खैरात नहीं, रोजगार दो!
बेरोजगारी एक ऐसा अभिशाप है जिसका दंश एक उम्र
के पड़ाव के बाद, आज के दौर में हर किसी को झेलना ही
पड़ता है। किसी को कम, किसी को अधिक समय के लिए इस शाप से
शापित रहना ही पड़ता है। वहीं व्यक्ति अपनी हैसियत के मुताबिक अपने-अपने बच्चों को
अच्छी-से-अच्छी शिक्षा प्रदान कराने की पूर्ण कोशिश करने हैं, चाहे इसके लिए कर्जा ही क्यों न लेना
पड़े। क्योंकि वह चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छी तालीम ले और योग्यतानुसार रोजगार
पाकर उनके व अपने सपनों को साकार कर सकें। परंतु होता ठीक इसके विपरीत है। मां-बाप
अपना पेट काट-काटकर जैस-तैसे शिक्षा तो प्रदान करा देते हैं, इसके वाबजूद रोजगार के लिए उन्हें
दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है। उदाहरणस्वरूप मुझे ही लिया जा सकता है कि उच्च
शिक्षा (पीएच-डी.) ग्रहण करने के उपरांत भी रोजगार की दूर-दूर तक कोई आस नजर नहीं
आ रही है। साक्षात्कार तो बहुत जगहों पर दिए, परंतु
सिफारिश और पैसे न होने के कारण हर जगह से निराशा ही हाथ लगी। फिर भी कोशिश जारी
है, जारी ही रहेगी। कब तक यह मुझसे दूर
भागेगी, कभी-न-कभी इसको मेरे पहलू में आना ही
पड़ेगा।
वैसे इस बेरोजगारों की दौड़ में मैं ही अकेला
नहीं दौड़ राहा हूं, मेरे जैसे न जाने कितने, कोई आगे कोई पीछे दौड़ ही रहे हैं। और
यह दौड़ अब कतार का रूप लेती जा रही है। इसका कारण बस यही है कि पहले से दौड़ रहे
बेरोजगार अब भी बेरोजगार हैं और शिक्षा पाकर नए प्रतिभागी भी इस बेरोजगारी की दौड़
में शामिल हो जाते हैं।
शायद शिक्षा प्रणाली ही पूर्ण रूप से दोषी है
कि वह सभी को शिक्षा मुहैया करवा देती है और रोजगार के नाम पर ठेगा दिखा देती है।
हालांकि रिक्त पदों की बात की जाए तो संपूर्ण भारत में लाखों सरकारी विभागों में
करोड़ों पद सालों से खाली पड़े हुए हैं। इनको न भरे जाने का मूल कारण जो मेरी समझ
में आता है वह मात्र यह है कि या तो किसी के सगे-संबंधी का इंतजार हो रहा है या
फिर जितना रूपया उच्च अधिकारी मांग रहे हैं उतना नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा
और कोई कारण मेरी समझ से परे है। अगर प्रतिभागी की योग्यता की बात करें तो लाखों
ऐसे बेरोजगार हैं जो योग्य होने के बावजूद बेरोजगार है। इनके बेरोजगार होने पर
संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को कठघरे में खड़ा करने मन करता है कि क्यों ऐसी शिक्षा
प्रदान की जा रही है जो रोजगार न दिला सके।
उसी पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री
मुलायम सिंह यादव और अब मुख्यमंत्री अखलेश यादव द्वारा बेरोजगारों को बेराजेगारी
भत्ता के रूप में 1000 रूपये प्रतिमाह दिए जा रहे हैं ताकि
यह बेरोजगार, रोजगार के लिए सरकार के खिलाफ आवाज न
उठा सके। इनका मुंह बंद कराने के तौर पर इनको रोजगार नहीं खैरात बांटी जा रही है।
जिसका विरोध होना चाहिए, नहीं हुआ। कारण जो भी रहे हो।
अगर प्रतिमाह 1000 रूपये का विश्लेषण किया जाए और इस 1000 में 30 से भाग दिया जाए तो 33.33 प्रतिदिन आएगा। यानि एक बेरोजगार अपना
व अपने परिवार का खर्च इस कमर तोड़ मंहगाई में 33रूपये
33पैसे में कैसे चला सकता है? यह तो सरकार ही बता सकती है। मेरे
नजरिए से यह तो भीख के समान ही है। साथ-ही-साथ यह 1000 रूपये की खैरात इन बेरोजगारों की योग्यता और काबलियत पर बहुत बड़ा
प्रश्न चिह्न लगाती नजर आती है। और तो और जिस मेहनत व लगन से यह पहले रोजगार के
पीछे हाथ धोकर लगते थे वह कुंठाग्रस्त हो चुके हैं कि चलो बिना किसी काम के घर
बैठे ही 1000 रूपये तो मिल जा रहे हैं। परंतु ऐसा
कब तक चलेगा।
सभी को एक जुट होकर इसका विरोध करना पड़ेगा और
मुख्यमंत्री से कहना पड़ेगा कि खैरात नहीं, रोजगार
चाहिए।
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