पुरूष प्रधान समाज में हमेशा से नारी शोषण होता आ रहा है पुरूष बल पूर्वक नारी के अधिकारों को छीनता रहा है, मध्यकाल हो या उत्तर वैदिककाल, नारी पर अत्याचार होते रहे हैं। कभी दासी, कभी पत्नी, कभी रखैल बनाकर, उनका शोषण पुरूष समाज ने किया है। जो नियम पुरूष समाज को सहुलियत प्रदान करते थे उनको और हवा दी, तथा जो अधिकार स्त्रियों के पक्ष में थे, उन पर प्रतिबंध लगाया गये, ताकि अपना आधिपत्य और नारी उनके वश में बनी रहें। इसलिए पुरूश समाज ने वो सारे नियम को जो महिलाओं के पक्ष में थे धीरे-धीरे समाप्त कर दिया था। एक बात और आज तक जितने भी युद्ध हुये है उनका मुख्य कारण केवल स्त्री रही है। जैसे राम-रावण युद्ध, पाडंव-कौरव युद्ध और पृथ्वीराज चौहान-जयचन्द युद्ध आदि। वैसे वैदिक काल में नारी को अर्धांगिनी कहकर संबोधित किया जाता था। पुत्र-पुत्री के पालन-पोशण में कोई भेदभाव नहीं होता था। उपनयन संस्कार पुत्र एवं पुत्री दोनों को मिलते थे। िशक्षा प्राप्त करने को अधिकार भी स्त्रियों को पुरूशों की भान्ति ही था। विधवा पुनर्विवाह तथा पिता की सम्पत्ति में भी उनका अधिकार होता था। इस युग में पर्दां प्रथा जैसी कुप्रथा का प्रचलन नहीं था, तथा स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरूशों से पीछे नहीं थी। उत्तर वैदिककाल में महिलाओं की स्थिति में जरूर गिरवट आयी, इस काल में पुत्र प्राप्ति की इच्छा पर जोर दिया जाना आरम्भ हो गया था, तथा बाल विवाहों को प्रचलन एवं विधवा पुनर्विवाह पर रोक लगा दी गई थी। मध्यकाल स्त्रियों की दृिश्ट से काला युग कहा जा सकता है। इस युग में महिलाओं के साथ जोर-जबरदस्ती की घटनाओं होना आम बात हो गई थी। पर्दा प्रथा, बाल विवाह, वैश्यावृत्ति, सती प्रथा इत्यादि कुप्रथा अपनी चरम सीमा पार कर चुकी थी। महिलाओं को पतिधर्म एवं उनके आदेशों को पालन करने के निर्देशों को इसी युग में महिलाओं पर थोपा गया था।
इस बात को मानने में किसी तर्क या प्रमाण की आवश्यकता नहीं पडे़गी, कि महिलाओं के अधिकारों का हनन, महिलाओं को प्राप्त अधिकारों के बावजूद होता है। पुरूशों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार किया जाता है, पर कितने प्रतिशत र्षोर्षो यह शोध का विशय है। आज महिलायें पुरूशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। ऐसा कोई भी क्षेत्र महिलाओं से अछूता नहीं रह गया जहां महिला काम नहीं कर सकती।
वर्तमान परिवेश में महिलायें अपने अधिकारों को दुरप्रयोग करने लगी हैं। महिलाओं को प्राप्त अधिकारों में से दो अधिकार, महिलाओं के लिए रामबाण हो सकते हैं, परन्तु पुरूश समाज के लिए यह किसी ग्रहण के समान ही हैं।
छेड़छाड़/बलात्कार। दहेज ।
