एक नई प्रथा की शुरूआत
‘‘अनुच्छेद 2 के अनुसार, ‘दहेज’ का शब्दिक अर्थ ऐसी प्रॉपर्टी या मूल्यवान वस्तु (समान, पैसा या और कोई वस्तु) से है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
लड़की पक्ष द्वारा लड़के पक्ष को दी जाती है।’’ दहेज
की परिभाषा देते हुए फेयर चाइल्ड ने लिखा है कि, ‘‘दहेज वह धन या संपत्ति है जो विवाह के उपलक्ष्य पर लड़की के माता-पिता
या अन्य संबंध्यिों द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है।’’ दहेज एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके चलते सैकड़ों नव विवाहिताओं को आज
भी असमय मौत का ग्रास बनाना पड़ता है। इसमें भी सबसे ज्यादा मौतें जलने के कारण ही
होती हैं। कुछ युवतियों को ससुराल पक्ष द्वारा जबर्दस्ती जिंदा जला दिया जाता है, तो कुछ औरतों को दहेज के लिए ससुराल
में इतना परेशान किया जाता है कि वे जलकर आत्महत्या कर लेती हैं।
‘‘आंकड़ें
गवाह हैं कि अधिकांश दुल्हन जलाने की घटनाएं या दहेज मौतें या विवाहिता हत्या के
मामले लड़की की ससुराल वालों की उन अतृप्त मांगों के परिणाम होते हैं, जिन्हें लड़की के माता-पिता पूरा नहीं
कर पाते हैं।’’ दहेज का आर्थिक पक्ष इस कुरीति का सबसे
खौफ़नाक पक्ष है। यदि वर पक्ष को इच्छित दहेज नहीं मिलता, तो वह नव विवाहिता पर शारीरिक और
मानसिक जुल्म देना शुरू कर देता है। नव विवाहिता को तरह-तरह से तंग किया जाता है।
उसे अधिक-से-अधिक दहेज लाने के लिए विवश किया जाता है। कई बार तो ऐसा भी होता है
कि वधू पक्ष द्वारा मांगों की पूर्ति न होने पर नव विवाहिताओं की हत्या तक कर दी
जाती है। इसके अलावा कई बार ससुराल पक्ष की शारीरिक प्रताड़ना और दुव्र्यवहार से
तंग आकर नव विवाहिता भावनात्मक रूप से बिल्कुल टूट जाती है। और, अंततः वह आत्महत्या का रास्ता चुन लेती
है।
वैसे लड़कियों के परिजनों व लड़कियों को अब दहेज
के लिए प्रताड़ित व ससुरालजनों का शोषण नहीं सहना पड़ेगा। आप सभी सोच में होगें कि
सरकार ने कोई विशेष कानून को पारित किया है जिसके चलते लड़कियों को दहेज का दंश
नहीं झेलना पडे़गा। तो ऐसा कुछ भी नहीं है। सरकार तो अपने ढर्रें पर चल रही है।
हालांकि पूर्व में दहेज की पृष्ठभूमि को देखें तो दहेज जिसके लिए लड़कियों को सदियों
से प्रताड़ित किया जाता रहा है और साथ ही साथ लड़कियों के परिजनों को दहेज की
प्रतिपूर्ति हेतु स्वयं को बेचने पर मजबूर किया जाता रहा है। ताकि वह विवश होकर
दहेज की पूर्ति कर सकें। क्योंकि उनको अपनी लड़की को हर हाल में खुश जो रखना है, नहीं तो ससुराल वाले दहेज की पूर्ति न
होने पर लड़की पर अत्याचार करने लगते हैं।
हालांकि मैं दहेज के दंश की बात कर रह हूं कि
अब लड़की वालों को दहेज के लिए न तो चिंता करने की बात है और न लड़की को अत्याचार
सहने की। क्योंकि उत्तर प्रदेश के जिला ललितपुर में एक नई प्रथा की शुरूआत हो चुकी
है जिसमें लड़की के परिजनों को दहेज देने की वजह उसके विपरीत दहेज मिलना शुरू हो
चुका है। चैंकिए मत मैं कोई मजाक नहीं कर रहा हूं मैं, आप लोगों को हकीकत से रूबरू करवा रहा
हूं कि जिला ललितपुर में उल्टी गंगा बहने लगी है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि जिला
ललितपुर में जहां जैन समुदाय के लोगों की संख्या अन्य समुदाय के लोगों से ज्यादा
है और इस जैन समुदाय के लड़कों की शादी हेतु लड़कियों का आकाल पड़ा हुआ है। जिस कारण
से जैन समुदाय के लड़कों की शादी नहीं हो पा रही है। और उन्हें शादी करने के लिए
लड़की वालों को मुंह मांगी रकम देकर विवाह करने के लिए राजी करना पड़ रहा है। यह एक
नई प्रथा जिसका बीज अंकुरित हो चुका है और जो धीरे-धीरे हर क्षेत्र में रोपित होकर
वृक्ष बनने का आतुर होने वाला है। जिसका मुख्य कारण दिन-प्रतिदिन लिंग अनुपात में
होने वाली कमी है।
वैसे वो दिन अब दूर नहीं है जब यह पौधा एक विशाल
वृक्ष का रूप धारण कर लेगा और दहेज का खात्मा तो न सही परंतु हर समूदाय में यह
परावर्तित हो जाएंगा। तब कहीं जाकर लड़के वालों को दहेज की वास्तविक पीड़ा की
अनुभूति होगी कि किस प्रकार चंद रूपयों के खारित हम लड़कियों व उसके परिवार वालों
को प्रताड़ित करते आए हैं।
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