अधिकारों का दुरूपयोग
मानव के लिए अधिकार जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा, सौहार्द और न्यायिक अभिधारणाओं को उजागर करने के साधन हैं। इन अधिकारों के स्वाभिक और सम्यक् प्रवर्तन हेतु लोकतांत्रिक स्तंभों के रूप में कार्यपालिका,विधायिका,न्यायपालिका तथा प्रचार साधनों का साध्य के निमित्त कार्य करना मानवधिकारों की सहज एवं समुचित मांग है। इस मांग की प्रतिपूर्ति के लिए संविधान एक यंत्र के रूप में कार्य करता है। संविधान में मानव को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विधि के समक्ष समता का अधिकार,मताधिकार एवं न्याय पाने का अधिकार आदि शामिल है। इन अधिकारों का संरक्षण आज विश्व के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। समकालीन परिवेश में संपूर्ण मानवजाति शोषण,अत्याचार एवं उत्पीड़न से पीड़ित है। इस अत्याचार, शोषण के उत्पीड़न से शोषित व्यक्ति को बचाने के एवज में संविधान द्वारा बहुत से अधिकारों का निर्माण किया गया है जिसका उल्लघंन करने पर दोषी व्यक्ति न्यायिक दंड का भागीदार होगा।
परंतु आज शोषित व्यक्ति को प्रदत्त अधिकारों का दुरूपयोग करते देखा जा रहा है। चाहे दहेज हो, बलात्कार हो या फिर अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट। सबका दुरूपयोग हो रहा है। मैं यहां बात को घुमा-फिरा के कहना नहीं चाहता, न ही, अपने आलेख को लंबा करना मेरा कोई मकसद है। मैं यहां अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट की बात कर रहा हूं। कि इसका प्रयोग दलितों को अपने शोषण से मुक्ति के लिए नहीं अपितु दूसरों को झूठे मुकदमें में फंसवाने के लिए किया जा रहा है। वैसे अनुसूचति जाति-जनजाति एक्ट का मूल उद्देश्य यह है कि कोई भी स्वर्ण, बाहुबलि व्यक्ति किसी दलित व्यक्ति को उसकी जाति से संबोधित नहीं करेगा,यदि वह ऐसा करता है तो दंड का हकदार होगा।
इस अलोच्य में बात करें तो ऐसे कितने केस हैं जिसमें अभियुक्त ने जाति सूचक शब्द का प्रयोग किया हो। फिर भी झूठे मुकदमें के चलते सजा काट रहे हैं। आमतौर पर देखा गया है कि यदि किसी दलित की लड़ाई किसी सवर्ण या अन्य जाति के व्यक्ति से हो जाती है तो दलित व्यक्ति उस व्यक्ति पर मार-पीट के अलावा अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट भी लगवा देता है। क्या यह अधिकार का दुरूपयोग नहीं हैं जिसे आज के परिप्रेक्ष्य में दलित ब्रह्मअस्त्र के रूप में प्रयोग कर रहा है। अभी कुछ दिनों पहले की बात है एक दलित व्यक्ति ने एक सवर्ण लड़कें को किसी कारण के चलते उसकी पिटाई कर दी, जब उस लड़के ने लिखित सूचना दी तो दलित व्यक्ति ने अपने कुछ मित्रों के सहयोग से उस लड़कों को यह धमकी दी कि यदि तुमने मेरे खिलाफ शिकायत की तो मैं तुझ पर अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट लगवा दूंगा और तुझे जेल हो जाएगी। इससे भयभीत होकर उस सवर्ण लड़के के मार-पीट की शिकायत वापस ले ली। जिससे उस दलित व्यक्ति का घमंड और बड़ गया।
क्या यह दलित को प्रदत्त किए गए अधिकारों का दुरूपयोग नहीं है। जिसका प्रयोग वह अपने बचाव के लिए आए दिन कर रहा है। अगर उनसे बात करों तो साफ तौर पर जवाब में उत्तर मिलता है कि यह हमारा अधिकार है जो हमें संविधान से प्राप्त हुआ है। मुझें यह सब देखकर और सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है कि हम किसी ओर अग्रसर हो रहे हैं और क्या यही विकास का मार्ग है जिसमें अपने अधिकारों का गलत उपयोग कर दूसरों का शोषण किया जाए।
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