिया। मैंने अपने पर्स में से वही पांच सौ का नोट निकाला और उसे देखने लगा। फिर मेरा ध्यान गांधी पर चल गया कि आज गांधी जी की पुन्यतिथि है। तभी बार मालिक ने कहा क्यों नोट नकली है क्या? मैंने मुस्कुराते हुए कहा, नहीं भाई, नकली नहीं है। इस नोट पर छपे गांधी को देख रहा हूं आज उनकी पुन्यतिथि है। तब बार मालिक और मेरा दोस्त दोनो खुलकर हंसने लगे, जैसे मैंने कोई जोक्स मारा हो?
पांच सौ के नोट को बार मालिक ने ले लिया और कहा। इन लोगों को देखों जो शराब के नशे में अपने परिजनों को धोखा देते हैं गलत काम करते हैं, जिनके लिए उनका सुख ही सबकुछ है। जब वो अपनों को भूल जाते हैं और तुम गांधी की बात कर रहे हो। गांधी ने शराब को बुरा कहा, तभी तो गुजरात और वर्धा में शराब पर प्रतिबंध लगा हुआ है। इसके बावजूद सबसे अधिक मात्र में शराब वहां ही बिकती है, वो भी ब्लैक में। मांस खाना बुरा कहा और भारत में ही सबसे ज्यादा मांस खाया जाता है। अगर कहें तो हमें चलने वाले नेताओं को उनके द्वारा दिये गये उपदेश भी याद नहीं रहते तो हमें  क्या पड़ी है। खाने को तो नहीं दे जाएगें गांधी? काम तो करना ही पडेगा, गांधी को पाने के लिए। क्योंकि गांधी की हर जगह मांग है, गांधी के पीछे ही पूरा देश लगा हुआ है उन्हें हासिल करने के लिए, चाहे जैसे भी हो। एक तरफ नेता, बाहुबली, भ्रष्टाचारी हैं जो अपनी तिजौरी में गांधी को कैद करना चाहते है जिसके लिए वो अपना जमीर तक बेच देते हैं। तो दूसरी तरफ गरीबी, भूखमरी है, दो वक्त की रोटी पाने के लिए अपना जिस्म भी बेच देते हैं। इनके नसीब में गांधी नहीं होते। 
मेरा माथा कुछ शराब से तो कुछ बार मालिक की बातों से ठनक चुका था, सोचने लगा था कि ये बार मालिक सही कह रहा है या गलत? फिर मेरे दोस्त ने कहा क्यों गांधी के नाम पर मेरे जन्मदिन की वाट लगाने पे तुला है। मेरा ध्यान गांधी से हटकर दोस्त पे चला गया। दोस्त ने एक-एक पैग का ऑर्डर  दिया जिसको पीने के बाद पुनः एक-एक पैग का ऑर्डर । जैसे-जैसे शराब का सुरूर चढ़ता जा रहा था, गांधी का नशा उतरता जा रहा था। पैग पीने और डिस्कों की धुन पर नाचने के बाद, दोस्त ने कहा-चल अब हमें होस्टल चलना चाहिए, रात बहुत हो चुकी है। और हम एक गाड़ी में सवार होकर अपने होस्टल आ गए। कमरे में आने के बाद, बेड पर लेट तो, कब आंख लग गई, कुछ पता ही नहीं चला और न ही ये पता चला कि गांधी जी कहा गायब हो गए।

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