आज के बदलते दौर में स्त्री का पुरूश के संपर्क में आना आम बात है चाहें उम्र कोई भी हो। कम उम्र के लड़के-लड़कियां प्यार के बारे में जानने व समझने लगे है। वो यह भी समझने लगे है कि प्यार केवल एक धोखा है, ये मात्र शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इसे प्यार का नाम दिया गया है। इस प्यार पर जब तक कोई आंच नहीं आती, जब तक कि यह समाज के समाने या लड़की के परिजनों की नज़रों से बचा रहता है। मुसीबत तो तब आती है जब ये समाज के सामने उजागर हो जाते है या शारीरिक सम्बंध बनाते इन्हें कोई देख लेता है। तब लड़की/लड़की के परिवार वाले लड़के पर निश्चत तौर पर बलात्कार का केस दर्ज कराते है। कि इस लड़के ने मेरी लड़की के साथ बलात्कार किया है और लड़की भी अपने परिवार का ही सहयोग करती है। ताकि वो समाज में सहनुभूति प्राप्त कर सकें। आज तो कानून इतने शक्त हो गये है कि महिला चाहे तो किसी भी पुरूश पर छेड़छाड़/बलात्कार का आरोप लगा सकती है, पुरूश केवल अपने आप को निर्दोश साबित करने में ही लगा रहता है। पुरूश के पास इस ग्रहण से बचने को कोई उपाय नहीं है। महिलाओं के पास जो दूसरा रामबाण है उसका प्रयोग करने पर इंसान स्वयं ही नही उसके परिवार वालों को भी इसका परिणाम भुगतना पड़ता है। दहेज लेना व देना आम बात हो चुकी है यदि किसी को अपनी लड़की की शादी किसी अच्छे लड़के से करनी है तो वो स्वयं दहेज का प्रस्ताव रखते हैं कि आप कितना दहेज लेगें। ये बात सही है कि, लक्ष्मी आती किसी अच्छी नहीं लगती। जैसा कि मैंने ऊंपर लिखा है कि आज सभी वर्ग के लड़के -लड़कियां प्यार के माया जाल में फंस चुके है या फंसने जा रहे है। जब लड़की के मां-बाप लड़की की रजामन्दी के बावजूद उसकी शादी किसी और के साथ कर देते है तब लड़कियां छोटी सी बात को बहुत अधिक बड़ा देने का काम करती है और वो पति के घर को छोड़कर, मायके वापस आ जाती है। मायके आते ही वो अपने पति व रिस्तेदारों पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करवा देती है।
कुछ महिलायें इन अधिकारों का प्रयोग पुरूशों को नीचा दिखाने में भी कर रही हैं। बलात्कार एवं दहेज के आरोपों से बचने के लिए पुरूश के पास कोई अधिकार नहीं है और न ही कोई न्यायिक व्यवस्था। क्या इसी को समानता का अधिकार कहते है। कानून की किताब में लिखा है कि `` 100 दोशी भले ही छूट जाये पर किसी निर्दोश को सजा नहीं होनी चाहिए।´´
इन महिलाओं द्वारा पुरूशों पर लगाये जाने वाले ये झूठें आरोप से, महिलायें पुरूश का मानसिक बलात्कार जरूर कर रही हैं। आज हर 10 में से 9 प्रेम सम्बंध में लिप्त है उसी प्रेम सम्बंध के चलते लड़की के माता-पिता उसकी शादी दहेज देकर कहीं दूसरी जगह कर देते है। यह बात लड़की को गवारा नहीं होती। जिसका भुगतान लड़कों व उनके परिजनों को करना पड़ता है। लड़की दहेज हो अपना हथियार बनाकर लड़के के ऊपर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करवा देती है। जिसके चलते उन्हें समाज व कानूनी, मानसिक व शारीरिक यातनाओं का समाना करना पड़ता है। मानव अधिकार आयोग द्वारा महिलाओं को दिये गए दो अधिकारों में संशोधन की जरूरत है, और पुरूशों के लिए पुरूश अधिकारों का निर्माण करें। ताकि वे झूठे आरोप से बच सके, और पुरूशों को भी न्याय मिल सकें।
गजेन्द्र प्रताप सिंह
पीएच-डी (जनसंचार)
महात्मा गांधी अन्तरराश्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,
वर्धा (महाराश्ट्र)
मो. 09960540397
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