सरोकार की मीडिया

test scroller


Click here for Myspace Layouts

Monday, May 20, 2013

क्यों परेशान हो रहे हो?


क्यों परेशान हो रहे हो?

हमकों मालूम न था क्या कुछ है घर में बेचने को......... ज़र से लेकर ज़मीन तक हर चीज़ बिकाऊ है। ग़ालिब की यह चंद लाइनें आज आम जनता से लेकर लोकतंत्र के चारों स्तंभों कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। जिसने आज हमारे समूचे लोकतंत्र व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। चारों तरफ बाज़ारवाद हावी हो चुका है। सब-के-सब बिकने के लिए खड़े हैं बाज़ार में। बस खरीददार चाहिए, बोली लगाने वाला चाहिए। क्योंकि आज के परिप्रेक्ष्य में नेता से लेकर अभिनेता तक, वेश्या से लेकर खिलाड़ी तक सभी बिकाऊ हैं। फिर क्यों परेशान हो रहे हैं हम। चाहे वो पुलिस हो या मीडिया। आप सोच रहे होगें कि मैं किस मुददे पर चर्चा कर रहा हूं। तो बता दूं कि मैं मैंच फिक्सिंग में फंसे श्री के संत और अन्य खिलाड़ियों की बात कर रहा हूं। जिसको लेकर पुलिस और खास तौर पर मीडिया बहुत व्याकुल नजर आ रहा है। और वह न जाने कौन सा तानाबाना बुन रहा है, समझ से जुदा है।
वैसे यह कोई पहला मामला तो है नहीं, फिक्सिंग का। अगर श्रीसंत और अन्य खिलाड़ियों ने मैंच फिक्स कर भी लिया और उस एवज में चंद रुपए ले भी लिए तो क्या गुनाह कर दिया। हालांकि आईपीएल-6 में हो चुके करोड़ों के घोटालों और हर रोज हमारे नेताओं द्वारा किए जा रहे घोटालों से तो कम है। फिर भी कहीं न कहीं नेताओं द्वारा किए गए घोटालों से प्रेरणा लेकर इसने यह कदम उठाया होगा। क्योंकि आए दिन नेताओं द्वारा किए जा रहे घोटालों और मीडिया द्वारा उनकी प्रस्तुति का ढंग भी इस मैंच फिक्सिंग के जिम्मेवार हैं। क्योंकि नेता अरबों का घोटाला करते हैं और मीडिया दिखाता है कि फलां-फलां नेता ने इतने अरबों का घोटाला किया है। नेता को पुलिस ने उसके आवास से पकड़ लिया है। सरकार ने सीबीआइ जांच के आदेश दे दिए हैं तथा जांच के लिए एक कमेटी का भी गठन कर दिया है जो पूरे प्रकरण पर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगी। वहीं कुछ दिनों के बाद अपने जेल कार्यक्रम के उपरांत यह नेता पुनः अपनी गद्दी की शोभा बढ़ाते नजर आ जाते हैं। होता क्या है कुछ नहीं। फिर इतनी हाय-तौबा आखिर क्यों?
सरकार को मैंच फिक्सिंग की रकम से कुछ दान-दक्षिणा या चढ़ौत्री चाहिए हो तो इस पर भी एक कर लागू कर दें और उसका नाम रख दें मैंच फिक्सिंग टैक्स। यानि खिलाड़ी व सटोरिए जितने रुपए में मैंच को फिक्स करेंगे उन रुपयों का 40 या 50 प्रतिशत टैक्स के रूप में सरकार को देना होगा। इससे सरकार भी खुश हो जाएगी और खिलाड़ी भी। इसके साथ-साथ सट्टेबाज भी तथा पुलिस व सीबीआइ को भी परेशान नहीं होगा पड़ेगा। अगर वास्वत में मैंच फिक्सिंग से सरकार तिलमिला रही है तो पहले उसे अपने गिरेवान में झांककर देखने होगा कि उसके दामन में कितने दाग लगे हैं और लगते जा रहे हैं।
मेरे हिसाब से तो जितना रुपया मैंच फिक्सिंग में इन खिलाड़ियों को मिला है उतना रुपया जब्त करके छोड़ देना चाहिए इन खिलाड़ियों को। परंतु नहीं इन खिलाड़ियों की कोई भी वकालत क्यों नहीं कर रहा समझ से परे लग रहा है। हां वैसे हमारे काटजू साहब को तो इन खिलाड़ियों का पक्ष लेना चाहिए था वो भी नदारत नजर आ रहे हैं। शायद कोई कानून तलाश कर रहे होंगे इन खिलाड़ियों के पक्ष में बोलने तथा इनकों बचाने के लिए। ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। हालांकि मैं इसके पक्ष में कदापि नहीं हूं फिर भी लगने लगा है कि समाज अपने विनाश की ओर अग्रसर हो चुका है। तभी तो इसकी लौ का अपने पुरजोर तरीके से फड़फड़ा बदस्तूर जारी है। अब देखना बाकी है कि कब इसका पूर्णतः अंत या विनाश होगा। क्योंकि सभी कुछ खरीद लिया इन खरीददारों ने।

No comments: