आम जन तो अपनी समस्या को लेकर आये दिन कही न कही अनशन पर बैठा दिख ही जाता है, उनके बारे में कोई सरकार या प्रशासन नहीं सोचना न ही देखता है कि क्या मांग है. क्यों ये लोग अनशन पर बैठे है. इन्ही के स्था्न पर कोई राजनेता अनशन पर बैठ जाये तो सरकार में खलबली मच जाती है. क्या अनशन पर बैठ जाना, और फिर मांग रखना, ये चाहिए वो चाहिए मांग पूरी नहीं की तो अनशन जारी रहेगा, जिस पर सरकार अपना रवेया बदलकर उनकी मांगों को पूरा करने लगती है. यानी आप नेता होंगे तभी आपकी मांगों को पूरा किया जायेगा. आम जन की कहा सुनवाई होती है. जिस प्रकार आंतकवादी किसी का अपहरण कर फिर सरकार से अपनी मांगों को पूरा करने पर बल देते है, कि मेरी मांग पूरी नहीं की तो हम लोग ऐसा कर देगें, वैसा कर देगें. उसी तर्ज पर नेता अनशन पर बैठ जाते है.
अन्ना हजारी के अनशन पर बैठते ही सभी पार्टियों के उनको भुनाना शुरू कर दिया. विपक्षी पार्टी तो मौजूदा सरकार पर टीका टिप्पणी करती नजर आयीं. बहती गांगा में सभी हाथ धोना चाहते है, अन्ना हजारी की गांगा में सभी ने हाथ धो लिए. क्योंकि वो नेता थे, आम जन नहीं, आम जन होते तो शायद उनका अनशन, ईरोम शर्मिला की तरह १० साल तक चलता रहता और कुछ नहीं होता.
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