कुछ तो करना होगा
आज देश के हालात और स्थिति दोनों गुलामी की ओर
पुनः ले जाती हुई दिखाई दे रही है। इस चिंताजनक स्थिति तक देश को पुहंचाने वाले और
कोई नहीं हमारे देश के अपने ही लोग हैं। उन लोगों से आप सब भलीभांति परिचित हैं।
जिनको सिर्फ देश के लुटेरों की परिभाषा से संबोधित किया जा सकता है। हां वैसे
हमारे बीच के ही कुछ लोग उनके नाम के आगे माननीय शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। और
अपने आप को उनका प्रतिनिधि,
कार्यकत्र्ता, दास या चमचा कहलाने में गौरंवित महसूस
करते हैं।
देश की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए दिमाग
इतना असमजस्य में पड़ जाता है कि इनका क्या किया जाए, कभी-कभी तो माननीय भ्रष्टाचारों और उनके पदचिह्नों पर चलने वालों को
गरियाने का या सरे आम बीच चैराहे पर मुंह काला व नंगा करके जूतों और चप्पलों से
पिटाई के बाद गोली मारने का मन करता है। परंतु देश का कानून इसकी इजाजत नहीं देता।
अगर संविधान के कानून में ऐसा कोई भी नियम होता कि जो भ्रष्टाचारों में लिप्त हो
या देश को बर्बादी की ओर ले जा रहा हो उसको कुत्ते की मौत दी जा सकती है तो अभी तक
कई आजाद व गोडसे पैदा हो गए होते।
हां मैं बात कर रहा हूं आजादी से पहले गांधी, आजादी के बाद गांधी परिवार की।
साथ-ही-साथ उन्हीं के पद चिह्नों पर चलने वाले तमाम नेताओं की। मैं किसी एक नेता
या एक पार्टी विशेष पर टीका-टिप्पणी नहीं कर रहा हूं। मैं तो वो तमाम नेताओं व
उनकी पार्टियों पर उंगली उठा रहा हूं जिन पार्टियों से यह नेता लोग सरोकार रखते
हैं। जिनके नाम से यह जनता को दिन-रात लूटने की प्रतिदिन नई-नई योजनाएं बनाते रहते
हैं। क्योंकि जनता ही अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजती है। इसलिए पांच सालों तक इनके
पास आस लगाने के सिवाए और कोई चारा नहीं बचता। जो एक-दो इनके कार्य-कलापों को
विरोध करते हैं उन पर अत्याचारों का और विरोध को पूर्णतः दबाने का प्रयास पुरजोर
तरीके से किया जाता है। क्योंकि सरकार जानती है कि एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। वो
गलतफहमी में है,
हां एक चना भाड़ तो नहीं परंतु यदि वो चना फटे तो किसी-न-किसी की आंख जरूर फोड़ सकता
है। वहीं संपूर्ण जनता बिन पैंदी के लौटे की भांति इधर-उधर लुढकती रहती है।
दो-पांच साल इधर, दो-पांच साल उधर। वो भी कभी जाति के
नाम से, कभी लालच की वजह से और बहुत से लोग इन
नेताओं द्वारा किए गए चुनावी वादों के मोह में आकर। जो हमेशा वादे ही रह जाते हैं
उन वादों को अमल में लाते-लाते 1835
दिन या 438300 घंटें और-तो-और पूरे-के-पूरे 2628000 मिनट बीत जाते हैं। हां हर नेता अपनी
तिजौरी को भरने का काम जरूर करते रहते हैं।
आजादी के पहले और बाद में कुछ नेता शायद अपवाद
स्वरूप इस देश की स्थिति को सुधारने के लिए परिलक्षित हुए होगें, अब तो वो भी नहीं दिखाई देते। हर एक
नेता ने ईमानदारी और शराफत का मुखोटा लगा रखा है। एक नकाब तो दूर की बात है मुखोटे
के ऊपर भी मुखोटा लगा रखा है। ताकि मुखोटे के पीछे छिपे भ्रष्टाचारी, लूटखोरी, गरीब जनता का खून चूसने वाला ड्राकुला वाला असली चेहरा छिपा रहे।
जैसा कि हम लोग पहले इच्छाधारी नाग-नागिनों पर आधिरित फिल्में देखा करते थे कि 24 घंटों में एक बार जरूर नाग-नागिन अपने
असली रूप में आते दिखाई देते थे। हालांकि इन नेता पर यह भी लागू नहीं होता। यह तो
पांच सालों के लंबे अतंराल में कभी भी, कहीं
भी अपने असली रूप में प्रकट हो जाते हैं। यदि इनके असली रूप को कोई आम इंसान देख
ले तो इनके असली रूप को छिपाने के लिए संपूर्ण नाग प्रजाति बचाव में उतर आती है
अपने-अपने जहर का इस्तेमाल करने के लिए। ताकि किसी और नाग का असली चेहरा समाज के
सामने न आ सके।
आप सभी सकते में जरूर होगें कि मैं सभी नेताओं
को गरिया रहा हूं, वैसे मैं इन नेताओं को गरिया के अपना
ही मुंह खराब कर रहा हूं,
क्योंकि इन नेताओं पर जब गरीबों की हाय, बद्दुओं का कोई असर नहीं होता तो मेरे
गरियाने से इनका क्या बिगड़ने वाला है। फिर भी जैसा मैंने पहले कहा कि इनको तो सरे
आम बीच चैराहे पर जूतों-चप्पलों से मारना चाहिए क्योंकि यह नेता इसी लायक हैं।
वैसे आप सब तो जानते ही हैं कि कुछ एक नेताओं ने इसका भी स्वाद चख लिया है। अब
बारी है सरे आम चैराहे पर घसीट कर लाने की। क्योंकि देश को इस स्थिति तक लाने वाले
यही नेता है।
फिर भी देश की इस स्थिति को देखकर अब तक हम सब
हाथों-पे-हाथ रखकर तमाशा देख रहे हैं। करना तो कुछ पडे़गा ही। देश की जनता को
चाहिए कि इन नेताओं के सम्मोहन की नींद से जागें और लूटखारे व भ्रष्टचारी नेताओं
का खात्मा करके भारत मां को बचाने का प्रयास करें। नहीं तो यह नेता अपने स्वार्थों
के चलते कहीं अपने देश का ही न दांव पर लगा दे। और हम पुनः आजाद से गुलाम न बन
जाए। जिस आजाद भारत की सुबह की किरणों को देने में हमारे पूर्वजों ने अपने प्राणों
की भी परवाह तक नहीं की। और हमें आजाद भारत के आसमान तले स्वतंत्रता हवा प्रदान
की। जिसको यह नेता दूषित कर रहे है।
1 comment:
बहुत संतुलित लेख ..
कुछ तो करना ही होगा ..
Post a Comment